
विश्व के विभिन्न भागों में स्वच्छ जल का अभाव आज एक गंभीर विषय है एवं भविष्य में इसके और भीषण होने की संभावना है। पृथ्वी की सतह पर जल की प्रचुरता होने के उपरांत भी इसका केवल 3% भाग ही मीठे जल के रूप में उपलब्ध है, उस पर विडम्बना यह कि इसका मात्र 0.05% भाग ही सुगमता से प्राप्त हो पाता है। समुद्र के जल से एवं अन्य खारे जल से लवण को दूर करना (विलवणीकरण या डीसैलीनेशन) इस समस्या का एक समाधान हो सकता है, जिसके निमित्त वैज्ञानिक अधिक दक्ष एवं शीघ्र विलवणीकरण तकनीक की खोज में रत हैं। यद्यपि विलवणीकरण (desalination) से उत्पन्न ब्राइन (लवण का सान्द्र विलयन) भूमध्यस्थ (landlocked) भागों के लिए एक गंभीर समस्या है एवं कई उद्योग ‘शून्य तरल निस्सरण’ (जीरो लिक्विड डिस्चार्ज) प्रक्रियाओं पर ध्यान दे रहे हैं।
आईआईटी मुंबई के वैज्ञानिक प्राध्यापक स्वतंत्र प्रताप सिंह एवं ऐश्वर्या सी. एल. ने जल के विलवणीकरण को सुगम करने हेतु एक नूतन पदार्थ विकसित किया है । डुअल-साइडेड सुपर हायड्रोफोबिक लेज़र-इंड्यूस्ड ग्राफ़ीन (DSLIG) नामक यह वाष्पित्र (इवापोरेटर) पूर्व के वाष्पित्रों में उपस्थित बहुत से दोषों का समाधान प्रस्तुत करता है, साथ ही इसमें बड़े स्तर पर अनुप्रयोग किये जाने की क्षमता है।
कार्बन उत्सर्जन कम होने के कारण सौर ऊर्जा आधारित विलवणीकरण विधियाँ अधिक उपयुक्त मानी जाती हैं। यद्यपि प्रकाश की तीव्रता में अस्थिरता (फ़्लक्चुएशन), प्रकाश की उपलब्धता एवं अवशोषण की घटी हुई दर जैसे कारक, सौर ऊर्जा आधारित विलवणीकरण तकनीकों की दक्षता एवं स्थिरता को अत्यधिक प्रभावित करते हैं। आधुनिक वर्षों में इन्टरफ़ेशिअल एवैपोरेशन सिस्टम एक विश्वसनीय दृष्टिकोण के रूप में उभरा है। इस तंत्र का मुख्य अंग एक ऐसी वाष्पीकरण युक्ति है जो सौर ऊर्जा को अवशोषित कर ऊष्मा उत्पन्न करती है। जल पृष्ठ पर स्थापित किया जाने वाला यह वाष्पित्र सम्पूर्ण जल को गर्म नहीं करता अपितु अपने ऊपर स्थित जल की पतली परत पर ऊष्मा को केन्द्रित करता है। यह स्थानगत ताप (लोकलाइज्ड हीटिंग) ऊष्मा की हानि को न्यूनतम करते हुए विलवणीकरण की दक्षता में वृद्धि करता है।
इंटरफेशियल इवापोरेटर्स (वाष्पित्र) लाभकारी होने के उपरांत भी उनमें पारंपरिक सौर विलवणीकरण तकनीकों के समान समस्याएँ होती है।
प्रा. सिंह के अनुसार “सौर विकिरण की अस्थिरता (फ़्लक्चुएशन) वाष्पित्र की सतह के तापमान को परिवर्तित करती रहती है। बादलों की उपस्थिति में पर्याप्त सौर ऊर्जा न मिल पाने के कारण, इंटरफेशियल तकनीकों का प्रदर्शन अवरुद्ध हो जाता है। इसके अतिरिक्त, सौर विकिरण की दिन में होने वाली अस्थिरता भी वाष्पीकरण प्रक्रिया को प्रभावित करती रहती है तथा अपराह्न 2:00 बजे के निकट, जब सौर ऊर्जा अपने तीव्रतम स्तर पर होती है, तब उच्च वाष्पीकरण दर मिलती है ।”
वाष्पित्र की सतह पर लवण का निक्षेपण (डिपॉज़ीशन) इंटरफेशियल वाष्पीकरण की प्रक्रिया में अन्य प्रमुख चुनौती है। यह पानी एवं वाष्पित्र के प्रत्यक्ष संपर्क को अवरुद्ध करता है जिसके परिणामस्वरूप समय के साथ-साथ वाष्पित्र की दक्षता घटती जाती है।
प्रा. सिंह एवं ऐश्वर्या का शोधकार्य उपरोक्त दोनों समस्याओं को लक्ष्य करता है। सौर तापन के साथ-साथ विद्युत् आधारित तापन (जूल हीटिंग) के माध्यम से भी DSLIG वाष्पित्र का तापन किया जा सकता है। सौर एवं विद्युत तापन प्रक्रियाओं के संयोजन के द्वारा प्रक्रिया को सौर प्रकाश जनित अस्थिरता से सुरक्षित किया जा सकता है। सूर्य के न्यूनतम प्रकाश में अथवा प्रकाश की अनुपस्थिति में वाष्पित्र को गर्म करने एवं तापमान को स्थिर बनाये रखने हेतु विद्युत ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है ताकि वाष्पित्र निरंतर कार्य करता रहे।
अति जल-अपकर्षी (सुपर-हाइड्रोफोबिक) प्रकृति DSLIG की विशेषता है। यह पानी को कमल के पत्तो के समान प्रतिकर्षित करता है। अपनी सतह की इस विशेषता के कारण अति जल-अपकर्षी पदार्थ जल की बूंदों एवं स्वयं के मध्य स्थित संपर्क क्षेत्र को इतना कम कर लेते हैं कि ये बूंदें पदार्थ को गीला करने के स्थान पर उस पर लुड़कना प्रारंभ कर देती हैं। विलवणीकरण अनुप्रयोगों में DSLIG की अति जल-अपकर्षी प्रकृति पानी में घुले हुए लवण को वाष्पित्र की सतह पर चिपकने से रोकती है एवं इसकी दक्षता को निरंतर बनाये रखती है।
“हमारे शोध का प्रमुख लक्ष्य एक ऐसी सुपर-हाइड्रोफोबिक सतह का निर्माण करना था जो कमल के पत्तों के समान प्रभावी हो एवं सौर तथा जूल हीटिंग दोनों प्रकार से कार्य करने में सक्षम हो,” प्रा. सिंह बताते हैं।
शोधकर्ताओं ने DSLIG के निर्माण के लिए पॉलीविनाइलिडीन फ्लोराइड (PVDF) नामक एक पॉलीमर को पॉली ईथर सल्फोन (PES) नामक एक अन्य पतली परत वाले पॉलीमर LIG के एक पार्श्व पर लेपित लिया। अब लेज़र-आधारित उत्कीर्णन (एनग्रेविंग) तकनीक के उपयोग से पदार्थ के PVDF पार्श्व पर ग्राफ़ीन को उत्कीर्णित किया गया। पदार्थ का नाम इसके दो भिन्न-भिन्न पॉलीमर पार्श्वों एवं संरचनात्मक तकनीक पर आधारित है। यद्यपि PES पानी को प्रतिकर्षित नहीं करता, किंतु यह वाष्पित्र की सतह को सहजता से टूटने नहीं देता।
प्रा. सिंह इसकी विशेषता बताते हैं, “यदि केवल PES का उपयोग किया जाता तो परिणामी सतह दोनों पार्श्वों पर गीली होती। यद्यपि PVDF का उपयोग दोनों पार्श्वों को जल-अपकर्षी बनाता है। एक अध:स्तर के रूप में PES का उपयोग यांत्रिक स्थिरता प्रदान करता है, जबकि PVDF परत कुशल वाष्पीकरण प्रक्रिया के लिए आवश्यक जल-अपकर्षी अभिलक्षणों को सुनिश्चित करती है।”

प्रयोगशाला परीक्षण दर्शाते हैं कि DSLIG लवण निक्षेपण को रोकने में कमल के पत्तों के समान व्यवहार करते हुए विद्युत एवं सौर, दोनों तापन प्रक्रियाओं के अंतर्गत अत्यधिक दक्षता का प्रदर्शन करता है। साथ ही यह लवण के अत्यधिक सांद्र विलयन को उपचारित करने में भी अत्यधिक दक्ष है। यह इसे अन्य प्रक्रियाओं से प्राप्त खारे पानी के निस्सरण (डिस्चार्ज) के साथ-साथ औद्योगिक अपशिष्ट जल के उपचारार्थ एक आदर्श युक्ति के रूप में स्थापित करता है। शोधकर्ताओं ने यह भी दर्शाया कि एक के ऊपर एक बहुत से वाष्पित्र रख देने पर DSLIG का प्रदर्शन अधिक उन्नत हो जाता है।
अल्प कार्बन उत्सर्जन, अल्प विषाक्तता एवं उचित लागत मूल्य के कारण बड़े स्तर पर दीर्घकालिक विलवणीकरण अनुप्रयोगों एवं उद्योगों से प्राप्त अपशिष्ट जल के उपचार हेतु, DSLIG युक्ति सम्भावनाओं से भरी है। प्रा. सिंह का कहना है कि बड़े स्तर पर अनुप्रयोगों को लागू करने के पूर्व अधिक क्षेत्रीय परीक्षण (फील्ड टेस्ट्स) आवश्यक हैं। इस तकनीक की औद्योगिक सिद्धि को सुनिश्चित करने एवं इसके परीक्षण में आने वाली प्रमुख बाधाओं में से एक वित्त का अभाव है। प्रा. सिंह एवं उनका शोधदल इस प्रकार के अन्य अति जल-अपकर्षी (सुपर हाइड्रोफोबिक) पदार्थों को विकसित करने की दिशा में कार्यरत हैं जो और अधिक दक्षता के साथ सौर एवं विद्युत ऊर्जा दोनों का एक साथ उपयोग कर सकें।
वित्तीय सहयोग: इस शोधकार्य को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार (DST), DST इंस्पायर एवं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई का सहयोग प्राप्त है।