भवनों की छतों पर छोटे-छोटे पेड़-पौधों का रोपण कर, घने नगरीय क्षेत्रों में बाढ़ के प्रकोप एवं अपवाह (रनऑफ) को घटाया जा सकता है।

क्या पौधों का बाहुल्य ज़्यादा कीटों को आकर्षित करता है? चलो,पता करें इस अध्ययन के द्वारा !

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Bengaluru
8 अप्रैल 2019
क्या पौधों का बाहुल्य ज़्यादा कीटों को आकर्षित करता है? चलो,पता करें इस  अध्ययन के द्वारा !

शाकाहारी कीटों में पौधों के समुदायों की संरचना और कार्य को प्रभावित करने और आकार देने की क्षमता होती है। कीटों की कुछ प्रजातियाँ अपने जीवन चक्र का कुछ हिस्सा या पूरा जीवन कुछ विशिष्ट पौधों पर ही गुज़ारती हैं। चूँकि उन्होंने लाखों वर्षों से पौधे के साथ सह-सम्बंध विकसित कर लिया होता है इसलिए जिन पौधों का वे सेवन करते हैं उनकी पत्तियों की लंबाई और आकार के विकास पर उनका असर पाया जाता है। इन दोनों के बीच के सम्बंधों को समझने से इस तरह के सवाल कि क्यों पत्तियों की लंबाई और आकार में इतनी विविधता होती है, का जवाब मिल सकता है। एम.ई.एस. आबासाहेब गरवारे कॉलेज, पुणे के श्री आशीष नेरलेकर द्वारा लिखित बायोलॉजी ओपन  पत्रिका में हाल ही में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ है इसमें उन्होंने ‘जेट्रोफा नाना ‘ पौधे पर शाकाहारी कीटों की प्रचुरता होने से पौधों  के बाहुल्य पर क्या प्रभाव पड़ता है’ का अध्ययन किया है।

जेट्रोफा नाना  या बौना जेट्रोफा  एक संकटग्रस्त उष्णकटिबंधीय बारहमासी जड़ी-बूटी है जो भारत के पुणे शहर में पायी जाती है। यह मई के महीने में फलती है और मानसून के अंत तक रह्ती है। बाकी के समय यह भूमिगत कंद के रूप में जीवित रहती है। भारत के पुणे में वेताल पहाड़ियाँ, तलजई पहाड़ी, पाषाण -बानेर पहाड़ी और एनडीए पहाड़ियों में जेट्रोफा नाना  की सबसे अधिक बहुतायत है।

“ इन दिनों बौना जेट्रोफा  कुछ ही स्थानों पर और बहुत ही कम संख्या में पाया जाता है। इसलिए इस पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है। इस पौधे को खाने वाले कीट इसकी आबादी को बदल देते है। इसलिएकी टऔर पौधों के सह-सम्बंधों का अध्ययन करना बहुत महत्त्वपूर्णर्ण है,” श्री नेरलेकर कहते हैं। मेज़बान पौधे का बाहुल्य और शाकाहारी कीटों की प्रचुरता के बीच के सम्बंध को समझने के लिए कई सैद्धांतिक मॉडल प्रस्तुत किए गए हैं। ऐसा ही एक मॉडल ‘संसाधन संकेंद्रण परिकल्पना’ है, जिसका पूर्वानुमान है कि प्रत्येक पौधे पर वनस्पति -विशेष कीटों की संख्या मेज़बान पौधे के घनेपन को बढ़ा देती है। इस परिकल्पना का परीक्षण किया गया है और कई मायनों में यह प्रकृति में सही भी साबित हुई है। हालिया अध्ययन ‘आइडिया वाइल्ड’ यूएसए द्वारा पोषित है जो जेट्रोफा पौधे कि इस परिकल्पना को समझने के लिए है कि क्या जेट्रोफा पौधों की बहुतायत का सम्बन्ध प्रति पौधे पर ज़्यादा कीटों पोषण से है?

शोधकर्ताओं ने पुणे की पहाड़ियों में मेज़बान पौधे के सक्रिय जीवन चक्र के विभिन्न चरणों का क्षेत्रीय अवलोकन किया और शाकाहारी कीटों की 17 प्रजातियों जिसमें जिनमेंझींगुरों) बीटल, ट्रूबग , पतंगों और तितलियों का अवलोकन किया। उन्होंने पाया कि पौधों को खाने वाली सभी कीट प्रजातियाँ “सम्बद्ध ” थीं मतलब यह कि वे विशेष रूप से एक श्रेणी या फेमिली से सम्बंधित पौधों, जैसे बौना जेट्रोफा, को भोजन के रूप में खाती हैं। उन्होंने यह भी पाया कि इस पौधे को सबसे ज़्यादा खाने वाले पेम्पिलिया मोरोसलिस पतंगे की संख्या विशेषरूप से अधिक थी।

तो क्या ‘संसाधन संकेंद्रण परिकल्पना’ जंगली उष्णकटिबंधीय प्रणाली की जेट्रोफा पौधों के बारे में खरी उतरती है ? श्री नेरलेकर कहते हैं कि मेरे आँकणों के अनुसार इसका उत्तर हाँ और ना दोनों है, और यह कई कारकों पर निर्भर करता है जैसे कि मौसम। शोध के परिणाम बतलाते हैं कि ‘ज़्यादा पौधों का मतलब प्रति पौधे पर ज़्यादा कीट’, यह पूर्वानुमान केवल पौधों के   बढ़त के शुरुआती चरण के लिए सही है। शेष मौसम के लिए इसका उल्टा पैटर्न देखा गया है यानी ज़्यादा पौधों का मतलब प्रति पौधे को कम कीट ही खाते हैं।

इस अध्ययन के अवलोकनों से पता चलता है कि इस तरह के “ संसाधन की कमी का प्रभाव” जिसमे संसाधन की कमी हो जाने पर संसाधन -पोषितों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो जाती है, आसामान्य नहीं है। इसी तरह के पहले किए गए “ संसाधन की कमी का प्रभाव” अध्ययन के अनुमान का आकलन किया और पाया कि ऐसी  घटना, जितना सोचा गया था उससे और ज़्यादा व्यापक हो सकती है। इस शोध का मतलब यह है कि प्रकृति में “संसाधन संकेंद्रण के प्रभाव” पर दुबारा विचार करने की ज़रूरत है।

इस अध्ययन में,  जेट्रोफा पौधों पर,जिनके बारे में बहुत कम जानकारी है , प्रकाश डाला गया है, जो आईयूसीएन आकलन के अनुसार ‘वल्नरेबल’ श्रेणी में सूचीबद्ध किए गए हैं और पुणे के आसपास के क्षेत्र में वनीकरण गतिविधि के कारण जल्द ही ये विलुप्ति की कगार पर होंगे। पहाड़ी को हरा-भरा बनाने के लिए कई संस्थाएँ और प्रकृति प्रेमी पेड़ लगा रहे हैं, जो दुर्भाग्य से उस खुली प्राकृतिक छटा, पेड़-घास मिश्रित तंत्र को लकड़ी के जंगल वृक्षसंकुल में बदल देगा। इस परिवर्तन से न केवल जेट्रोफा पौधों को नुकसान पहुँचेगा बल्कि उन पर निर्भर कीटों और स्थानीय जैवविविधता को भी नुकसान पहुँचेगा।

यह अध्ययन उनमें से कुछ हैं जो उष्णकटिबंधीय में कीट-पौधे के संबंधों के आँकड़ों को इकट्ठा करते हैं। मेज़बान पौधों का बाहुल्य और शाकाहारी कीटों की प्रचुरता के बीच के सम्बंध को समझने के लिए हालिया प्रस्तावित सैद्धांतिक मॉडल के बावजूद फिलहाल जंगली उष्णकटिबंधीय तंत्र के लिए प्रयोगाश्रित प्रमाण सीमित हैं। इस शोध में सूखे शहरी घास के मैदानी इलाके में स्थित जंगली, बौनी जड़ी-बूटी के पैटर्न पर प्रकाश डाला गया है। श्री नेरलेकर कहते हैं कि मुझे उम्मीद है कि प्रस्तावित मॉडल की पुष्टि के लिए ,उष्णकटिबंधीय जंगली पौधों से सम्बंधित क्षेत्रों में विभिन्न कार्यात्मक समूहों द्वारा विभिन्न जैव-भौगोलिक क्षेत्रों में इसी तरह के कई शोध  शुरू किए जाएंगे।