शोधकर्ताओं ने द्वि-आयामी पदार्थों पर आधारित ट्रांजिस्टर निर्मित किये हैं एवं ऑटोनॉमस रोबोट हेतु अत्यंत अल्प-ऊर्जा के कृत्रिम तंत्रिका कोशिका परिपथ निर्मित करने में इनका उपयोग किया है।

शॉट सही लगना चाहिए , मगर कैसे?

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मुंबई
5 जुलाई 2018
Photo : Ashutosh Raina

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मुंबई के शोधकर्ताओं ने धारणीय टेक्नोलॉजी का उपयोग करके बैडमिंटन प्रशिक्षण प्रणाली विकसित की है।

विश्व के चोटी के खिलाड़ी के. श्रीकांत को बैडमिंटन खेलते देखना एक विस्मयपूर्ण अनुभव है! अगर आप भी श्रीकांत की तरह रैली करने की इच्छा रखते है पर आपको बुनियादी शॉट अभ्यास करने में भी कठिनाई आती है तो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई में शिक्षा टेक्नोलॉजी के अंतर्विषयक कार्यक्रम के अंतर्गत किया गया एक अध्ययन आपके लिए हर्ष का विषय है। शोधकर्ताओं ने एक ऐसी प्रशिक्षण प्रणाली विकसित की है जिस से आप फिटबिट की तरह के धारणीय साधन लगाकर अपनी बाँहों की गतिविधि को रिकॉर्ड कर के समुचित फीडबैक पा  सकते हैं।

तेज़ी से खेले जाने वाले खेल बैडमिंटन में, वही खिलाड़ी सही समय पर सही शॉट खेल पायेगा जिसे खेल का असाधारण ज्ञान हो। एक शॉट को परिपूर्ण तरीके से खेलने के लिए ज़रूरी है कि खिलाड़ी सही मुद्रा सीखे और साथ में ये भी जाने, कि कब और कितनी ज़ोर से बाँह को घुमाया जाये।शायद अच्छे खिलाडियों को खेलते हुए ध्यान से देखकर और फिर उनकी नक़ल करके ऐसी कुशलता प्राप्त की जा सकती हैं। मगर ये इतना आसान नहीं है।कितना ज़ोर लगाना है और बाँह को कितना घुमाना है ये एक अमूर्त मनोभाव (abstract concept) है  जिसको समझना  और समझा पाना कठिन है।

लेकिन अगर, शॉट जिस तरह से मारा गया है और जैसा एक अच्छे खिलाड़ी का शॉट होना चाहिए था, इसका सही अंतर पता लग सके तो मदद मिल सकती है। यहाँ CoMBaT नामक प्रशिक्षण प्रणाली, जो कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मुंबई में विकसित की गयी है, उपयुक्त सिद्ध हो सकती है। अपने कोच के साथ इस प्रणाली का उपयोग करके आप अपने गतिक्रम और समय के अनुकूल, शॉट को बेहतर बनाना सीख सकते हैं।

CoMBaT में, थाल्मिक लैब्स द्वारा विकसित, कलाई पर बँधी एक पट्टी, जिसे म्यो पट्टी कह सकते हैं, का उपयोग किया जाता है। इसमें संवेदक लगे होते हैं जो खिलाड़ी की बाँहों की सीधी और घुमावदार गति और माँसपेशियों की हरकत को रिकॉर्ड करता है। ये साधन अभिलिखित आँकणों को ब्लूटूथ की सहायता से प्रशिक्षण सिस्टम को प्रेषित कर देता है जिससे बाँहों का घुमाव और शॉट में लगने वाली शक्ति की गणना की जाती है। प्रशिक्षण सिस्टम रियल टाइम में इन आँकणों की रूपरेखा को बाहरी डिस्प्ले पर दिखाता है। हर एक प्लाट में एक कुशल खिलाड़ी द्वारा खेले गए शॉट का रिफरेन्स पैटर्न भी दिखाया होता है जिससे हर खिलाड़ी अपने खेले गए शॉट की तुलना कर सकता है।

मगर बाहरी डिस्प्ले की ओर देखते हुए खेलना खिलाड़ी के लिए इतना सुविधाजनक नहीं है। इसलिए म्यो पट्टी में कम्पन से चलित मोटर लगे होते हैं जो कि शॉट की गुणवत्ता के आधार पर विशिष्ट पैटर्न उत्पन्न करते हैं जिससे खिलाड़ी को रियल टाइम फीडबैक मिल पाता  है। उदाहरण के लिए, खिलाड़ी के दो प्रकार के स्कोर, एक तो बाँह की फेंक और दूसरा उसका प्रयास से मिले आकड़ों के आधार पर अगर एक सीमारेखा से कम होंगे तो शॉट ‘उत्तम’ माना जायेगा। म्यो पट्टी कम्पन का एक छोटा पल्स भेजेगी जो बाहरी डिस्प्ले पर ‘हरे’ रंग से चित्रित होगा। यदि इनमे से एक स्कोर सीमा रेखा से ऊपर होगा तो शॉट ‘औसत’ माना जायेगा और खिलाड़ी को तीन छोटे कम्पनों का अनुभव होगा और विज़ुअल मार्कर ‘लाल’ रंग दिखायेगा। अगर दोनों स्कोर सीमारेखा से ऊपर हों तो शॉट ‘अनुपयुक्त’ माना जायेगा। म्यो पट्टी एक दीर्घ कम्पन भेजेगी और दोनों विज़ुअल मार्कर ‘लाल’ दिखायेंगे।

इस प्रणाली की रूपरेखा तैयार करते समय अनुसंधानकर्ताओं ने अपने अध्ययन में तीन नौसिखिये और एक मँजे हुए खिलाड़ी का उपयोग किया जिसमे प्रत्येक खिलाड़ी को पचास पचास शॉट खेलने को दिए गए। अध्ययनकर्ता कहते हैं, “हमने पाया कि म्यो पट्टी से मिले शॉट के फीडबैक से खिलाड़ी के अगले शॉट की तकनीक में सुधार था।” प्रणाली को आगे समझाते हुए वे कहते हैं, “शॉट सही था या नहीं, विज़ुअल प्लॉट से तुरंत फीडबैक मिल जाता है।”

अध्ययन से नौसिखियों को प्रशिक्षण के कुछ छुपे हुए पहलू भी नज़र आते हैं। विज़ुअल प्लाट से पता चला कि सही शॉट लगाने के लिए बाँह घुमाने से पहले माँसपेशियों पर ज़ोर लगाना चाहिए। ये बात मँजे हुए खिलाड़ी भली भाँति समझते हैं मगर स्क्रीन पर देख पाने से सीखने वालों को तसल्ली हो जाती हैं कि उनकी तकनीक सही है।

अनुसंधानकर्ता इस प्रशिक्षण प्रणाली को, प्लाट और क्रिया के सम्बन्ध का श्रेष्ठतर रूप से समावेश करके विस्तृत करना चाहते हैं। वे कुछ और सुधार भी लाना चाहते हैं। उदाहरणार्थ, वे कहते हैं,“ये प्रणाली, सामान्यतः की गयी गलतियों को ध्यान में रखकर, सुधार अमल में लाएगी। विज़ुवलाइज़ेशन के लिए वर्चुअल या स्टिक फिगर एनीमेशन को काम में लाने का भी विचार है।”

यह अनुसन्धान, भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान बम्बई के नेक्स्ट एजुकेशन रिसर्च लैब, जहाँ लर्निंग एबिलिटीज के क्षेत्र में उभरती हुई तकनीकों पर शोध किया जाता है, के अंतर्गत किया गया। सीखने और सिखाने के लिए धारणीय साधनों के उपयोग की विधा में यह अध्ययन एक योगदान है।

“ऐसी प्रणाली किसी भी खेल के लिए उपयोग में लाई जा सकती है जिसमे बाँहों की हरकत और माँसपेशियों के बल का प्रयोग हो जैसे क्रिकेट और गोल्फ, या दूसरे कार्यक्षेत्र जैसे कुम्हार या बढ़ई का काम। फुटबॉल या एथलेटिक्स जैसे खेल, जिनमे पैरों की हरकत और माँसपेशियों का उपयोग होता हो, के लिए भी संशोधित की जा सकती है।”  कहते हुए अनुसंधानकर्ताओं ने इस प्रणाली के दूसरे उपयोगों के बारे में बताते हुए अपनी बात पूरी की।