तीव्र शहरीकरण एवं जनसंख्या वृद्धि के साथ भारत में आज मितव्ययी एवं टिकाऊ आवासों की आवश्यकता में भी वृद्धि हुई है। भारत सरकार द्वारा प्रारम्भ की गई प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाय) का उद्देश्य लाखों की संख्या में शहरी प्रवासियों एवं निर्धनों को अल्प-आय घर उपलब्ध कराकर देश की आवास समस्या को दूर करना है। भारत सरकार ने ग्लोबल हाउसिंग टेक्नोलॉजी चैलेन्ज की भी स्थापना की है जो आवास समस्याओं के लिए बड़े स्तरपर अभिनव समाधान प्रदान करती है। घर के अंदर सुविधाजनक तापमान या ऊष्मा अनुकूलता (थर्मल कम्फर्ट) बनाए रखना भारत जैसे देश में सामूहिक आवास संबंधी प्रमुख समस्याओं में से एक है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) एवं कम्युनिटी डिजाइन एजेंसी, मुंबई के शोधकर्ताओं ने भित्ति निर्माण की भिन्न-भिन्न सामग्रियों का उपयोग कर, ऊष्मा अनुकूलता के साथ इनके संबंध के अध्ययन हेतु एक पद्धति विकसित की है, विशेषकर प्राकृतिक वायुसंचालित भवनों (नैचुरली वेन्टीलेटेड बिल्डिंग) के लिए। उन्होंने भित्ति सामग्री, भवन में वायु प्रवाह में भिन्नता एवं ऊष्मा अनुकूलता के मध्य संबंधों को खोजने हेतु कम्प्यूटेशनल फ्लूइड डायनामिक्स (सीएफडी) नामक एक संख्यात्मक एवं अनुरूपण (सिमुलेशन) तकनीक का उपयोग किया। शोधकर्ताओं ने पकी हुई मिट्टी की ईंटों तथा एरेटेड ऑटोक्लेव्ड कंक्रीट ब्लॉक (एएसी ब्लॉक) जैसे स्थानीय एवं पर्यावरण-कुशल विकल्पों को चुना जो पर्यावरणीय उत्सर्जन के साथ-साथ परिवहन के व्यय को कम करते हैं। यह अध्ययन एनर्जी एंड बिल्डिंग्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
भवनों की ऊष्मा अनुकूलता व्यक्तियों के स्वास्थ्य, कल्याण एवं उत्पादकता को प्रभावित करती है। भारत की उष्णकटिबंधीय जलवायु अत्यधिक गर्मी एवं आर्द्रता उत्पन्न करती है, अत: घरों में उचित वायु प्रवाह न होने पर जीवन-यापन कठिन हो जाता है। भीषण ताप-तरंगें एवं ‘अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट’ (नगरीय क्षेत्रों में आसपास के तापमान से अधिक तापमान होना) जैसे वैश्विक जलवायु परिवर्तनों के प्रभाव इन स्थितियों को और प्रतिकूल बना देते हैं।
अध्ययन के नेतृत्वकर्ता आईआईटी मुंबई के प्रा. अल्बर्ट थॉमस का कहना है, “भवन की गुणवत्ता एवं अनुकूलता को निर्धारित करने में निर्माण सामग्री की प्रमुख भूमिका है, तथा यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि बड़ी आवासीय परियोजनाओं में उचित मूल्य पर सुविधाजनक जीवन प्रदान करने वाली यथोचित सामग्री का उपयोग किया जा रहा है या नहीं।”
छत, भित्तियाँ, भू-स्तर, खिड़कियाँ, दरवाज़े एवं नींव भवन का आवरण होते हैं, जो घर के आंतरिक एवं बाह्य वातावरण के मध्य अवरोध के रूप में कार्य करते हैं। ये आवरण ऊष्मा हस्तांतरण को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं। भित्ति निर्माण की सामग्री सामान्यत: इन भवन आवरणों का 40% से अधिक भाग होती है, जो ऊष्मा के अवशोषण, संग्रहण एवं उत्सर्जन (अब्सॉर्बिंग, स्टोरिंग एंड एमिटिंग) के माध्यम से आंतरिक गृह तापमान निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
“चूँकि भारत में अल्प-आय आवासों में वायु संचालन मुख्यत: प्राकृतिक होता हैं, जहाँ पश्चिमी देशों के विपरीत कृत्रिम वातानुकूलन एवं संवातन तंत्र (आर्टिफिशियल एयर कंडीशनिंग एंड वेंटिलेशन) बहुत कम पाया जाता है, अतः यह अध्ययन विशेष रूप से प्रासंगिक हो जाता है। यहाँ हमने एक प्रत्यक्ष उदाहरण पर आधारित विषयाध्ययन (रियल लाइफ केस स्टडी) करने का प्रयास किया है तथा उसी पर आधारित मॉडल निर्मित किया है ताकि घर के अंदर के तापमान पर भित्ति जिस सामग्री से बनी है उसके प्रभाव को समझा जा सके,” अध्ययन की लेखिका एवं कम्युनिटी डिज़ाइन एजेंसी में पदार्थ एवं प्रौद्योगिकी प्रमुख, डॉ. वंदना पद्मनाभन ने बताया।
यह अध्ययन भिन्न-भिन्न भित्ति सामग्रियों पर विचार करते हुए आंतरिक तापमान के अनुरूपण (सिमुलेशन) का प्रस्ताव रखता है एवं सीएफडी प्रतिरूपण तकनीकों का उपयोग करके प्राकृतिक पद्धति से वायुसंचालित घरों में वायु प्रवाह का विश्लेषण करता है। कंक्रीट की ईंटें आर्थिक रूप से सर्वाधिक व्यवहार्य हो सकती हैं, किन्तु वे सर्वोत्तम ऊष्मीय अवरोध प्रदान नहीं करती एवं पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं। अतः भित्ति सामग्री में एएसी ब्लॉक, संपीड़न-स्थिर (कंप्रेस्ड स्टेबिलाइज्ड) मिट्टी के ब्लॉक, पकी हुई मिट्टी की ईंटें एवं संपीड़ित राख (कंप्रेस्ड फ्लाय ऐश) ब्लॉक सम्मिलित किये गए। प्राकृतिक वायु संचालित भवनों की सामान्य स्थितियाँ भिन्न वायु प्रवाह के रूप में सम्मिलित थी, जैसे “खिड़कियाँ खुली तथा दरवाजे बंद” एवं “खिड़कियाँ तथा दरवाजे बंद” । सीएफडी प्रतिरूपण तकनीक से घरों के आंतरिक तापमान वितरण एवं वायु प्रवाह का मापन किया गया।
अध्ययन में पाया गया कि स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों में संपीड़न-स्थिर मिट्टी के ब्लॉक या संपीड़ित राख के ब्लॉक की तुलना में एएसी ब्लॉक का ऊष्मा-रोधी प्रदर्शन (हीट इंसुलेटिंग परफोर्मेंस) श्रेष्ट था। एएसी ब्लॉक की ऊष्मा चालकता एवं विशिष्ट ऊष्मा धारिता कम होने के कारण, ऊष्मा का स्थानांतरण कम हो गया एवं वे घर के अंदर की शीतलता का अनुरक्षण करने में सफल रहे। भित्ति निर्माण सामग्री का चयन स्थानीय उपलब्धता, निर्माण की पद्धति एवं भवन रचना की आवश्यकताओं पर निर्भर होता है।
“एएसी ब्लॉक की संपीडन क्षमता कुछ अन्य स्थानीय सामग्रियों से कम होती है। परन्तु अतिरिक्त आधार देने से अथवा अन्य सामग्रियों को मिलाकर एएसी ब्लॉक का सुदृढीकरण (रिइनफोर्स्मेंट) किया जा सकता है। इससे रचना अखंड बनी रह सकती है, साथ ही ऊष्मा-रोधी गुण का लाभ भी मिल सकता है,” अध्ययन की मुख्य लेखिका एवं आईआईटी मुंबई की पीएचडी छात्रा तृप्ति सिंह राजपूत ने स्पष्ट किया।
एएसी ब्लॉक का उत्पादन एवं उपलब्धता अगर बड़े स्तर पर संभव हो सके तो इन ब्लॉक के उपयोग को प्रोत्साहन मिल सकता है।
प्रा. थॉमस के अनुसार “आगामी दशकों में भारत में निर्मित होने वाले भवनों की संख्या को देखते हुए, सरकार द्वारा संचालित अल्प-आय एवं सामूहिक आवास परियोजनाओं से संबंधित नीतियों में परिवर्तन लाना हितकर हो सकता है। यदि एएसी ब्लॉक जैसी सामग्रियों को व्यापक रूप से अपनाया जाता है, तो उत्पादन भी बड़े स्तर पर होगा, अत: कुल लागत में कमी आएगी”।
अध्ययन में वैश्विक तथा भारतीय भवन मानकों एवं दिशा-निर्देशों में अंतर को भी स्पष्ट किया गया है। संपीड़न-स्थिर मिट्टी के ब्लॉक एवं संपीड़ित राख के ब्लॉक ‘इकोनिवास संहिता’ एवं ‘ASHRAE 55’ जैसे वैश्विक मानकों के ऊष्मीय मापदंडों पर खरे नहीं उतरते। यद्यपि ‘इंडियन मॉडल फॉर एडेप्टिव कम्फर्ट - नेचुरली वेंटिलेटेड (IMAC-NV) एवं रेजिडेंशियल (IMAC-R)’ जैसे भारतीय मॉडल मानकों के अनुसार, विभिन्न संचालन स्थितियों में परीक्षण की गयी समस्त भित्ति निर्माण सामग्रियों के लिए घरों के आंतरिक तापमान सुविधाजनक सीमा में पाए गए।
इस अध्ययन में ऊष्मीय अनुकूलन का आकलन एक ऐसे समाधान पर आधारित है जो तापमान एवं वायु प्रवाह जैसे विभिन्न घटकों को स्थिर मानता है। इन घटकों की भिन्न-भिन्न स्थितियों एवं ऊष्मा अनुकूलता के अधिक गतिशील एवं वैयक्तिक तथा पर्यावरणीय घटकों की बारीकियों को सम्मिलित कर इस समाधान को उन्नत किया जा सकता है।
शोध के भविष्य के सम्बन्ध में प्रा. थॉमस कहना है, “निष्कर्षों को विभिन्न प्रकार के भवनों एवं जलवायु स्थितियों के लिए व्यापक बनाने हेतु अधिक शोध किया जा सकता है, जो विभिन्न प्रकार के भवनों एवं स्थितियों में सुगम निर्णय लेने तथा नीति निर्माण में सहायक होगा।”