
पीसीओएस अर्थात पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम महिलाओं में होने वाला एक चिर-परिचित अंतःस्रावी विकार है, जो अनियमित या अवरुद्ध मासिक धर्म, पॉलीसिस्टिक अंडाशय एवं पुरुष हार्मोन (एंड्रोजन) के बढ़े हुए स्तर जैसे लक्षण उत्पन्न करता है। महिला की शारिरिक पीड़ा से परिचित होते हुए भी हम उस पर होने वाले मानसिक प्रभावों के संबंध में कम ही जानते हैं। एक पूर्व शोध के अनुसार, पीसीओएस से पीड़ित भारतीय महिलाओं में चिंता एवं अवसाद का स्तर बढ़ जाता है। उदाहरण स्वरूप वे अपने बढ़ते हुए वजन का आकलन किए जाने के भय से सामाजिक आयोजनों से दूर रह सकती हैं या अनियमित मासिक धर्म की निरंतरता के कारण निराशा का अनुभव कर सकती हैं।
एकाग्रता पर पीसीओएस के प्रभाव के संबंध में अधिक अध्ययन नहीं किये गए हैं। किसी सूचना को प्राप्त करना, इसका बोध होना एवं इसके आशय का ज्ञान होना जैसी समस्त महत्वपूर्ण संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं (कॉग्निटिव प्रोसेस) के लिए एकाग्रता एक पूर्व लक्षण है। वास्तव में एकाग्रता एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें प्रासंगिक सूचनाओं पर ध्यान केन्द्रित करना तथा अप्रासंगिक उद्दीपनों को पृथक करना (फिल्टरिंग) सम्मिलित है (फोकस्ड अटेंशन)। जबकि विभक्त एकाग्रता (डिवाइडेड अटेंशन) हमें एक साथ अनेकों कार्यों को करने एवं प्रतिक्रिया देने में सहायक है।
मानवकी एवं सामाजिक विज्ञान विभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई की मनोविज्ञान (साइको फिजियोलोजी) प्रयोगशाला से मैत्रेयी रेडकर एवं प्राध्यापक अजीज़ुद्दीन खान ने इस सम्बन्ध में एक नवीन अध्ययन किया है, जिसमें केन्द्रित एवं विभक्त एकाग्रता (फोकस्ड एंड डिवाइडेड अटेंशन) पर पीसीओएस के प्रभाव का आकलन किया है। इसके अंतर्गत पीसीओएस से पीडित 101 महिलाओं तथा 72 स्वस्थ महिलाओं का चयन करते हुए प्रतिभागियों के इन दो समूहों को एकाग्रता कार्यों में संलग्न किया गया। उनके हारमोन स्तरों का आकलन अध्ययन के पूर्व किया जा चुका था। कार्य-आधारित (टास्क-बेस्ड) इन परीक्षणों से ज्ञात हुआ कि स्वस्थ महिलाओं की तुलना में पीसीओएस से पीडित महिलाएं मंद प्रतिक्रिया करती हैं, साथ ही अधिक सरलता से विचलित होती हैं।
“संज्ञानात्मक परीक्षणों को विशिष्ट रूप से युक्तिबद्ध किया जाता है ताकि सूक्ष्म से सूक्ष्म उद्दीपन (क्रिटिकल स्टिमुली) के लिए प्रतिभागियों द्वारा दी गयी प्रतिक्रिया में होने वाले मिली सेकण्ड स्तर के अंतर का भी मापन किया जा सके। प्रतिक्रिया में होने वाले ये सूक्ष्म विलंब एकाग्रता में उत्पन्न हुई महत्वपूर्ण हानियों को इंगित करते हैं, जो हमारे वास्तविक जीवन की कार्यशैली को प्रभावित कर सकती हैं। केन्द्रित एकाग्रता (focused attention) केवल सटीक समय पर प्रतिक्रिया देने हेतु, दिए गए कार्य पर केन्द्रित होने की बात नहीं है, अपितु उसी समय पर अप्रासंगिक उद्दीपनों को अवरुद्ध करने की भी बात है,” प्रमुख अध्ययनकर्ता प्रा. खान का कहना है।
शोधकर्ताओं ने पीसीओएस पीडित एवं स्वस्थ प्रतिभागियों की सटीकता एवं प्रतिक्रिया समय (स्पीड) के परीक्षण हेतु फ्लेंकर कार्य एवं पोस्नर संकेत कार्य (Flanker Task and the Posner Cueing Task) नामक दो कार्य-आधारित परीक्षण किये। फ्लेंकर कार्य प्रतिभागियों के द्वारा केवल महत्वपूर्ण सूचना पर एकाग्र करते समय, एकाग्रता को भंग करने वाले उद्दीपनों (डिस्ट्रेक्टिंग स्टिमुली) को अवरुद्ध करने की क्षमता का आकलन करते हैं।
“इस कार्य में प्रतिभागियों को पटल पर अंकित पंक्ति के मध्य में स्थित लक्ष्य उद्दीपनों (सामान्यत: तीर का चिन्ह अथवा कोई अक्षर) पर एकाग्र करने का निर्देश दिया जाता है, जबकि इसके दोनों ओर स्थित अप्रासंगिक उद्दीपनों (फ्लेंकर) की उपेक्षा करना होती है। उदाहरण स्वरूप यदि प्रतिभागी को "→→→→→" दिखाया जाता है तब मध्य के तीरों को पहचानना सरल होता है। यद्यपि "←←→←←" दिखाए जाने पर इसके दोनों ओर स्थित तीर दूसरी दिशाओं में इंगित करते हैं, जिससे एकाग्र हो पाना एवं सटीक प्रतिक्रिया दे पाना कठिन हो जाता है,” प्रा. खान बताते हैं।
पोस्नर संकेत (क्यूइंग) कार्य आकलन करता है कि प्रतिभागी कितनी शीघ्रता से सही लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करते हैं एवं ध्यान भंग करने वाले उद्दीपनों से अपनी एकाग्रता को कितनी कुशलता से स्थानांतरित करते हैं। यह परीक्षण उनकी विभक्त एकाग्रता (divided attention) का आकलन करता है। प्रतिभागियों को पटल के मध्य में (केन्द्रीय निर्धारण बिंदु) ध्यान केन्द्रित करने को कहा गया जिसके दोनों ओर दो-दो वर्ग थे। उन्हें तीर या फ्लैश के रूप में संकेत दिए गए जिसके आगे किसी एक वर्ग में लक्ष्य-उद्दीपन (टार्गेट स्टिमुलस) उपस्थित था। प्रतिभागियों को शीघ्र ही संबंधित तीर कुंजी (arrow key) दबानी थी। यदि संकेत एवं लक्ष्य एक ही वर्ग में दिखाई देते हैं तो उनका प्रतिक्रिया समय तीव्र होगा। इस बात का अध्ययन कर के कि, कितनी शीघ्रता से वे अपनी एकाग्रता को संकेतों एवं लक्ष्य के मध्य स्थानांतरित करते हैं, यह कार्य प्रतिभागी की शीघ्रता एवं सटीकता का आकलन करता है।
केन्द्रित एकाग्रता परीक्षण में स्वस्थ महिलाओं की तुलना में पीसीओएस से पीडित महिलाओं ने 50% तक मंद प्रतिक्रिया दी एवं लगभग 10% अधिक त्रुटियाँ कीं। इसी प्रकार विभक्त एकाग्रता कार्य में पीसीओएस विकार से ग्रसित महिलाओं ने लगभग 20% मंद गति से प्रदर्शन किया साथ ही 3% अधिक त्रुटियाँ कीं। ध्यान केन्द्रित करने की दोनों स्थितियों में पीसीओएस से पीडित महिलाओं का एकाग्रता प्रदर्शन दुर्बल था। पीसीओएस से सम्बद्ध हार्मोनल असंतुलन सतर्कता को कम कर सकता है एवं प्रतिक्रिया समय को लंबा कर सकता है। एंड्रोजन के उच्च स्तर के साथ, पीसीओएस पीडित प्रतिभागियों में इंसुलिन प्रतिरोध भी देखा गया, जो कि एकाग्रता से सम्बन्ध रखता है। इंसुलिन प्रतिरोध ग्लूकोज चयापचय (metabolism) की विकृति का कारण बनता है तथा मस्तिष्क कोशिका (न्यूरॉन) गतिविधि को प्रभावित करता है, जिससे एकाग्रता कार्यों में प्रतिकूल प्रदर्शन होता है।
पीसीओएस से संबंधित चिंता एवं निराशा जैसी मानसिक थकान, विभक्त एकाग्रता कार्यों को और अधिक चुनौतीपूर्ण बनाती है। अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि विभक्त एकाग्रता कार्यों के सटीक नहीं होने से कार्यकारी स्मृति प्रभावित हो सकती है, जो जानकारी के अनुरक्षण (मेंटेनेंस) में अस्थायी रूप से बाधा उत्पन्न करती है। इससे दैनिक गतिविधियाँ प्रभावित हो सकती हैं जैसे कि ड्राइविंग के समय दिशाभ्रम होना या फोन करते समय फोन नंबर का स्मरण न हो पाना आदि।
“पीसीओएस एक विषम स्थिति है, अर्थात इसके लक्षण एवं गंभीरता व्यक्तिगत रूप से हार्मोनल स्थितियों, चयापचय स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य एवं सामाजिक-पर्यावरणीय स्थितियों पर निर्भर करती है। लक्षणों एवं गंभीरता में विविधता होने के उपरांत भी एकाग्रता एवं प्रतिक्रिया संबंधी मूल संज्ञानात्मक क्षमताओं की हानि पीडित महिलाओं में आम प्रतीत होती हैं,” प्रा. खान का कहना है।
यद्यपि सटीकता की कमी एवं मंद प्रतिक्रिया समय जैसी चुनौतियाँ भयावह प्रतीत होती हैं, तथापि कुछ मार्ग दिखाई देते हैं। एकाग्रता एवं स्मृति पर आधारित मस्तिष्क संबंधी खेलों को खेलकर प्रतिक्रिया समय (स्पीड) एवं सटीकता में संशोधन किया जा सकता है। विश्राम एवं तनाव को कम करने की तकनीकों के माध्यम से भी चिंता को कम करते हुए, एकाग्रता एवं प्रतिक्रिया समय में संशोधन किया जा सकता है।
प्रा. खान का सुझाव है, “शारीरिक गतिविधियों को बढ़ाना, पौष्टिक आहार लेना एवं वजन कम करना, पीसीओएस के लक्षणों के साथ-साथ संज्ञानात्मक स्वास्थ्य के लिए भी लाभप्रद है। पर्याप्त एवं स्वस्थ नींद भी एकाग्रता की सटीकता एवं प्रतिक्रिया समय को संशोधित करने में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।"
निष्कर्ष इस बात पर बल देते हैं कि शारीरिक ही नहीं अपितु संज्ञानात्मक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करने वाला पीसीओएस एक जटिल चिकित्सा स्थिति के रूप में देखा जाना चाहिए। सहायक देखभाल के साथ साथ पीसीओएस के विविध पक्षों को संबोधित करने वाला एक व्यापक हस्तक्षेप पीसीओएस से पीडित महिलाओं के कल्याण में सहायक होगा।