शोधकर्ता बचाव कार्यों में मदद के लिए उपग्रह छवियों की मदद से, तेज़ी से खोज को सक्षम करने के लिए एक प्रणाली का प्रस्ताव देते हैं।
हिंद महासागर में २००४ की विनाशकारी सुनामी हाल के दिनों में सबसे बुरी त्रासदियों में से एक गिनी जाती है। इसमें १४ देशों से करीब २ लाख लोगों की मौत और १७ लाख बेघर हो गए। बड़े पैमाने पर बचाव और राहत कार्यों के दौरान एवं बचावकार्य समाप्त होने के बाद, उपग्रह छवियाँ सबसे दूरस्थ द्वीप तक प्रभावित क्षेत्रों के विवरण में सहायक रहीं । हालांकि, इन छवियों के माध्यम से निकटतम अस्पताल या रहने के लिए एक सुरक्षित इमारत को खोजना एक कठिन और समय लेने वाली प्रक्रिया हो सकती है, जिससे बचाव कार्य धीमा हो जाता है। एक नए अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के शोधकर्ताओं ने अंग्रेजी में आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले खोज वाक्यांशों के साथ, उपग्रह छवियों को खोजने के लिए एक बेहतर तरीका विकसित किया है।
आज, भारत में लगभग २३ रिमोट सेंसिंग उपग्रह हैं जो लगातार डेटा एकत्र करते हैं और बड़े पैमाने में डेटाबेस से जोड़ते हैं, जिसका उपयोग किसी भी प्रकृतिक संकट के समय में किया जाता है। यहाँ खींची की गयी छवियों में रंग, बनावट और आकार जैसी निम्न-स्तरीय विशेषताएँ शामिल हैं, जिन्हें सिस्टम द्वारा समझा जाता है, लेकिन उपयोगकर्ता को यह मुश्किल से समझ में आता है। उदाहरण के लिए, उपयोगकर्ता को 'बाढ़ वाले आवासीय क्षेत्रों' की तलाश में रूचि हो सकती है। चूंकि छवियों में बाढ़ वाले क्षेत्रों को एक अलग रंग या बनावट के साथ दर्शाया जाता है, इसलिए सिस्टम इसका अर्थ समझने में विफल रहता है और इसलिए उपयोगकर्ता को कुछ चुनिंदा वाक्य जैसे 'सभी भूरे रंग के क्षेत्रों को दिखाने' प्रयोग करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। समझ में न आने वाले इस अंतर को 'अर्थपूर्ण अंतर' कहा जाता है।
इस अध्ययन के शोधकर्ताओं ने 'अर्थपूर्ण' तंत्र विकसित किया है जो कि आसपास के क्षेत्रों के साथ अपने स्थानिक और दिशात्मक संबंधों के आधार पर किसी क्षेत्र के बारे में जानकारी दे सकता है। यह अर्थपूर्ण संकेतों के एक सेट के अर्थ या कनेक्शन को संदर्भित करता है, जिनका दृष्टिकोण छवियों के निम्न-स्तर के प्रतिनिधित्व के साथ उपयोगकर्ता की उच्च स्तरीय सोच को जोड़ता है, जो विश्लेषण समय को तेज कर सकता है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के प्राध्यापक सूर्य दुर्भा, जो आई.ई.ई.ई. एप्लाइड अर्थ ऑब्जरवेशन एंड रिमोट सेंसिंग पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के लेखक भी है, कहते हैं, "एक अर्थपूर्ण-सक्षम तंत्र एक डोमेन के बारे में समझने में मदद करता है, जैसे मनुष्य जानकारी को संसाधित करते हैं और उसे ज्ञान में परिवर्तित करते हैं।"
नया शोध तंत्र एक छवि की सामग्री के बारे में जानकारी प्रदान करता है जैसे भवन, खेत या खाली भूमि के आसपास के स्थानिक और दिशात्मक संबंधों के साथ की पहचान करता है। बाढ़ के आपदा परिदृश्य में, ऐसी जानकारी का उपयोग पानी से घिरे सभी इमारतों को खोजने के लिए किया जा सकता है, इससे हम ऐसे मार्ग देख सकते है जो अप्रभावित या आंशिक रूप से बाढ़ से प्रभावित है। शोधकर्ताओं ने एक विशिष्ट कंप्यूटर भाषा का उपयोग किया, जो इस ज्ञान का प्रतिनिधित्व कर सकता है और अवधारणाओं का एक डोमेन-विशिष्ट डेटाबेस विकसित कर सकता है जो अंतर्निहित ज्ञान को स्पष्ट करता है।
तंत्र में दो घटक होते हैं-ऑफ़लाइन मॉड्यूल और एक ऑनलाइन मॉड्यूल। ऑफ़लाइन मॉड्यूल उपग्रह छवियों से रंग, बनावट और आकार जैसी सुविधाओं को एकत्र करता है। क्षेत्रों के बीच विभिन्न स्थानिक और दिशात्मक संबंधों को भी समझा जाता है और बाद में एक तर्क इंजन का उपयोग करते समय पुनर्प्राप्त किया जाता है। ऑनलाइन मोड एक ग्राफ़िकल यूजर इंटरफेस का उपयोग करता है ताकि अलग-अलग भूमि उपयोग और भूमि कवर श्रेणियों जैसे नदी, फसल भूमि, आंशिक रूप से बाढ़ वाली फसल भूमि आदि का चयन किया जा सके। उपयोगकर्ता छवियों में आवश्यक स्थानिक कॉन्फ़िगरेशन भी चुन सकते हैं और प्रासंगिक छवियों को पुनर्प्राप्त करने के लिए उन्हें खोज सकते हैं।
"हमारी प्रणाली न केवल प्रभावित क्षेत्रों की पहचान कर सकती है बल्कि अपने स्थानिक और दिशात्मक संबंधों के आधार पर क्षेत्रों की पहचान भी कर सकती है।" फ्रेमवर्क की प्रभावशीलता पर प्रकाश डालने वाले प्राध्यापक दुर्भा कहते हैं, इससे विशिष्ट ज़रूरतों के आधार पर रिमोट सेंसिंग चित्रों के विशाल अभिलेख की सामग्री की तेज़ी से खोज कर सकते है।
क्या बचाव कार्यों तक ही इस तंत्र का उपयोग सीमित है? नहीं, शोधकर्ताओं का कहना है कि यह किसी भी व्यक्ति द्वारा छवियों को ढूंढने के लिए उपयोग किया जा सकता है जो उनके उद्देश्य को पूरा करते हैं। उपयोगकर्ता, इसे किसी भी कंप्यूटर पर स्थापित कर सकते हैं और छवियों का स्थान निर्दिष्ट कर सकते हैं। तंत्र, डेटा को संसाधित करता है और इसे पूछताछ के लिए तैयार करता है। इसके अलावा, सिस्टम को विभिन्न आपदा स्थितियों को संभालने के लिए अनुकूलित किया जा सकता है।
यह अध्ययन, उस दिशा में एक सही कदम है जब दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में वृद्धि हो रही है। विकसित ढांचा, उचित प्रबंधन रणनीतियों के विकास में सहायक हो सकता है, जिससे किसी भी संस्था को आपदा के बाद के डेटा को तेजी से संसाधित करने में मदद मिलती है और त्वरित प्रतिक्रियाएँ मिलती हैं जिससे कई जाने बचाई जा सकती हैं।