एक मिश्रण में पानी और तेल साथ होते हुये भी पृथक-पृथक होते हैं। रसायन शास्त्र की भाषा में इसे तरल-तरल अवस्था पृथक्करण (लिक्विड-लिक्विड फेज सेपरेशन या एलएलपीएस) कहा जाता है। इसी प्रकार कुछ विशेष परिस्थितियों में (जैव) पॉलिमरों का एक सजातीय विलयन (होमोजीनियस सोल्युशन) भी पृथक-पृथक सहवर्ती तरल अवस्थाओं में विभक्त हो जाता है। एलएलपीएस जीवित कोशिकाओं में झिल्ली रहित कोशिकांगों (ऑर्गेनेल्स) के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जैसे कि न्यूक्लियोली, काजल बॉडी (कोशिका के केंद्रक में पाई जाने वाली विशिष्ट संरचनाएं), परमाणु चित्ती एवं उद्विग्न कणिकाएं (स्ट्रेस्ड ग्रेन्यूल्स), जहाँ प्रोटीन तथा अन्य जैव अणु (बायोमॉलीक्यूल्स) एलएलपीएस के माध्यम से गुजरते हैं।
सामान्य शारीरिक स्थितियों में कोशिकाओं में होने वाला प्रोटीन एलएलपीएस लाभप्रद हो सकता है किन्तु ऐसे उदाहरण भी हैं जहाँ यह दोषों एवं रोगों को उत्पन्न कर सकता है।
“एमियोट्रॉफिक लेटरल स्क्लेरॉसिस (एएलएस), अल्जाइमर एवं पार्किंसंस जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के संदर्भ में प्रोटीन अवस्था पृथक्करण विशेष महत्व रखता है, जहाँ एलएलपीएस विषाक्त प्रोटीन संग्रह के एक न्यूक्लिएशन तंत्र के रूप में सामने आता है। अतएव एलएलपीएस रोग-प्रक्रियाओं को समझने तथा उनके विरुद्ध उपचार विकसित करने में योगदान देता है,” भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) में जैविक विज्ञान एवं जैव अभियांत्रिकी विभाग के प्राध्यापक समीर माजी बताते हैं।
यद्यपि इसका महत्व हमारे सामने है किन्तु वैज्ञानिक इस बात की पुष्टि नहीं कर सके हैं कि प्रोटीन एवं अन्य पॉलीपेप्टाइड्स (अमीनो एसिड से बने प्रोटीन के निर्माण खंड) एलएलपीएस के माध्यम से क्यों गुजरते हैं।
'प्रोटीन एवं पॉलीपेप्टाइड्स के अवस्था पृथक्करण' के पारंपरिक सिद्धांत के अनुसार अवस्था पृथक्करण की क्षमता उनके अमीनो एसिड अनुक्रम एवं संरचना में अंतर्निहित है। किन्तु आईआईटी मुंबई के प्राध्यापक माजी एवं उनके कार्यदल द्वारा किया गया नवीन शोध लंबे समय से चली आ रही इस अवधारणा पर प्रश्नचिन्ह है। उनके नवीन सुझाव के अनुसार अनुक्रम और संरचना से इतर समस्त प्रोटीन एवं पॉलीपेप्टाइड्स एलएलपीएस से गुजर तो सकते हैं, किन्तु केवल विशिष्ट परिस्थितियों में।
नवीन सिद्धांत के अनुसार प्रोटीन तथा पॉलीपेप्टाइड्स जैसे बृहद-अणुओं (मेक्रो मॉलिक्यूल) की एक निश्चित सांद्रता सीमा (थ्रेशोल्ड कंसंट्रेशन) पर विभिन्न बृहद-अणुओं के मध्य होने वाली अंत:क्रिया बढ़ जाती है। यह गतिविधि अंतःक्रियाओं को और जटिल (कॉम्प्लेक्स) बनाती है, जिसके परिणामस्वरुप प्रोटीन एवं अन्य बृहद-अणु विलयन से बाहर संघनित होते हैं। इसे जैव-अणु संघनी गठन (बायो मॉलिक्यूलर कंडेनसेट फ़ॉर्मेशन) कहते हैं।
“हमारा प्रस्ताव है कि संघनी गठन, प्रोटीन/पॉलीपेप्टाइड्स का एक आंतरिक गुण है, भले ही उनका अनुक्रम या संरचना कुछ भी हो। विशेष स्थितियाँ जैसे कि बढ़ी हुई प्रोटीन सांद्रता अंतर-आणविक अंतःक्रिया को विस्तार देकर एलएलपीएस को प्रेरित करती हैं,” प्राध्यापक माजी कहते है।
एक जीवित कोशिका में प्रोटीन्स, न्यूक्लिक अम्लों तथा अन्य जैव अणुओं की भीड़ होती है जिसे सामान्यत: मॉलिक्युलर क्राउड कहा जाता है। शोधकर्ता मॉलिक्युलर क्राउडर नामक यौगिकों के एक वर्ग का उपयोग करके इस आणविक भीड़ की पुनरावृत्ति कर सकते है।
प्रोफेसर माजी के अनुसार, "पॉलीइथाइलीन ग्लाइकॉल, फिकॉल, या डेक्सट्रान जैसे बृहद-अणु क्राउडर, अंतरकोषीय भीड़ की अनुकृति (मिमिक) निर्मित करते हैं एवं बृहद-अणुओं की स्थानीय सांद्रता को बढ़ाते हैं। बृहद-अणुओं की बढ़ी हुई यह सांद्रता संघनन (कंडेनसेट) के गठन को प्रभावित करती है।”
विलयन में बृहद-अणुओं की सांद्रता बढ़ाने हेतु पॉलीइथाइलीन ग्लाइकॉल (पीईजी-8000) क्राउडर का उपयोग करते हुए शोधदल ने विभिन्न संरचनाओं एवं अनुक्रमों वाले 23 प्रोटीन/पॉलीपेप्टाइड्स का परीक्षण किया। चयनित प्रोटीन को एक घोल में क्राउडर के साथ मिला कर तरल संघनन के गठन का अध्ययन करने पर अवस्था पृथक्करण देखा गया। उनके निष्कर्षों से पता चला कि सभी प्रोटीन, यहां तक कि कुछ अत्यधिक आवेशित (चार्ज्ड) पॉलीपेप्टाइड में तरल संघनन के गठन की क्षमता होती है। किन्तु इन संरचनाओं में अवस्थाओं (फेसेज) की अत्यंत भिन्न व्यवस्थाएं (कंसंट्रेशन रिक्वायरमेंट) होती हैं जो विभिन्न अंतर-आणविक अंतःक्रियाओं (इंटरमॉलिक्यूलर इंटरेक्शन) पर निर्भर होती हैं।
इलेक्ट्रोस्टैटिक, हाइड्रोफोबिक एवं हाइड्रोजन बॉन्डिंग नामक तीन बल अंतर-आणविक अंतःक्रियाओं को प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका में देखे गए हैं। दो विपरीत आवेशित कणों के मध्य लगने वाला बल इलेक्ट्रोस्टैटिक बल है। अणुओं की जल के अणुओं के लिए प्रतिरोध की क्षमता हाइड्रोफोबिसिटी कहलाती है एवं हाइड्रोजन बॉन्डिंग अणुओं के मध्य एक क्षीण अंतःक्रिया है जो अणुओं में स्थित हाइड्रोजन परमाणुओं एवं अन्य ऋण (इलेक्ट्रोनिगेटिव) आवेशित परमाणुओं के मध्य आकर्षण के परिणामस्वरूप होती है। शोधदल ने दर्शाया कि इन अंतर-आणविक अंतःक्रियाओं में से कोई एक या संयुक्त रूप से, किसी प्रोटीन/पेप्टाइड के एलएलपीएस के पीछे मूल भूमिका में होती हैं।
बृहद-अणुओं के आवेशित खंडों के मध्य इलेक्ट्रोस्टैटिक बलों की उपस्थिति बृहद-अणुओं के मध्य अंत:क्रियाओं को बढाती है जिससे अवस्था पृथक्करण को गति मिलती है।
“अनाव्रत (एक्सपोज्ड) हाइड्रोफोबिक सतह भी अंतर-आणविक अंत:क्रिया के लिए अत्यधिक संवेदनशील है एवं प्रोटीन एलएलपीएस को प्रेरित कर सकती है। इसके अतरिक्त अंतर-आण्विक हाइड्रोजन बंध भी अवस्था पृथक्करण को संचालित करने वाली अंतःक्रियाओं को प्रेरित कर सकते हैं,” प्रोफेसर माजी कहते हैं।
विभिन्न अंतर-आणविक अंतःक्रियायें अन्योन्य रूप से अवस्था पृथक्करण को नियंत्रित करती हैं। यह इस बात की पुष्टि करता है कि एलएलपीएस वास्तव में एक विशिष्ट वातावरण में प्रोटीन/पॉलीपेप्टाइड की एक सामान्य घटना है।
यद्यपि हमने अभी प्रोटीन एलएलपीएस की जटिलता (कॉम्प्लेक्सिटी) पर दृष्टिपात ही किया है, अध्ययनरत कार्यदल आगे की खोज के लिए अपनी आगामी कार्य-योजना बना रहा है।
प्राध्यापक माजी प्रोटीन एलएलपीएस पर अपने शोध के भविष्य के सम्बन्ध में कहते हैं, "एक बहुघटक प्रणाली में प्रोटीन-युग्म के अवस्था पृथक्करण को नियंत्रित करने वाले एक सामान्य सिद्धांत की खोज करना हमारा अगला कदम है।"
नवीन शोध इस महत्वपूर्ण जैविक प्रक्रिया को गहन अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है। यह एलएलपीएस के माध्यम से रोग जनित दोषों की पूर्व जानकारी एवं बढ़ने से पहले इनकी रोकथाम के नए एवं प्रभावी मार्गों के विकास में सहायक हो सकता है।
प्रोफेसर माजी कहते हैं, "प्रारंभिक चरणों में रोग की प्रगति को रोकने की यह क्षमता भविष्य में प्रभावी उपचार की सम्भावना दर्शाती है।"
विशिष्टत: अवस्था पृथक्करण की एक महत्वपूर्ण जैविक प्रक्रिया के सम्बन्ध में यह शोध एक नया आयाम प्रदान करता है। इस तथ्यपरक विषय के भविष्य के अध्ययन सेलुलर मशीनरी एवं प्रोटीन व्यवहार के सम्बन्ध में हमारे ज्ञान को नई दिशा देकर सुदृढ़ कर सकते हैं।