एरेटेड ऑटोक्लेव्ड कंक्रीट ब्लॉक जैसी पर्यावरण-कुशल भित्ति सामग्री, प्राकृतिक वायु संचालित घरों में तापमान को बहुत कम कर इसे आंतरिक रूप से सुविधाजनक बनाती हैं।

आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं ने मेनिंजियोमा की अल्प एवं तीव्र आक्रामकता का अनुमान लगाने में सक्षम जैवचिह्न की खोज की

Read time: 1 min
Mumbai
5 अप्रैल 2024
A graphic representation of  biomarkers that could predict meningioma severity

एक बहु-संस्थागत अध्ययन के अंतर्गत प्रोटीन के एक ऐसे समूह की खोज की गई है जो मेनिंजियोमा नामक एक प्रकार के मस्तिष्क अर्बुद (ब्रेन ट्यूमर) की निम्न अथवा उच्च उग्रता (अल्प या अधिक आक्रामकता) का प्राय: 80% शुद्धता के साथ अनुमान लगा सकता है। इस हेतु अर्बुद एवं रक्त प्रतिदर्शों (सैंपल) में प्रोटीन का परीक्षण किया गया। खोजकर्ता इसे मेनिंजियोमा के शीघ्र निदान एवं पूर्वानुमान के लिए जैवचिह्न (बायोमार्कर) के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

मेनिंजियोमा मस्तिष्कार्बुद का सबसे अधिक पाया जाने वाला रूप है। इसका तीव्र प्रसार एवं अर्बुद के उग्र होने के संकट से घिरे रोगियों को पहचानने में कठिनाई के चलते, चिकित्सकों के लिए यह एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। टाटा मेमोरियल चिकित्सालय एवं ACTREC (एडवांस सेंटर फॉर ट्रीटमेंट, रिसर्च एंड एजुकेशन इन कैंसर) नवी मुंबई के चिकित्सकों के साथ दीर्घकालिक सहयोग का लाभ लेते हुए, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के शोधकर्ताओं ने एक महत्वपूर्ण रिक्तता को खोजने में सफलता प्राप्त की है। यह रिक्तता है, अर्बुद के उग्र संक्रमण अवस्था की ओर अग्रसर होने वाले मेनिंजियोमा रोगियों के शीघ्र संसूचन हेतु एक विश्वसनीय चिह्नान्कन (मार्कर) की। यद्यपि प्रोटिओमिक्स – किसी जैविक प्रतिदर्श (बायोलोजिकल सैंपल) में प्रोटीन के पूरे समूह को देखने वाले उच्चस्तरीय अध्ययन – में व्यापक प्रगति हुई है, जिसमें विशेष रूप से मेनिंजियोमा पर प्रोटिओमिक अध्ययन भी सम्मिलित है, तथापि संशोधन में यह रिक्तता शेष है।

मेनिंजियोमा के निदान में अनुसंधान एवं स्वास्थ्य सेवा के मध्य की इस रिक्तता को दूर करने हेतु एक सहयोगी दल का गठन किया गया, जिसमें उपरोक्त चिकित्साविदों के साथ-साथ आईआईटी मुंबई, इंस्टीट्यूट फॉर सिस्टम्स बायोलॉजी, सिएटल, यूएसए एवं मेडिकल टेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर, एंग्लिया रस्किन यूनिवर्सिटी, कैम्ब्रिज, यूके के विशेषज्ञों को एक साथ लाया गया। आईआईटी मुंबई के प्राध्यापक संजीव श्रीवास्तव ने इस शोध दल का नेतृत्व किया।

उनके अध्ययन का उद्देश्य मेनिंजियोमा की आक्रामकता को रक्त लसी (ब्लड सीरम) एवं ऊतक प्रतिदर्शो (टिशु सैंपल) दोनों में वर्गीकृत कर एक नवीन नैदानिक ​​​​अंतर्दृष्टि विकसित करना है। यह स्वस्थ व्यक्तियों, मेनिंजियोमा की निम्न तथा उच्च उग्रता से प्रभावित लोगों एवं ग्लायोब्लास्टोमा (एक पृथक एवं उग्र प्रकार का मस्तिष्कार्बुद) से प्रभावित व्यक्तियों के रक्त लस तथा ऊतकों में संभावित प्रोटीन जैवचिह्न (बायोमार्कर) का तुलनात्मक विश्लेषण करता है।

शोधकर्ताओं ने भारतीय प्रतिभागियों से एकत्र किए गए 53 ऊतक प्रतिदर्शों एवं और 51 रक्त प्रतिदर्शों का परीक्षण किया। इनमें मस्तिष्कार्बुद विहीन (स्वस्थ), ग्लायोब्लास्टोमा से प्रभावित एवं निम्न तथा उच्च आक्रामकता के मेनिंजियोमा से पीड़ित व्यक्तियों के प्रतिदर्श सम्मिलित थे। ग्लायोब्लास्टोमा के प्रतिदर्शों का इस अध्ययन में तुलना हेतु समावेश किया गया - क्योंकि यह एक ऐसा मस्तिष्कार्बुद है जो मेनिंजियोमा की तुलना में मस्तिष्क में कोशिकाओं के एक पृथक समूह से उत्पन्न होता है। ग्लायोब्लास्टोमा प्रतिदर्शों की उपस्थिति से यह सुनिश्चित किया गया कि इस अध्ययन में पहचाने गए जैवचिह्न मेनिंजियोमा के ही है।

शोध दल ने वर्तमान वैज्ञानिक अनुसंधान एवं डेटाबेस का परीक्षण किया एवं मेनिंजियोमा से जुड़े ज्ञात प्रोटीन का अभ्यास किया। इससे प्राप्त प्रारंभिक सूची पर आगे के विश्लेषण के लिए मास स्पेक्ट्रोमेट्री तकनीक का उपयोग करते हुए उन्होंने अपने अध्ययन में ऊतक प्रतिदर्शों को 49 एवं रक्त प्रतिदर्शों को 24 प्रोटीनों तक सीमित किया।

अर्बुद ऊतक प्रतिदर्श (ट्यूमर टिशु सैंपल) में विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं की उपस्थिति के कारण अर्बुद प्रोटीन समूहों (प्रोटीओम) का विश्लेषण करना चुनौतीपूर्ण होता है। वहाँ सामान्य कोशिकाओं से लेकर निम्न या उच्च उग्रता वाली विभिन्न स्तर की अर्बुद कोशिकाएँ हो सकती हैं। अर्बुद के अन्दर यह विषमता रोगग्रस्त प्रतिदर्शों में भी स्वस्थ प्रतिदर्शों के समान गुणधर्म दर्शा सकती है एवं चुनौती उत्पन्न करती है। इसके समाधान हेतु वर्तमान अध्ययन में शोधकर्ताओं ने केवल विशिष्ट प्रोटीनों पर ध्यान केंद्रित किया, जो इससे पहले मेनिंजियोमा में उचित रीति से विनियमित नहीं पाए गए थे। इसके पश्चात मूल्यांकन किया गया कि क्या निम्न एवं उच्च उग्रता वाले अर्बुदों के मध्य इन प्रोटीनों का स्तर उल्लेखनीय रूप से पृथक था या नहीं।

अर्बुद के प्रतिदर्शो का विश्लेषण स्वस्थ एवं रोगग्रस्त ऊतकों सहित ग्लायोब्लास्टोमा एवं मेनिंजियोमा के मध्य स्पष्ट अंतर को दर्शाने में सक्षम तो था (जो संकेत करता है कि यह दोनों ही मस्तिष्कार्बुद हैं तथापि उनकी प्रोटीन विशेषताएं भिन्न-भिन्न हैं) किंतु मेनिंजियोमा की निम्न एवं उच्च आक्रामकता श्रेणियों के मध्य अंतर करना अब भी चुनौतीपूर्ण था। आणविक स्तर पर इन श्रेणियों के मध्य अंतर प्राप्त करने में यह कठिनाई अर्बुद की विषम प्रकृति के कारण थी। अर्बुद के स्वयं निम्न श्रेणी से उच्च श्रेणी में परिवर्तन के चलते विभिन्न श्रेणियों की कोशिकाओं की उपस्थिति भी इसका एक कारण हो सकती है।

यद्यपि रक्त लसी (ब्लड सीरम) के प्रतिदर्शों से निम्न एवं उच्च उग्रता श्रेणी के मेनिंजियोमा के मध्य का अंतर तुलना में स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। उच्च आक्रामकता मेनिंजियोमा के प्रोटीन प्रतिदर्श में निम्न आक्रामकता श्रेणी मेनिंजियोमा की तुलना में ग्लायोब्लास्टोमा के साथ अधिक समानताएं दिखाईं दी। परिणामस्वरूप दो प्रकार के उग्र मस्तिष्कार्बुदों (अर्थात ग्लायोब्लास्टोमा तथा उच्च श्रेणी मेनिंजियोमा) के मध्य संभावित समानताओं की पुष्टि हुई।

अध्ययन में प्रोफिलिन 1, एनेक्सिन ए1 तथा एस100 कैल्शियम-बाइंडिंग प्रोटीन ए11 जैसे प्रोटीनों की पहचान की गई, जो निम्न-श्रेणी की तुलना में उच्च आक्रामकता श्रेणी मेनिंजियोमा में प्रचुर मात्रा में उपस्थित थे, जबकि पेल्टिन एवं म्यूसिन्स सहित कुछ प्रोटीन निम्न श्रेणी मेनिंजियोमा की तुलना में उच्च आक्रामकता श्रेणी मेनिंजियोमा में अल्प मात्रा में उपस्थित थे। इसी प्रकार उच्च श्रेणी मेनिंजियोमा रोगियों से एकत्र किए गए रक्त लसी प्रतिदर्शों में ट्रांसफ़रिन, जेल्सोलिन, एपीओबी जैसे प्रोटीनों की उपस्थिति कम देखी गयी।

आगे के परीक्षण हेतु शोधकर्ताओं ने सबसे महत्वपूर्ण भिन्नता दर्शाने वाले प्रोटीनों पर पर ध्यान केन्द्रित करते हुए प्रोटीनों की सूची को ऊतक के लिए 15 एवं रक्त के लिए 12 प्रोटीनों तक सीमित कर दिया। उन्होंने इन चयनित प्रोटीन चिह्नान्कनों (मार्कर) का उपयोग मशीन-लर्निंग प्रतिरूप (मॉडल) निर्मित करने हेतु किया जो निम्न एवं उच्च आक्रामकता श्रेणी वाले मेनिंजियोमा को पहचानने में सक्षम है। इस अध्ययन के प्रमुख लेखकों में से एक अंकित हलदर, इस बात से उत्साहित हैं कि ओमिक्स विषय के अनुसंधान में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) एवं मशीन लर्निंग को एकीकृत करने से उनके अनुसंधान को सुव्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण सहायता मिली।

ऊतक प्रतिदर्शों में, म्यूसिन प्रोटीन, एमयूसी1 के साथ एमयूसी 4 एवं एस 100 कैल्शियम-बाइंडिंग प्रोटीन A11 के साथ स्पेक्ट्रिन बीटा श्रृंखला के संयोजन ने चिह्नान्कन के रूप में श्रेष्टतम अंतर दिखाया। इसी प्रकार रक्त लसी प्रतिदर्शों (सीरम सैम्पल) में फ़ाइब्रोनेक्टिन एवं एपोलिपोप्रोटीन बी के साथ ट्रांसफ़रिन के संयोजन से निम्न आक्रामकता श्रेणी के अर्बुद को उच्च आक्रामकता श्रेणी के अर्बुद से पृथक करने की दिशा में आशाजनक परिणाम सामने आये।

इनमें से किसी भी प्रोटीनों को जैवचिह्न के रूप में निश्चित करने के पूर्व आणविक एवं नैदानिक ​​स्तरों पर आगे के अध्ययन निस्संदेह महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण स्वरुप, मेनिंजियोमा के लिए आणविक स्तर पर प्राप्त परिणामों में ट्रांसफ़रिन की उपस्थिति से शोधकर्ता आश्चर्यचकित हैं। ट्रांसफ़रिन की पहचान एक नवीनतम अविष्कृत “लौह-निर्भर कोशिका-मृत्यु प्रक्रिया" को प्रेरित करने वाले एक आवश्यक कारक के रूप में की गई है, एवं नवीनतम अध्ययनों से अर्बुद जैसे विभिन्न रोगों के विकास में इसकी सहभागिता का पता चलता है।

नैदानिक ​​​​स्तर पर इस अध्ययन में खोजे गए प्रत्येक जैवचिह्न को बड़े समूहों पर आगे के विश्लेषण और सत्यापन की आवश्यकता है।

“मेनिंजियोमा परियोजना एक सतत प्रयास है जिसके कई पक्षों को खोजा जाना अभी शेष है। इन बायोमार्करों पर दृष्टि रखते हुए रोगियों की पहचान एवं प्रबंधन में चिकित्सकों की सहायता करना हमारा लक्ष्य है," हलदर निष्कर्ष देते हैं।