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कोयला-आधारित विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में आशाजनक प्रगति

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Mumbai
11 दिसम्बर 2023
मध्यप्रदेश स्थित एक ताप विद्युत संयंत्र।

शोधकर्ता निरंतर ऐसे नवीन मार्गों की खोज में रत हैं जो कोयला-आधारित विद्युत उत्पादन को स्वच्छ एवं अधिक दक्ष बना सकें। निकल की एक नवीन मिश्रधातु पर अभिनव प्रयोग किए गए, जिसने अत्यधिक तापमान एवं दबाव की स्थिति में आशाजनक ऑक्सीकरण प्रतिरोध (ऑक्सीडेशन रेसिस्टेंस) का प्रदर्शन किया। ये निष्कर्ष कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन स्रोतों पर आधारित विद्युत उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के साथ-साथ तंत्र की दक्षता वृद्धि में सहायक हो सकते हैं।

वर्तमान में सबक्रिटिकल अवस्था (17 मेगापास्कल/एमपीए दाब एवं 540 ℃ तापमान) में कार्यरत अधिकांश कोयला-आधारित विद्युत संयंत्र विद्युत उत्पादन के लिए शुद्ध पानी को भाप में परिवर्तित करते हैं। यह उच्च तापमान का पानी एवं भाप ऑक्सीकरण के द्वारा अपने मार्ग में आने वाली नलियों का क्षरण कर सकते हैं। इससे नलियों की सतह पर एक पतली झिल्ली का आवरण निर्मित होकर विद्युत उत्पादन की दक्षता को कम कर सकता है। प्रस्तावित एडवांस्ड अल्ट्रा सुपरक्रिटिकल परिवेश (एयूएससी) 32 एमपीए के दाब एवं 710 ℃ तापमान पर संचालन हेतु निर्मित किए गए हैं। इनमें पानी के द्वारा नलियों के क्षरण की संभावना अधिक होती है। यथासंभव क्षरण को रोकना ऐसे संयंत्रों की दक्षता, सुरक्षा और विश्वसनीयता को बढ़ाने में एक प्रमुख चुनौती है। शोधकर्ता निकल, लोह-निकल और कोबाल्ट की ताप प्रतिरोधी (हीट रेसिस्टेंट) विशेष मिश्रधातु (सुपरअलॉय) की खोज में रत हैं जिनका उपयोग उच्च तापमान पर किया जा सकता है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के शोधकर्ताओं के अध्ययन से प्राप्त जानकारी के अनुसार निकल आधारित विशेष मिश्रधातु 617 या अलॉय 617 पर किए गए भाप ऑक्सीकरण परीक्षण में उत्साहजनक परिणाम प्राप्त हुए हैं जो कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों की कार्यक्षमता में प्रगति की संभावना दर्शाते हैं। परीक्षण एक सिम्युलेटेड एडवांस्ड अल्ट्रा सुपरक्रिटिकल (एयूएससी) परिवेश में किए गए थे, जिसे विशेष रूप से कोयला चालित विद्युत संयंत्र में स्थित उच्च तापमान एवं दाब की स्थिति के प्रतिरूपण (सिम्युलेशन) हेतु प्ररचित (डिज़ाइन) किया गया था।

एयूएससी विशेष प्रकार के विद्युत संयंत्र हैं जो लगभग 710 ℃ एवं 32 एमपीए के क्रमशः उच्च तापमान एवं दाब पर कार्य करते हैं। इस अवस्था में विद्युत संयंत्र लगभग 50% की तापीय दक्षता (थर्मल एफिशियंसी) के साथ अधिकाधिक कोयले का उपयोग कर इसे विद्युत में परिवर्तित करता है। इस प्रकार यह सबक्रिटिकल विद्युत संयंत्रों की तुलना में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को लगभग 30% तक कम कर सकता है। ऐसे पदार्थो को विकसित करने की यहाँ चुनौती है जो निर्दिष्ट उच्च तापमान पर अत्यधिक दबाव (क्रीप स्ट्रेंथ) की स्थितियों में विकृत न होकर कठिन परिचालन स्थितियों का भलीभांति सामना कर सकें एवं ऑक्सीकरण प्रतिरोध प्रदर्शित कर सकें।

“इस परियोजना के लिए हम उत्साहित थे क्योंकि कार्बन उत्सर्जन को कम करने संबंधी किसी भी शोध का स्वागत ही है। आईआईटी मुंबई की विषय विशेषज्ञता के आधार पर इस अध्ययन हेतु हमें श्री एस सी चेतल की अध्यक्षता वाले मिशन निदेशालय, एडवांस्ड अल्ट्रा सुपरक्रिटिकल परियोजना, भारत सरकार द्वारा आमंत्रित किया गया था। मिशन मोड में यह एक राष्ट्रीय परियोजना थी और भारत सरकार उच्च ऊष्मा दक्षता युक्त ताप विद्युत संयंत्र की दिशा में अग्रसर होना चाहती थी,” प्राध्यापक राजा इस अध्ययन की प्रेरणा के संबंध में कहते हैं।

एयूएससी प्रौद्योगिकी में संभावित उपयोग के लिए अब तक मिश्रधातु 617 अपेक्षाकृत अज्ञात रही है। क्योंकि एयूएससी भाप ऑक्सीकरण परीक्षण लूप की चरम स्थितियों को प्रतिरूपित (सिमुलेट) करने वाले परीक्षण लूप बनाना कठिन था। भाप के ताप एवं दाब परीक्षण क्रमशः 670 ℃ और 27 एमपीए तक सीमित होने एवं जल रसायन को सटीक रूप से नियंत्रित नहीं कर पाने के कारण पिछले अध्ययन सीमित एवं अनिर्णायक रहे हैं।

शोधकर्ताओं ने मिश्रधातु 617 को एक सिम्युलेटेड एयूएससी भाप परीक्षण से जोड़ा। इसे विद्युत संयंत्र के सुपरहीटर एवं रीहीटर नलिका प्रणाली जैसे वातावरण प्रतिरूपण के लिए 31 एमपीए पर 650 ℃ - 710 ℃ की ताप सीमा पर 600 घंटे के लिए रखा गया।

“अध्ययन का शून्य से प्रारम्भ एवं प्रायोगिक व्यवस्था (सेटअप) की स्वदेशी युक्ति जिसे स्थानीय रूप से मेसर्स सायमेक इंजीनियर्स द्वारा निर्मित किया गया, इस अध्ययन का अनूठा पक्ष है। यह भारत में अपनी तरह का प्रथम अध्ययन है। इस प्रकार की व्यवस्था विश्व भर में कम ही है और भारत में यह एकमात्र प्रायोगिक व्यवस्था है," प्राध्यापक राजा का कहना है।

 

AUSC Lab setup
छायाचित्र: एयूएससी लैब सेटअप। छवि श्रेय: प्राध्यापक वी एस राजा   

हाल ही में एनटीपीसी और बीएचईएल द्वारा इस सुविधा की उपयोगिता पर श्री एस सी चेतल और भारतीय उन्नत अल्ट्रा सुपरक्रिटिकल कार्यक्रम, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के द्वारा एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई थी। शोधकर्ताओं द्वारा विकसित इस सुविधा के माध्यम से क्षरण (करोजन) पर जल रसायन के प्रभाव को विभिन्न प्रयोगों के द्वारा समझा जा सकता है। कार्यशाला की सफलता को देखते हुए भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने जल रसायन विज्ञान का अध्ययन करने एवं एयूएससी संयंत्रों के लिए जल उपचार मापदंड स्थापित करने हेतु बीएचईएल और एनटीपीसी के साथ सहयोग को आगे भी समर्थन देने की इच्छा व्यक्त की है।

इस अध्ययन के अंतर्गत नवीन स्वदेशी युक्ति से निर्मित प्रायोगिक व्यवस्था में मिश्रधातु 617 के ऑक्सीकरण व्यवहार को परखा गया था। शोधकर्ताओं ने भार में नगण्य स्तर की वृद्धि देखी। ऑक्साइड शल्क (स्केल) के रूप में उन्होंने क्रोमिक ऑक्साइड की एक आंतरिक परत तथा मैंगनीज, निकल या लोह आधारित क्रोमिक ऑक्साइड खनिज यौगिक (स्पाइनल) की द्वीप संरचनाओं की बाह्य परत को देखा। ये सुरक्षात्मक परत है जो आगे के क्षरण को रोकने के लिए धातुओं पर बनती है। उन्होंने पाया कि कम तापमान पर धातु आयनों का बाह्य प्रसार सीमित होता है अतः ऑक्साइड शल्क में बाह्य स्पाइनल की कोई महत्वपूर्ण उपस्थिति स्पष्ट नहीं होती, जिसके द्वारा परत अंतर्निहित धातु की रक्षा करता है।

पिछले अध्ययनों से एल्युमिनियम की पर्याप्त मात्रा के कारण मिश्रधातु 617 का आंतरिक ऑक्सीकरण ज्ञात हुआ था। यद्यपि सिम्युलेटेड वातावरण वाले इस वर्तमान अध्ययन में 710 ℃ पर 600 घंटों के बाद भी एल्युमिनियम ऑक्साइड का नगण्य अवक्षेप ही प्राप्त हुआ।

“यद्यपि 600 घंटे की यह अध्ययन अवधि विद्युत संयंत्र घटकों की परिचालन अवधि से कम है, तथापि महत्वपूर्ण यह है कि हम ऑक्सीकरण के विज्ञान को समझ कर उन मापदंडों को प्राप्त कर सकते हैं जो क्षरण प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए अब हम मिश्रधातु 740 और 304HCu जैसी अन्य संभावित मिश्रधातुओं की खोज कर रहे हैं,” प्राध्यापक राजा टिप्पणी करते हैं।

अध्ययन के निष्कर्ष एयूएससी प्रौद्योगिकी के सुपरहीटर एवं हीटर नलिका प्रणाली के लिए मिश्रधातु 617 को एक विश्वसनीय सामग्री के रूप में प्रस्तुत करते हैं। एयूएससी स्थितियों के निकटतम स्तर पर समग्रता बनाए रखने की मिश्रधातु की क्षमता, स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकी में इसके उपयोग के सामर्थ्य को इंगित करती है। इस प्रकार के नवाचार हमें भविष्य के स्वच्छ एवं ऊर्जा-दक्ष कोयला विद्युत संयंत्रों की दिशा में आगे बढ़ाने में सहायक हैं।

आगे के शोध में अब एयूएससी स्थितियों के निरंतर संचालन के अंतर्गत मिश्रधातु 617 की दीर्घकालिक विश्वसनीयता को परखने की आवश्यकता है।

प्राध्यापक राजा का कहना है, "चूंकि भारत के पास कोयले के विशाल संसाधन हैं और वैश्विक ऊर्जा बाजार में यह निरंतर योगदान दे रहा है अतः दीर्घ अवधि में विद्युत संयंत्रों की पर्यावरणीय स्थिरता में प्रगति के लिए यह शोध सर्वोपरि है।"

एयूएससी प्रौद्योगिकी के संवर्धन से महत्वपूर्ण दक्षता वृद्धि एवं कार्बन उत्सर्जन में न्यूनता संभव हो सकती है। यह ऊर्जा क्षेत्र को आर्थिक रूप से उत्पादक बनाये रखने के साथ पर्यावरण के लिए लाभकारी होगा।

मिशन निदेशालय, एडवांस्ड अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल परियोजना, भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित इस कार्य को आगे चलकर स्वच्छ कोयला ऊर्जा राष्ट्रीय परियोजना, भारत सरकार और इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (आईजीसीएआर) कलपक्कम से भी अनुदान प्राप्त हुआ। इस कार्य में आईजीसीएआर कलपक्कम, एनटीपीसी, बीएचईएल एवं भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बैंगलोर के मध्य उत्साहपूर्ण सहयोग देखा गया तथा शोधकर्ताओं भागवत घुले एवं सुंदरेसन सी ने इस परियोजना को सफल बनाने हेतु अनुकरणीय कार्य किया।