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दूध एवं खाने में एंटीबायोटिक्स की निगरानी करना आसान हो गया है

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मुंबई
6 सितंबर 2021
दूध एवं खाने में एंटीबायोटिक्स की निगरानी करना आसान हो गया है

चित्र: सविता शेखर, रिसर्च मैटर्स

प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक्स), जीवाणुओं (बैक्टीरिया) को मारने में बहुत प्रभावी होते हैं। यह तब तक होता हैं, जब तक कि जीवाणु दवा के प्रति प्रतिरोधी नहीं बन जाते। मनुष्यों और जानवरों में जीवाणु संक्रमण के इलाज के लिए एंटीबायोटिक्स का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इनका उपयोग घरो में फर्श साफ़ करने और साबुन आदि के रूप में में भी किया जाता है। एंटीबायोटिक्स, इन स्रोतों से पर्यावरण में प्रवेश करते हैं और हमारे भोजन और पानी को दूषित करते हैं, जिससे ये जीवाणुओं को उन दवाओं के प्रति प्रतिरोधक बनने का अवसर प्रदान करते हैं, जो पहले उन्हें खत्म कर सकती थीं। इसका मतलब यह है कि जिन दवाओं का हम किसी विशेष बीमारी के उपचार के लिए उपयोग कर सकते थे, वे अब कारगर नहीं रही हैं।

हमें अपने दूध और मांस या अपने आस-पास के पानी में एंटीबायोटिक के स्तर की  जांच  करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह न्यूनतम मान में है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई और मणिपाल प्रौद्योगिकी संस्थान, मणिपाल; संस्थानों से प्राध्यापक सौम्यो मुखर्जी के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक समूह ने यह पता लगाने के लिए एक सेंसर विकसित किया है कि क्या नमूने में किसी प्रकार के एंटीबायोटिक्स समाविष्ट हैं, जिन्हें बीटा-लैक्टम एंटीबायोटिक्स के रूप में पहचाना जाता है। उन्होंने इस शोध को एनालिटिकल केमिस्ट्री नामक पत्रिका में प्रकाशित किया है।

किसी नमूने में एंटीबायोटिक है या नहीं, यह जांचने के लिए अलग-अलग विधियां हैं लेकिन वे उक्त एंटीबायोटिक के स्तर का निर्धारण नहीं कर सकती हैं। मास स्पेक्ट्रोस्कोपी या मानकीकृत क्रोमैटोग्राफी जैसे अन्य तरीके एंटीबायोटिक दवाओं के स्तर को माप सकते हैं लेकिन ये अधिक महंगे हैं और उनके लिए विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत, प्राध्यापक मुखर्जी और टीम द्वारा विकसित सेंसर उपयोग में आसान, ठोस, किफायती, और विश्वसनीय है। इसका उपयोग पानी, दूध और मांस सहित विभिन्न प्रकार के नमूनों में बीटा-लैक्टम एंटीबायोटिक की उपस्थिति की जांच के लिए किया जा सकता है और इसके उपयोग के लिए किसी विशेषज्ञ की आवश्यकता नहीं है।

पेनिसिलिन और इसी तरह के एंटीबायोटिक्स जैसे सेफलोस्पोरिन को बीटा-लैक्टम एंटीबायोटिक्स कहा जाता है। वे अपने आणविक संरचना में नाइट्रोजन युक्त एक रिंग की उपस्थिति से अपना यह नाम प्राप्त करते हैं। एंटीबायोटिक्स सूक्ष्मजीवों की एक विस्तृत विविधता को मार सकते हैं, जिससे वे न केवल मामूली संक्रमण के इलाज के लिए एक पसंदीदा दवा है, बल्कि विभिन्न घरेलू उत्पादों जैसे फर्श साफ़ करने और साबुन एवं दूध और पोल्ट्री जैसे खाद्य उत्पादों में एक घटक के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। बीटा-लैक्टम रिंग बैक्टीरिया की कोशिका भित्ति को लक्षित करके काम करती है, जिससे बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। एंटीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोधी सूक्ष्मजीव β-lactamase नामक एक एंजाइम को स्रावित करके भंजन से बचते हैं जो बीटा-लैक्टम रिंग को तोड़ता है और इस प्रकार एंटीबायोटिक को निरर्थक कर देता है।

सेंसर में यू-पिन से छोटा एक यू-आकार का ऑप्टिकल फाइबर का बना एक वक्र होता है, जो  पॉलीएनिलिन के साथ लेपित होता है और जिसे परीक्षण के लिए नमूने में डुबोया जा सकता है। एंजाइम β-lactamase की एक परत के साथ पॉलीएनिलिन को लेपित करने के बाद सेंसर उपयोग के लिए तैयार हो जाता है। जब परीक्षण नमूने में बीटा-लैक्टम, β-lactamase एंजाइम द्वारा विघटित कर दिया  जाता है, तो हाइड्रोजन आयन निकलते हैं, और एसिड उपोत्पाद बनते हैं। यह पॉलीएनिलिन की बहुलक क्षार को बदल देता है- इसके रूप को एमराल्डिन(emeraldine) क्षार से एमराल्डिन (emeraldine) लवण में बदल देता है। इसे प्रकाश, जिसकी तरंगदैर्घ्य 435 एनएम (nm) है, के अवशोषण में वृद्धि के रूप में देखा जाता है और अवशोषित प्रकाश की मात्रा परीक्षण नमूने में एंटीबायोटिक की एकाग्रता के समानुपाती होती है जिससे विलयन अधिक अम्लीय हो जाता है। पीएच के प्रति संवेदनशील फाइबर पर पॉलीएनिलिन लेपन द्वारा प्रकाश को अवशोषित किया जाता है। अवशोषित प्रकाश की मात्रा परीक्षण नमूने में एंटीबायोटिक की सांद्रता के समानुपाती होती है।

शोधकर्ताओं ने इस सेंसर का उपयोग दूध, मांस और अपशिष्ट जल के नमूनों में एंटीबायोटिक की एकाग्रता को मापने के लिए किया, जिसमें एंटीबायोटिक की एक ज्ञात मात्रा थी। शोधकर्ताओं ने पाया कि नमूने के थोड़ा अम्लीय (पीएच 5.5) होने पर सेंसर सबसे संवेदनशील था; इसलिए, उन्होंने अन्य नमूनों के लिए समान अम्लता स्तर का उपयोग किया। शोध में यह भी पाया गया कि अपशिष्ट जल के लिए सेंसर द्वारा पता लगाए जाने वाले एंटीबायोटिक दवाओं की न्यूनतम सांद्रता दूध की तुलना में दोगुनी थी।

वैज्ञानिकों ने पाया कि सेंसर, दूध की तुलना में मांस में एंटीबायोटिक के प्रति काफी कम संवेदनशील है। हालांकि, यह देखते हुए कि मांस में एंटीबायोटिक का पता लगाने के लिए शायद ही कोई सेंसर है, यह मान भी महत्वपूर्ण है। चूंकि अधिकांश खाद्य सुरक्षा प्रशासक पोल्ट्री (मुर्गी पालन) में बीटा-लैक्टम एंटीबायोटिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाते हैं, ऐसे में यह विशेष रूप से उपयोगी है।

“सेंसर विकास चुनौतियों से मुक्त नहीं था। उपयोग में लाने के लिए सेंसर का अंशांकन करना और विभिन्न नमूनों में न्यूनतम संभव एंटीबायोटिक एकाग्रता का पता लगाने के लिए इन्हे संवेदनशील बनाना, सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक था,” डॉ पूजा बताती हैं।

वैज्ञानिकों ने यह भी जांचा कि क्या यह सेंसर बीटा-लैक्टम एंटीबायोटिक के लिए विशिष्ट था। उन्होंने देखा कि जब अन्य एंटीबायोटिक युक्त विलयन में सेंसर का उपयोग किया गया था, तो यह  एंटीबायोटिक का पता नहीं लगा पाया।

एंजाइम के साथ लेपित न होने की स्थिति में, ये सेंसर लंबे समय तक संग्रहीत किए जा सकते है। लेकिन एक बार एंजाइम से लेपित हो जाने के बाद, सेंसर को 4℃ तापमान पर रखा जाना चाहिए। उच्च पैमाने पर निर्मित होने पर, सेंसर की कीमत 30-35 रुपये से भी कम हो सकती है। यह मूल्य, आज उपयोग में आने वाली पारंपरिक तकनीकों के लिए देने वाले 3000 रूपयो की तुलना में बहुत कम है। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक सेंसर का दो बार तक उपयोग किया जा सकता है, जो इसकी परीक्षण लागत को और कम करता है। शोधकर्ताओं ने सेंसर के लिए पेटेंट के लिए आवेदन किया है और अनुमोदन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

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