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द्रुतगामी एवं ऊर्जा दक्ष संगणन (कम्प्यूटिंग) का समाधान वैलीट्रॉनिक्स

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मुंबई
20 जून 2022
द्रुतगामी एवं ऊर्जा दक्ष संगणन (कम्प्यूटिंग) का समाधान वैलीट्रॉनिक्स

सिलिकॉन आधारित इलेक्ट्रॉनिक युक्तियाँ (डिवाइसेस) गत 50 वर्षों में 2000 गुना तक संकुचित हुई हैं। प्रौद्योगिकी उस सीमा की ओर अग्रसर है कि कितना सूक्ष्मतम एवं सघन इलेक्ट्रॉनिक परिपथ निर्मित किया जा सकता है। अल्पतम क्षेत्र में अधिकतम संसाधन क्षमता का संभरण करने हेतु शोधकर्ता प्रौद्योगिकी, नवीन पदार्थों एवं इनके परमाण्विक गुण-धर्मों के अनुसंधान में रत हैं। किंतु ताप उत्पन्न होना सघन परिपथ (डेंस सर्किट) की एक अन्य समस्या है। हमारे मोबाइल के संसाधक (माइक्रोप्रॉसेसर) में कुछ ही नेनोमीटर (एक मिलीमीटर का दस लाखवां भाग) चौड़ाई के लाखों ट्रांजिस्टर होते हैं। लाखों ट्रांजिस्टर जब 1 सेमी x 1 सेमी की चिप पर तार्किक दशाओं (लॉजिक स्टेट्स) 0 एवं 1 के मध्य विद्युतीय गति एवं उग्र रूप से स्विच करते हैं तो तापीय ऊष्मा की सघनता अधिक हो सकती है। ऊर्जा दक्षता युक्त संगणन शक्ति (कम्प्यूटेशनल पॉवर) की तीव्रता से बढ़ती हुई आवश्यकता को पूर्ण करने हेतु हमें नवीन तकनीकों का अनुसंधान करना होगा। तथा वैलीट्रॉनिक्स एक ऐसी ही विश्वसनीय तकनीक है जिसके माध्यम से हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। यह सूचना की क्वांटम एनकोडिंग की अनुमति देती है, अत: नूतन विषय क्वांटम कम्प्यूटिंग की दिशा में मार्ग प्रशस्त करती है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) के पूर्वस्नातक छात्र कौस्तव जाना एवं प्राध्यापक भास्करन मुरलीधरन द्वारा वैलीट्रॉनिक्स तंत्र के अभिन्न अंग, द्रोणि ध्रुवीकरक (वैली पोलराइज़र) के लिए एक यंत्र-संरचना प्रस्तावित की गयी है। यह प्रकाशिकी में प्रयुक्त किये जाने वाले प्रकाशकीय ध्रुवीकरक (पोलराइज़र) के अनुरूप (एनालॉगस) है। प्रस्तावित युक्ति के सुदृढ़ एवं पूर्ण वैद्युतीय होने के कारण इसे आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ निर्बाध रूप से (सीमलेसली) एकीकृत किया जा सकता है। साथ ही प्रचलित तकनीक के उपयोग से इसे गढ़ा जा सकता है। यह युक्ति द्वि-आयामी (2-डी) पदार्थों, अर्थात एकल परमाणु मोटाई की परत वाले कुछ पदार्थों के उपयोग पर बल देती है। उनका यह शोध एनपीजे 2डी मैटेरियल्स एंड एप्लीकेशंस नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। यह अध्ययन विज्ञान और इंजीनियरी अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) एवं शिक्षा मंत्रालय (पूर्व में एमएचआरडी) द्वारा वित्त पोषित किया गया है। 

सूचना व्यक्त करने एवं तार्किक क्रियाओं (लॉजिकल ऑपरेशंस) का निष्पादन करने हेतु संगणक मात्र 0 एवं 1 का प्रयोग करते हैं। इन अंकों को किसी भी सुविधाजनक उपाय के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सकता  है, जैसे ऊपर या नीचे किये जा सकने वाले उत्तोलक (लीवर) अथवा ऑन या ऑफ किये जा सकने वाले किसी स्विच के द्वारा। अभी तक तार्किक परिपथ (लॉजिकल सर्किट) एवं स्मृति तकनीकें केवल इलेक्ट्रॉन के विद्युत् आवेश एवं तत्सम्बन्धी गुणधर्मों का उपयोग करती रही हैं। दो द्विमानीय अवस्थाओं (बाइनरी स्टेट्स) 0 एवं 1 को विद्युत् आवेशों का प्रवाह अर्थात विद्युत् धारा या इसका अभाव ही परस्पर जोड़ता है। शोधकर्ता वर्तमान में इलेक्ट्रॉनों के क्वांटम गुणधर्मों जैसे कि स्पिन एवं द्रोणि (वैली) की स्वतन्त्रता की कोटियों (डिग्री ऑफ फ्रीडम) के अन्वेषण में लगे हुए हैं। द्रोणि की स्वतन्त्रता कोटि 2-डी पदार्थों की इलेक्ट्रॉनिक पट्ट संरचना (बैंड स्ट्रक्चर) में किसी स्थानिक चरम (लोकल एक्सट्रिमा) को व्यक्त करती है। इसका उपयोग दो स्थाई द्विमान अवस्थाओं (बाइनरी स्टेट्स) को उत्पन्न करने हेतु किया जा सकता है। सूचना प्रसंस्करण हेतु तथाकथित द्रोणि (वैली) स्वतन्त्रता की कोटि का समुपयोग करना वैलीट्रॉनिक्स कहलाता है जो स्पिन्ट्रानिक्स के अंतर्गत स्पिन की स्वतन्त्रता कोटि के अनुरूप ही है।

द्वि आयामी पदार्थों में स्थाई द्रोणि  (वैली) अवस्थाएं

क्वांटम सिद्धांत के अनुसार इलेक्ट्रॉन कणों के रूप में व्यवहार करने के साथ-साथ तरंग गुणधर्मों का भी प्रदर्शन करते हैं। स्थूल स्तर (मेक्रोस्कोपिक लेवल) पर अधिकाँश पदार्थों के गुणधर्मों का अध्ययन करते समय हम क्वांटम प्रभाव को सघन एवं प्रभावी परिमाण में संपुटित करते हैं, जैसे कि प्रभावी द्रव्यमान एवं चालकता (इफेक्टिव मॉस एंड कंडक्टिविटी)। यद्यपि कुछ विशिष्ट पदार्थों का वर्ग भी है जिसमें इलेक्ट्रॉन की तरंग प्रकृति तथा तत्सम्बन्धी “क्वांटम प्रकृति” स्थूल स्तर पर भी विचारणीय होती है। इन विशिष्ट पदार्थों को ही क्वांटम पदार्थ कहा जाता है। अधिकाँश 2-डी पदार्थ इसी श्रेणी में आते हैं।

ग्रफीन, कार्बन के द्विआयामी रूप वाला एवं षटकोणीय जालक संरचना (हेक्ज़ागोनल लैटिस स्ट्रक्चर) युक्त एक ऐसा क्वांटम पदार्थ है जिस पर व्यापक शोध की गयी है। समूह IV के अन्य तत्व (जिनमें चार संयोजी इलेक्ट्रॉन होते हैं) सिलिकॉन, जर्मेनियम एवं टिन का भी कार्बन के समान 2-डी स्वरुप होता है जिन्हें क्रमश: सिलिकेन, जर्मेनेन एवं स्टेनेन कहते हैं। 2-डी ज़ेनेस (Xenes) नामक ये पदार्थ रोचक गुणधर्मों से युक्त होते हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों में ये पदार्थ, समग्र रूप से तो पारंपरिक विद्युत् कुचालकों जैसा व्यवहार करते हैं, किंतु आस्तरण (शीट) की परिसीमा पर विद्युत् सुचालक प्रणालियों (कंडक्टिंग चैनल्स) के द्वारा अत्यंत सरलता से एवं प्राय: प्रतिरोध रहित विद्युत् प्रवाह करने में सक्षम होते हैं। “यह कुछ वैसा ही है जैसे अराजक यातायात वाले  किसी नगर में यातायात की सुगमता हेतु समर्पित राजमार्गों की उपस्थिति,” प्राध्यापक भास्करन स्पष्ट करते हैं। “इस प्रकार की सुचालक प्रणालियों को आवश्यकतानुसार, इन पदार्थों में समग्र रूप से भी अभियन्त्रित किया जा सकता है,” कौस्तव जाना आगे बताते हैं।

द्विआयामी ज़ेन (Xene) पदार्थों में दो द्रोणियाँ होती हैं जिन्हें K एवं K’ माध्यम से नामित किया जाता है। इन पदार्थों के ऊर्जा निरूपण में सामान्यत: पट्ट संरचना (बैंड स्ट्रक्चर) कही जाने वाली ये द्रोणियाँ न्यूनतम (मिनिमा) को व्यक्त करती हैं। इन द्रोणि अवस्थाओं को दक्षतापूर्वक एवं विश्वसनीय रीति से तार्किक अवस्थाओं (लोजिक गेट्स) के रूप में प्रस्तुत करने हेतु इनका स्थिर, नियंत्रित एवं पदार्थ के दोषों एवं विकारों (डिफेक्ट एवं डिसआर्डर ) के प्रति सुदृढ़ होना अति आवश्यक है। यह द्विआयामी ज़ेन में वैद्युतीय प्रक्रिया के द्वारा सुदृढ़ द्रोणि-ध्रुवित सुचालक प्रणाली (वैली-पोलराइज़्ड कंडक्टिंग चैनल्स) अभियंत्रित कर प्राप्त किया जा सकता है। सिलिकेन, जर्मेनेन एवं स्टेनेन की जालक संरचनाएं (लैटिस स्ट्रक्चर) आकुंचित (Buckled) होती हैं; अर्थात लैटिस परमाणु वास्तव में एक तल पर न होकर इसके कुछ ऊपर एवं नीचे स्थित होते हैं। यह आकुंचित संरचना, विशिष्ट स्थिर द्रोणि अवस्थाओं (डिस्टिंक्ट स्टेबल वैली स्टेट्स) के वैद्युतीय नियंत्रण को सुगम बनाती है। द्रोणियों का आकाशीय प्रथक्करण (Spatial Separation) इनको युक्तियोजित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

पूर्व शोधों के अनुसार प्रकाश अथवा चुम्बकीय क्षेत्र के माध्यम से इन द्रोणियों (Valleys) का आकाशीय प्रथक्करण संभव है। यद्यपि वर्तमान उपकरणों में वैलीट्रॉनिक्स युक्तियों का प्रयोग  करते हुए प्रकाश अथवा चुम्बकीय क्षेत्र के माध्यम से इन अवस्थाओं को नियंत्रित करना असुविधाजनक हो सकता है। युक्तियाँ सामान्यतः नियमित वोल्टेज आपूर्ति के द्वारा संचालित होती हैं, अत: विद्युतीय वोल्टेज के माध्यम से द्रोणि-अवस्थाओं का नियंत्रण, आधुनिक इलेक्ट्रॉनिकी के साथ इन वैलीट्रॉनिक्स युक्तियों के एकीकरण को सुगम बनाता है। 

आईआईटी मुंबई की युक्ति परिकल्पना

आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं ने आवेश वाहक प्रणाली के रूप में 2-डी ज़ेन पदार्थ की एकल परत के साथ निर्मित युक्ति संरचना का प्रस्ताव दिया है। विद्युत् धारा के प्रणाली (चैनल) में प्रवाह को गेट नामक एक टर्मिनल नियंत्रित करता है। यह आधुनिक ट्रांजिस्टर संरचना में विद्युत् धारा को गेट द्वारा नियंत्रित किये जाने के समान ही है। यह गेट संरचना जो द्रोणि (वैली) पृथक्करण का सृजन करने के काम भी आती है, 2-डी ज़ेन पट्टी (रिबन) को समाविष्ट करती है। ऊपर एवं नीचे के गेट विद्युत् धारा के प्रवाह की दिशा में दो भागों में विभक्त होते हैं - माना कि ए एवं बी। ऊपर का ए एवं नीचे का बी आपूर्ति के धनात्मक टर्मिनल से जोड़े जाते हैं एवं ऊपर का बी एवं नीचे का ए आपूर्ति के ऋणात्मक टर्मिनल से जोड़े जाते हैं। ऐसा ए एवं बी दोनों ओर विपरीत विद्युत् क्षेत्र निर्मित करने हेतु किया जाता है।


छायाचित्र: आईआईटी मुंबई द्वारा प्रस्तावित वैलीट्रॉनिक्स युक्ति संरचना 

रोचक विभक्त (स्प्लिट) गेट संरचना सुनिश्चित करती है कि द्रोणि ध्रुवीकृत अंतरफलक दशाएं (वैली-पोलराइज्ड इंटरफेस स्टेट्स) आकाश में पृथक्कृत रूप से हैं साथ ही पदार्थ के दोषों एवं विकारों जनित विशिष्ट विक्षोभ (डिस्टर्बेंस) के प्रति सुदृढ़ हैं।

“प्रस्तावित संरचना को विशिष्ट ट्रांजिस्टर संरचनाओं में उपयोग की जाने वाली प्रचलित गेटिंग प्रौद्योगिकी के माध्यम से आत्मसात किया जा सकता है। संरचना आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ निर्बाध रूप से एकीकृत की जा सकती है,” प्रा. भास्करन सूचित करते हैं।

विभिन्न तापमानों पर विद्युत् चालकता एवं द्रोणि-ध्रुवीकरण (वैली-पोलराईजेशन) की गणना करने हेतु शोधकर्ताओं द्वारा व्यापक रूप से क्वांटम युक्ति अनुरूपण (डिवाइस मॉडलिंग) का सिमुलेशन किया गया। उन्होंने पाया कि तापमान में वृद्धि के साथ चालकता बढ़ती है किंतु द्रोणि-ध्रुवीकरण घटता है। शोधकर्ताओं ने विक्षोभ (डिस्टर्बेंस) की उपस्थिति में भी युक्ति के प्रदर्शन का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि विक्षोभ में वृद्धि के साथ पदार्थ की चालकता तो अपरिवर्तित रही किंतु द्रोणि-ध्रुवीकरण क्षीण हुआ।

वैद्युत चालन एवं द्रोणि-ध्रुवीकरण के सन्दर्भ में इच्छित क्षमता प्राप्त करने के उद्देश्य से शोधकर्ताओं ने युक्ति मापदंडों को ऑप्टिमाइज़ करने के सहायतार्थ एक विश्लेषण भी दर्शाया जैसे कि पदार्थ और गेट के मध्य पृथकता दूरी। “हमें विश्वास है कि हमारा कार्य वैलीट्रॉनिक्स एवं स्पिन्ट्रानिक्स के क्षेत्र में संभावित अनुप्रयोगों के लिए 2-डी ज़ेन पदार्थों की उपयोगिता पर शोध से सम्बंधित नवीन मार्ग प्रशस्त करता है,” शोधकर्ता कहते हैं।