आईआईटी मुंबई का सूक्ष्म-द्रव उपकरण मानव कोशिकाओं की कठोरता को तीव्रता से मापता है, एवं रोग की स्थिति तथा कोशिकीय कठोरता के मध्य संबंध स्थापित करने में सहायक हो सकता है।

भौगोलिक प्रतिबंधों के बिना नई प्रजातियाँ कैसे विकसित होती हैं?

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Mumbai
23 मई 2024
पक्षियों के चोंच के विभिन्न आकार उनके खाने के प्रकारों के अनुसार विकसित होते हैं. श्रेय: एल. श्यामल

लगभग 3.5 अरब वर्ष पहले से लेकर आज तक पृथ्वी पर जीवन के विकास ने इस ग्रह की जैव विविधता को आकार दिया है। इसमें जैविक अणुओं से लेकर एकल कोशिका जीव, बहुकोशिकीय जीव, और अंत में जटिल जीवन रूपों (जैसे स्तनधारी और पक्षी) में संक्रमण शामिल है। फिर भी, नई प्रजाति कैसे अस्तित्व में आती है यह एक रहस्य बना हुआ है!

एनपीजे सिस्टम्स बायोलॉजी एंड एप्लीकेशन में प्रकाशित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक नए अध्ययन ने भौगोलिक बाधाओं के अभाव में प्रजाति-उद्भवन की प्रक्रिया, जिसका अर्थ है नई प्रजातियों के गठन की प्रक्रिया, पर प्रकाश डाला है। परंपरागत रूप से, यह माना जाता है कि प्रजाति-उद्भवन बड़े पैमाने पर तब होता है जब किसी प्रजाति की आबादी भौगोलिक बाधाओं, जैसे पहाड़ों या जल निकायों, द्वारा एक दूसरे से अलग हो जाती है। इसे विषमस्थानिक प्रजाति-उद्भवन (एलोपेट्रिक स्पेशिएशन) कहा जाता है। हालांकि, आईआईटी मुंबई के नए शोध से पता चलता है कि जब प्रजातियाँ भौगोलिक बाधाओं के बिना एक ही क्षेत्र में रहती है, तब भी यह घटना हो सकती है। प्रजाति-उद्भवन की इस पद्धति को समस्थानिक प्रजाति-उद्भवन (सिम्पेट्रिक स्पेशिएशन) कहा जाता है।

“हालांकि इस समस्थानिक परिकल्पना के पक्ष में पारिस्थितिक प्रमाण हैं, लेकिन कोई प्रायोगिक प्रमाण नहीं है। समस्थानिक प्रजाति-उद्भवन का अध्ययन करने के लिए एक प्रायोगिक प्रतिरूप (मॉडल) की अनुपस्थिति में, इसे प्रक्रिया के रूप में समझना कठिन है। हमारी प्रेरणा है यह समझना कि कैसे पर्यावरण और अंतर्निहित आनुवंशिकी समस्थानिक प्रजाति-उद्भवन की ओर ले जा सकते हैं और कैसे हम जीव-विज्ञानिक प्रयोग डिज़ाइन कर सकते हैं,” केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर और डीबीटी/वेलकम ट्रस्ट (इंडिया एलायंस) फेलो प्रोफेसर सुप्रीत सैनी कहते हैं। वे इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता है।

जब आबादी एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहती है तब प्रजातियों की उत्पत्ति में योगदान करने वाले कारकों की जांच शोधकर्ताओं ने जीन-आधारित मॉडल का उपयोग करते हुए की। यह सैद्धांतिक अध्ययन सिम्युलेटेड डेटा का उपयोग करके पक्षियों की आबादी पर केंद्रित है और विशेष रूप से देखता है कि प्रजाति के निर्माण को प्रोत्साहित करने वाले तीन पहलू, अर्थात, विघटनकारी अथवा व्यत्ययी चयन (डिसरप्टिव सिलेक्शन), यौन चयन (सेक्शुअल सिलेक्शन) और अनुवांशिक संरचना (जेनेटिक आर्किटेक्चर), समस्थानिक प्रजाति-उद्भवन को चलाने और बनाए रखने में कैसे भूमिका निभाते हैं।

विघटनकारी प्रजाति-उद्भवन

“पर्यावरण में मौजूद गैर-समान संसाधनों के कारण जनसंख्या में ‘विभाजन’ पैदा होता है और यहां भौगोलिक स्थिति की कोई भूमिका नहीं है,” आईआईटी मुंबई में पीएचडी छात्रा और प्रधानमंत्री अनुसंधान अध्येता पवित्रा वेंकटरामन ने बताया कि इसे ‘पारिस्थितिकी विघटनकारी चयन’ कहा जाता है।

दूसरे शब्दों में, विघटनकारी चयन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा चरम लक्षणों वाले सजीवों में मध्यवर्ती लक्षणों की तुलना में उच्च शारीरिक योग्यता होती है।

पवित्रा आगे कहती हैं, "समस्थानिक प्रजाति-उद्भवन के लिए विघटनकारी चयन आवश्यक है क्योंकि यह जनसंख्या में वंशानुगत अंतर का समर्थन करता है, और यह सुनिश्चित करता है कि दो अलग-अलग समूहों से संबंधित व्यक्तियों के मिलन से उत्पन्न संतान जीवित न रहें। समस्थानिक स्थिति में जैव विविधता को बनाए रखने के लिए ये दो कारक अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।"

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पक्षियों के एक शारीरिक लक्षण, चोंच के आकार पर ध्यान केंद्रित किया। आबादी में पक्षियों को दो प्रकार के खाद्य संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए अपनी चोंच के आकार को अनुकूलित करना पड़ा, ए (जैसे, नट्स) और बी (जैसे फूलों का मधुरस)। छोटे चोंच वाले पक्षी संसाधन ए का उपयोग करने में बेहतर होंगे, जबकि लंबी चोंच वाले पक्षी संसाधन बी का उपयोग करने में अधिक कुशल होंगे।

यौन चयन की भूमिका

दूसरी ओर, यौन चयन एक प्रकार का प्राकृतिक चयन है जो साथी के लिए प्रतिस्पर्धा द्वारा संचालित होता है। यह उन विस्तृत लक्षणों का विकास कर सकता है जो संभावित समागम के साथी के लिए आकर्षक हैं। इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने देखा कि कैसे एक नर पक्षी की विशेषता की तीव्रता (अद्वितीय गुणधर्म) के आधार पर मादा पक्षी की पसंद प्रजाति-उद्भवन में भूमिका निभा सकती है।

“यौन चयन को समस्थानिक प्रजाति-उद्भवन का मुख्य, या अक्सर, एकमात्र चालक माना गया है। यह सोचा गया था कि आबादी के कुछ सदस्य पंखों के रंग जैसी विशेषता के प्रति 'पूर्वाग्रह' विकसित कर सकते हैं, और इस पूर्वाग्रह में भिन्नता समस्थानिक प्रजाति-उद्भवन का कारण बन सकती है। उदाहरण के लिए, दो प्रकार के पंख वाले पक्षियों का विचार करें -नीले और लाल। यदि नीले पक्षियों के बीच केवल अपनी तरह के पक्षियों से साथी चुनने का एक पूर्वाग्रह विकसित होता है, तो समस्थानिक प्रजाति-उद्भवन हो सकता है क्योंकि लाल पक्षी अपने जीन को नीले पक्षियों के साथ नहीं मिलाएंगे,” पवित्रा बताती हैं।

अन्य शब्दों में, इससे अलग-अलग नीले और लाल लक्षणों वाले पक्षियों की आबादी निर्माण हो सकती है।

“इस परिकल्पना की कमी यह है कि इस तरह के पूर्वाग्रह के विकसित होने का कोई आधार नहीं है जब तक कि स्वास्थ्य में कोई लाभ न हो। दूसरे शब्दों में, एक नीला पक्षी केवल एक नीले पक्षी के साथ ही समागम करके अपने संभाव्य साथियों की संख्या कम क्यों करता है यह स्पष्ट नहीं है,” पवित्रा सवाल करती है।

पर्यावरण में संसाधनों का उपयोग करने की पक्षी की क्षमता को भी शोधकर्ताओं ने अपने मॉडल में शामिल किया। आश्चर्यजनक रूप से, शोधकर्ताओं ने पाया कि विशेष लक्षणों के आधार पर यौन चयन ने समस्थानिक प्रजाति-उद्भवन में योगदान नहीं दिया। इसके बजाय, उन्होंने पाया कि पर्यावरणीय संसाधनों का बेहतर उपयोग करने में मदद करने वाली किसी विशेषता (इस मामले में, चोंच का आकार) के आधार पर साथी के लिए वरीयता प्रजाति-उद्भवन के पीछे प्रेरक शक्ति थी। यौन चयन के कारण संतानों का स्वास्थ्य निचला होने की संभावना को भी यह अध्ययन स्वीकार करता है।

आनुवंशिक संरचना की महत्वपूर्ण भूमिका

इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने पाया कि समस्थानिक प्रजाति-उद्भवन की संभावना को निर्धारित करने में आनुवंशिक संरचना, या जिस तरह से चयन के तहत विशेषता को जीन नियंत्रित करते हैं, एक महत्वपूर्ण कारक था। यदि आनुवंशिक संरचना ने चोंच के आकार में परिवर्तन की अनुमति दी, तो विघटनकारी चयन की भूमिका कमजोर होने पर भी एक नई प्रजाति विकसित हो सकती है।

अध्ययन की सीमाओं पर, प्रो. सैनी ने उल्लेख किया, “हमारे मॉडल में हम मानते हैं कि दोनों समूहों के पक्षी बिना किसी पूर्वाग्रह के समागम करते हैं और यह पूर्वाग्रह समय के साथ नहीं बदलता है। नैसर्गिक आबादी में यह सच नहीं हो सकता है, जहां चोंच के आकार के आधार पर एक पूर्वाग्रह विकसित होने की संभावना है। दोनों समूहों के पक्षियों के लिए अलग-अलग विशेषताएं विकसित होना भी संभव है जो उनके ‘प्रकार’ को दूसरों से अलग करने में मदद करते हैं।”

फिर भी, यह अध्ययन उन स्थितियों और तंत्रों में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है जो समस्थानिक प्रजाति-उद्भवन का कारण बन सकते हैं। यह पारंपरिक दृष्टिकोण को चुनौती देता है कि नए प्रजातियों का विकास केवल भौगोलिक अलगाव में हो सकता है और नई प्रजातियों के गठन होने में आनुवंशिक संरचना और पारिस्थितिक चयन के महत्व पर प्रकाश डालता है।

“हमारे शोध प्रयास का एक बड़ा हिस्सा सिद्धांत से सबक लेना है और प्रयोगों का डिजाइन करना है, जिससे हम समझें कि समस्थान में रहने वाली आबादी के सदस्यों के बीच प्रजनन में बाधाएं कैसे विकसित होती हैं। इस दिशा में, हम समस्थानिक प्रजाति-उद्भवन के अध्ययन हेतु एक प्रयोगशाला-स्थित मॉडल स्थापित और प्रदर्शित करने के लिए खमीर (यीस्ट) के साथ काम करते हैं,” प्रो. सैनी संशोधन के आगे के मार्ग का संकेत देते हैं।

प्रजाति-उद्भवन के रहस्यों को उजागर करके, वैज्ञानिक हमारे ग्रह पर जीवन की अविश्वसनीय विविधता और इसे उत्पन्न करने वाली प्रक्रियाओं की गहरी समझ प्राप्त कर रहे हैं। विघटनकारी चयन के सौम्य प्रभाव के साथ भी, समस्थानिक प्रजाति-उद्भवन कैसे हो सकता है, यह प्रदर्शित करके, शोधकर्ताओं ने जैव विविधता पर भविष्य के प्रायोगिक अध्ययनों के लिए एक रूपरेखा प्रदान की है। यह ज्ञान अनुसंधान के लिए नए मार्ग प्रशस्त कर सकता है और वैज्ञानिकों को पृथ्वी की जैव विविधता के पीछे के तंत्र को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकता है। जलवायु परिवर्तन के आसन्न खतरे के साथ, शायद यह अध्ययन जैव विविधता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर भी प्रकाश डालने में सहायता कर सकता है।