मानव शरीर में औषधियाँ प्रवेश कराने हेतु दशकों से चिकित्सक सुई का उपयोग करते आ रहे हैं। किन्तु बच्चे हों या वृद्ध, अपने शरीर का वेधन किसी को प्रिय हो सकता है क्या? कई बार सुई के प्रति इतना प्रबल भय होता है कि अधिकाँश लोग, विशेषकर बच्चे, टीकाकरण एवं अन्य चिकित्सा उपचारों से वंचित रह जाते हैं। मधुमेह के रोगियों के लिए तो यह और अधिक तनावपूर्ण होता है क्योंकि उनमे से कईयों को बार-बार इंसुलिन इन्जेक्शन की आवश्यकता हो सकती है।
रोगियों के सहायतार्थ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के वातान्तरिक्ष अभियांत्रिकी (एयरोस्पेस इंजीनियरिंग) विभाग के प्राध्यापक वीरेन मेनेजेस के नेतृत्व में शोध-दल ने एक अनूठा मार्ग खोज निकाला है। इसके अंतर्गत सुई के स्थान पर एक शॉक सिरिंज विकसित कर शरीर में औषधि पहुँचाने की नवीन पद्धति निर्मित की गयी है। जर्नल ऑफ बायोमेडिकल मटेरियल्स एंड डिवाइसेज में प्रकाशित एक अध्ययन में, आईआईटी मुंबई के इन शोधकर्ताओं ने शॉक सिरिंज एवं प्रचलित सुई दोनों के माध्यम से औषधि के प्रभावशीलता का चूहों में तुलनात्मक अध्ययन किया।
त्वचा को तीक्ष्ण सुई से छेदने वाली सिरिंजों के विपरीत, शॉक सिरिंज उच्च-ऊर्जा आघात तरंगों (शॉक वेव्स) का उपयोग करती है। ये तरंगे ध्वनि की गति से भी तीव्र गति से यात्रा कर त्वचा छेदन कर सकती हैं। उत्पन्न होने पर ये तरंगें अपने यात्रा माध्यम (निकट स्थित वायु या तरल) को संपीड़ित (कॉम्प्रेस) करती हैं। यह सोनिक बूम के समान एक प्रभाव है, जिसमें कोई विमान जब ध्वनि की गति से भी तीव्र गति से उड़ता है, तो शॉक वेव्स निर्मित करता है जो वायु को ढकेलते हुए विक्षोभ उत्पन्न करती है (पुश एंड डिस्टर्ब एअर)।
प्राध्यापक मेनेजेस की प्रयोगशाला में 2021 में विकसित शॉक सिरिंज, बॉलपॉइंट पेन से किंचित लंबी है। उपकरण में तीन खंडों, चालक, चालित एवं औषधि संग्राहक (ड्रायवर, ड्रिवेन एवं ड्रग होल्डर) से युक्त एक माइक्रो शॉक ट्यूब है। औषधि वितरण के लिए समस्त खंड एक साथ कार्य करते हुए शॉकवेव-चालित माइक्रोजेट (सूक्ष्म धारा या फव्वारा) उत्पन्न करते हैं। शॉक सिरिंज में पूरित तरल औषधि को माइक्रोजेट में रूपांतरित करने हेतु माइक्रो शॉक ट्यूब के चालक खंड पर दबावयुक्त नाइट्रोजन गैस को लगाया जाता है। इस औषधीय माइक्रोजेट की गति, एक उड़ान भरते विमान की गति की तुलना में प्राय: दोगुनी होती है। तरल औषधि की यह जेट-धारा त्वचा वेधन से पूर्व सिरिंज के नोजल से होकर जाती है। शॉक सिरिंज के माध्यम से औषधि प्रविष्ट कराने की सम्पूर्ण प्रक्रिया वेगवत एवं मृदुल (रैपिड एंड जेंटल) होती है, अत: अधिकांश रोगियों को कुछ भी आभास नहीं होता।
“शॉक सिरिंज को इस प्रकार से युक्तिबद्ध किया गया है कि यह औषधि को तीव्रता से त्वचा में प्रवेश करा सके। वहीं एक प्रचलित सिरिंज को शीघ्रता से अथवा अत्यधिक बल के साथ त्वचा में प्रवेश कराये जाने पर यह त्वचा या अंतर्निहित ऊतकों को अनावश्यक आघात पहुंचा सकती है,” इस अध्ययन की प्रमुख लेखिका एवं शोधार्थी सुश्री प्रियांका हंकारे कहती है।
ऊतकों की क्षति को न्यूनतम करने तथा औषधि की सुसंगत एवं सटीक आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु शॉक सिरिंज में दबाव पर निरंतर दृष्टि रखी जाती है।
इस हेतु “कृत्रिम ऊतकों (जैसे संश्लेषित त्वचा) पर कठोर परीक्षणों के माध्यम से जेट-निवेश के बल एवं गति का मापन किया जाता है, जो सुरक्षा एवं सुविधा को सुनिश्चित करता है,”सुश्री हंकारे बताती हैं।
शोधकर्ताओं ने शॉक सिरिंज की नोजल के युक्ति को इस तरह से अनुकूलित किया है कि इसका छिद्र केवल 125 माइक्रोमीटर (मानव सिर के बाल की मोटाई का) हो।
“यह सुनिश्चित करता है कि औषधि के शरीर में प्रवेश के समय वेदना को कम करने के लिए यह छिद्र पर्याप्त रूप से सूक्ष्म है, साथ ही माइक्रोजेट की त्वरित गति के लिए आवश्यक यांत्रिक बलों को सहन करने हेतु पर्याप्त रूप से सुदृढ़ भी है,” सुश्री हंकारे स्पष्ट करती है।
शॉक सिरिंज के माध्यम से औषधि की शरीर में वितरण की दक्षता के परीक्षण हेतु शोधकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न परीक्षण किए, जिसमें उन्होंने चूहों में तीन पृथक-पृथक औषधियाँ प्रविष्ट की। शोधकर्ताओं ने शरीर में औषधि के वितरण एवं अवशोषण के अनुवीक्षण (मॉनिटर) हेतु रक्त एवं ऊतकों में औषधि के स्तर को मापा। इसके लिए उन्होंने हाई-परफोर्मेंस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी (HPLC; एचपीएलसी) विधि का उपयोग किया।
जब परीक्षणों के लिए केटामाइन-जायलाज़िन नामक एक निश्चेतक (एनेस्थेटिक) चूहों की त्वचा में प्रपूरित (इंजेक्ट) किया गया, तो शॉक सिरिंज का प्रभाव सामान्य सुई के समान ही पाया गया। दोनों स्थितियों में, तीन से पाँच मिनट उपरांत निश्चेतक का प्रभाव आरंभ हुआ जो 20-30 मिनट तक चला। ये परिणाम उन औषधियों के लिए शॉक सिरिंज की उपयोगिता को सिद्ध करते है जिनको निरंतर एवं मंद गति से स्रावित किये जाने (स्लो एंड सस्टेंड रिलीज) की आवश्यकता होती है। एंटीफंगल (टर्बिनाफाइन) जैसे श्यान प्रकृति औषधि संरूपण (विस्कस ड्रग फॉर्मूलेशन) के लिए शॉक सिरिंज का प्रदर्शन प्रचलित सुइयों की तुलना में बेहतर था। चूहे की त्वचा के नमूनों से ज्ञात हुआ कि त्वचा की परतों में प्रपूरित किया गया टर्बिनाफाइन प्रचलित सुई की तुलना में शॉक सिरिंज के माध्यम से अधिक गहराई तक प्रविष्ट हुआ। शोधकर्ताओं ने पाया कि जब मधुमेह से ग्रसित चूहों को इंसुलिन दिया गया तो प्रचलित सुइयों की तुलना में शॉक सिरिंज का उपयोग रक्त शर्करा के स्तर को प्रभावी रूप से कम करने में सक्षम था, साथ ही रक्त शर्करा का स्तर दीर्घकाल तक निचले स्तर पर बना रहा।
इसके अतिरिक्त शोधकर्ताओं ने चूहों के ऊतकों का विश्लेषण भी किया, जो बताता है कि शॉक सिरिंज से औषधि दिए जाने पर चूहों की त्वचा में होने वाली हानि प्रचलित सिरिंज की तुलना में कम थी। चूंकि शॉक सिरिंज से शोथ (इन्फ्लेमेशन) कम होता है अत: प्रपूरण वाले स्थान पर व्रण बहुत तीव्रता से भरता है।
शॉक सिरिंज का विकास केवल वेदना रहित सुई से आगे अधिक लाभ देने में सक्षम है। यह बच्चों एवं वयस्कों दोनों के लिए टीकाकरण अभियान को तेज़ एवं अधिक कुशल बना सकता है। असावधानी पूर्वक उपयोग की गयी या अनुचित रीति से निस्तारित की गयी सुई से लगने वाली चोटों के कारण होने वाली रक्तजनित व्याधियों को शॉक सिरिंज का उपयोग रोक सकता है।
इसके अतिरिक्त “शॉक सिरिंज को एकाधिक औषधि वितरण शॉट्स (मल्टिपल ड्रग डिलिवरी, जैसे 1000 से अधिक शॉट्स का परीक्षण किया) के लिए युक्तिबद्ध किया गया है, और केवल नोजल बदलने के मूल्य पर यह सिरिंज विश्वसनीयता एवं लागत-प्रभाव प्रदान करती है,” सुश्री हंकारे स्पष्ट करती है।
शॉक सिरिंज का भविष्य यद्यपि उज्जवल प्रतीत होता है किन्तु, “प्रत्यक्ष नैदानिक परिस्थितियों में औषधि वितरण प्रक्रिया के रूपांतरण की इसकी क्षमता कई कारकों पर निर्भर करेगी, यथा मानव उपयोग की दृष्टि से आगे के नवाचार, नियामक अनुमोदन, एवं उपकरण का सामर्थ्य तथा सुलभता,” सुश्री हनकारे निष्कर्ष देते हुए कहती हैं।
इस कार्य के लिए एचडीएफसी एर्गो - आयआयटी मुंबई इनोवेशन लैब से सहयोग एवं निधि प्राप्त हुई, जो एचडीएफसी एर्गो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड तथा आयआयटी मुंबई की भागीदारी है।