शोधकर्ताओं ने द्वि-आयामी पदार्थों पर आधारित ट्रांजिस्टर निर्मित किये हैं एवं ऑटोनॉमस रोबोट हेतु अत्यंत अल्प-ऊर्जा के कृत्रिम तंत्रिका कोशिका परिपथ निर्मित करने में इनका उपयोग किया है।

नए अध्ययन से पता चलता है कि नया कोरोनावायरस खाँसी के माध्यम से कितने प्रभावी रूप से फैलता है

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मुंबई
19 मार्च 2021
नए अध्ययन से पता चलता है कि नया कोरोनावायरस खाँसी के माध्यम से कितने प्रभावी रूप से फैलता है

चित्र: दिव्यांशी वर्मा, अनंप्लैश

संक्रमित वायुवाहित श्वसन बूंदें कोरोनोवायरस, जिसे पूर्व में SARS-CoV-2 के नाम से जाना जाता था, के प्रसार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। स्वशन मुखावरण (मास्क) के व्यापक उपयोग ने वायरस के प्रसार पर एक अंकुश लगा दिया है और बीमारी से प्रभावित लोगों की संख्या में कमी आई है। लेकिन, जैसे जैसे विश्वमारी पांव पसार रही है, जनता द्वारा व्यवहार संबंधी प्रतिबंधों का पालन करना कठिन होता जा रहा है। विभिन्न उत्सवों का आयोजन जारी है, और दुनिया भर की सरकारों के लिए लोगों को सुरक्षा दिशानिर्देशों का पालन करवाना कठिन होता जा रहा है। ऐसे परिदृश्य में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि किसी व्यक्ति की खाँसी या छींक के द्वारा वहन किए जाने वाले विषाणु युक्त द्रव कण परिवेशीय वायु में कैसे फैलते हैं।

शोधकर्ताओं ने पूर्व में पाया था कि किसी व्यक्ति के मुंह से दूर जाने के साथ ही खाँसी के साथ उत्पन्न वायुवाहित वायरस युक्त द्रव बूंदो की गति कम हो जाती है। हाल ही के एक अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई के शोधकर्ताओं ने गणितीय सूत्र के रूप में इस खोज का उपयोग एक सीमित क्षेत्र में नम हवा में से द्रव बूंदो के प्रसार के लिए किया है। यह शोधकार्य फिजिक्स ऑफ फ्लूइड्स नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि वायरस का प्रसार इस बात पर निर्भर नहीं करता कि खाँसी कौन और कितनी तीव्रता से कर रहा है। खाँसी के बाद निकलने वाली द्रव बूंदों द्वारा प्रच्छन्न हवा की मात्रा उसकी प्रारंभिक गति पर निर्भर नहीं करती है। गणितीय गणना से पता चला है कि यह मात्रा उस दूरी पर निर्भर करती है जो मुंह से फैलाव के साथ आगे बढ़ती है।

अध्ययन के लेखकों में से एक, प्राध्यापक रजनीश भारद्वाज कहते हैं कि "ये निर्भरताएं इसलिए उत्पन्न होती हैं क्योंकि द्रव बूँदें चारों ओर से वायु के बीच फंस जाती हैं।"

खाँसी के लिए प्रवाह के समीकरणों का विश्लेषण करके, शोधकर्ताओं ने पाया कि वातावरण वायु की एक बड़ी मात्रा धीरे-धीरे खाँसी के बाद उत्पन्न तरल फुवारे के अंदर फंस जाती है। समय के साथ, द्रवित फुवारे के अंदर छोटी बूंदो की सांद्रता उनकी प्रारंभिक सांद्रता से काफी कम हो जाती है। चूंकि वायरस को जीवित रहने के लिए तरल बूंदों की आवश्यकता होती है, इसलिए इसके प्रसार की संभावना कम हो जाती है। उन्होंने यह भी पाया कि खाँसी के तरल फुवारे का अग्र भाग उत्सर्जित होने के दो सेकंड के भीतर स्रोत से लगभग दो मीटर तक की दूरी पूरी कर लेता है। इसलिए, द्रवित फुवारे में वायरल तरल फैलाने की अधिकतम संभावना उत्सर्जन के तुरंत बाद होती है।

इस गणना ने शोधकर्ताओं को मुखावरण (मास्क) के प्रभाव को सटीकता से समझने में सक्षम बनाया है। पूर्व के प्रयोगों से पता चला है कि मुखावरण (मास्क) खाँसी के तरल फुवारे को फैलने से पहले ही रोक देते हैं और इस प्रकार उनके द्वारा तय करने वाली दूरी को कम कर देते हैं। शोधकर्ताओं ने अब द्रवित फुवारे की मात्रा पर सामान्यतया प्रयुक्त सर्जिकल मास्क और क्लिनिकल N95 मास्क के प्रभाव की तुलना की। एक व्यक्ति, चाहे मुंह ढ़के या नहीं, द्वारा खांसी के बाद उत्सर्जित द्रवित फुवारे लगभग 8 सेकंड तक प्रभावी रहते हैं, जब कि सर्जिकल मास्क बिना मास्क की तुलना में इसकी मात्रा को सात गुना तक कम कर देता है। यह भी पता चला है कि N95 मास्क अधिक अच्छा प्रदर्शन करते हैं, और इसे 23 गुना तक कम कर देते हैं। यह मात्रात्मक अनुमान इस बात पर स्पष्ट प्रकाश डालता है कि वायरस प्रसार नियंत्रण के लिए मास्क इतने प्रभावी क्यों हैं।

इस अध्ययन के एक अन्य लेखक प्राध्यापक अमित अग्रवाल कहते हैं कि "यदि कोई व्यक्ति खांसते समय मुखावरण (मास्क) का उपयोग नहीं कर रहा है, तो केवल हथेली या कोहनी से मुंह को ढककर वायरस के प्रसार को कम करना संभव है।

शोधकर्ताओं ने द्रवित फुवारे के प्रसार पर वातावरणीय वायु के तापमान और आर्द्रता के प्रभाव की भी गणना की। उन्होंने पाया कि द्रवित फुवारे का तापमान और आर्द्रता, वातावरणीय तापमान पर निर्भर करता है, जो इसके प्रसार की दूरी के साथ कम हो जाता है। तथापि, इसकी आर्द्रता अंत तक वातावरणीय वायु की नमी से अधिक रहती है, क्योंकि ये द्रवित फुवारे अपने आस-पास से जल वाष्प को अपने आप में समाहित करते हैं।

प्राध्यापक अग्रवाल कहते हैं कि, "केवल विश्वमारी काल में लोगों ने बीमारी के संचरण के संदर्भ में खांसी और छींकने पर अध्ययन के महत्व को महसूस किया है।" जबकि खांसी से संबंधित डेटा हाल ही में सृजित हुए हैं, एक अन्य शोध दल पहले से ही छींकने पर प्रयोग कर रहा है, और शोधकर्ता इन परिणामों का उपयोग छींक के प्रभावों पर विचार करने के लिए करेंगे।

प्राध्यापक भारद्वाज आगे बताते हैं, "इस तरह के अध्ययन से हमें उन लोगों की अधिकतम संख्या निर्धारित करने में सहायता मिलेगी जिन्हें चिकित्सालय के वार्ड में सुरक्षित रूप से रखा जा सकता है।"

इसके अतिरिक्त, खांसी या छींक के साथ आसपास के वायु प्रवाह में बदलाव कैसे विकसित होते हैं, उदाहरण के लिए, अगर कमरे में तेज हवा चल रही हो। यद्यपि ऐसी प्रवाह स्थितियों में विस्तृत प्रयोगों का संचालन करना इतना आसान नहीं है किन्तु इस पर काम पूर्ण गति से चल रहा है। एक बार जब इसके परिणाम आना आरम्भ हो जायेंगे तो शोधकर्ता अतिरिक्त व्यावहारिक स्थितियों पर विचार करते हुए अपने निष्कर्षों को संशोधित करेंगे।

प्राध्यापक अग्रवाल ने विदा लेते हुए कहा, "यह हमें हवा की एक ऐसी न्यूनतम प्रवाह दर का अध्ययन करने में सक्षम करेगा, जिससे एक कमरे, लिफ्ट, सिनेमा हॉल, कार, विमान केबिन, या रेस्तरां में हवा की ताजगी बनाए रखी जा सके और संक्रमण की संभावना को कम किया जा सके।"