शोधकर्ताओं ने द्वि-आयामी पदार्थों पर आधारित ट्रांजिस्टर निर्मित किये हैं एवं ऑटोनॉमस रोबोट हेतु अत्यंत अल्प-ऊर्जा के कृत्रिम तंत्रिका कोशिका परिपथ निर्मित करने में इनका उपयोग किया है।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड प्रजाति को बचाने की मुहिम

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18 अप्रैल 2019
© Devesh Gadhavi

लगभग एक मीटर लंबा और १८ किलोग्राम तक वजन वाला, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पृथ्वी पर सबसे भारी उड़ने वाले पक्षियों में से एक है। पिछले ५० वर्षों में उनकी संख्या में लगभग ९०% की गिरावट आई है, और इन करिश्माई पक्षियों का भविष्य विलुप्ति की ओर बढ़ रहा है। वे अब अपने अस्तित्व के लिए समय के खिलाफ एक कड़ी दौड़ में हैं और अगर ये हालात तेजी से नहीं बदलते हैं, तो वे स्वतंत्र भारत में विलुप्त होने वाली पहली प्रजाति हो सकते हैं।

द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (अर्डोटिस नाइग्रिसेप्स) एक बड़ा पक्षी है जो एक शुतुरमुर्ग जैसा दिखता है।  इनकी टाँगें लम्बी और नंगी होती हैं । घास के मैदान में रहने वाले यह पक्षी सर्वाहारी होते हैं और भोजन के लिए अमूमन कीड़े, घास के बीज, बाजरा, बेर, कृन्तकों एवं  छोटे सरीसृपों पर निर्भर  हैं। एक समय पर  भारत के बारह राज्यों और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले  इन पक्षियों को आज 'आईयुसीएन' ने रेड लिस्ट द्वारा 'गंभीर रूप से लुप्तप्राय' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

नवीनतम जनसंख्या आकलन के अनुसार अनुमान है कि उनमें से १५० से भी कम जंगल में बचे हैं। हाल के सर्वेक्षणों में मध्य प्रदेश में ये नहीं देखे गए और महाराष्ट्र में इनकी संख्या ८ से कम , कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में ५-१० पक्षी, गुजरात में १५ से कम और राजस्थान में ९०-१२८ के बीच (सबसे अधिक संख्या) पायी गयी। भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु और भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई), देहरादून के शोधकर्ताओं द्वारा २०११ में किए गए एक अध्ययन में इन पक्षियों के बीच एक कम आनुवंशिक विविधता पाई गई, जो दर्शाता है कि उनकी आबादी बहुत लंबे समय से गिरावट पर है।

 

इनके प्राकृतिक वास में कमी इन पक्षियों को विलुप्त होने का एक प्राथमिक कारण है । इसके अलावा जंगली कुत्तों के हमले, सड़कों पर आकस्मिक दुर्घटना, और शिकार, इनकी विलुप्त होने की गति को  बढ़ा रहे हैं । यद्यपि संरक्षित अवस्था में इनके प्रजनन हेतु कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन केवल इन पक्षियों की मात्र १२-१५ साल की कुल आयु  एवं इनका धीमा प्रजनक होना सभी संरक्षण प्रयासों को विफल कर रहा है। उन्हें संरक्षण में रखने और  प्रजनन  के लिए, २०१७ में राजस्थान में डब्ल्यूआईआई ने अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का गुट, जो संरक्षण में हुबारा बस्टर्ड का प्रजनन करने में सफल रहा हैं , के सहयोग से एक केंद्र स्थापित करने की योजना बनाई गई थी परन्तु यह केंद्र चालू होने से अभी कोसों दूर है।

ध्यान देने लायक बात यह है कि उच्च-तनाव वाले तारों के साथ टकराव से कई पक्षी मारे गए हैं जिनमें दस मौतें पिछले दशक में दर्ज की गयी हैं। द कॉर्बेट फाउंडेशन (टीसीएफ), जंगली प्रजातियों और उनके आवासों की सुरक्षा के लिए समर्पित संगठन, के उप निदेशक देवेश गढ़वी कहते हैं कि, “यह संख्या उन शवों की है जो राजस्थान, महाराष्ट्र, और गुजरात में पाए गए थे और विभिन्न लोगों और गैर सरकारी संगठनों द्वारा रिपोर्ट किए गए थे। हम शायद और भी बहुत पक्षी खो चुके हैं, जिन्हें शव नहीं मिलने के कारण कभी सूचित नहीं किया गया।” डब्ल्यूआईआई द्वारा २०१७ में किए गए  एक अध्ययन के अनुसार, अकेले राजस्थान के थार क्षेत्र में, हर साल तारों के साथ टकराव के कारण १८ पक्षी पक्षियों के मरने की संभावना है।

इन प्रतिष्ठित बस्टर्ड को बचाने के लिए एक अंतिम प्रयास में, सैंक्चुअरी नेचर फाउंडेशन, कंज़र्वेशन इंडिया, और द कॉर्बेट फाउंडेशन ने उनकी सुरक्षा के लिए एक आपातकालीन अभियान शुरू किया है। यह पहल दुनिया के अन्य हिस्सों में उपयोग की जाने वाली कई रणनीतियों में से एक है जो इन पक्षियों के महत्वपूर्ण आवासों में सभी ओवरहेड पावर ट्रांसमिशन तारों को भूमिगत करने का प्रस्ताव रखती है।

इस अभियान के वैज्ञानिक सलाहकार, गढ़वी कहते हैं, “डब्ल्यूआईआई, टीसीएफ, अन्य शोधकर्ताओं, और बर्डवॉचर्स की टीमों द्वारा वर्षों की अवलोकन की मदद से, बिजली लाइनों के कुछ हिस्सों को गुजरात और राजस्थान में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के लिए 'जोखिम भरे क्षेत्र' के रूप में पहचाना गया है। तेजी से घटती आबादी के कारण, हम एक भी पक्षी को खोने का ख़तरा  नहीं उठा सकते हैं। इसलिए, हम आग्रह करते हैं कि इन पक्षियों के आवास क्षेत्रों में बिजली की लाइनों को तुरंत भूमिगत किया जाए, इससे पहले कि हम और अधिक पक्षी खो दें।”

जिन क्षेत्रों में इन बस्टर्ड्स की आवाजाही अक्सर होती है, वहाँ पर अभियान प्रचारकों ने एहतियात के तौर पर ओवरहेड तारों पर रिफ्लेक्टर लगाने का सुझाव दिया है। ये रिफ्लेक्टर पक्षियों को बिजली की लाइनों में दुर्घटनाग्रस्त होने से बचाते हैं। भूमिगत केबलिंग के समान उपायों और बिजली लाइनों के चिन्हांकन ने दुनिया के अन्य हिस्सों में बस्टर्ड्स की मृत्यु दर को काफी कम कर दिया है।

भारतीय बस्टर्ड्स के बुनियादी निवास स्थान घास के मैदानों का संरक्षण, अभियान को बढ़ाने  की दिशा में अगला कदम है। श्री गढ़वी कहते हैं, “हम सरकार से इस प्रजाति की पुनःप्राप्ति के लिए एमओइऍफ़सीसी के दिशानिर्देशों (२०१३) के अनुसार कुछ जीआईबी क्षेत्रों के कुछ भागों को ‘इंफ्रास्ट्रक्चर रहित क्षेत्र’ घोषित करने का भी अनुरोध करेंगे। हमें जीआईबी के लिए कुछ 'सेफ पैच' रखने होंगे। घास के मैदान, जिन्हें अक्सर 'बंजर भूमि' के रूप में जाना जाता है और उपेक्षित होते हैं,  पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे बस्टर्ड परिवार के अन्य सदस्यों जैसे बंगाल फ्लोरिकन, लेसर फ्लोरिकन और मैकक्वीन के बस्टर्ड, ईगल और गिद्धों की विभिन्न प्रजातियों के भी घर हैं। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और उसके निवास स्थान के संरक्षण के लिए कोई भी प्रयास, इन सभी संबंधित प्रजातियों को बचाने के लिए एक अप्रत्यक्ष प्रयास होगा।''

७ दिसंबर २०१८ को अभियान शुरू होने के बाद से दो सप्ताह में, लगभग १०,००० लोगों ने ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर किए और समर्थन दिया, जिसमें भारतीय क्रिकेट के पूर्व कप्तान अनिल कुंबले और अभिनेत्री दीया मिर्जा भी शामिल हैं। “देश के लिए यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मनाक और निराशाजनक बात होगी अगर भारत, सभी वैज्ञानिक ज्ञान और वित्तीय संसाधनों के उपलब्ध होने के बावजूद, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के विलुप्त होने को रोकने में असमर्थ रहता है।  दुर्भाग्य से, इस पक्षी को हमारे राजनेताओं, नीति-निर्माताओं, कॉर्पोरेट क्षेत्र और आम जनता से शुरुआती समर्थन नहीं मिला है। टीसीएफ के निदेशक केदार गोरे कहते हैं, "यह हमारे लिए आखिरी मौका  है कि हम इसे रोकने के लिए इनके लिए पर्याप्त स्थान, सुरक्षित उड़ान भरने की जगह और गैर विषैला खाद्य उपलब्ध कराएँ "

"हमारे पास ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को बचाने के लिए वैज्ञानिक समाधान और बढ़ता सार्वजनिक समर्थन हैं। यदि यह अद्भुत प्रजाति विलुप्त हो जाती है, तो यह केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण ही होगा। सरकार की ओर से तत्काल हस्तक्षेप भारत की लुप्त होती जैव विविधता के संरक्षण का एक अत्यंत आवश्यक संकेत होगा", अभयारण्य नेचर फाउंडेशन की एक संरक्षणकर्ता कारा तेजपाल कहती हैं।

इस प्रतिष्ठित भारतीय पक्षी को बचाने के लिए कोई एक अकेला उपाय नहीं है। लेकिन, इसके आवास के बारे में जागरूकता बढ़ाने और संरक्षण के प्रयासों के साथ महत्वपूर्ण ख़तरों से निपटने के लिए इसे विलुप्त होने के कगार से बचाने से एक लम्बी दूरी तय की जा सकती है । यदि आप इस अभियान का समर्थन करने वाले कई लोगों में से एक हैं, तो इस  याचिका पृष्ठ पर जा सकते हैं