रिफाइनरी से प्राप्त उपचारित अपशिष्ट जल जब बालू से होकर बहता है तो इस पर प्रदूषक-भक्षी जीवाणुओं की एक परत निर्मित कर देता है, जो पानी से हानिकारक यौगिकों को दूर करती है।

रोबोट के उपयोग द्वारा पशुओं की घर वापसी का अध्ययन

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Mumbai
3 सितंबर 2024
होमिंग रोबोट के आवर्धित चित्र के साथ रोबोट द्वारा लिया गया पथ श्रेय: डॉ. नितिन कुमार

पशु संसार के बहुत से सदस्य अपरिचित स्थानों से अपनी घर वापसी का मार्ग खोजने में अविश्वसनीय रूप से सक्षम होते हैं, जिसे ‘होमिंग’ कहते हैं। सहस्रों मील की उड़ान भरने वाले प्रवासी पक्षी हों या भोजन खोजने के उपरांत अपने घर वापस जाने का मार्ग खोजने वाली चींटियाँ, उनके अस्तित्व के लिए गृह-प्रत्यागमन अत्यावश्यक है। मनुष्यों ने पक्षियों की इस क्षमता का उपयोग सुदूर संदेश पहुँचाने हेतु कबूतरों को प्रशिक्षित करने के लिए भी किया है। किन्तु ये पशु-पक्षी सदैव अपने घर वापसी का मार्ग इतनी कुशलता से कैसे खोज लेते हैं ? इनकी इस कौतूहलपूर्ण क्षमता के सम्बन्ध में ऐसे बहुत से प्रश्न आज भी अनुत्तरित हैं।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के शोधकर्ता इस आकर्षक कौशल्य के रहस्य को जानने के लिए रोबोट का उपयोग कर रहे हैं।

“हमारे शोध समूह का प्राथमिक लक्ष्य क्रियाशील एवं जीवित प्रणालियों की भौतिकी को समझना है। सेंटीमीटर आकार के स्वचालित प्रोग्रामेबल रोबोट का प्रयोग कर हम यह जानकारी प्राप्त करते हैं। हम इन रोबोटों को व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों स्तरों पर जीवित प्राणियों की गतिशीलता का अनुकरण (मिमिक) करने हेतु प्रतिरूपित (मॉडल) करते हैं,” आईआईटी मुंबई में भौतिक विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. नितिन कुमार ने बताया।

डॉ. कुमार एवं उनका कार्यदल एक ऐसा रोबोट विकसित करने में सफल हुआ है जो पशुओं की भोजन की खोज एवं घर वापसी के व्यवहार का अनुकरण करने में सक्षम है। इस रोबोट को स्वचालन के लिए प्ररचित (डिजाइन) किया गया है जैसे कोई पशु चारागाह या भोजन खोजता है (फोरेजिंग)। गृह-प्रत्यागमन (होमिंग) के समय यह रोबोट प्रकाश का उपयोग करता है। इस नवीन अध्ययन में उन्होंने ‘फोरेजिंग एवं होमिंग’ रोबोट का उपयोग, घर वापसी के अंतर्निहित सिद्धांतों का अध्ययन करने के लिए किया है।

फोरेजिंग रोबोट को अर्ध-यादृच्छिक (सेमी-रेंडम) रीति से घूमने के लिए वैसे ही प्रोग्राम किया गया है, जैसे पशु भोजन की खोज में चरते हैं। सक्रिय ब्राउनियन (एक्टिव ब्राउनियन मोशन) नामक इस गति से युक्त कंप्यूटर प्रतिरूप (मॉडल), जीवित गतिशीलता का अनुकरण करने में सक्षम होते हैं। रोटेशनल डिफ्यूजन नामक प्रक्रिया द्वारा रोबोट की दिशा बार-बार परिवर्तित होती है, जो इसके पथ को एक निश्चित स्तर तक यादृच्छिक (रेंडम) बनाती है। गृह-प्रत्यागमन के समय रोबोट एक पृथक कार्यपद्धति अपनाता है। शोधकर्ताओं के द्वारा रोबोट को क्रमिक रूप से बदलती प्रकाश की तीव्रता (लाईट ग्रेडिएंट) से प्रदीप्त किया जाता है। रोबोट को उसके प्रत्यागमन हेतु इस प्रकाश का अनुसरण करने के लिए प्रोग्राम किया जाता है। रोबोट में अनुकरण करता प्रयोग व्यक्त करता है कि कैसे कुछ पशु दिशाज्ञान (नेविगेशन) करने हेतु सूर्य या अन्य पर्यावरणीय संकेतों का उपयोग कर सकते हैं।

“रोबोट की प्रत्यागमन गति सक्रिय ब्राउनियन गति के समान होती है किन्तु जब इसकी नियत दिशा में उल्लेखनीय विचलन होता है, तब इसे आवश्यक दिशा संशोधनों से बारम्बार गुजरना होता है, जैसा कि वास्तविक जीवित प्राणियों में अपेक्षित होता है,” डॉ कुमार बताते हैं.

अपने अध्ययन में शोधदल यह निर्धारित करना चाहता था कि मार्ग में बढ़े हुए विचलन के साथ रोबोट को घर वापसी में कितना समय लगा। सफल वापसी से संबंधित पुनर्विन्यास दर (रीओरिएंटेशन रेट) दर्शाता है कि रोबोट (या पशु) को अपनी दिशा कितनी बार समायोजित (एड्जस्ट) करनी चाहिए। शोधदल ने देखा कि यह पुनर्विन्यास दर रोबोट के मार्ग में यादृच्छिकता के परिमाण (डिग्री ऑफ रेंडमनेस) से उत्पन्न हुई। उन्होंने यादृच्छिकता के एक विशिष्ट परिमाण के लिए एक 'इष्टतम पुनर्विन्यास दर' (ओप्टिमम रीओरिएंटेशन रेट) को खोजा। इस दर के उपरांत पुनर्विन्यास बढ़ने के कारण यादृच्छिकता के प्रतिकूल प्रभावों के परिणाम नकार दिये जाते है, जिससे अंततः सफल घर वापसी सुनिश्चित हो जाती है। इससे ज्ञात होता है कि कोलाहल या अनिश्चितता के होते हुए भी कुशलतापूर्वक अपना घर वापसी मार्ग खोजने के लिए पशुओं ने स्वयं को इष्टतम दर पर पुनर्विन्यासित (रीओरिएंट) करने हेतु विकसित किया होगा।

निष्कर्षों के सम्बन्ध में चर्चा करते हुए डॉ. कुमार कहते हैं कि, “वापसी का समय एक ऊपरी सीमा से अधिक न होना यह दर्शाता है कि घर वापसी की गति स्वाभाविक रूप से कुशल है। हमारे परिणामों ने प्रदर्शित किया कि पशुओं में यदि सदैव अपनी गृह दिशा संबंधी बोध है एवं जब-कभी नियत दिशा से विचलित होने पर वे सदैव अपना मार्ग संशोधन करते हैं, तो निश्चित रूप से वे एक नियत समय में घर पहुँच जाएँगे।”

अपने निष्कर्षों के समर्थन हेतु शोधकर्ताओं ने एक सैद्धांतिक प्रतिरूप (मॉडल) बनाया। यह प्रतिरूप रोबोट के व्यवहार के आधार पर इसकी घर वापसी में लगने वाले समय का अनुमान लगाने में सहायक है। यह न केवल रोबोट के प्रायोगिक परिणामों की व्याख्या करने में, अपितु इसके गृह-प्रत्यागमन पथों के विशिष्ट लक्षणों को भी दर्शाने में सक्षम था, जैसे समय के साथ रोबोट के अभिविन्यास (ओरिएन्टेशन) में परिवर्तन। मार्गक्रमण की रणनीति के लिए पुनर्विन्यास के महत्व को यह प्रतिरूप अधोरेखित कर सकता है, जो यह दर्शाता है कि कुशल मार्गक्रमण हेतु लगातार मार्ग संशोधन महत्वपूर्ण हैं।

प्रत्यक्ष प्रयोगों के साथ ही शोध-दल ने रोबोट की गतिविधियों को पशुओं के अनुकरण के रूप में व्यक्त करते हुए कंप्यूटर सिमुलेशन भी चलाया। अपने अभिविन्यास में इस आभासी रोबोट ने घर वापसी के मार्ग में संशोधन हेतु सक्रिय ब्राउनियन गति एवं कभी-कभी दिशा में परिवर्तन को साथ जोड़ा। सिमुलेशन तथा प्रयोगात्मक परिणाम आपस में मेल खाते पाए गए, जो इस अध्ययन परिणाम की पुष्टि करते हैं कि यादृच्छिकता एवं पुनर्विन्यास (रेंडमनेस एंड रीओरिएन्टेशन) गृह-प्रत्यागमन (होमिंग) को अनुकूलित करने के लिए एक साथ कार्य करते हैं।

डॉ. कुमार कहते हैं, “जब हमने इस मॉडल को प्रत्यागमन करते कबूतरों के समूह की वास्तविक जैविक प्रणाली के गतिमार्ग पर लागू किया तो इसने भलीभांति हमारे सिद्धांत सम्मत परिणामों को दर्शाया। इससे लगातार मार्ग संशोधन के परिणामस्वरूप दक्षता के बढ़ने की हमारी परिकल्पना को मान्यता मिली।"

पशुओं की घर वापसी के व्यवहार का रोबोट में अनुकरण करके शोधकर्ताओं ने अंतर्निहित सिद्धांतों को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह अध्ययन पशुओं द्वारा कुशलतापूर्वक अपने घर वापसी का मार्ग खोज लेने की प्रक्रिया पर प्रकाश डालने के साथ-साथ रोबोटिक्स में तकनीकी प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। यद्यपि वास्तव में मार्गक्रमण हेतु प्रकाश जैसा केवल एक सरल संकेत मात्र पर्याप्त नहीं हो सकता है। इसमें परिवर्तित भूदृश्य, पारस्परिक सामाजिक प्रभाव एवं अन्य पर्यावरणीय कारक भी सम्मिलित होते हैं।

"हमारे प्रयोग में प्रतिरूपित किये गए संकेतों की तुलना में वास्तविक एवं अधिक जटिल प्रणालियों में गृह-प्रत्यागमन के लिए आवश्यक संकेत अधिक जटिल होते हैं। भविष्य में प्रकाश की तीव्रता में स्थानिक-समय भिन्नताओं एवं भौतिक बाधाओं के संयोजन का उपयोग कर अपने प्रयोग में इन परिदृश्यों को प्रतिरूपित करने का हमारा लक्ष्य है," डॉ. कुमार शोध की भविष्य की दिशा में निष्कर्ष देते हैं।