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प्रयोगशाला में कोशिकाओं की पैटर्निंग का एक किफायती तरीका

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बेंगलुरु
3 जुलाई 2020
प्रयोगशाला में कोशिकाओं की पैटर्निंग का एक किफायती तरीका

प्रोटीन प्रिंट करने और कोशिकाओं को उगाने के लिए माइक्रोकॉन्टेक्ट प्रिंटिंग स्टैम्प बनाने के लिए शोधकर्ताओं ने लागत प्रभावी तकनीकें प्रस्तावित की हैं|

आसंजित/ संलग्न कोशिकाएँ उन कोशिकाओं के समूह होते हैं जो सतह पर चिपकते और बढ़ते हैं। ये क्षतिग्रस्त त्वचा, उपास्थि या रेटिना की मरम्मत में मदद कर सकते हैं। आसंजित/संलग्न कोशिकाओं के रूप और आकार को नियंत्रित करना संभव है, जिसके लिए इन्हें प्रोटीन जैसे पदार्थों पर उगाया जाता है, जो इनके विकास को सक्षम या बाधित करते हैं। प्रयोगशाला में ऐसी कोशिकाओं के विकास और आचरण का अध्ययन करने के लिए शोधकर्ता प्रोटीन पर कोशिकाओं को विकसित करते हैं, जो काँच या प्लास्टिक पर विभिन्न आकृतियों में मुद्रित होते हैं। स्टैम्प का उपयोग कर सतह पर प्रोटीन मुद्रित किया जाता है, और इस विधि को माइक्रोकॉन्टेक्ट प्रिंटिंग कहते हैं।

हाल ही के एक अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुम्बई (आईआईटी बॉम्बे) के शोधकर्ताओं ने ऐसे स्टैम्प के उत्पादन के लिए एक अनूठी विधि तैयार की है जिससे प्रोटीन के पैटर्न को मुद्रित किया जा सकता है। यह नई पद्धति लागत-प्रभावी है और पारंपरिक प्रोटीन-मुद्रण की विधियों की कई कमियों को संबोधित करती है।

माइक्रोकॉन्टेक्ट प्रिंटिंग का इस्तेमाल जीव विज्ञान में कोशिकाओं के विभेदन और स्थानान्तरण जैसे कार्यों का अध्ययन करने के लिए किया जाता है, जो कोशिकाओं के आकार पर निर्भर करते हैं। कोशिकाओं के एक प्रकार से दूसरे में बदलने की क्षमता को विभेदन कहते हैं। रोग पैदा करने वाली कोशिकाओं के खिलाफ चिकित्सा विकसित करने में इन अध्ययनों से एकत्रित जानकारी हमारी मदद कर सकती है। आईआईटी बॉम्बे के प्राध्यापक अभिजीत मजुमदार कहते हैं, "नैदानिकी, वायरस की पहचान, और बुनियादी जीव विज्ञान की समझ बढ़ाने के क्षेत्रों में इस तकनीक को लागू किया जा सकता है।" यह अध्ययन साइंटिफिक रिपोर्ट पत्रिका में प्रकाशित हुआ था और वेलकम ट्रस्ट-डीबीटी इंडिया एलायंस द्वारा इसे वित्त-पोषित किया गया था।

विभिन्न पैटर्नों के प्रोटीन को प्रिंट करने के लिए, हमें उन पैटर्न वाले स्टैम्प की आवश्यकता होती है। फोटोलिथोग्राफी एक तकनीक है जो खोदने के लिए प्रकाश का छेनी की तरह इस्तेमाल करती है, और आमतौर पर इन स्टैम्प्स को गढ़ने के लिए उपयोग में लायी जाती है। लेकिन, इस पद्धति में काम करने के लिए दक्षता की ज़रुरत होती है और यह काफी महंगा होता है। इसके लिए उच्च तकनीक वाले जटिल उपकरणों की भी आवश्यकता होती है और यह प्रकाश के प्रति संवेदनशील सामग्रियों पर आश्रित है।

वर्तमान अध्ययन के शोधकर्ताओं ने आसानी से उपलब्ध सामग्रियों का उपयोग कर दो प्रकार के स्टैम्प बनाए। पहले प्रकार के लिए उन्होंने पॉलिस्टिरीन के मनकों का उपयोग किया - जैसे मनके बीन बैग के अंदर पाए जाते हैं - जो लगभग आधे मिलीमीटर के होते हैं। जब मनकों को एक काँच की सतह पर पानी के एक गड्डे में रखा गया और पानी को धीरे-धीरे सूखने दिया गया, तो मनके गोलाकार होने के कारण षट्भुज के आकार में जमा हो गए। फिर उन्होंने मनकों की सतह को पॉलीडाईमिथाइलसिलोक्सेन (पी.डी.एम.एस.) , जो एक नरम और लोचदार सामग्री है, की एक पतली परत से ढक कर स्टैंप बनाया । इस प्रक्रिया ने मनकों को उनकी जगह पर सील कर दिया और उनका षट्भुज ढाँचा बना रहा।

 

पॉलिस्टिरीन के मनकों का इस्तेमाल कर बनाये गए स्टैम्प, स्टैम्प का इस्तेमाल कर बनाए गए (हरे) प्रोटीन द्वीप, इन द्वीपों पर उगाई गई कोशिकाएँ
तस्वीर का स्रोत

दूसरे प्रकार का स्टैम्प बनाने के लिए पी.डी.एम.एस. को विभिन्न आकारों की बेलनाकार सुइयों में इंजेक्ट किया गया और पी.डी.एम.एस. को जमने दिया गया। इसके बाद शोधकर्ताओं ने इन सिलेंडरों को बाहर निकाला और उन्हें सतह पर इच्छानुसार पैटर्न में व्यवस्थित किया। पिछली पद्धति की तरह इन व्यवस्थित पी.डी.एम.एस. के सिलेंडरों की सतह को भी पी.डी.एम.एस. की पतली परत से ढक दिया गया, जिससे बेलनाकार छाप वाले स्टैम्प बन गए जो रोड पर कसकर पैक किए गए स्पीड-ब्रेकरों की एक श्रृंखला सा दिखता था। इन स्टैम्प्स को मोड़कर घुमावदार पैटर्न भी बनाए जा सकते हैं।
 

गोलाई रहित और गोलाई वाले पी.डी.एम.एस. सिलेंडरों का उपयोग कर गढ़े गए स्टैम्प
तस्वीर का स्रोत

शोधकर्ताओं ने समतल सतह पर प्रोटीन के पैटर्न बनाने के लिए इन स्टैम्प्स का इस्तेमाल किया और इनकी विश्वसनीयता जाँचने के लिए इन पैटर्न पर चूहे की कोशिकाएँ उपजाईं। उन्होंने पाया कि इन पैटर्न पर उगाई गई आसंजित कोशिकाएँ स्वस्थ और व्यवहार्य थीं। प्रोटीन के निक्षेपण में एकरूपता की तुलना करने पर उन्हें पता चला कि यह अनूठी पद्धति भी सटीक थी, और स्टैम्प पारंपरिक फोटोलिथोग्राफी के समान पुनरुत्पादनीय थे। प्रस्तावित विधि आसान भी है, और इसमें कम दक्षता की आवश्यकता है।

परन्तु, प्रस्तावित पद्धति का सबसे बड़ा फायदा इसमें लगने वाली लागत की कमी है। इस प्रक्रिया से बनाए गए पी.डी.एम.एस. स्टैम्प्स में मात्र ₹350 खर्च होते हैं, और उपकरण के रखरखाव की कोई आवश्यकता नहीं होती। इसके विपरीत, फोटोलिथोग्राफी का उपयोग करके बनाए गए हर स्टैम्प की कीमत लगभग ₹1500 है, जिसके ऊपर उपकरणों की लागत सालाना लाखों रुपये तक पहुँच जाती है । इस अध्ययन में वर्णित स्टैम्प फैब्रिकेशन विधियों का उपयोग करने का एक अतिरिक्त लाभ यह भी है कि एक ही स्टैम्प का उपयोग विभिन्न आकारों के पैटर्न को प्रिंट करने के लिए किया जा सकता है क्योंकि उन्हें दबाकर चपटा किया जा सकता है, जिससे उनका तल-क्षेत्रफल बढ़ जाता है।

“पारंपरिक लिथोग्राफी में वक्र सतह वाले स्टैम्प्स बनाना काफी चुनौतीपूर्ण काम है,” आईआईटी बॉम्बे की रिसर्च स्कॉलर और इस अध्ययन की पहली लेखिका अक्षदा खाडपेकर प्रस्तावित पद्धति के एक और लाभ पर प्रकाश डालती हैं।

महंगे लैब उपकरण आयात करना अनुसंधान में एक बड़ी बाधा हो सकती है। इसलिए, वर्तमान अध्ययन में प्रस्तावित सस्ती, घरेलू प्रौद्योगिकियों को विकसित करने से यह बोझ कम हो सकता है।

“हमारा तरीका स्टैम्प फेब्रिकेशन और माइक्रो-कॉन्टैक्ट प्रिंटिंग से जुड़ी लागत को काफी हद तक कम करेगा,” डॉ. अभिजीत मजुमदार कहते हैं। "यह वित्त पोषण की कमी वाली अनुसंधान करने वाली प्रयोगशालाओं को अपने क्षेत्र का विस्तार करने में मदद करेगा," वे अपनी बात समाप्त करते हुए कहते हैं।