भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) में रसायन विज्ञान विभाग एवं जलवायु अध्ययन अंतर्विषयक कार्यक्रम (इंटरडिसिप्लिनरी प्रोग्राम इन क्लायमेट स्टडीज, आईडीपीसीएस) के प्राध्यापक देबब्रत मैती को वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) द्वारा शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार 2022 से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार वैज्ञानिक उपादेयता (वैलोराईजेशन) की अवधारणा को लागू करने में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रदान किया गया है।
सीएसआईआर के संस्थापक निदेशक के नाम पर आधारित शांति स्वरूप भटनागर (एसएसबी) पुरस्कार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित पुरस्कार है। रसायन विज्ञान श्रेणी के अंतर्गत इस पुरस्कार के प्राप्तकर्ता डॉ. मैती को पुरस्कार राशि के रूप में ₹ 5,00,000, प्रशस्ति पत्र, विजय पट्टिका एवं 65 वर्ष की आयु तक प्रति माह ₹ 15,000 की अध्येतावृत्ति प्राप्त होगी।
“एसएसबी पुरस्कार साथ में कार्यरत मेरे सभी छात्रों और शोधकर्ताओं के कठिन परिश्रम का प्रतिफल है। एक कार्यदल के रूप में यह परिणाम इसे और अधिक आनंदमय बनाते हैं। आईआईटी मुंबई भारत में शोध करने हेतु सर्वाधिक उपयुक्त स्थान प्रतीत हुआ। हमारे रसायन विज्ञान विभाग एवं आईडीपीसीएस में अत्याधुनिक अनुसंधान की उत्तम व्यवस्था है। हमारे अनुसंधान एवं विकास कार्य, संकाय कार्य एवं अन्य अधिष्ठाता (डीन), समस्त विभागाध्यक्ष, उप निदेशक एवं निदेशक महोदय आदि का प्रोत्साहन पल-प्रतिपल हमारे साथ रहता है, एवं अनुसंधान को शिखर तक ले जाने हेतु आवश्यक प्रत्येक सहायता सुलभ है,” प्रा. देबब्रत मैती उत्साह मिश्रित प्रतिक्रिया देते हुये कहते हैं।
प्रा. मैती ने रामकृष्ण मिशन विद्यामंदिर बेलूर, कोलकाता वि.वि. से विज्ञान स्नातक (बी.एस्सी.) की उपाधि प्राप्त की, तत्पश्चात आईआईटी मुंबई से परास्नातक करते हुये रजत पदक प्राप्त किया। 2003-2008 के मध्य उन्होंने जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की, तदुपरांत मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में पोस्टडॉक्टोरल फेलो (2008-2010) के रूप में शोध कार्य किया। 2011 से वह आईआईटी मुंबई में संकाय सदस्य के रूप में सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं।
“प्रशासन के साथ-साथ मुझे आईआईटी मुंबई के सहकर्मियों का भी अच्छा समर्थन प्राप्त हुआ। अपने सहकर्मियों और छात्रों से प्राप्त सराहना अभिभूत करने वाली थी जिसका मेरी जीवन वृत्ति (करियर) में बहुत बड़ा योगदान रहा है,'' प्रोफेसर मैती कहते हैं।
“सुख-दुख में सदैव साथ रहने वाला मेरा परिवार मेरी प्रगति की प्रेरणा एवं शक्ति का स्रोत रहा है,'' प्राध्यापक मैती अपने परिवार के प्रति प्रेम-भाव को व्यक्त करते हुए कहते हैं।
प्रा. मैती का कार्य वैज्ञानिक उपादेयता (वैलोराईजेशन) की अवधारणा को लागू करना है, जो कि महत्वहीन प्रतीत होने वाले अणुओं से औषधीय एवं औद्योगिक रूप से मूल्यवान रसायनों के निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
"हम प्रकृति से प्रेरणा लेते हैं एवं अणुओं के चयनात्मक संशोधनों का मार्ग प्राप्त करने हेतु धातु, प्रकाश, एंजाइम आदि विभिन्न युक्तियों का उपयोग करते हैं। यह पारंपरिक रसायन विज्ञान में बहुधा संभव नहीं होता है," प्रा. मैती अपने कार्य की व्याख्या करते हैं।
सरल भाषा में कहा जाए तो प्रा. मैती का कार्य उत्प्रेरण (केटेलिसीस) एवं नवीन अभिक्रिया विकास पर केंद्रित है।
प्राध्यापक मैती का कहना है कि "उत्प्रेरण संभवत: वर्तमान शताब्दी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय है। यह अभिक्रिया की दिशा को परिवर्तित कर इसे सरलता एवं सुगमता प्रदान करता है।"
"उत्प्रेरक अनेकों रूपों में हमारे दैनिक जीवन से जुड़े हुये हैं। कृषि रसायनों से लेकर औषधियों एवं ऊर्जा जैसे प्रत्येक क्षेत्र में उत्प्रेरण का प्रभाव देखा जा सकता है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 35% उत्प्रेरण से प्रभावित होता है, जो भविष्य में ऊपर ही जाएगा," प्राध्यापक मैती उत्प्रेरण पर कार्य करने के महत्व पर प्रकाश डालते हैं।
अपने वर्तमान कार्य के संबंध में प्रा. मैती कहते हैं, "मैं वर्तमान में सी-एच सक्रियकरण (कार्बन-हाइड्रोजन एक्टिवेशन) पर शोधरत हूँ। संश्लेषण रसायनज्ञ (सिंथेटिक केमिस्ट) के रूप में, हमारा लक्ष्य सरलता से उपलब्ध आरंभिक रसायनों के माध्यम से उन नवीन रसायनों का निर्माण करना है जिनका पारंपरिक रीति से निर्माण कर पाना अत्यधिक कठिन कार्य है। क्योंकि साधारणत: यह लागत-अक्षम (कॉस्ट-इनएफ़िसिएंट) एवं कई चरणों वाली एक कठिन प्रक्रिया है। हमारा लक्ष्य इसे एकल-चरण प्रक्रिया तक ले जाकर सरलतम एवं संक्षिप्त करना है। कार्बनिक अणुओं में सामान्यत: बहुत सारे सी-एच बंध होते हैं। यदि किसी प्रकार से आप सी-एच बंधों में संशोधन कर नवीन रासायनिक बंधों की रचना कर सकें तो नवीन अणुओं का निर्माण करना अत्यंत सरल एवं लाभप्रद होगा।"
वास्तव में सी-एच बंध में बदलाव करना सरल नहीं है। सी-एच बंध को तोड़ना कितना सुगम अथवा कठिन है, इसका संकेत सी-एच बंध से जुड़ी ऊर्जा से प्राप्त होता है। यह ऊर्जा सामान्यत: उच्च स्तर की होती है, जो प्रक्रिया को कठिन बनाती है। साथ ही सी-एच बंध की चयनात्मकता का भी प्रश्न है।
"एक ही समय में अणुओं के समस्त सी-एच बंधों को सक्रिय नहीं किया जाता क्योंकि इसका कोई व्यावहारिक उपयोग नहीं है। जब अणु में कई एक-समान सी-एच बंध उपस्थित होते हैं तब चयनात्मकता का भी प्रश्न होता है एवं हमें केवल एक बंध को ही सक्रिय करने की आवश्यकता होती है," प्राध्यापक मैती आगे बताते हैं।
अपने नवीनतम कार्यों में से एक में, प्रा. मैती एवं उनके कार्यदल ने जैविक रूप से महत्वपूर्ण यौगिकों के उत्पादन के सरलीकरण हेतु एक काउंटर इंट्यूटिव रासायनिक अभिक्रिया का विकास किया. वे एक ऐसी रासायनिक अभिक्रिया विकसित करने में सफल हुए हैं जो प्राकृतिक उत्पादों एवं औषधियों में पाए जाने वाले लैक्टोन नामक आवश्यक यौगिकों के निर्माण हेतु अक्रिय कार्बन-हाइड्रोजन बंध (अनरिएक्टिव सी-एच बांड) को सक्रिय करती है।
'मेक इन इंडिया' एवं अन्य उपक्रमों के माध्यम से भारत में विनिर्माण को प्रोत्साहन देने एवं तीव्रता से बढ़ रही अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ता प्रदान करने की आवश्यकता है। आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण वस्तुओं को प्रयोगशाला से बाजार तक ले जाना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। निःसंदेह प्रा. मैती का कार्य इस दिशा में संभावनाओं से युक्त है।
"सी-एच बंध सक्रियकरण ने अभी स्थायी एवं लाभप्रद रासायनिक परिवर्तन की ओर एक कदम बढ़ाया है। यद्यपि एक लंबी यात्रा अभी भी हमारे सामने है। विश्वास है कि शीघ्र ही हम सी-एच सक्रियकरण की विभिन्न विधियों के माध्यम से जटिल अणुओं को नियमित रूप से संश्लेषित (सिंथेसाइज़) होते हुये देखेंगे," प्राध्यापक मैती अपने शोधकार्य के भविष्य पर प्रकाश डालते हैं।