आईआईटी मुंबई का IMPART नामक नवीन वेब एप्लिकेशन जल सतह के तापमान पर दृष्टि रखने में शोधकर्ताओं की सहायता करता है एवं जलवायु परिवर्तन पर दृष्टि रखने में सहायक है।

संधारणीय औद्योगिक विकास के लिए क्षतिग्रस्त पुर्ज़ों की मरम्मत ज़रूरी

Read time: 1 min
मुंबई
8 जून 2020
संधारणीय औद्योगिक विकास के लिए क्षतिग्रस्त पुर्ज़ों की मरम्मत ज़रूरी

यह अध्ययन क्षतिग्रस्त पुर्ज़ों को दोबारा काम में लाने के लिए एक बेहतर योज्य निर्माण विधि का प्रस्ताव रखता है।

क्या आपका दिल नहीं दहलता जब किसी साधारण से नुकसान के कारण महँगी चीज़ों को बदलना पड़ता है? अगर संभव हो तो हम में से कई निश्चित रूप से अपनी चीज़ों की मरम्मत और पुनर्प्रयोग करना पसंद करेंगे! इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि 'पुनर्प्रयोग और पुनर्चक्रण' कई वस्तुओं के संधारणीय उपभोग के लिए सबसे प्रचलित नारा है। विमान उद्योग में औद्योगिक पुर्ज़े, इंजन के भाग, और यहां तक कि उन्हें बनाने वाले आवश्यक ढाँचे भी घिसाई और पिसाई से गुज़रते हैं, जो ज़्यादातर नियमित इस्तेमाल के कारण अपने सतह और उपसतह में नुक्सान झेलते हैं। इस कारण इन्हें दीर्घायु बनाने के लिए ज़रूरी और महँगे पुर्ज़ों के मरम्मत के लिए विश्वसनीय तरीके भी उपलब्ध होने चाहिए।

ऑटोमोबाइल और विमान उद्योगों में क्षतिग्रस्त पुर्ज़ों को पुनः प्रचलन में लाने के लिए लेज़र एडिटिव विनिर्माण का विकल्प शीघ्र उपलब्ध होगा। इस प्रक्रिया में क्षतिग्रस्त क्षेत्र पर लेज़र प्रकाश केंद्रित किया जाता है, जो सतह की पतली परत को गर्म कर पिघला देता है और वहां एक कुण्ड बन जाता है। फिर इस पूल में एक टोंटी का उपयोग कर पाउडर धातु की आपूर्ति की जाती है, जो जमने के बाद आसानी से पुर्ज़े के द्रव्य के साथ बंध जाता है, जिससे क्षति की मरम्मत होती है। इस प्रक्रिया में किए गए मरम्मत को स्थानीयकृत अथवा केन्द्रित, और आसानी से स्वचालित किया जा सकता है, और वेल्डिंग इत्यादि तरीकों का उपयोग करने की तुलना में यह अधिक सटीक है।

साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई और ऑस्ट्रेलियाई परमाणु विज्ञान और प्रौद्योगिकी संगठन (एएनएसटीओ), सिडनी, ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने लेज़र एडिटिव निर्माण प्रक्रिया में सुधार करने के लिए एक कम्प्यूटेशनल मॉडल विकसित किया है। यह मॉडल जोड़े गए धातु की नई जमा परत की सर्वोत्कृष्ट ऊंचाई का अनुमान लगाता है जिससे मरम्मत किये हुए पुर्ज़े में दोबारा दरारें विकसित नहीं होती हैं।

“ऊर्जा की खपत और लागत, दोनों मामलों में यह प्रक्रिया किफायती है, जिससे संधारणीयता बढ़ेगी। यह विमान, टरबाइन ब्लेड्स, डीजल इंजन के पिस्टन और ढाँचे के महंगे और महत्वपूर्ण पुर्ज़ों के संधारणीय पुनर्स्थापन/पुनर्निर्माण में मदद करेगा,” प्राध्यापक रमेश सिंह बताते हैं, जो अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ताओं में से एक हैं।

अगले पाँच वर्षों में ऑटोमोबाइल और एयरक्राफ्ट रिपेयर इंडस्ट्री के 18% तक बढ़ने का अनुमान है। औद्योगिक उत्पादों के मरम्मत और पुनर्निर्माण से पर्यावरण पर मानव प्रभाव कम होने के साथ-साथ आर्थिक विकास भी बढ़ेगा।

कोई भी मरम्मत प्रक्रिया जो पुर्ज़े को गर्म करने के लिए ऊष्मीय ऊर्जा का उपयोग करती है, उसमें ठंडा होने के बाद अवशिष्ट तनाव उत्पन्न होता है। उनमें से एक तनन तनाव है जो सामग्री को अलग करने के लिए खींचता है, और दूसरा इसका विपरीत दाबक तनाव है, जो सामग्री को एक साथ रखने के लिए धकेलता है। अगर इन्हें नियंत्रित न किया जाए, तो ये तनाव मरम्मत किये पुर्ज़े के लिए हानिकारक हो सकते हैं। जबकि तनन तनाव सतह पर दरारें पैदा कर सकता है, दबाक तनाव ऐसी दरारों के प्रसार को निलंबित कर सकता है या इन्हें रोक सकता है। अक्सर, अतिरिक्त दबाक तनाव पुर्ज़े के जीवनकाल को बढ़ाता है।

मरम्मत के दौरान उपजा तनाव पुर्ज़े को दरकने और क्षतिग्रस्त होने के प्रति असुरक्षित बनाता है, जिससे मरम्मत का उद्देश्य क्षीण होता है। सब कुछ सही करने के लिए ट्रायल-एंड-एरर प्रक्रिया का उपयोग करने से समय और पैसे दोनों की बर्बादी होती है। अध्ययन के शोधकर्ताओं द्वारा प्रस्तावित कम्प्यूटेशनल मॉडल इन चुनौतियों को संबोधित करता है। सिमुलेशन का उपयोग कर यह भविष्यवाणी की जा सकती है कि लेज़र हीटिंग पुर्ज़े की सामग्री के ऊष्मीय, यांत्रिक और धातु विज्ञान-सम्बन्धी गुणों को कैसे प्रभावित करती है।

चूंकि केवल पुर्ज़े का क्षतिग्रस्त हिस्सा ही लेज़र का उपयोग कर गरम किया जाता है, इसलिए उस क्षेत्र और बाकी पुर्ज़े के तापमान के बीच बहुत अंतर होता है। नतीजतन, जमा परत में ठंडा होने पर सिकुड़ने की प्रवृत्ति होती है जिसका बाकी पुर्ज़े द्वारा विरोध किया जाता है, जिससे जमने के साथ-साथ वस्तु में तनन तनाव भी बढ़ जाता है। जमी हुई परत के तनाव का बेहतर अनुमान लगाने के लिए शोधकर्ता मॉडल में होने वाले धातु विज्ञान-सम्बन्धी परिवर्तनों के साथ साथ उष्मीय अंतःक्रियाओं पर भी ध्यान देते हैं।

इस मॉडल के इनपुट मापदंडों में धातु पाउडर के सिंचित करने का दर, और टोंटी और लेज़र बीम के व्यास शामिल हैं। इसके बाद यह जमाव की ऊँचाई का प्रारंभिक मान, लेज़र के चलन की गति, और जमा परत और परत व अधःस्तर के बीच के तनाव की गणना करता है। शोधकर्ताओं ने अलग-अलग इनपुट मापदंडों का इस्तेमाल कर अलग-अलग जमाव परिदृश्यों का सिमुलेशन किया है। मॉडल की पुष्टि करने के लिए उन्होंने इसका उपयोग स्टील से बने पुर्ज़ों में अवशिष्ट तनाव की गणना करने के लिए किया, और उच्च वैनेडियम युक्त क्रूसिबल स्टील से उनकी मरम्मत की, फिर उन्होंने आइआइटी मुंबई और एएनएसटीओ सिडनी में किए गए प्रयोगों में मापे गए वास्तविक तनाव मूल्यों के साथ पूर्वानुमानित तनावों  की प्रति-जाँच की।

जमा परत की ऊंचाई बिलकुल सही होनी चाहिए। यदि ऊंचाई सर्वोत्कृष्ट मान से कम हो, तो उस क्षेत्र में अवशिष्ट तनन तनाव पैदा हो सकता है जहां पिछली परत के साथ वह एक-रूप हो रहा होता है। दूसरी ओर, यदि यह ऊंचाई अधिक हो तो आवश्यकता से अधिक धातु पाउडर पिघले हुए आधार के साथ मिश्रित होंगे और सतह के संरचनात्मक गुणों को प्रभावित करेंगे, जिससे वह जल्दी टूट सकता है।

इस मॉडल का उपयोग कर मरम्मत की प्रक्रिया जारी रखी जाती है अगर पूर्वानुमानित तनाव जमा परत में दबाव पैदा कर रहा हो, और इस ऊंचाई और लेज़र शक्ति के लिए परत और पुर्ज़े की सतह के बीच कोई तनन तनाव नहीं बन रहा हो। अन्यथा, इनपुट मापदंडों को एक ऊंचाई प्राप्त करने के लिए संशोधित किया जाता है, और पूरी प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है जब तक इन शर्तों को पूरा नहीं किया जा सके। इन शोधकर्ताओं ने रोबोटिक्स का उपयोग कर पुर्ज़ों के मरम्मत के लिए प्रस्तावित मॉडल के औद्योगिक उपयोग को सुविधाजनक बनाने की भी योजना बनाई है।