शोधकर्ताओं ने द्वि-आयामी पदार्थों पर आधारित ट्रांजिस्टर निर्मित किये हैं एवं ऑटोनॉमस रोबोट हेतु अत्यंत अल्प-ऊर्जा के कृत्रिम तंत्रिका कोशिका परिपथ निर्मित करने में इनका उपयोग किया है।

तीव्रता से परिवर्तित होने वाले क्षीण चुंबकीय क्षेत्रों की जानकारी के लिए हीरे का प्रोब के रूप में उपयोग

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मुंबई
30 अगस्त 2022
तीव्रता से परिवर्तित होने वाले क्षीण चुंबकीय क्षेत्रों की जानकारी के लिए हीरे का प्रोब के रूप में उपयोग

प्रयोग व्यवस्था छवि (श्रेय : प्रो कस्तूरी साहा)

गति चित्र (मोशन पिक्चर) कुछ दशकों में अभूतपूर्व रूप से विकसित हुआ है। इसने हमें विचलन युक्त एवं धुंधले चलचित्रों, जिन्हें देखते हुए हम सभी बड़े हुए हैं, की तुलना में अधिक वास्तविक एवं जीवंत चलचित्रों में निपुणता प्रदान की है। इस प्रक्रिया में यह विकास पूर्व के कुछ वर्षों में छायांकन प्रौद्योगिकी की प्रगति के कारण संभव हुआ है, जो 18वीं शताब्दी में लुमियर भाइयों द्वारा खोजे साधारण ~16 फ्रेम प्रति सेकंड (एफपीएस) चलचित्र से लेकर वर्तमान गेमिंग वातावरण के ~150 एफपीएस चलचित्र तक जा पहुँचा है। मनोरंजन के अतिरिक्त, क्या हम इस तकनीक का उपयोग मानव शरीर की जटिल सूक्ष्म कार्यप्रणालियों, जैसे मानव मस्तिष्क में न्यूरॉन गतिविधि का छायांकन करने एवं समझने के लिए कर सकते हैं?

फोटोनिक्स तथा क्वांटम इनेबल्ड सेंसिंग प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के प्रयोगशाला प्रमुख, प्राध्यापक कस्तूरी साहा एवं उनके कार्यदल ने इस क्षेत्र में एक अभिनव कदम बढ़ाया है। तदनुसार उन्होंने न्यूरॉन्स विशेष में पाये जाने वाले अत्यधिक क्षीण चुंबकीय क्षेत्र के, समय के साथ परिवर्तित होने वाले या 'गतिशील' छायाचित्र प्राप्त करने के लिए एक विशेष उच्च एफपीएस युक्त कैमरे की क्षमताओं का लाभ लिया है। इस कार्य पर आधारित एक अध्ययन साइंटिफिक रिपोर्ट्स नामक एक शोध पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।

हम मानव मस्तिष्क की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए चुंबकीय अनुनाद छायांकन (एमआरआई), मैग्नेटो एन्सेफलोग्राफी (एमईजी) तथा कार्यात्मक चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (फंक्शनल मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग) जैसी न्यूरो छायांकन तकनीकों का उपयोग करते हैं। ये तंत्रशैलियाँ  विद्युत चुम्बकीय संकेतों को मापती हैं जो संयुक्त न्यूरॉन गतिविधि का एक आशुचित्र (स्नेप-शॉट) प्रदान करते हैं तथा विशिष्ट मस्तिष्क कार्यों का अध्ययन करने में हमारी सहायता करते हैं। इसके अतिरिक्त, ये संकेत क्षीण होते हैं, अत: इनका पता लगाने के लिए इन तकनीकों में भारी एवं अत्यंत शक्तिशाली चुम्बकों की आवश्यकता होती है। कुशल तंत्रशैली का उपयोग करके ऐसे क्षीण न्यूरॉन संकेतों का पता लगाने की हमारी क्षमता में वृद्धि कैसे की जा सकती है, यह उन आवश्यक प्रश्नों में से एक है जिसका उत्तर देने के लिए बड़े स्तर पर तंत्रिका विज्ञान एवं चिकित्सा समुदाय प्रयासरत है।

बहुधा हम हीरे की क्रिस्टल लैटिस संरचना में दोष (इम्पर्फेक्शन) पाते हैं, जिनमें से एक है हीरे के लैटिस में स्थित एक रिक्ति (वैकेंसी) के पार्श्व में स्थित नाइट्रोजन परमाणु। इन नाइट्रोजन-रिक्ति (एनवी) दोष केंद्रों में 'अयुग्मित' इलेक्ट्रॉन होते हैं जो चुंबकीय क्षेत्र एवं तापमान जैसे बाह्य त्वरित कारकों (ट्रिगर्स) के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। इस तरह हीरे का सूक्ष्म स्तर पर क्षीण किन्तु अति-संवेदनशील चुंबकीय क्षेत्रों के मापन हेतु अनोखे क्वांटम प्रोब के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इन परिवर्तनों को अल्प तीव्रता वाले प्रकाश का संसूचन करके प्रत्यक्ष रूप से मापा जा सकता है, जिसे फोटोलुमिन्सेंस भी कहते है एवं यह चुंबकीय क्षेत्रों के साथ इन इलेक्ट्रॉनों की अंत:क्रिया से उत्सर्जित होता है। शोधकर्ता एनवी  केंद्रों के इन अद्वितीय गुणों का उपयोग अत्यधिक संवेदनशील, परमाणु-आकार के मैग्नेटोमीटर में करते हैं जो ऐसे लघुतम भौतिक मापों पर चुंबकीय क्षेत्रों का मापन कर सकते हैं।

वर्तमान एनवी-आधारित मैग्नेटोमीटर जिस गति से परिवर्तनों को पकड़ सकता है, उसकी तुलना में न्यूरॉनल चुंबकीय क्षेत्र बहुत तीव्रता से परिवर्तित होते हैं। वर्तमान एनवी मैग्नेटोमीटर उच्च विभेदन क्षमता (हाई रिज़ॉल्यूशन) की छवियों को ग्रहण करने में कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक का समय लेता है। अत: इसकी तुलना में अधिक तीव्रता से परिवर्तित होने वाली किसी भी वस्तु का चल-छायांकन नहीं किया जा सकता है। अनिवार्यत: हमें केवल एक आशुचित्र (स्नैपशॉट) मिलता है। प्रा. साहा एवं उनका दल शोधकर्ताओं का प्रथम समूह है जिसने सरलता से उपलब्ध एक विशेष 'लॉक-इन' कैमरे का चुंबकीय क्षेत्र माइक्रोस्कोप व्यवस्था में उपयोग किया है एवं इसमे एक अद्वितीय तथा प्रयोगात्मक दक्षता से युक्त सुधार किया है । यह परिवर्तन अधिग्रहण समय को कई मिनट प्रति फ्रेम से 100 एफपीएस के क्रम में लाता है। विश्व स्तर पर यह प्रथम है जब किसी ने इस तंत्र-शैली के साथ एक सेकेंड से भी कम समय में कार्य करने वाले चुंबकीय क्षेत्र माइक्रोस्कोपी को दर्शाया है।

उन्होंने दो प्रकार के चुंबकीय क्षेत्र स्रोतों पर एनवी दोष युक्त शुद्ध हीरे के क्रिस्टलों के एक अत्यंत पतले आस्तरण (शीट) को रख कर प्रयोग की स्थापना की। प्रथम स्रोत अत्यंत पतला सूक्ष्म तार (माइक्रोवायर) तथा दूसरा स्रोत तार की एक सूक्ष्म कुण्डली (माइक्रोकॉइल)। उन्होंने मिलीसेकंड के स्तर पर परिवर्तित होने वाली माइक्रोवेव आवृत्तियों के साथ एनवी केंद्र स्पिन में फेर-बदल करके चुंबकीय क्षेत्र में भिन्नता उत्पन्न की। यह तीव्रता से परिवर्तित होने वाला चुंबकीय क्षेत्र, हीरे की क्रिस्टल परत में स्थित एनवी दोष केंद्र में होने वाली अंत: क्रिया के माध्यम से पकड़ा जाता है।  यह अल्प प्रकाश युक्त फोटोल्यूमिनेशन  में परिणामित होता है।

यद्यपि इस प्रयोग की कुशलता इस बात में निहित है कि प्रा. साहा के दल ने परिवर्तनशील चुंबकीय क्षेत्र को पकड़ने के लिए उच्च एफपीएस लॉक-इन कैमरे का उपयोग कैसे किया। पारंपरिक कैमरे के विपरीत, लॉक-इन कैमरे में प्रत्येक पिक्सेल केवल उस प्रकाश के उतार-चढ़ाव का संसूचन करता है जिसमें एक निश्चित समयावधि की विशिष्ट आवृत्ति या दोलन होते हैं तथा अन्य आवृत्तियों के प्रकाश उतार-चढ़ाव को यह 'अस्वीकार' करता है। इससे यह लॉक-इन कैमरे के लिए सिग्नल को बढ़ाता है, अतएव एनवी केंद्रों से फोटोल्यूमिन्सेंस जैसे अल्ट्रा-लो लाइट छायांकन के लिए अनुकूल है। उन्होंने लॉक-इन कैमरे को ट्यून करके एनवी केंद्रों द्वारा उत्सर्जित प्रकाश की छवि लेकर, चुंबकीय क्षेत्र के प्रत्येक परिवर्तन को कैमरे में अधिग्रहित किया।  परिणामस्वरूप वे सूक्ष्म तार एवं सूक्ष्म कुण्डली से चुंबकीय क्षेत्र के 'गति चित्र' प्राप्त करने में सक्षम हुए। इस कार्य के प्रमुख लेखक मधुर पराशर कहते हैं, “प्रयोगात्मक छायांकन व्यवस्था एक मानक प्रकाश माइक्रोस्कोप के अनुरूप एक चुंबकीय क्षेत्र माइक्रोस्कोप है। अतएव यह विद्युत प्रवाह के साथ माइक्रो-परिपथ में पाए जाने वाले माइक्रोस्कोपिक (1 माइक्रोन से लगभग 100 माइक्रोन मापन पर) चुंबकीय क्षेत्रों के छायांकन की क्षमता प्रदान करता है तथा संभावित रूप से न्यूरॉन्स जैसी जैविक कोशिकाओं के  गतिशील चुंबकीय क्षेत्रों के छायांकन के लिए विस्तारित किया जा सकता है।"

अत: एनवी-आधारित सूक्ष्मदर्शी, स्तनधारियों में मस्तिष्क गतिविधि की जांच के लिए एक आशाजनक वैकल्पिक तकनीक होने की क्षमता रखते हैं। परमाणु घटकों के क्वांटम गुणों का उपयोग करके माइक्रोस्कोपिक स्तर पर विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों की संवेदन सटीकता को आगे बढ़ाने का यह मार्ग 'क्वांटम सेंसिंग' के आगामी नवीन क्षेत्र का आधार है। "भारत के संदर्भ में - क्वांटम सेंसिंग पूरी तरह से नया है एवं हमारी प्रयोगशाला, देश में इस प्रकार के क्वांटम डायमंड माइक्रोस्कोप का निर्माण करने वाली पहली प्रयोगशाला है। हम केवल जैविक संवेदन ही नहीं बल्कि क्वांटम सामग्री एवं और भी बहुत कुछ खोज सकते हैं, " प्रो साहा निष्कर्ष देती है।