
उच्च परमाणु भार एवं घनत्व रखने वाली भारी धातु तत्वों (हेवी मेटल्स) की विनिर्माण से लेकर कृषि तक विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उपयोगी होते हुए भी अपनी संभावित विषाक्तता तथा चिरकालिक (परसिस्टेंस) एवं जैव-संचयी (जीवित कोशिकाओं के अन्दर एकत्र होने की क्षमता) प्रकृति के कारण भारी धातुएँ महत्वपूर्ण पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न करती हैं।
द एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टिट्यूट (TERI) के एक विवरण के अनुसार, भारत के लगभग 718 जनपदों में स्थित भूजल आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम एवं सीसा जैसी भारी धातुओं से दूषित है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भी 320 स्थानों को भारी धातुओं से दूषित होने की उच्च संभावना व्यक्त की है। इन धातुओं के सेवन से त्वचा, हड्डियों, मस्तिष्क एवं अन्य अंगों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, विशेषकर शिशुओं में। भूजल में इन धातुओं का प्रभावी संसूचन (डिटेक्शन) पर्यावरणीय सुरक्षा एवं लोक-स्वास्थ्य सुनिश्चित करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
भारी धातु जनित प्रदूषण के उपचार हेतु भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुंबई एवं मोनाश विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने जल में विषाक्त धातुओं के संसूचन के लिए ताम्र आधारित मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (MOF) का उपयोग करके एक संवेदक विकसित किया है, जो मितव्ययी होने के साथ कार्य-कुशल है। भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग से उन्हे वित्तीय सहयोग प्राप्त हुआ।
मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (MOF) ऐसे पदार्थ हैं जिनकी संरचना अत्यधिक छिद्रित प्रकार की होती है। सूक्ष्म स्तर पर ये संरचनायें धातु-आयनों की संधियों (नोड्स) से निर्मित होती हैं जो ऑर्गेनिक यौगिकों द्वारा जुड़ी होती हैं। इनके गुणधर्म आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित किये जा सकते है (ट्यूनेबल) तथा ये संरचनाएं एक छिद्रित नेटवर्क निर्मित करती हैं जिसमें सतह का क्षेत्रफल आयतन की तुलना में बहुत अधिक होता है। अपनी विशिष्ट संरचना एवं बहुपयोगी होने के कारण MOF विभिन्न वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए महत्वपूर्ण हो गए हैं।
अध्ययन के लिए शोध-दल ने MOF की रचना तांबे (Cu) के साथ की, जो धातु-संधियों (मेटल नोड्स) को निर्मित करता है। ये धातु-संधियाँ टेट्राकिस (4-कार्बोक्सीफिनाइल) पोर्फिरिन नामक ऑर्गेनिक यौगिक द्वारा जुड़ी होती हैं, जो अंतत: कॉपर-टेट्राकार्बोक्सीफिनाइलपोर्फिरिन (Cu-TCPP) की रचना करते हैं। Cu-TCPP द्वि-आयामी (2-डी) MOF है जो ‘पैडल-व्हील’ (पंखे जैसे) प्रकार की संरचना है। यह स्वयं में अद्वितीय संरचना है क्योंकि जल के संपर्क में आने वाला Cu-TCPP का सतही क्षेत्र अधिक हो सकता है, अत: पारंपरिक 3-डी पदार्थों की तुलना में यह भारी धातु के आयनों को पहचानने में अत्यधिक दक्ष है। यह संवेदक पानी के नमूनों में सीसा (Pb), कैडमियम (Cd) एवं पारा (Hg) जैसी भारी धातुओं के आयनों का संसूचन कर सकता है। यह संवेदक प्रति मिलीलीटर पानी में किंचित मात्रा में उपस्थित परमाणुओं को भी संसूचित करने में सक्षम है।
“इस MOF में दो Cu परमाणु TCPP अणु की प्रत्येक कार्बोक्सीफिनाइल भुजा से बंधे होते हैं, जिससे विशिष्ट पैडल-व्हील संरचना निर्मित होती है। अर्थात समान विन्यास (कॉन्फिगरेशन) वाले अन्य धातु-आयन, संरचना में स्थित Cu आयन को प्रतिस्थापित (रिप्लेस) करने में सक्षम होंगे एवं इस संरचना के विघटन के बिना इसके समग्र क्रम को बनाए रखेंगे। अन्य धातु-आयन, मुख्यतः भारी धातु-आयन MOF लेटिस पर भी एकत्र हो सकते हैं,” इस शोधपत्र के प्रथम लेखक एवं आईआईटी मुंबई-मोनाश रिसर्च अकादमी के छात्र प्रशांत कन्नन Cu-TCPP MOF संरचना के संबंध में स्पष्ट करते हैं।
Cu-TCPP MOF की पैडल-व्हील संरचना, जिसमें लाल Cu-परमाणु श्वेत TCPP अणुओं को बांधते हैं। (श्रेय: लेखकगण)
Cu-TCPP संरचना जल में स्थित भारी धातु के आयनों के संसूचन के लिए दो पद्धतियों का उपयोग करती है - प्रतिस्थापन द्वारा, जिसमें एक धातु-आयन तांबे के आयन को प्रतिस्थापित कर के उसका स्थान ले लेता है, या संचयन द्वारा, जिसमें धातु-आयन केवल सतह पर एकत्र होते हैं। सीसे के परमाणु में अपूर्ण पी-कक्षाएँ (P-orbitals) होती हैं, अर्थात स्थायित्व के लिए अधिक इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता होती है। अत: इस अपूर्णता को दूर करने हेतु सीसा सरलता से MOF में बंधे हुए Cu आयनों को प्रतिस्थापित कर देता है, जबकि MOF की संरचना अबाधित रहती है। ज्यों ही सीसा तांबे का स्थान लेता है, MOF के इलेक्ट्रॉनिक गुण भी परिवर्तित हो जाते हैं, जिससे जल में स्थित सीसे की मात्रा का मापन किया जा सकता है।
दूसरी ओर तांबे के आयनों के साथ सरलता पूर्वक प्रतिस्थापित न होने वाली कैडमियम एवं पारा जैसी धातुएं आणविक द्वीपों (मॉलिक्यूलर आइलैंड) के रूप में तांबे की सतह पर एकत्र हो जाती हैं।
“जब ये भारी धातुयें Cu-TCPP जैसे उच्च रूप से नियमित, आवर्ती लॅटिस (रेग्यूलर पिरियॉडिक लॅटिस) के संपर्क में आती हैं, तो सर्वप्रथम ये MOF की सतह पर एकत्र होती हैं। तथा जब ये उच्च सांद्रता की स्थिति में आती है तब MOF संरचना को विफल (फेल्योर) भी कर सकती हैं। MOF संरचना की विफलता के समय विद्युत-रासायनिक तरंगों के रूप एवं तीव्रता में होने वाले परिवर्तन का आकलन करके हम जल में स्थित भारी धातुओं के नैनोमोलर स्तर का सटीक अनुमान लगा सकते हैं,” प्रशांत बताते हैं।
शोधकर्ताओं ने नल एवं सरोवरों के जलीय नमूनों पर संवेदक का परीक्षण किया। इसने तीन धातुओं, सीसा, कैडमियम एवं पारा की संक्षिप्त सी मात्रा का भी सटीक संसूचन किया। यहाँ तक कि पानी में उपस्थित क्षारीय धातुओं, अवशेष एवं अन्य बड़े कणों जैसे MOF संरचना को बाधित करने वाले पदार्थों की उपस्थिति में भी संवेदक ने भलीभांति प्रदर्शन किया। यह परीक्षण विभिन्न परिस्थितियों में इसकी विश्वसनीयता को दर्शाता है। शोधकर्ताओं ने बाजार में उपलब्ध अत्याधुनिक संवेदकों के साथ इसकी तुलना की एवं पाया कि वृहत्तर न सही, किंतु अधिकांश स्थितियों में यह तुलनात्मक प्रदर्शन करता है।
“हमारा संवेदक न्यूनतम जटिल है एवं इसकी संवेदनशीलता आधुनिक स्वर्ण मानक डीएनए आधारित संवेदकों के समतुल्य है,” प्रशांत का कहना है।
उत्तम प्रदर्शन के उपरांत भी संवेदक की कुछ सीमाएं हैं। एक बार के उपयोग के उपरांत, MOF संरचना भारी धातुओं के दीर्घकालिक संपर्क के कारण टूटने लगती है। अर्थात संवेदक का उपयोग केवल एक बार किया जा सकता है। यद्यपि जल गुणवत्ता संवेदन की विशिष्ट स्थितियों में, मितव्ययी उपकरणों के लिए एक बार उपयोग का ही औद्योगिक मानक बताया गया है। अत: पुन: उपयोग आवश्यक नहीं होने के कारण यह संवेदक की कोई सीमा नहीं है, प्रशांत का तर्क है।
“इस प्रकार की युक्तियों में निर्माण लागत की प्रमुख भूमिका होती है। MOF का बड़े क्षेत्रों में उपयोग करना कठिन है, तथापि समस्त विश्व के विभिन्न शोध समूहों द्वारा इसके निर्माण को संभव बनाने के प्रयास बड़े स्तर पर चल रहे हैं,” वह आगे कहते हैं।
यह अद्वितीय तकनीक लोक-स्वास्थ्य में उन्नति का विकल्प प्रस्तुत करने के साथ-साथ यह भी दर्शाती है कि विज्ञान में पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान विकसित करने की कितनी क्षमता विद्यमान है। प्रशांत की दृष्टि आगामी चुनौतियों की ओर है।
“आज विश्व भर में कई महत्वपूर्ण विषय हैं, जिनके समाधान हेतु MOF जैसी सामग्रियों की आवश्यकता है, उदाहरण-स्वरुप सामान्य उपयोग के जल या पेय जल में परफ्लुरोऑक्टेन सल्फोनिक एसिड (PFOS), परफ्लुरोअल्काइल पदार्थ (PFAS), आर्सेनिक एवं क्रोमियम का संसूचन करना,” प्रशांत भविष्य के अनुप्रयोगों के सम्बन्ध में कहते हैं।