कभी सोचा है कि क्यों सुई चुभने पर तो दर्द होता है, पर खून चूसने के लिए मच्छर द्वारा त्वचा बेधने पर एहसास भी नहीं होता? ग़ौरतलब, यह त्वचा को कैसे छेदा गया है इस पर निर्भर करता है! जहाँ मच्छर अपनी सूंड को आरे के समान आगे-पीछे चलाते हुए त्वचा को काटते हैं, वहीँ सुई त्वचा के ऊपर पूरा बल लगाकर उसे छेदती है।
अब वैज्ञानिक ऐसे कीड़ों के डंकों से सुराग लेकर, कई आकार-प्रकार की सुइयाँ विकसित करने को अग्रसर हैं, जिनमें कम पीड़ादायक सुइयाँ भी शामिल हैं। ऐसे ही एक अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर के प्राध्यापक अनिमांग्शु घटक और उनकी टीम ने प्रयोगों के द्वारा, मच्छर कैसे बिना पीड़ा दिए त्वचा को छेदता है इसके पीछे का भौतिक विज्ञान जानने की कोशिश की है। उन्होंने पाया कि सुई की धुरी पर निम्न आवृत्ति के कंपन, छेदने के प्रतिरोध को काफी कम करके पीड़ा भी कम कर देते हैं।
सुई चुभने पर दर्द इस पर निर्भर करता है की त्वचा के प्रतिरोध पर पार पाने के लिए कितने बल की आवश्यकता है- जितना ज्यादा प्रतिरोध होगा, उतना ज्यादा दर्द होगा। वैज्ञानिक पहले ही मच्छर के डंक से प्रेरित होकर, प्रतिरोध कम करने हेतु, विशिष्ट आकार की सुइयाँ विकसित कर चुके हैं। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि मच्छर, दूसरे तरीकों के सिवा, अपनी सूंड की धुरी के समांतर लम्बवत कंपन का भी सूंड द्वारा त्वचा बेधते समय प्रयोग करते हैं।
गौरतलब है कि बाजार में उपलब्ध कुछ इंजेक्शन की सुइयाँ उच्च आवृत्ति के कंपन को सुई के लंबवत्त उपयोग कर पीड़ा कम करने कि कोशिश करती हैं। यह प्रक्रिया असली पीड़ा से ध्यान बँटा कर पीड़ा को कम करती है, हालाँकि इससे अनचाहे ही ऊतकों को क्षति पहुँच सकती है।
"इसके विपरीत, हमारे बेध परीक्षण के परिणाम दिखाते हैं कि निम्न आवृत्ति (२०-५० HZ) के लंबवत्त कंपन पीड़ा कम करने हेतु काफी हैं। यह मच्छर की सूंड के पर्यवेक्षण को भी परिपुष्ट करता है, जो भी २०-५० HZ कि आवृत्ति पर ही आगे-पीछे चलती है," प्रोफेसर घटक ने समझाया।
शोधकर्ताओं ने सिरिंज की सुई के एक ऐक्रेलिक शीट पर रखे पॉलीएक्रीलामैड जेल के टुकड़े के अंदर प्रविष्ट करते हुए उस पर पड़ रहे बल को मापा। सुई की नोक के जेल में प्रविष्ट होने पर पहले-पहल वह जेल को दबाती है जो बिंधने का प्रतिरोध पैदा करती है। सुई के आगे बढ़ने पर, एक विशिष्ट अंतर पर, जेल रास्ता देता है और बेधने की दिशा में एक दरार उत्पन्न करता है। नोक के गहरे उतरने पर प्रतिरोध अब भी बना रहता है, अतएव पार्श्व दरारें उत्पन्न हो जाती हैं।
वस्तु का यह विशिष्ट अंतर, जो शियर मॉडुलस भी कहलाता है, उसकी स्वाभाविक कठोरता और सुई की नोक की मोटाई पर निर्भर करता है।अपने प्रयोगों में शोधकर्ताओं ने जाना की सुई पर प्रतिरोधक बल उसके विशिष्ट अंतर तक प्रविष्ट होने पर बढ़ जाता है, जहाँ जेल पर दरार पड़ती है और बल अचानक कम हो जाता है। हर बार, जब सुई जेल के अंदर महत्वपूर्ण विशिष्ट अंतर को पार करती है,बारी बारी से यह बल बढ़ता है और फिर तेजी से नीचे गिरता है। जितना बड़ा व्यास और शियर मॉडुलस होगा, उतना ही ज्यादा प्रतिरोधक बल होगा, जो अधिक पीड़ा पहुँचाता है।
जब शोधकर्ताओं ने जेल को बेधने की दिशा में २० Hz आवृत्ति से कँपाया, उन्होंने विशिष्ट अंतर को बढ़ा पाया, और सुई को प्रविष्टि के समय कम अवरोध का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, जेल पर दरार पड़ने से पहले सुई पर प्रतिरोधक बल भी कम हुआ, एवं बाद की दरारें भी काफी कम प्रतिरोध के उत्पन्न हुईं। २० Hz आवृत्ति के कंपन और ०.३५ mm के आयाम ने विशिष्ट अंतर को तीन गुना बढ़ा दिया| वहीँ सुई पर पड़ने वाला प्रतिरोधक बल आधा रह गया।
यह परिणाम संकेत करते हैं कि जेल के बाहरी कंपन, पहली दरार पड़ने से पहले, जेल के अंदर संग्रहित प्रफुल्ल ऊर्जा के निस्तार में मदद करते हैं। दूसरे शब्दों में, प्राथमिक दरार का अवरोधक प्रभाव घट जाता है, और अंततः लुप्त हो जाता है", शोधकर्ताओं ने बताया।
शोधकर्ताओं ने कंपन का शियर मॉडुलस और सुई के व्यास के अलग-अलग मूल्यों पर प्रभाव भी जाँचा। उन्होंने पाया कि कंपन का आयाम बढ़ने पर सभी स्थितियों में बेधने का प्रतिरोध कम हुआ, और यह प्रभाव ज्यादा शियर मॉडुलस वाले जेल तथा बड़े व्यास की सुइयों पर अधिक स्पष्ट देखा गया।कंपन, रक्त- आधान जैसी स्थितियों में बहुत उपयोगी है जहाँ बड़े व्यास की सुइयों का इस्तेमाल होता है। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि कंपन का आयाम बढ़ाने पर जेल को बेधने पर लगने वाली ऊर्जा भी कम हुई, कुछ मामलों में तो ८०% तक।
अगले कदम के तौर पर, शोधकर्ता इन परिणामों को सुई की डिज़ाइन पर लागू कर, क्लिनिकल परीक्षण द्वारा इस सुई की पीड़ा कम करने की क्षमता को सत्यापित करने की योजना बना रहे हैं। सिरिंज की सुई के बेहतर डिज़ाइन के अलावा इस अध्ययन के परिणाम दूसरे सन्दर्भों में पड़ने वाली दरारों को भी बेहतर समझने में मदद करेंगे जैसे किसी मुलायम वस्तु के खंड को बेलनाकार छड़ी या चाकू से काटना, ऐसा शोधकर्ताओं ने बताया।