शोधकर्ताओं ने द्वि-आयामी पदार्थों पर आधारित ट्रांजिस्टर निर्मित किये हैं एवं ऑटोनॉमस रोबोट हेतु अत्यंत अल्प-ऊर्जा के कृत्रिम तंत्रिका कोशिका परिपथ निर्मित करने में इनका उपयोग किया है।

उचित बैटरी का चुनाव अब आसान हो गया है।

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मुंबई
25 मार्च 2019
उचित बैटरी का चुनाव अब आसान हो गया है।

शोधकर्ता ऊर्जा बैकअप के लिए विभिन्न बैटरी प्रणालियों की तुलना करने का तरीका सुझाते हैं। 

बिजली की उत्पादन की कमी के चलते भारत में बिजलीकी आपूर्ति में रूकावट व्यापक और स्थाई हो गई हैं। इस समस्या से बाहर निकलने का एक तरीका है “माइक्रोग्रिड”, ऊर्जा स्रोतों और उपभोक्ताओं का एक स्थानीय नेटवर्क, जो अक्षय स्त्रोतों, जैसे सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के द्वारा चालित है। चूँकि उचित मौसम और दिन के समय पर निर्भर होने के कारण सौर और पवन ऊर्जा पर भरोसा नहीं किया जा सकता, माइक्रोग्रिडस को एक ऐसी अच्छी बैटरी (विद्युत कोष) की आवश्यकता होती है, जो पर्याप्त ऊर्जा का संचय करके निरंतर बिजली की आपूर्ति कर सके। लेकिन आप कई बैटरी प्रौद्योगिकियों के बीच मे सर्वश्रेष्ठ को कैसे चुनेंगे ? ऐसे में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई के शोधकर्ताओं द्वारा एक नया अध्ययन, लागत, ऊर्जा  का प्रदर्शन और पर्यावरण पर असर जैसे विभिन्न कारकों के आधार पर बैटरियों की तुलना करने का एक तरीका सुझाता है।

बैटरी प्रौद्योगिकियों की एक विस्तृत श्रृंखला जैसे लेड-एसिड, लिथियम आयन, निकल-धातु हाइड्राइड, निकल कैडमियम, सोडियम सल्फर और लिथियम सल्फर आज  बाजार में उपलब्ध हैं। बैटरी के चुनाव के लिए ग्राहक का एक मानदंड उसकी कीमत है। इसके अलावा अलग-अलग तकनीकों में से प्रत्येक के अलग-अलग प्रत्यक्ष फायदे हैं. उदाहरण के लिए, लेड -एसिड बैटरी सस्ती होती है और व्यापक रूप से उपयोग की जाती है; लिथियम आयन बैटरी की आयु लम्बी होती है ओर अधिक  सुरक्षित होती है; निकल-धातु हाइड्राइड बैटरी उच्च विद्युत धारा प्रदान करती हैं; कैडमियम बैटरी चार्ज / डिस्चार्ज चक्र की एक बड़ी संख्या को झेल सकती है और तापमान की व्यापक सीमाओं में भी काम कर सकती है।

लेकिन  प्रौद्योगिकी में सुधार के साथ, कई बैटरियों में तुलनात्मक कीमतों पर उन्नत सुविधाएँ उपलब्ध हैं। इसलिए, इसका  एक अलग तरीके से विश्लेषण करना होगा। शोधकर्ताओं ने अध्ययन के प्रभावों के बारे में बात करते हुए कहा, "हालाँकि विभिन्न प्रौद्योगिकियों की तुलना में लागत एक महत्वपूर्ण कारक है, लेकिन, क्योंकि देश पर्यावरण अनुकूल प्रणाली की दिशा में आगे बढ़ रहा है, इसलिए ऐसे अध्ययनों की एक प्रमुख भूमिका की उम्मीद की जा सकती है।"

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई के प्राध्यापक रंगन बनर्जी और प्राध्यापक प्रकाश घोष के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने सौर ऊर्जा और बैटरी द्वारा संचालित ग्रिड बैकअप सिस्टम के जीवन चक्र मूल्यांकन (एलसीए) का संचालन करके ऊपर वर्णित छह बैटरी प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन का मूल्यांकन किया है। जीवन चक्र मूल्यांकन किसी भी उत्पाद के उत्पादन से लेकर अंत तक इसके पर्यावरणीय प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए एक व्यवस्थित तरीका है।

अध्ययन भारतीय परिस्थितियों के लिए इन बैटरी द्वारा संचालित माइक्रोग्रिड के विभिन्न घटकों के विनिर्माण, परिवहन और रीसाइक्लिंग के लिए ऊर्जा आवश्यकताओं और कार्बन उत्सर्जन की माप उपलब्ध कराता है। इस माइक्रोग्रिड को ३० घरों के शहरी आवास परिसर की प्रति दिन ३ घंटे की ऊर्जा आपूर्ति के लिए डिज़ाइन किया गया है।

"ऊर्जा भुगतान का आकलन करने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष ऊर्जा निवेश और उत्पादन के संदर्भ में मौजूदा प्रौद्योगिकियों का अध्ययन किया गया। विभिन्न विकल्पों की तुलना करने के लिए कार्बन फुटप्रिंट पर भी इसी तरह के अध्ययन किए गए हैं। कि इस तरह के अध्ययन और अनुमान भारत के परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण हैं", अध्ययन के लेखकों में से एक, प्राध्यापक रंगन बनर्जी बताते हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि सारी छह प्रकार की  बैटरियों पर आधारित माइक्रोग्रिड प्रणालियों में, माइक्रोग्रिड सिस्टम के घटकों के उत्पादन, परिवहन और निर्माण के लिए खपत ऊर्जा को पाँच साल के भीतर सिस्टम के ऊर्जा उत्पादन द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। ऊर्जा भुगतान का समय सोडियम सल्फर बैटरी के लिए न्यूनतम २.६ वर्ष से लेकर लिथियम-आयन बैटरी के लिए अधिकतम ४.३ वर्ष तक पाया गया है। शोधकर्ताओं ने नेट एनर्जी अनुपात (एनईआर), प्रति वर्ष सिस्टम से ऊर्जा रिटर्न की मात्रा, निर्धारित की और पाया कि लिथियम-आयन बैटरी का उच्चतम एनईआर परिमाण ६.६ था। इस मान का तात्पर्य है कि प्रति वर्ष ऊर्जा उत्पादन प्रति वर्ष औसतन सिस्टम द्वारा अपेक्षित कुल ऊर्जा का ६.६ गुणा है।

अध्ययन में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की भी गणना की गयी - प्रति वर्ष माइक्रोग्रिड प्रणाली के घटकों के उत्पादन हेतु, परिवहन और विनिर्माण के दौरान उत्सर्जित औसत कार्बन डाइऑक्साइड देखा गया। इस अध्ययन में यह पाया गया कि सोडियम-सल्फर बैटरी का सबसे अधिक उच्च उत्सर्जन कारक था और निकल-कैडमियम बैटरी का सबसे कम । बेहतर बैटरी विकल्प के लिए उपयोगी जानकारी प्रदान करने के अलावा, शोधकर्ताओं का सुझाव है कि इस अध्ययन का उपयोग बैटरी और माइक्रोग्रिड सिस्टम दोनों के विनिर्माण और परिवहन की कार्य प्रणाली में सुधार के लिए भी किया जा सकता है।

शोधकर्ताओं ने माइक्रोग्रिड बैटरी सिस्टम के लिए एक कुशल विकल्प के रूप में ऐसी बैटरी तकनीक का सुझाव दिया है जिसमें  २.५ साल से कम ऊर्जा भुगतान का समय , ५ से अधिक एनईआर, और ०.५   कार्बन डाई ऑक्साइड / किलो वाटऑवर से कम उत्सर्जन कारक हों।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस शोध का प्राथमिक उद्देश्य सरकारों और निजी कंपनियों के लिए केवल कम लागत ही नहीं बल्कि पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकियों को एक सतत भविष्य के लिए चुनने के लिए एक साधन प्रदान करना है। वे डीजल बैकअप और हाइब्रिड स्टोरेज टेक्नोलॉजीज़ के साथ फोटोवोल्टाइक, वायु और अन्य नवीकरणीय स्रोतों के लिए अध्ययन का विस्तार करना चाहते  हैं।