शोधकर्ताओं ने टिकाऊ, कम शक्ति की खपत वाले ग्राफीन ट्रांजिस्टर बनाने के लिए एक नवीन तकनीक की खोज की है
जैसे-जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण छोटे होते जा रहे हैं, हम शायद उनकी सूक्ष्मता की सीमा तक पहुँच रहे हैं। सैमसंग ने हाल ही में ७ नैनोमीटर (१ नैनोमीटर=मीटर का एक अरबवाँ हिस्सा) की लंबाई के ट्रांजिस्टर वाला इलेक्ट्रॉनिक सर्किट बनाने का दावा किया है। क्या हम इससे भी सूक्ष्म जा पाएँगे? वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्राफीन, जो एक षट्भुज जाली में व्यवस्थित परमाणुओं की एकल शीट के रूप में कार्बन है, से यह संभव है। हाल ही के एक अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई की एक टीम ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई के सहयोग से, अकार्बनिक अणु को नियोजित करके, ग्राफीन से ट्रांजिस्टर और लॉजिक गेट बनाने का एक अनूठा नया तरीका विकसित किया है।
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बनाने के लिए सिलिकॉन जैसे अर्धचालकों का उपयोग किया जाता है क्योंकि अर्धचालकों की विद्युत चालकता को डोपंट मिलाकर नियंत्रित किया जा सकता है। डोप किए गए अर्धचालकों में डोपंट के अनुसार प्रमुख विद्युतप्रभार वाहक धन या ऋण हो सकते हैं, जो उसको पी-टाइप या एन-टाइप बनाते हैं। ये दो रूप सभी इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल उपकरणों, जैसे डायोड और ट्रांजिस्टर के लिए मूलभूत निर्माण खंड हैं। सिलिकॉन के मुक़ाबले, ग्राफीन में प्रमुख विद्युतप्रभार वाहक और चालकता को नियंत्रित करना बेहद मुश्किल है। जबकि पी-टाइप ग्राफीन आसानी से बनाया जा सकता है, इसके एन-टाइप समकक्ष को सामान्य ताप पर बनाकर संचालित करना बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है।
वर्तमान अध्ययन में पहली बार संशोधक ऐसे एन-प्रकार के ग्राफीन को बनाने में सफल हुए है जो सामान्य परिवेश में १० महीने से अधिक समय तक दर्जे में बिना कोई गिरावट के काम करता है। यह भी पहली बार है कि एक अकार्बनिक डोपंट का उपयोग एन-टाइप ग्राफीन बनाने के लिए किया गया हो। आईआईटी मुम्बई के शोधकर्ताओं ने एक सीधा, एक-चरणीय और सटीक तकनीक का इस्तेमाल किया, जिसे संचालित करने के लिए न तो उच्च तापमान की आवश्यकता होती है और न ही निर्वात की। यही नहीं, एन-टाइप के ग्राफीन ट्रांजिस्टर ने उच्च तापमान (२५०℃) और आर्द्रता (सापेक्ष आर्द्रता ९५%) के संपर्क में होने के बावजूद, १० महीनों से अधिक तक स्थिर संचालन का प्रदर्शन किया है। साथ ही एन-टाइप के ग्राफीन को पहले के उपकरणों की तुलना में १००० गुना अधिक विद्युत धारा के घनत्व के योग्य पाया गया ।
पारंपरिक रूप से, अकार्बनिक डोपंट के साथ सिलिकॉन डोपिंग के लिए, ना केवल एक साफ निर्वात का वातावरण और सटीक तंत्र की आवश्यकता होती है, बल्कि उच्च तापमान, जो ग्राफीन के लिए हानिकारक है, की भी आवश्यकता होती है। इससे पहले, वैज्ञानिकों ने एन-टाइप ग्राफीन बनाने के लिए कार्बनिक डोपंट लगाने की कोशिश की, जिसे आसानी से परत या झिल्ली की तरह लगाया जा सकता है। परंतु कार्बनिक डोपंट अस्थिर होते हैं और ग्राफीन जल्दी से एन-डोपिंग खो देता है। ऑक्सीजन और पानी का ग्राफीन के प्रति आकर्षण है और ये सिलिकॉन के लिए प्राकृतिक पी-टाइप डोपंट हैं; इसलिए, कार्बनिक डोपंट के साथ बनाया गया एन-टाइप ग्राफीन, कुछ दिनों के बाद पी-टाइप में बदल जाएगा क्योंकि हवा से ऑक्सीजन और पानी के अणु अस्थिर डोपंट की जगह ले लेंगे। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए टीम ने एन-प्रकार के ग्राफीन को साकार करने के लिए लैंथेनाइड अणुओं (जो हवा में स्थिर होते हैं) के साथ प्रयोग करने का निर्णय लिया।
लैंथेनाइड्स अकार्बनिक तत्वों का एक वर्ग है जो व्यापक रूप से रासायनिक उद्योग में उत्प्रेरक के रूप में उपयोग किये जाते हैं। डेटा स्टोरेज से संबंधित अनुप्रयोगों के लिए ऐसी सामग्रियों की जाँच की गई है। आईआईटी मुम्बई के प्राध्यापक महेश्वरन बताते हैं, “हम लैंथेनाइड-आधारित अणुओं और द्वि आयामी नैनो पदार्थों के बीच तालमेल का अध्ययन करने में रुचि रखते थे।” शोधकर्ताओं ने व्यावसायिक रूप से उपलब्ध रसायनों का उपयोग करने के बजाय, ख़ुद अपनी प्रयोगशाला में आवश्यक यौगिक बनाए। इस प्रकार, वे विभिन्न संघटनों के साथ प्रयोग करने और वांछित गुणो वाले एक यौगिक को बनाने में सक्षम थे।
बायोमेडिकल अनुप्रयोगों में व्यापक रूप से सूक्ष्म माइक्रोइंजेक्शन सुइयों का उपयोग किया जाता है। प्राध्यापक सुब्रमण्यम और उनकी टीम ने एन-टाइप के ग्राफीन ट्रांजिस्टर बनाने के लिए सटीक माइक्रोइंजेक्शन सुइयों का उपयोग करके ग्राफीन के विशिष्ट क्षेत्रों पर डोपंट को लगाया। इन सुइयों का उपयोग करके, शोधकर्ता डोपंट को २ वर्ग मिलीमीटर ग्राफीन सतह पर ०.०५ वर्ग मिलीमीटर के क्षेत्र पर फैला सकते हैं जो एक टेनिस कोर्ट पर एक सुई के नोक को चित्रित करने के सामान है।
“एक प्रमाणित तकनीक का उपयोग करने का लाभ यह है कि इसे अतिरिक्त प्रयास किए बिना आसानी से उपयोग किया जा सकता है और इसे बाद में व्यावसायिक उत्पादन के लिए आसानी से बढ़ाया जा सकता है; वास्तव में, माइक्रो-नीडल सरणियाँ पहले से ही व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हैं”, प्राध्यापक सुब्रमण्यम ने टिप्पणी की।
अनुसंधान टीम ने लैंथेनाइड समूह और ग्राफीन के बीच बंधन के तंत्र को समझने के लिए कई प्रयोग किए। डोपंट के रूप में उपयोग किए जाने वाले लैंथेनाइड समूह को लैंथेनाइड और लिगैंड के साथ संयोजन द्वारा संश्लेषित किया जाता है। लिगैंड ऐसी चक्रीय संरचनाएँ हैं जो नाइट्रोजन दाताओं से बने हैं और कार्बन और हाइड्रोजन परमाणुओं द्वारा संघटित होते हैं। लैंथेनाइड आयन, चक्रीय कैविटी में दृढ़ता से बैठता है जिससे समूह बहुत स्थिर हो जाता है। ग्राफीन के संपर्क में होने पर, लैंथेनाइड समूह ग्राफीन की परत को मोडता है, जिसकी वजह से मजबूत ज़ोड़ संभव बनता है। ये मजबूत ज़ोड़ और लैंथेनाइड समूह की अंतर्निहित स्थिरता, संयुक्त रूप से एन-टाइप ग्रेफीन की स्थिरता का कारण है।
आईआईटी मुम्बई और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में कम्प्यूटेशनल सुविधा का उपयोग करते हुए किये गए सैद्धांतिक विश्लेषण ने शोधकर्ताओं को बंधन के विस्तृत तंत्र को समझने और सही अणु बनाने में मदद की। आईआईटी मुम्बई के प्राध्यापक जी. राजारामन कहते हैं, "जैसा कि इस आचरण का मूल अब ज्ञात है, रसायनशास्त्री उन समूहों को तैयार कर सकते हैं, जो प्रस्तावित अनुप्रयोगों को प्राप्त करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए स्थिरता/आउटपुट को बढ़ा सकते हैं।”
ट्रांजिस्टर की सफलता और स्थिरता से प्रेरित होकर, शोधकर्ताओं ने ग्राफीन ट्रांजिस्टर का उपयोग करके एक इन्वर्टर (किसी भी लॉजिक सर्किट की एक मूलभूत इकाई) बनाया। उन्होंने पाया कि इन्वर्टर २ वोल्ट के वोल्टेज पर काम कर सकता है, जिससे यह लो-वोल्टेज, लो-पावर इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए एक अच्छा उम्मीदवार बन सकता है। उन्होंने बड़े पैमाने पर बिना किसी सुरक्षात्मक पैकेजिंग के परिवेशीय परिस्थितियों में १० महीने तक इन ट्रांजिस्टरों का परीक्षण किया और उन्होंने गुणों में कोई गिरावट नहीं पाई।
“यह इंटर डिसिप्लेनरी प्रयास का एक अनूठा प्रदर्शन है जिसमें इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और रसायन शास्त्री मिलकर ग्राफीन ट्रांजिस्टर के उपयोग की एक समकालीन समस्या को हल कर रहे हैं ।यह काम ग्राफीन ट्रांजिस्टर के लिए एक नवीन डोपिंग पद्धति के उपयोग के साथ बुनियादी सर्किट बिल्डिंग ब्लॉकों के निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त करता है”, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के निदेशक वी. रामगोपाल राव ने कहा।
प्राध्यापक सुब्रमण्यम कहते हैं, “हम डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स, रेडियो आवृत्ति उपकरणों और स्पिंट्रॉनिक्स उपकरणों में ग्राफीन ट्रांजिस्टर के कई अनुप्रयोगों की कल्पना कर सकते हैं। हमने जो अवधारणा स्थापित की है, उसे आगे प्रोटोटाइप में विकसित किया जा सकता है और उद्योग के सहयोग से व्यावसायिक उत्पादन में लगाया जा सकता है।” “हमने वर्तमान अध्ययन के लिए लैंथेनम और सीरियम यौगिकों का उपयोग किया। हमने अन्य लैंथेनाइड मैक्रोसाइक्लिक समूह (~१० अलग-अलग समूह) के एक वर्ग को भी संश्लेषित किया है जो संरचनात्मक रूप से लैंथेनम और सीरियम कॉम्प्लेक्स के समान हैं और इनमें से प्रत्येक को एन-टाइप ग्रेफीन बनाने के लिए एक डोपंट के रूप में उपयोग करने की योजना है,” ऐसा कहकर प्राध्यापक महेश्वरन ने अपनी बात समाप्त की।