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रोबोट्स के मध्य परस्पर सहयोग की उन्नति में सहायक हो सकता है आईआईटी मुंबई का नवीन अध्ययन

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Mumbai
3 मई 2024
कार्य के निष्पादन हेतु परस्पर सहयोगरत दो भिन्न प्रकार के रोबोट/मैनिपुलेटर छवि श्रेय: केशब पात्रा

सभ्यता के आरम्भ से ही मनुष्य ने अपना काम सरल करने हेतु यांत्रिक उपकरणों का निर्माण किया है। पानी की शक्ति का उपयोग करने वाले पानी के चक्कों (वाटर व्हील) से लेकर शत्रुओं पर बड़े-बड़े पत्थरों का प्रहार करने के लिए यांत्रिक शक्ति का उपयोग करने वाले युद्ध के आयुधों तक, मनुष्य ने सदैव यंत्रों का उपयोग किया है। औद्योगिक क्रांति एवं समानुक्रम उत्पादन (असेंबली लाइन प्रोडक्शन) के आगमन के उपरांत विनिर्माण एवं रक्षा संबंधी विभिन्न कार्यों में रोबोट्स ने मनुष्यों का स्थान ले लिया है। सर्वव्यापी हो चुके स्वचालित रोबोट्स (ऑटोनॉमस रोबोट्स) आज मानव के सांसारिक कार्य, कठिनाईयुक्त कार्य एवं ऐसे कार्य कर रहे हैं जो मानव के लिए संकटपूर्ण हो सकते हैं - हमारे बर्तन मार्जन एवं कार निर्माण से लेकर भूमिगत विस्फोटकों के संसूचन एवं ब्रह्मांड की खोज करने तक।

कार्यों की जटिलता बढ़ने के साथ-साथ किसी कार्य के निष्पादन के लिए समान अथवा विविध विशेषताओं से युक्त विभिन्न रोबोट्स का बहुधा उपयोग किया जाने लगा है। ऐसे सहयोगात्मक कार्यों के निष्पादन में सम्मिलित विभिन्न रोबोट्स को अपनी गतिविधियों में कुशलतापूर्वक समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता होती है। प्राध्यापक अनिर्बान गुहा एवं प्राध्यापिका अर्पिता सिन्हा के मार्गदर्शन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के केशब पात्रा, ऐसे सहयोगरत रोबोट्स के व्यवहार का अध्ययन कर रहे हैं। एक नव प्रकाशित अध्ययन के अनुसार केशब एवं उनके शोध दल ने एक ऐसी नूतन तकनीक विकसित की है जो रोबोट्स के परस्पर संवाद को पूर्व की तुलना में अधिक कुशल बनाते हुए उनकी दक्षता को उन्नत करने में सक्षम है।

अपने नवीन अध्ययन में आईआईटी मुंबई के शोध दल ने तीन नूतन एल्गोरिदम प्रस्तावित किये हैं, जो वास्तविक समय में रोबोट्स की कार्य क्षमता निर्धारित करने में सहायक हैं। इससे रोबोट्स अपनी व्यक्तिगत शक्तियों एवं सीमाओं के आधार पर कार्यों को परिस्थिति के अनुसार आवंटित कर सकेंगे।

“मान लीजिये दो एकसमान रोबोट्स किसी वस्तु को ले जा रहे हैं । कभी-कभी परिवेश में असमान तल या वस्तु के आकार के कारण छोटे-छोटे परिवर्तन होते हैं जिनके कारण वस्तु पर एक रोबोट की तुलना में दूसरे का नियंत्रण अधिक सटीक हो सकता है। हमारे एल्गोरिदम इन परिवर्तनों की जानकारी के साथ-साथ उत्तम प्रदर्शन सुनिश्चित करने हेतु वास्तविक समय में समायोजन (रिअल टाइम एडजस्टमेंट) करने में सहायक हैं,” केशब बताते हैं।

एल्गोरिदम अल्प क्षमता वाले रोबोट्स की जानकारी करता है, जिससे यह कार्य के पुनः आवंटन अथवा रोबोट्स समूह के कुशल उपयोग के लिए आवश्यक रोबोट्स की संख्या निर्धारित करने में सक्षम होता है।

प्रतिभागी रोबोट्स एवं एक केंद्रीय अनुवीक्षण संगणक (सेन्ट्रल मॉनिटरिंग कम्पूटर) में स्थित एल्गोरिदम, निर्णय लेने के लिए समूह के प्रत्येक रोबोट से वास्तविक समय में डाटा एकत्र करते हैं। ‘टास्ककैपेबिलिटी’ नामक प्रथम एल्गोरिदम, समूह में स्थित प्रत्येक रोबोट का आकलन कर उनकी पकड़ की क्षमता (ग्रिप स्ट्रेंथ) तथा स्थिरता जैसे विभिन्न मापदंडों को निर्धारित करता है एवं उन्हें एक मूल्य निर्दिष्ट करता है। तत्पश्चात ‘ऑनलाइन टास्क कैपेबिलिटी’ नामक दूसरा एल्गोरिदम, अन्य रोबोट्स के साथ इन मापदंडों की तुलना करता है ताकि प्रदर्शन में अक्षम रोबोट्स का निर्धारण किया जा सके। अंतत: ‘ऑनलाइन टास्क एलोकेटर’ नामक तीसरा एल्गोरिदम, अन्य दो एल्गोरिदम की जानकारी का उपयोग कर यह निर्धारित करता है कि कितने रोबोट्स की आवश्यकता है एवं इनमें से प्रत्येक को कौन सा कार्य करना चाहिए।

तीन एल्गोरिदम का समूह एक संतुलित कार्यप्रवाह सुनिश्चित करता है जिससे प्रत्येक रोबोट का उसकी क्षमतानुसार योगदान प्राप्त होता है एवं उत्पादकता में समग्र वृद्धि होती है। विभिन्न रोबोट्स के मध्य वास्तविक समय संचार (रियल टाइम कम्युनिकेशन) रोबोट्स के टकराने एवं त्रुटियों की संभावना को घटाने में भी सहायक है, जिससे उनके सहयोगात्मक कार्य अधिक प्रभावी होते हैं । दूसरी ओर पारंपरिक एल्गोरिदम, सामान्यत: पूर्व-विधियुक्त (प्री-प्रोग्राम्ड) रोबोट्स का उपयोग करते हैं। इनमें रोबोट्स के पथ एवं प्रदर्शन को कार्यारम्भ से पूर्व ही विधियुक्त किया जाता है, एवं वास्तविक समय में हेरफेर (रियल टाइम मैनिपुलेशन) की संभावना क्षीण हो जाती है। बदलती हुई परिस्थिति के अनुरूप कार्य आवंटन (डायनामिक टास्क एलोकेशन) में सक्षम एल्गोरिदम जटिल गणनाओं पर भी निर्भर करते हैं, जिससे उनका संगणन-काल बढ़ जाता है।

शोधदल ने अपनी नवीन पद्धति के परीक्षण हेतु दो प्रसिद्ध औद्योगिक रोबोट्स, यूआर5 एवं फ़्रैंका-एमिका पांडा, को चुना। उन्होंने प्रदर्शित किया कि स्कुरिक (Skuric) एवं ससाकी (Sasaki) जैसे पारंपरिक एल्गोरिदम की तुलना में उनके नवीन एल्गोरिदम कार्य करने में अधिक कुशल थे।

केशब कहते हैं, "हमारे एल्गोरिदम समूह ने समान कार्य के लिए स्कुरिक की तुलना में 15 गुना एवं ससाकी की तुलना में 8 गुना तेज प्रदर्शन किया। "

कार्यदल ने चार रोबोट्स के समूह के साथ अपने एल्गोरिदम की दक्षता का सत्यापन किया। समूह के रोबोट्स की संख्या में वृद्धि केंद्रीय संगणक पर स्थित तीसरे एल्गोरिदम के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि रोबोट्स एवं संगणक के मध्य संचार में विलम्ब हो सकता है।

यद्यपि केशब के अनुसार, "हमारे चार रोबोट्स के समूह के अध्ययन से प्राप्त कम्प्यूटेशनल डेटा इंगित करता है कि हम एल्गोरिदम एवं वास्तविक समय के प्रदर्शन में किसी भी परिवर्तन के बिना रोबोट्स की संख्या को 2-3 गुना तक ले जा सकते हैं।"

नवीन एल्गोरिदम ने रोबोट्स के गणना समय को भी 85% तक घटा दिया, जिससे सहयोगात्मक व्यवहार हेतु वास्तविक समय में हेरफेर कर पाना संभव हो गया।

“संगणनात्मक रूप से अत्यधिक गहन (कम्प्यूटेश्नली इंटेंसिव) पारंपरिक एल्गोरिदम की तुलना में हमारे एल्गोरिदम अभिनव हैं। यह वास्तविक समय में होने वाले परिवर्तन के प्रत्युत्तर में कार्य आवंटन की प्रक्रिया में हमारी पद्धति को बहुत तेज एवं अधिक कुशल बनाते हैं,” प्रोफ़ेसर गुहा कहते हैं।

यदि नवीन एल्गोरिदम कार्यान्वित किए जाते हैं तो इनके द्वारा कार्य में गति लाकर एवं कार्य से अकुशल तथा अनावश्यक रोबोट्स को हटाकर, सहयोगरत रोबोट्स के प्रदर्शन में उल्लेखनीय वृद्धि की जा सकती है। कार के समानुक्रम उत्पादन (असेंबली लाइन प्रोडक्शन) जैसे संदर्भ में इसकी कल्पना की जा सकती है, जहाँ रोबोट्स एक वाहन के विभिन्न भागों को जोड़ने हेतु सावधानीपूर्वक कार्य करते हैं। प्रत्येक रोबोट की अपनी विशेषताएँ होती हैं एवं अधिकतम दक्षता प्राप्त करने के लिए प्रत्येक रोबोट की क्षमताओं का लाभ लेते हुए कार्यों का कुशल विभाजन आवश्यक होता है।

वास्तविक समय में काम करने वाले इस अभिनव एल्गोरिदम समूह का उपयोग करके परिस्थितियों में सामयिक परिवर्तनों के अनुसार रोबोट्स अपने कार्य निष्पादन को निर्धारित एवं अनुकूलित कर सकते हैं। इस प्रकार रोबोट्स की कार्य क्षमताओं को परिवर्तनीय परिस्थितिओं के अनुसार निर्धारित करने एवं तदनुसार कार्यों को आवंटित करने की क्षमता प्रदान की जा सकती है। परिणामत: जटिल स्वचालित यंत्रों एवं प्रणालियों में जिस प्रकार से कार्य आवंटन एवं निष्पादन किये जाते हैं, इसमें क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकता है।