शोधकर्ताओं ने द्वि-आयामी पदार्थों पर आधारित ट्रांजिस्टर निर्मित किये हैं एवं ऑटोनॉमस रोबोट हेतु अत्यंत अल्प-ऊर्जा के कृत्रिम तंत्रिका कोशिका परिपथ निर्मित करने में इनका उपयोग किया है।

टाइटेनियम और इसके मिश्र धातुओं को काटना ।

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मुंबई
18 जनवरी 2019
छायाचित्र : आरेदथ सिद्धार्थ, नंदिनी भोसले, हसन कुमार गुंडू, कम्युनिकेशन डिझाईन , आइ डीसी, आइ आइ टी मुंबई

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के शोधकर्ता, एनीलिंग के माध्यम से टाइटेनियम की मशीनिंग को आसान करने के तरीकों पर काम कर रहे हैं

चमकदार टाइटेनियम से बने टाइटेनियम मिश्र धातु, विमान इंजन से लेकर मानव शरीर के अंदर यांत्रिक प्रत्यारोपण तक अनेक उत्पादों में उपयोग किए जाते हैं। उनका व्यापक उपयोग टिकाऊ, कठोर, हल्के वजन, संक्षारण और जैव-संगत प्रतिरोधी होने की उनकी अनूठे गुणों के कारण होता है। साथ ही साथ ये हमारे शरीर के लिए भी विषैले नहीं होते हैं। हालांकि, इन गुणों का एक दूसरा पहलु भी है; ये वांछित आकार में लाने के लिए टाइटेनियम मिश्र धातु को मुश्किल बनाते हैं। प्रश्न यह है कि क्या इन मिश्र धातुओं के भौतिक गुणों को बदलकर इन्हे मशीनिंग करना आसान होगा?

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई, नेशनल सेंटर फॉर एयरोस्पेस इनोवेशन एंड रिसर्च में यांत्रिक अभियांत्रिकी विभाग के प्राध्यापक सुशील मिश्रा की अगुवाई में शोधकर्ताओं के समूह के सामने यही सवाल है। पिछले तीन वर्षों में, शोधकर्ताओं ने आणविक स्तर पर मिश्र धातुओं की संरचना को बदलने के लिए विभिन्न तरीकों को तैयार और कार्यान्वित किया है, जैसे एनीलिंग जिसमें हीटिंग एवं क्रमिक शीतलन और लेजर हीटिंग शामिल है। इन तरीकों को कार्यान्वित करने के बाद इन मिश्र धातुओं से अतिरिक्त सामग्री को हटाकर वांछित आकार में  लाना आसान है।

टर्निंग, अवयव बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली एक लोकप्रिय मशीनिंग विधि है। वांछित आकार प्राप्त होने तक, एक घूर्णन बेलनाकार पट्टी की सतह से अवयव को हटाने के लिए एक उपकरण का उपयोग किया जाता है। टाइटेनियम के मामले में, टर्निंग आसान नहीं है क्योंकि धातु की कठोरता के कारण काटने (मशीनिंग) के उपकरण की गति में असमान प्रभाव होता है। इस कमी से बायोमेडिकल अनुप्रयोगों में उपयोग किए जाने वाले और चिकनी सतह की जरूरत होने वाले भागों के निर्माण में समस्या होती है। टर्निंग के दौरान, जब उपकरण सामग्री को खुरेदता है, तो धातु सतह  के नीचे विकृत हो जाती (उपसतह विरूपण) है जो अंतिम घटक के संरचनात्मक गुणों को दुर्बल करता है और इसे संक्षारण के लिए अतिसंवेदनशील बनाता है। इसके अलावा, मशीनिंग के दौरान घर्षण के कारण उत्पन्न ताप का जल्दी से क्षय नहीं होता है क्योंकि टाइटेनियम ताप का खराब चालक होता है, जिससे सतह ऊबड़-खाबड़ और अनियमित हो जाती है।

अत्यधिक ताप मशीनिंग के टूल उपकरण को नुकसान पहुंचाती है जिससे इसकी रखरखाव लागत में वृद्धि और इसके किनारों को भी खराब करती है। हालांकि उपकरण टूल अवयव, ज्यामिति और मशीनिंग मापदंडों, में बदलाव किए गए हैं साथ ही साथ शीतलक का प्रयोग इन दोषों को दूर करने और ताप कम करने के लिए उपयोग होता है। इन तरीकों से लागत में वृद्धि होती है जिसके कारण कभी-कभी टाइटेनियम मिश्र धातु खरीदना बहुत महंगा हो जाता है।

पिछले शोधों से पता चला है कि टाइटेनियम मिश्र धातु की मशीनीयता विभिन्न कारकों द्वारा निर्धारित की जाती है जिनमें उनकी कठोरता, आकार एवं  क्रिस्टल की बनावट, और उनकी रचना शामिल है। इसलिए, टाइटेनियम मिश्र धातु के सूक्ष्म संरचना को बदलने से इसकी मशीन क्षमता में वृद्धि हो सकती है। एयरोस्पेस इनोवेशन एंड रिसर्च, आईआईटी मुंबई के नेशनल सेंटर के शोधकर्ता, एनीलिंग और लेजर हीटिंग का उपयोग करके इन कारकों को बदलने की संभावना पर विचार कर रहे हैं।

मशीनीयता में सुधार करने के लिए नए दृष्टिकोण

टाइटेनियम मिश्र धातु की क्रिस्टल संरचना को बदलने का एक तरीका यह है कि इसे 'पुनरावृत्ति (रेक्रिस्टॉलिजेशन) तापमान' तक गर्म करें। यह एक ऐसा तापमान है जो पर्याप्त रूप से उच्च है लेकिन धातु के पिघलने वाले तापमान से कम है। और फिर इसे धीरे-धीरे इसे ठंडा करें (एनीलिंग)। आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं ने दो तापमान, लगभग ७०० डिग्री सेल्सियस और ९०० डिग्री सेल्सियस पर एनीलिंग का परीक्षण किया। उन्होंने पाया कि जब मिश्र धातु को लगभग ७०० डिग्री सेल्सियस तक गरम किया जाता है, तो इसका आंशिक रूप से इसका रेक्रिस्टॉलिजेशन होता है जबकि ९०० डिग्री सेल्सियस तक गरम करने पर इसका पूर्ण रेक्रिस्टॉलिजेशन हो जाता है, जिससे बड़ी ग्रेन संरचना बनती है। यह भी देखा गया है कि नमूनों की कठोरता एनीलिंग तापमान में वृद्धि के साथ घट जाती है।

इस शोध में शामिल शोधकर्ताओं का कहना है, "विक्रेताओं से प्राप्त सीधे नमूने, ९२५ डिग्री सेल्सियस पर एनीलिंग किये गए नमूनों की तुलना में लगभग १८% कठोर हैं"। उन्होंने यह भी देखा कि रेक्रिस्टॉलिजेशन, उपकरण पर मशीनिंग के दौरान अनुभव किया जानेवाले प्रतिक्रियाशील बल, और इसके परिणामस्वरूप उपसतह विकृति को कम करता है। जबकि एनीलिंग से मशीनीयता आसान हो गयी फिर भी टाइटेनियम मिश्र धातु के कुछ वांछनीय गुणों, जैसे की मजबूती को बनाए रखने का सबसे अच्छा विकल्प नहीं था। इसलिए इसके बाद शोधकर्ताओं ने लेजर हीटिंग का प्रयोग किया।

अक्सर धातु की सतह, जहाँ  पर मशीनिंग होनी है, का कम कठोरता होना पर्याप्त होता है इसलिए, शोधकर्ताओं ने लेजर बीम का उपयोग करके चुनिंदा हीटिंग द्वारा केवल सतह पर मिश्र धातु के सूक्ष्म संरचना को बदलने का प्रयास किया। उन्होंने सतह के तापमान को रेक्रिस्टॉलिजेशन तापमान से अधिक  मतलब १२०० डिग्री सेल्सियस तक गर्म करने के लिए मिश्र धातु नमूने के एक छोर से दूसरी तरफ एक केंद्रित लेजर बीम को स्थानांतरित किया। धातु को पिघलने से रोकने के लिए लेजर बीम की तीव्रता को नियंत्रित किया और इसे धीरे-धीरे ठंडा किया। इस प्रक्रिया के बाद उन्होंने देखा कि सुई के आकार के क्रिस्टल, सतह और उप-सतह के पास बने। सतह से अंदर की ओर के भाग में मूल धातु के समान आकार के क्रिस्टल मौजूद थे।

शोधकर्ताओं ने लेजर को १०, १५, २० और २५ मिलीमीटर प्रति मिनट की विभिन्न गति से नमूने को स्कैन करने का प्रयोग किया। २० मिलीमीटर प्रति मिनट की गति तक स्कैन गति के बढ़ने के साथ कठिनाई में बदलाव देखा, लेकिन इस गति से परे कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं दिखाई दिया।

शोधकर्ता समझाते हैं कि, "उच्च स्कैनिंग गति पर, मिश्र धातु की कम थर्मल चालकता के कारण नमूने में ताप के प्रवेश का समय कम था। इसलिए, इस स्थिति में लेजर प्रभावित क्षेत्र की गहराई कम और सूक्ष्म संरचना में बहुत कम परिवर्तन पाया गया।” कुल मिलाकर, लेजर प्रभावित क्षेत्र में कठोरता मूल धातु की तुलना में अधिक है।

कठोरता में वृद्धि और सूक्ष्म संरचना में परिवर्तन टाइटेनियम मशीनिंग से जुड़े उपकरण काटने पर अस्थिरता को कम करने में सहायक होता है। इससे उपकरण के जीवनकाल में वृद्धि होती है। इसके अलावा, लेजर प्रभावित क्षेत्र के अंदर अवयवों को मशीनिंग के माध्यम से हटाने के बाद, उच्च कठोरता (मूल सामग्री से अधिक) के साथ संशोधित सूक्ष्म संरचना की कुछ परत बन जाती है, जो फ्रैक्चर के प्रतिकूल इसे मजबूत करता है।

लेजर किये हुए नमूनों की मशीनिंग आसान थी और काटने के दौरान विरोधी बल में भिन्नता कम थी, जिसके परिणामस्वरूप सतह की चिकनाई बेहतर थी। इन नमूनों के लिए, शोधकर्ताओं ने धातु काटने के दौरान निकलने वाले चिप्स (छीलनों) का भी अध्ययन। लेजर किये हुए नमूनों की मशीनिंग के वक्त निकलने वाले चिप्स मूल तरीके से निकलने वाले धातु चिप्स से अधिक लंबे थे, जो यह इंगित करता है कि उपकरण धातु को लक्षणीय कंपन के बिना समान रूप से काट सकता है। ये कारक उपकरण क्षति को रोक देंगे और लंबे उपकरण जीवनकाल की ओर ले जाएंगे। शोधकर्ताओं ने लेजर एनीलिंग की प्रक्रिया को अनुकरण करने के लिए एक संख्यात्मक मॉडल भी विकसित किया और पाया कि परिणाम प्रयोगात्मक अवलोकनों से मेल खाते हैं।

लेजर का उपयोग करने में एक महत्वपूर्ण चुनौती यह थी कि ताप जमा होने के कारण नमूने की लंबाई के साथ, ऊष्मा जिस गहराई तक पहुँचती है उस गहराई में वृद्धि हो जाती है। शोधकर्ताओं का कहना है, "लेजर हीटिंग के शुरुआती बिंदु से अंत तक, गहराई में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और लगभग २५-३० मिलीमीटर के बाद, लगभग स्थिर हो गयी।" असमान तापन धातु का अपव्यय होता है क्यूँकि धातु के केवल उस हिस्से का उपयोग किया जा सजता है जहाँ ऊष्मा प्रवेश की गहराई समान हो। शोधकर्ताओं का सुझाव है कि, "संख्यात्मक मॉडल का उपयोग करके, समान तापमान प्रवेश गहराई को बनाए रखने के लिए लंबाई के साथ लेजर पावर को बदलके इस समस्या को हल किया जा सकता है।”

प्राध्यापक मिश्रा कहते हैं कि, "एनीलिंग और लेजर उपचार, दोनों ही उद्योगों में नियमित रूप से संचलित होते हैं। इस शोध में सुझाए गए दृष्टिकोणों को विशेष उपकरणों की आवश्यकता नहीं है और उन्हें तुरंत लागू किया जा सकता है। हमें लेजर प्रयोग न किए गए नमूने की तुलना में लेजर प्रयोग नमूनों के साथ उपकरण की आयु का अध्ययन करने की आवश्यकता है। इस शोध पद्धति उपयोग अन्य मशीनिंग परिचालनों जैसे मिलिंग के किये भी किया जा सकता है।”


यह लेख निम्नलिखित संदर्भों पर आधारित है :

A new approach to control and optimize the laser surface heat treatment of materials

Microstructural Development Due to Laser Treatment and Its Effect on Machinability of Ti6Al4V Alloy

Effect of microstructure and cutting speed on machining behavior of Ti6Al4V alloy

Influence of Laser Heat Treatment on Machinability of Ti6Al4V Alloy