भवनों की छतों पर छोटे-छोटे पेड़-पौधों का रोपण कर, घने नगरीय क्षेत्रों में बाढ़ के प्रकोप एवं अपवाह (रनऑफ) को घटाया जा सकता है।

वाहन नियमों की व्यापक समीक्षा की आवश्यकता को अधोरेखित करते अति-प्रदूषक वाहन

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Mumbai
30 जुलाई 2024
अध्ययन में पहचाने गए कुछ अति-प्रदूषक वाहन छवि श्रेय: अध्ययन के लेखक

वर्ष 2023 ने इतिहास के सर्वाधिक गर्म वर्ष के रूप में समस्त विश्व को स्तब्ध किया था। गत 12 महीनों का तापमान अब तक अभिलेखित तापमानों में सर्वाधिक उच्चतम मासिक तापमान है, एवं आगे चलकर इस समस्या के और भी गंभीर होने की संभावना है। व्यतीत होते प्रत्येक वर्ष के साथ जलवायु परिवर्तन की इस यथार्थता को वैश्विक स्तर पर अनुभव किया जा रहा है। जलवायु नियंत्रण संबंधी व्यापक कार्यवाही की आवश्यकता आज अहम है। वायु प्रदूषण, विशिष्टत: वायु में उपस्थित प्रदूषक कणों की जलवायु में अधिक भागीदारी होती है एवं यह स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज़ स्टडी (जीबीडी, 2021) के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण के कारण 16.7 लाख मृत्यु हुई हैं।

मोटर वाहनों से उत्पन्न प्रदूषण की भारत के नगरीय वायु प्रदूषण में अहम भूमिका है। तीव्रता से हो रहे नगरीकरण के परिणामस्वरूप सड़कों पर बढ़ती वाहनों की संख्या चिंता का विषय है। वाहनों की भीड़ के कारण वाहन का सड़क पर व्यतीत किया गया समय बढ़ जाता है, जिससे बड़ी मात्रा में ईंधन का दहन होता है एवं प्रदूषण बढ़ता है। परंतु समस्त वाहनों के प्रदूषण अभिलक्षण एक समान नहीं होते। कुछ वाहन अत्यधिक मात्रा में प्रदूषक उत्सर्जित करते हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी मुंबई) द्वारा किये गए एक नूतन अध्ययन में ऐसे उच्च-प्रदूषक (सुपर-एमिटर) अर्थात अति-प्रदूषकों के प्रदूषण अभिलक्षणों (पोल्युटिंग कैरेक्टरिस्टिक्स) को निर्धारित करने वाले कारकों का अन्वेषण किया गया है।

"भारत में अभी तक ऐसा कोई अध्ययन नहीं हुआ है जिसके अंतर्गत वाहन समूहों (फ्लीट्स) में अति-प्रदूषक वाहनों की भागीदारी का प्रत्यक्ष परीक्षण किया गया हो। पूर्व के अध्ययनों में इस भागीदारी का अनुमान लगाने हेतु विदेशी अध्ययन या आँकड़ों के कोई अन्य स्रोत का प्रयोग किया गया था। वाहन-समूह जनित प्रत्यक्ष प्रदूषण उत्सर्जन (रियल वर्ल्ड इमीशन) के आकलन में होने वाली अनिश्चितता को कम करना इस अध्ययन का उद्देश्य था," सुश्री सोहना देबबर्मा का कहना है, जिन्होंने प्राध्यापक हरीश फुलेरिया एवं प्राध्यापिका चंद्रा वेंकटरमन के मार्गदर्शन में यह संशोधन किया है।

अति-प्रदूषक वाहनों (सुपर-एमिटर्स) की श्रेणी में ऐसे वाहन आते हैं जो या तो पुराने हैं, जिनका रखरखाव ठीक नहीं है, अतिभारित भारी वाहन (ओवरलोडेड हेवी ड्यूटी वेहिकल) हैं या उक्त समस्त प्रकार के वाहन हैं। ऐसे वाहन अन्य वाहनों की तुलना में अत्यधिक मात्रा में प्रदूषकों का उत्सर्जन करते हैं। आईआईटी मुंबई के अध्ययन के अनुसार अल्प-भारी वाहनों (कार, दोपहिया, तिपहिया एवं 3,500 किलोग्राम से निम्न भार वाले वाणिज्यिक वाहन) का जीवनकाल एवं इंजन का अनुरक्षण (मेंटिनेंस) वाहन के अति-प्रदूषक होने या न होने की संभावना का निर्धारण कर सकता है। भारी वाहनों (बस एवं ट्रक जैसे 3,500 किलोग्राम से अधिक भार वाले वाहन) में उनके जीवनकाल एवं अनुरक्षण के साथ-साथ अतिभार की स्थिति भी अत्यधिक मात्रा में प्रदूषण उत्सर्जन में भागीदार होती हैं।

सड़कों में स्थित सुरंगें इस अध्ययन के लिए आदर्श परिस्थितियाँ प्रदान करती हैं क्योंकि सुरंग के अंदर का स्थान सीमित होता है तथा अन्य परिवेशी स्रोतों के प्रभाव को अवरुद्ध करते हुए वाहन-जनित प्रदुषण को भली-भाँति एकत्र कर सकता है। सुरंग का अतिरिक्त लाभ यह भी है कि प्रत्यक्ष रूप से एक बड़े वाहन-समूह से आँकड़ों को एकत्र किया जा सकता है। यह स्थिति प्रयोगशालाओं के नियंत्रित वातावरण में सीमित संख्या में वाहनों के प्रदूषण को मापने की तुलना में उत्तम है।

अध्ययन करने हेतु शोधकर्ताओं ने मुंबई-पुणे द्रुतमार्ग (एक्सप्रेसवे) पर स्थित कामशेत-I सुरंग के प्रवेश एवं निकास द्वार पर अपने प्रदूषण-मापी यंत्र स्थापित किए। इंजन-जनित प्रदूषण (ईंधन के अपूर्ण दहन से उत्पन्न एग्झास्ट इमीशन) के साथ-साथ अन्य प्रकार के प्रदूषण (ब्रेक घर्षण, चक्का के का मार्ग की सतह पर घर्षण एवं मार्ग की धूल से उत्पन्न उत्सर्जन) भी एकत्र हुए थे। यातायात संबंधी आँकड़ों को हाई-डेफनीशन वीडियो कैमरों एवं वाहन पंजीकरण आँकड़ों के माध्यम से दो सप्ताह में एकत्र किया गया।

शोधकर्ताओं ने सुरंग से जाने वाले यातायात के वीडियो अवेक्षण (वीडिओ सर्विलांस) का निरीक्षण किया एवं अति-प्रदूषक वाहनों की पहचान की। जिन वाहनों में से धूम्र (स्मोक) निकलता स्पष्ट दिखाई दिया या जो अतिभारित (ओवरलोड) दिखाई दिए, उन्हें अति-प्रदूषक के रूप में पहचाना गया। वाहनों की आयु एवं उनकी उत्सर्जन नियंत्रण प्रौद्योगिकी के आधार पर भी इसकी पुष्टि की गई : अर्थात भारत स्टेज (बीएस) - II, III एवं IV (2019 का अध्ययन जब बीएस VI वाहन नहीं थे) तथा ईंधन के प्रकार (पेट्रोल, डीजल एवं सीएनजी) की जानकारी का उपयोग किया।

Polution monitoring equipment
अध्ययन स्थल पर अवेक्षण (सर्विलांस) उपकरण।
श्रेय: अध्ययन के लेखक

शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रवेश द्वार की तुलना में सुरंग के निकास पर प्रदूषकों का स्तर उल्लेखनीय रूप से अधिक था, एवं निकास द्वार पर वाहन जनित प्रदूषण के वास्तविक प्रमाण की यथार्थ पहचान हो पाई। निकास द्वार पर यातायात प्रवाह की प्रदूषकों के निर्धारण में प्रमुख भूमिका थी एवं प्रवेश द्वार पर अन्य निकटवर्ती कारकों ने भी प्रदूषक स्तरों को प्रभावित किया, जैसे कि निकट के गाँव में बायोमास का दहन। प्रवेश एवं निकास द्वार के मध्य प्रदूषक स्तरों में अंतर का निर्धारण करके, मापे गए प्रदूषक स्तरों पर यातायात के प्रभाव को भलीभांति समझा जा सका।

आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं का आकलन है कि कामशेत-I सुरंग में कुल वाहन-समूहों में औसत रूप से 21% (±3%) अति-प्रदूषक वाहन थे, जिसमें से 10% (±2%) वाहनों में स्पष्टता से अत्यधिक मात्रा में धूम्र देखा गया एवं 11% (±2%) वाहन अत्यधिक भार वाले भारवाहक वाहन (ओवरलोडेड फ्रेट वेहिकल) थे। शोधदल ने भारी वाहनों एवं अल्पभारी वाहनों, उनकी आयु एवं ईंधन के प्रकार आदि की भागीदारी के आधार पर एक गणितीय मॉडल विकसित किया जो भारत में किसी भी प्रत्यक्ष यातायात में अति-प्रदूषक वाहनों की भागीदारी का आकलन करने में सक्षम है।

पुराने वाहन जिनके इंजन आधुनिक उत्सर्जन तकनीकों का पालन नहीं करते एवं जिन नए वाहनों की उचित निगरानी नहीं है उनके अति-प्रदूषक होने की संभावना प्रबल हो सकती है। अतिभारित वाहन, विशेषकर भारी वाहनों के संचालन हेतु अतिरिक्त ईंधन की आवश्यकता होती है, जिससे प्रदूषक उत्सर्जन में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त अतिभारित वाहन की गतिमान अवस्था में सड़क की सतह के साथ होने वाला उच्च घर्षण अन्य प्रदूषक भी उत्सर्जित करता है। भारत में वाहन रद्दीकरण नीति, 15 वर्ष से अधिक पुराने निजी एवं वाणिज्यिक पेट्रोल वाहनों तथा 10 वर्ष से अधिक पुराने डीजल वाहनों के रद्दीकरण पर केंद्रित है। यद्यपि शोधकर्ताओं को इन नीतियों का दृढ़ता पूर्वक पालन देखने नहीं मिला। इसके अतिरिक्त खराब रखरखाव के साथ संचालित कुछ नए वाहन भी भारत में उल्लेखनीय मात्रा में असंगत प्रदूषण का कारण बन सकते हैं।

आईआईटी मुंबई के अध्ययन में अति-प्रदूषक वाहनों एवं उनके द्वारा उत्सर्जित होने वाले असंगत प्रदूषक तत्वों के संबंध में भारत के वाहन-समूहों पर कठोर नियम लागू करने तथा वाहन निरीक्षण एवं अनुरक्षण कार्यक्रमों को सुदृढ़ करने का महत्व अधोरेखित किया है। भारत में वाहनों का पांचवां भाग संभावित अति-प्रदूषक वाहन होने के अनुमान के साथ सरकार द्वारा कार्रवाई करने का समय आ चुका है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा प्रकाशित वालंटरी वेहिकल फ्लीट मोडर्नाइजेशन प्रोग्राम (वीवीएमपी) के अनुसार, वाहनों को उनके जीवनकाल के अंतिम चरण में प्रतिस्थापित करने से वाहन जनित प्रदूषण में 15-20% की कमी आएगी। यद्यपि केवल इतना ही पर्याप्त नहीं होगा क्योंकि एक अपेक्षाकृत नया भारी वाहन भी अपनी क्षमता से अधिक भार होने या खराब रखरखाव के कारण अति-प्रदूषक वाहन बन सकता है।

माननीय केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री श्री नितिन गडकरी ने पेट्रोल एवं डीजल वाहनों का उपयोग क्रमशः समाप्त करने एवं इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) जैसे विकल्प अपनाने संबधी धारणा हाल ही में व्यक्त की है। केंद्र सरकार ने भारत में इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने संबंधी प्रोत्साहन देने हेतु उद्योगों एवं उपभोक्ताओं दोनों के लिए अनेकों प्रोत्साहन योजनायें क्रियान्वित की हैं।

सुश्री देबबर्मा निष्कर्ष देते हुए कहती हैं, "यद्यपि इलेक्ट्रिक वाहनों के माध्यम से वाहनों से उत्पन्न प्रदूषण को तो नियंत्रित किया जा सकता है, किन्तु अन्य उत्सर्जन अभी भी चिंतनीय हैं। भारत में अभी भी एक्झास्ट उत्सर्जन के अतिरिक्त अन्य उत्सर्जनों के लिए कोई उत्सर्जन मानक नहीं हैं।"