वैज्ञानिकों ने आरोपित विकृति के अंतर्गत 2-डी पदार्थों के परमाण्विक गुणों का सैद्धांतिक परीक्षण किया है।

ठोस पदार्थों में कम्पन-रत अणुओं एवं परमाणुओं के फिल्मांकन हेतु नवीन पहल

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मुंबई
1 फ़रवरी 2021
ठोस पदार्थों में  कम्पन-रत अणुओं एवं परमाणुओं के फिल्मांकन हेतु नवीन पहल

पिक्सॉबे छायाचित्र द्वारा: पिक्सॅल्स

हमारे चारों ओर स्थित प्रत्येक वस्तु अणुओं या परमाणुओं से मिलकर बनी है। साधारण नमक अथवा  लोहे जैसे अधिकांश ठोस पदार्थ इनकी सुव्यवस्थित रूप में स्थित पुनरावर्ती संरचनायें होती हैं, जिसे 'क्रिस्टल लैटिस' कहते हैं। किसी भी बाह्य कारक, जैसे आरोपित बल, के प्रति एक ठोस का व्यवहार, किसी एक परमाणु या अणु के द्वारा नहीं अपितु क्रिस्टल लैटिस के सामूहिक व्यवहार के द्वारा निर्धारित किया जाता है।  संघटकों (कॅंस्टीटूएंट्स ) के छोटे-छोटे  कम्पन मिलकर क्रिस्टल लैटिस की सामूहिक प्रतिक्रिया को निर्धारित करते हैं। अकेले संघटक के स्थान पर, यह सामूहिक प्रतिक्रिया ही है जो ठोस पदार्थों में विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं जैसे ऊष्मा का स्थानांतरण कैसे होता है एवं पदार्थ अपनी ठोस, द्रव एवं गैसीय अवस्थाओं को कैसे परिवर्तित करते हैं, आदि को निर्धारित करती है।

एक नवीन अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) के शोधकर्ताओं ने बाह्य विक्षोभों (डिस्टर्बेंसेज) की प्रतिक्रिया स्वरूप, लैटिस संरचना में होने वाले परिवर्तनों के पूर्वानुमान के लिए एक सैद्धान्तिक पद्धति विकसित की है। नेचर कम्प्युटेशनल मैटीरियल्स नामक शोध-पत्रिका में प्रकाशित यह अध्ययन, औद्योगिक अनुसंधान और परामर्श केंद्र, आईआईटी बॉम्बे,  मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय (अब शिक्षा मंत्रालय), परमाणु ऊर्जा विभाग तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के द्वारा आंशिक रूप से वित्त-पोषित किया गया।

पहले संरचना पर बाह्य विक्षोभ उत्पन्न कर, तत्पश्चात निरीक्षण करते हुए कि यह विक्षोभ समय के साथ कैसे परिवर्तित होता है, वैज्ञानिक लैटिस संरचना, अथवा इसकी गतिकी (डायनामिक्स) में होने वाले परिवर्तनों का परीक्षण करते हैं। यह विक्षोभ बहुधा लेज़र प्रकाश की छोटी कौंधौं के माध्यम से उत्पन्न किया  जाता है ।

"यदि आप किसी ठोस पदार्थ को लेज़र की कौंध से विक्षोभित करते हैं तो इसके परमाणु  कम्पन करने लगते हैं," इस अध्ययन के लेखकों में से एक प्राध्यापक गोपाल दीक्षित कहते हैं।

एक्स-रे प्रकाश या ऋण-विद्युदणु (इलेक्ट्रॉन्स), लैटिस में परमाणुओं और अणुओं की स्थिति के बारे में जानकारी प्रकट कर सकते हैं। वैज्ञानिक ठोस पर कुछ फेम्टोसेकंड - जो कि एक सेकंड के दस खरबवें भाग का भी एक हज़ारवाँ भाग होता है, के अंतराल पर  बहुभागी एक्स किरणों अथवा ऋणविद्युदणु  स्पंदों (इलेक्ट्रॉन पल्सेस) की बौछार करते हैं। इस प्रकार वे इन अवस्थाओं पर ठोस की छवियाँ प्राप्त कर सकते हैं, जिनको वे कंपनरत परमाणुओं के फिल्मांकन हेतु आपस में जोड़ सकते हैं। मानक प्रयोगशाला  सूक्ष्मदर्शियों से अधिक मूल्यवान एवं विश्व भर के कुछ दुर्लभ सुविधा केंद्रों में ही  उपलब्ध, परिष्कृत उपकरणों के साथ इस प्रकार के प्रयोगों की रचना करना चुनौती पूर्ण  है। केवल पिछले दशक में ही वैज्ञानिक इस प्रकार के अग्रवर्ती प्रयोग कर पाये हैं। 

एक आपतित एक्स-किरण अथवा ऋणविद्युदणु (इलेक्ट्रॉन) स्पंद नमूने से टकराता है, और परमाणुओं में कंपन उत्पन्न करता है। आपतित स्पंद के प्रति ठोस की प्रतिक्रिया को एक एक्स-रे या इलेक्ट्रॉन कैमरा जैसे संसूचक की सहायता से देखा जाता है।
[छवि आभार : आदित्य प्रसाद रॉय, यांत्रिक अभियांत्रिकी विभाग, आईआईटी बॉम्बे, अध्ययन के एक सह लेखक]

दूसरी ओर, विक्षोभ-रहित (अनडिस्टर्ब्ड) ठोस की आणविक व्यवस्था का अध्ययन करना सुगम होता है। पाँच दशकों से भी अधिक समय से, वैज्ञानिक सिलिकॉन जैसे ठोस पदार्थों पर एक्स-किरणों अथवा इलेक्ट्रॉन किरण-पुंज की बौछार कर अवलोकन करते रहे हैं कि यह किरण-पुंज, लैटिस के साथ किस प्रकार से अंत:क्रिया करता है। "किरण-पुंज के प्रति ठोस की प्रतिक्रिया लैटिस में परमाणुओं के कम्पन को दर्शाते  हुए निर्गत किरण पुंज पर एक विशेष छाप छोड़ती है," इस अध्ययन के एक और लेखक प्राध्यापक दीपांशु बंसल का कहना है। जोसेफ फोरियर द्वारा खोजी गई 'फोरियर विश्लेषण' नामक एक अभिनव गणितीय तकनीक काल और अंतराल (टाइम और स्पेस) दोनों में, उन्हें लैटिस की छोटी संरचनाओं के अध्ययन में सहायता करती है।

वर्तमान अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने गणितीय गणनाओं के माध्यम से यह प्रदर्शित किया कि समान तकनीक का उपयोग, अस्थाई बाह्य विक्षोभ के अधीन स्थित ठोस पदार्थों के अध्ययन के लिए किया जा सकता है। उन्होंने फोरियर विधि के एक विस्तारित संस्करण का उपयोग क्वांटम भौतिकी के नियमों के साथ किया। साथ ही, उन्होंने इस मूल धारणा का उपयोग किया कि समय का प्रवाह एक ही दिशा में होता है। इसने उन्हें एक गणितीय संख्या के आकलन तक पहुँचाया जो यह निर्धारित करती है कि लैटिस संरचना बाह्य विक्षोभ के प्रति कैसी प्रतिक्रिया देती है।

इस गणितीय संख्या के उपयोग से, जिसे 'प्रतिक्रिया फलन' (रेस्पोंस फंक्शन) भी कहते हैं, शोधकर्ताओं ने पूर्वानुमान लगाया कि एक ठोस, कुछ फेम्टोसेकंड से कम  काल में, और नैनोमीटर के अंशों से भी कम  अंतराल (स्पेस) में, कैसे व्यवहार करेगा। तब उन्होंने पिछले एक दशक में लेज़र के साथ किए गए प्रयोगों के माध्यम से उपलब्ध छवियों के द्वारा प्रतिक्रिया फलन की गणना की। वर्तमान अध्ययन के शोधकर्ताओं ने प्रदर्शित किया कि यह संख्या, सैद्धान्तिक प्रतिक्रिया फलन के साथ सटीक रूप से  मेल खाती है। उनका आकलन पहली बार यह दिखलाता है कि ठोस पदार्थों की गतिकी (डायनामिक्स) का अध्ययन करने के लिए परिष्कृत प्रयोग किए जाने की आवश्यकता नहीं है।

इसके अन्य  लाभ भी हैं। "हमारे द्वारा प्रस्तावित विधि में  गतिकी के इस अध्ययन के लिए पिकोसेकंड्स के अंशों तक पृथक्कृत, भिन्न एक्स-किरण अथवा इलेक्ट्रॉन स्पंद की आवश्यकता नहीं होती। अपितु, एक  ही स्पंद (पल्स) पर्याप्त है, प्राध्यापक दीक्षित दृढ़ता-पूर्वक कहते हैं। व्यक्तिगत संगणक पर ये गणनाएँ कुछ ही दिनों का समय लेती हैं, जबकि इन प्रयोगों में लगने वाला समय  कुछ दिनों से महीनों तक हो सकता है।

यह अध्ययन सिद्धांत-वादियों एवं  प्रयोग-वादियों  को भी एक साथ लाया है। "हमारा कार्य सहभागी प्रयासों की वास्तविक सफलता को दर्शाता है," प्रयोगवादी वैज्ञानिक प्राध्यापक बंसल कहते हैं। "हम सटीक प्रायोगिक स्थितियों की उस अंतर्दृष्टि तक पहुँचना चाहते थे जो कार्य को आगे  बढ़ाने के लिए सिद्धांतों और सैद्धांतिक भौतिकविदों  के द्वारा  अस्पष्टीकृत थी," प्रा. दीक्षित,, जो एक सिद्धांतवादी हैं, कहते हैं । "यद्यपि यहाँ प्रयोगों के संचालन में चुनौतियां हैं, सैद्धांतिक गणनाओं का कोई परिसीमन नहीं  है," प्रयोगवादी प्राध्यापक बंसल स्वीकार करते हैं ।

शोधकर्ताओं का दावा है कि उनकी पद्धति विभिन्न वातावरणों जैसे चुंबकीय क्षेत्र, बाह्य दबाव अथवा उच्च तापमान में भी ठोस पदार्थों के लिए उपयुक्त है। "यहाँ तक कि यह अत्यधिक परिष्कृत  सूक्ष्मदर्शी प्रयोगों के द्वारा भी संभव नहीं," प्राध्यापक बंसल कहते हैं।  जहाँ प्रयोगों में उपलब्ध सीमित आँकड़ों से अनुक्रिया फलन का आकलन कर पाना  सुगम नहीं है, वहीं त्वरित तकनीकी अभ्युदय अनुसंधान को  सुगम बना रहा है। शोधकर्ता इन प्रयोगों के लिए भी  अपने सिद्धांत का परीक्षण करने की योजना बना रहे हैं।