शोधकर्ताओं ने द्वि-आयामी पदार्थों पर आधारित ट्रांजिस्टर निर्मित किये हैं एवं ऑटोनॉमस रोबोट हेतु अत्यंत अल्प-ऊर्जा के कृत्रिम तंत्रिका कोशिका परिपथ निर्मित करने में इनका उपयोग किया है।

पश्चिमी घाट में संकरे मुँह वाले मेंढक की एक नई प्रजाति खोजी गई

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दिल्ली
3 जून 2019
पश्चिमी घाट में संकरे मुँह वाले मेंढक की एक नई प्रजाति खोजी गई

हाल ही में हुए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने केरल के पश्चिमी घाट में मेंढक की एक नयी प्रजाति खोजी है। माइक्रोहाइला डरेली नामक यह प्रजाति माइक्रोहाइला जीनस  से संबंधित है जिसे आमतौर पर संकरे-मुँह वाला मेंढक कहा जाता है क्योंकि इसका शरीर त्रिकोणीय-आकृति और नुकीले थूथन वाला है। इस प्रजाति  के मेंढक जापान, चीन, भारत, श्रीलंका और दक्षिणपूर्व एशिया में फैले हुए हैं।

इस नयी  प्रजाति का पता तब चला जब शोधकर्ता दक्षिण एशिया के माइक्रोहाइला जीनस के मेंढकों के वर्गीकरण का पुनरीक्षण कर रहे थे। इस टीम में भारत, श्रीलंका, चीन, इंडोनेशिया और यूएसए के शोधकर्ता शामिल थे। भारतीय संस्थानों में दिल्ली विश्वविद्यालय, भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII), मैंग्लोर विश्वविद्यालय और इकोलॉजी और पर्यावरण में शोध के लिए अशोक ट्रस्ट (ATREE) शामिल हैं। यह अध्ययन वर्टिब्रेट ज़ुआलोजी पत्रिका में एक मोनोग्राफ के रूप में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन को दिल्ली विश्वविद्यालय, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा आंशिक वित्त पोषण दिया गया था।

एक एकीकृत वर्गीकरण सम्बंधी तकनीक का प्रयोग  करने के बाद इस बात की पुष्टि की गयी है कि इस प्रजाति का विवरण पहले कभी नहीं किया गया है। इस तकनीक में शोधकर्ताओं द्वारा डीएनए, शारीरिक गुणधर्मों और इसकी पुकारों की तुलना अमेरिकी सरीसृप वैज्ञानिक डॉ. डारेल आर. फ्रॉस्ट द्वारा तैयार विश्व की सरीसृप प्रजातियों पर किए गए काम के एक ऑनलाइन संदर्भ से की गई। यह ऑनलाइन डैटाबेस विश्व के सभी ज्ञात उभयचरों की एक वर्गीकृत तैयार सूची है।

एम. डरेली एक समान जीन के उन कई अन्य प्रजातियों के समान है। इस नयी प्रजाति की पुकार एम. ज़ेलानिका के समान है जो कि संकरे-मुँह वाला एक श्रीलंकाई मेंढक है। शोधकर्ताओं ने पाया कि एम. डरेली का प्रजनन काल केवल जून-जुलाई में मानसून के दौरान है। शोध के लेखकों का कहना है कि जून-जुलाई के महीनों में करमना नदी के पास सड़क किनारे बागानों में इन्हें बड़ी संख्या में देखा गया था।

वर्तमान जानकारी के अनुसार एम. डरेली केवल केरल के पश्चिमी घाट में पाए जाते हैं, और इनका विस्तार लगभग दक्षिण एशिया में पाए जाने वाले एम. ओरनाटा या ओरनेट के संकरे-मुँह वाले मेंढक के समान है। लेखकों का कहना है कि इन दोनों तरह के मेंढकों को एक ही जगह पर पुकार करते देखा गया है। आमतौर पर एम. डरेली नर पत्तों में या ज़मीनी वनस्पतियों में छिपकर पुकार करते हैं जबकि एम. ओरनाटा इनकी अपेक्षा ज़्यादा उजागर रहते हैं।

इस नयी प्रजाति की  खोज के बाद संकरे-मुँह वाले मेंढकों की ज्ञात संख्या लगभग 45 तक पहुँच गयी है। वैज्ञानिकों द्वारा बेहतर वर्गीकरण की तकनीक का उपयोग एवं उभयचरों में जागी नई रूचि के चलते आने वाले वर्षों में उम्मीद है कि इस तरह की और भी खोजें उजागर हों।