ग्राफीन कार्बन परमाणुओं की एकल परत से निर्मित एक द्विआयामी (2डी) आस्तर (शीट) है जो विशिष्ट वैद्युत, यांत्रिक एवं रासायनिक अभिलक्षणों से युक्त एक अद्भुत सामग्री है। इसके विशिष्ट गुण, विभिन्न उद्योगों में विस्तारित विविध प्रकार के अनुप्रयोगों के लिए इसे आदर्श बनाते हैं। ग्राफीन की खोज के उपरांत कई अन्य 2-डी सामग्रियों का विकास हुआ, जिन्हें सामूहिक रूप से X-enes या झीन्स (Xenes) कहा जाता है। यहाँ X अक्षर, आवर्त सारणी के चतुर्थ समूह से एक तत्व हो सकता है, उदाहरण स्वरूप सिलिकॉन, जर्मेनियम एवं टिन। इनके 2-डी समकक्ष क्रमश: सिलिसिन, जर्मेनिन एवं स्टेनिन (टिन के लैटिन नाम स्टैनम से) कहलाते हैं। परमाण्विक स्तर पर झीन्स, ग्राफीन के बहुत से अभिलक्षणों को साझा करने के साथ-साथ अन्य गुणों को भी जोड़ते हैं, जो इन्हें आधुनिक डिजिटल अवसंरचना हेतु उपयोगी बनाता है।
उल्लेखनीय है कि ग्राफीन एक ही तल में कार्बन परमाणुओं का एक सपाट आस्तर (प्लेन झीन्स) होता है, तो कई अन्य 2-डी सामग्रियों के परमाणु स्वयं को वक्रीय अथवा चेनसॉ (चित्रानुसार) प्रारूप में व्यवस्थित करते हैं, जिनको ‘बकल्ड झीन्स’ कहते हैं, जिसका अर्थ है ‘आकुंचित या मुड़े हुए झीन्स’।
“बकलिंग का परिमाण पदार्थ के इलेक्ट्रॉनिक अभिलक्षणों को संसूचित कर सकता है या रासायनिक क्रियाशीलता को प्रभावित कर सकता है। अतएव बकलिंग कई संभावित कार्य क्षमताओं को प्रोत्साहित करती है जिन्हें सरलता से अभियंत्रित किया जा सकता है,” भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी मुंबई) में विद्युत अभियांत्रिकी विभाग में डॉक्टरेट छात्र श्री स्वास्तिक साहू स्पष्ट करते हैं।
पदार्थ विज्ञान के क्षेत्र में एक नवागंतुक के रूप में बकल्ड झीन्स के गुणों का परीक्षण अभी भी चल रहा है। श्री साहू एवं आईआईटी मुंबई तथा भारत कोरिया विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र (आईकेएसटी), बेंगलुरु के शोधकर्ताओं के दल ने विद्युत अभियांत्रिकी विभाग, आईआईटी मुंबई के प्राध्यापक भास्करन मुरलीधरन के नेतृत्व में सर्वप्रथम बकल्ड झीन्स के गुणों के पूर्वानुमान हेतु सैद्धांतिक विश्लेषण का उपयोग प्रारम्भ किया। उन्होंने इन सामग्रियों के विद्युतीय गुणों के निर्धारण हेतु परमाण्विक स्तर पर सामग्री का परीक्षण करने के लिए प्रसिद्ध किन्तु पूरक क्वांटम सिद्धांतों – घनत्व कार्यात्मक सिद्धांत (डेंसिटी फंक्शनल थ्योरी) एवं क्वांटम ट्रांसपोर्ट सिद्धांतों का उपयोग किया, विशेषकर जब उन पर विकृति (स्ट्रेन) आरोपित की गई थी। डीएफटी एक क्वांटम मैकेनिकल प्रतिरूप (मॉडल) है जिसकी सहायता से हम बहु-इलेक्ट्रॉन प्रणालियों के गुणों का अध्ययन कर सकते हैं, जैसे कक्षा में अनेकों इलेक्ट्रॉनों से बद्ध परमाणु। जबकि क्वांटम ट्रांसपोर्ट सिद्धांत बताता है कि विभव (वोल्टेज) आरोपित किए जाने पर परमाण्विक कण, पदार्थ की संरचना में किस प्रकार गतिमान होते हैं, अर्थात यह पदार्थ के वैद्युतीय गुणों का परीक्षण करता है।
प्राध्यापक मुरलीधरन के अनुसार, “पूर्ण रूप से नए अणुओं या नवीन सामग्रियों के लिए भी डीएफटी में पूर्वानुमान की अपार क्षमता है। डीएफटी गणना का उपयोग यह समझने में सहायक होता है कि सामग्री एवं उससे निर्मित युक्ति (डिवाइस) विभिन्न परिस्थितियों में किस प्रकार व्यवहार एवं संचालन करते हैं।”
डीएफटी गणना आईकेएसटी बेंगलुरु के सहयोग से अनुसंधान एवं विकास प्रमुख डॉ. सतदीप भट्टाचार्जी के नेतृत्व में की गई थी। शोधकर्ताओं ने विभिन्न विकृति (स्ट्रेन) स्थितियों के अंतर्गत बकल्ड झीन्स के व्यवहार को जानने हेतु डीएफटी का उपयोग किया। तदुपरांत विभिन्न परिस्थितियों जैसे कि आरोपित विकृति की वृद्धि करने में, सामग्री के इलेक्ट्रॉनिक गुणों में होने वाले परिवर्तन की जानकारी हेतु क्वांटम ट्रांसपोर्ट सिद्धांत का प्रयोग किया गया।
“क्वांटम ट्रांसपोर्ट सिद्धांत लैंडाउअर सिद्धांत पर आधारित है, जो नैनोमाप के स्तर पर इलेक्ट्रॉन ट्रांसपोर्ट का विश्लेषण करने हेतु एक सरलतम भौतिक दृष्टिकोण है। लैंडाउअर सिद्धांत विद्युत् धारा-विभव अभिलाक्षणिक गणनाओं (करंट-वोल्टेज कैरेक्टरिस्टक) के लिए एक मूल्यवान युक्ति है," वे आगे कहते हैं।
इन क्वांटम सिद्धांतों का उपयोग करते हुए शोधदल ने अध्ययन किया कि बकल्ड झीन्स पर आरोपित विकृति ने सामग्री के गुणों, विशिष्टत: दिशात्मक (डायरेक्शनल) पीजो-रेसिस्टेंस नामक गुण को कैसे प्रभावित किया। पीजो-रेसिस्टेंस पदार्थों का वह गुण है जिसमें पदार्थ पर आरोपित विकृति इसके विद्युत प्रतिरोध को परिवर्तित कर देती है। अध्ययन का निष्कर्ष है कि 2-डी झीन पदार्थ आरोपित विकृति के अंतर्गत भी दृढ स्थिरता का प्रदर्शन करते हैं, अतः ये पदार्थ नमने (बेंट), उतानित होने (स्ट्रेच्ड) या वक्र होने (ट्विस्ट) पर अपने विद्युत एवं यांत्रिक प्रदर्शन को दृढ़ता से बनाए रखते हैं। धारण करने योग्य उपकरण एवं स्मार्टफोन जैसे नम्य (फ्लेक्सिबल) इलेक्ट्रॉनिक्स के विकास के लिए ये समस्त गुण महत्वपूर्ण हैं।
शोधदल ने सिलिसिन अर्थात सिलिकॉन परमाणुओं की एकल परत पर ध्यान केंद्रित किया एवं इसकी तुलना झीन समूह के अन्य पदार्थों जैसे जर्मेनिन, स्टेनिन एवं फॉस्फोरिन से की।
श्री साहू का कहना है कि "प्रमाणित सिलिकॉन उद्योग के साथ अनुरूपता के चलते सिलिसिन पूर्व से ही विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए एक प्रमुख पदार्थ है।"
अपने अध्ययन के द्वारा आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं ने 2-डी झीन्स के लिए अभिगम कोण (ट्रांसपोर्ट एंगल) का अनुमान लगाया है। यह महत्वपूर्ण कोण है जिस पर 2-डी झीन्स के विद्युतीय गुण स्थिर रहते हैं। स्टैनिन विशेष रूप से उल्लेखनीय है, क्योंकि 10% तक विकृति आरोपित होने पर भी अपनी स्थिरता को बनाए रखता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि परिवर्तित होते विकृति स्तर के अनुरूप जो परिवर्तन दिखाई देते है वह एक साइनसॉइडल स्वरूप का पालन करते हैं। यह एक ऐसी विशेषता है जो अभियंताओं को फोल्डिंग स्मार्टफोन एवं स्मार्ट स्क्रीन जैसे स्मार्ट उपकरण निर्मित करने में सहायक हो सकती है, जो वक्र होने एवं नमने पर अनुमानित रूप से प्रतिक्रिया देते हैं।
आगे की खोजों में वैज्ञानिक बकल्ड झीन्स की क्षमताओं के संबंध में और अधिक जानकारी प्राप्त करने की योजना पर कार्यरत हैं। विशेष रूप से स्पिनट्रॉनिक्स (अर्धचालकों अर्थात सेमीकंडक्टर पर इलेक्ट्रॉनों के आंतरिक स्पिन के प्रभावों का एक अध्ययन) संबंधी अंत:क्रियाओं एवं बकल्ड झीन्स तथा धातु अध:स्तर (सबस्ट्रेट्स) के मध्य स्थित अंतराफलक (इंटरफेस) पर होने वाले विकृति के प्रभावों पर वे ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि बकल्ड झीन्स की बहु-उपयोगिता एवं स्थिरता विभिन्न उद्योगों में महत्वपूर्ण प्रगति लाएगी। यह अध्ययन उच्च-प्रदर्शन क्षमता से युक्त नम्य इलेक्ट्रॉनिक्स के एक नवीन संसार में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करता है। बकल्ड झीन्स रोल-अप कंप्यूटर, शरीर पर धारणीय उपकरण एवं उन्नत क्वांटम उपकरणों जैसे अनुप्रयोगों के लिए नवीन संभावनाओं को जन्म देते हैं, जो इलेक्ट्रॉनिक्स के संसार में अद्वितीय नम्यता (फ्लेक्सिबिलिटी) एवं दक्षता युक्त भविष्य की संभावना व्यक्त करते हैं ।