वैज्ञानिकों ने आरोपित विकृति के अंतर्गत 2-डी पदार्थों के परमाण्विक गुणों का सैद्धांतिक परीक्षण किया है।

जैव-विविधता मापने का विज्ञान

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वैज्ञानिक पश्चिमी घाट की पर्वत माला जैसे किसी भी पर्यावरणीय तंत्र के संरक्षण हेतु इन्हें 'जैव-विविधता से परिपूर्ण स्थान’ (बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट) का दर्जा कैसे दे पाते हैं? यह कार्य इकोलॉजिकल सैंपलिंग नाम की शोध-तकनीक के द्वारा किया जाता है, जो उस तंत्र में स्थित जीवों और वनस्पतियों की विविधता और बहुतायत को जाँचने में मदद करती है| इस तकनीक के अंतर्गत एक निश्चित इलाके के भीतर अलग-अलग जगहों से जीवों और वनस्पतियों के नमूने इकट्ठा किये जाते हैं, ताकि इन नमूनों के आधार पर ,पूरे इलाके की संभावित जैव-विविधता का आकलन हो पाये|

पर क्योंकि किसी इलाके में समाहित भूमि के हर अंश, और पानी की हर बूंद का सर्वेक्षण करने में बहुत अधिक श्रम की आवश्यकता होगी, इसीलिए आमतौर पर, इलाके को चौकोर भागों में बाँटा जाता  है और हर एक भाग से  प्रजातियों की संख्या और घनत्व की जानकारी इकट्ठा की जाती है|

नमूनों के चयन की तकनीक हर प्रकार के क्षेत्र लिए अलग हो सकती है| जैसे रैंडम सैंपलिंग तब प्रयोग करते हैं जब इलाक़ा विशाल और एकरूपता लिए हो| इसमें नमूने, बिना कोई सुनियोजित प्रक्रिया अपनाये, अलग अलग हिस्सों से आकस्मिक ही चयन कर लिए जाते हैं ताकि हर प्रजाति की गणना में शामिल होने की एक सी सम्भावना हो|

सिस्टेमेटिक सैंपलिंग तब उपयोगी है जब इलाके की प्रकृति असमान हो, और सर्वेक्षण का उद्देश्य अलग-अलग फासलों पर जीवों या वनस्पति में होने वाला धीमा बदलाव मापना हो|

ट्रांसेक्ट-लाइन, किसी एक इलाके को काटते हुए बनी रेखा पर मौजूद प्रजातियों की संख्या और बहुलता जाँचती है| वहीँ स्ट्रैटिफाइड सैंपलिंग तब उपयोगी है जब एक ही क्षेत्र में थोड़ा इलाका बाकि इलाके से बहुत अंतर लिए हो, जिस कारण उसमें अलग से नमूने लेने की जरूरत पड़े|

इकोलॉजिकल सैंपलिंग वन्यजीव विज्ञान, पारिस्तिथिकी और कई दूसरे क्षेत्रों में होने वाले शोध की नींव रखती है| इनका मापन ही प्राकृतिक संरक्षण को दिशा प्रदान कर, हमे अपनी दुनिया को बेहतर समझने में सहायक होता है।