अम्लीय वर्षा आजकल एक मुख्य चर्चा का विषय है। मानव गतिविधियों के कारण प्रदूषण में वृद्धि का प्रतिकूल प्रभाव इसका कारण है ऐसा पर्यावरण वैज्ञानिकों ने बताया है। लेकिन इंसानों के धरती पर विकसित होने से पहले भी अम्लीय वर्षा के साक्ष्य पाये गए हैं। लगभग २५ करोड वर्ष पहले साइबेरियाई क्षेत्र में ज्वालामुखी के विस्फोट के कारण जो अम्लीय वर्षा हुई उसके कारण लगभग 90% समुद्री और 70% स्थलीय प्रजातियां खत्म हुई थी। अम्लीय वर्षा के कारण बड़े पैमाने पर प्रजातियों के लुप्त होने का यह पृथ्वी के इतिहास में सबसे विनाशकारी मामला था।
वर्षा के अम्लीयता को पीएच पैमाने का उपयोग करके मापा जाता है। पैमाने में जल उदासीन के रूप मे परिभाषित है जिसका पीएच मान ७ है। ७ से कम पीएच वाले विलयन को अम्लीय कहा जाता है और ७ से अधिक पीएच वाले विलयन को क्षारीय कहा जाता है। कॉफी अम्लीय है जिसका पीएच मान ५.५ है और नींबू के रस का पीएच मान २.५ है जो कि कॉफी की अपेक्षा अधिक अम्लीय है। पीएच पैमाना एक लघुगणकीय (लोगारिदमीय) मापक है जिसका अर्थ है कि पीएच ४ पीएच ५ की तुलना में १० गुना अधिक अम्लीय है और पीएच ६ की तुलना में १०० गुना अधिक अम्लीय है।
अचरज की बात ये है कि पानी की तुलना में बारिश हमेशा अम्लीय होती है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड बादलों में विघटित हो जाती है और कार्बोक्सिलिक अम्ल नामक एक दुर्बल अम्ल बनाती है। इसलिए वैज्ञानिकों ने वर्षा जल के मामले में उदासीनता के मान को पीएच ५.६ के रूप में परिभाषित किया है। कारों और विभिन्न उद्योगों से उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड वर्षा जल को अधिक अम्लीय बनाते हैं। वर्षा जल की बूँदें धरती पर गिरने से पहले हवा में निलंबित इन गैसों और कणों के साथ मिलकर एक जटिल मिश्रण बनाती है।
तो वर्षा जल कितना अम्लीय हो सकता है? विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि अम्लीय वर्षा का मान पीएच २ जितना कम हो सकता है। यह अत्यधिक अम्लीय जल सीधे मानव की आँख और त्वचा को प्रभावित कर सकता है। मछलियाँ एवं उभयचर तुरंत मर सकते है। दीर्घकालीन अम्लीय वर्षा के कारण मिट्टी से पोषक तत्वों का निक्षालन हो जाता है जो वनों के पारिस्थितिक तंत्र को विनाश की ओर ले जाता है। लेकिन सौभाग्य से उच्च अम्लीय वर्षा बहुत कम पाई जाती है। पिछले कुछ समय से पूरी दुनिया मे अत्यधिक प्रदूषित शहरों मे अम्लीय वर्षा दर्ज की जा रही है जो अत्यंत चिंता का विषय है।