एक समय था जब रात के आकाश में तारे अनंत के लिए एक उपमा थे - रात के काले कंबल में इतने सारे छितराये हुए देखे जा सकते हैं कि उन्हें गिनने में पूरा जीवन व्यतीत हो जाये। तेजी से आगे बढ़ कर अगर आज को देखें तो अब रात का आकाश चँद्रमा और सितारों के स्थान पर शहरी रोशनी से जगमगाता है। कृत्रिम प्रकाश के अंधाधुंध उपयोग ने - इमारतों में प्रकाश के लिये बल्ब के प्रयोग से ले कर सड़कों पर सोडियम लैंप या नीओन से चकाचौंध होर्डिंग तक - रात में तारे देखने के आनंद को खत्म कर दिया है। अनुमानित है कि दुनिया की करीब 83 प्रतिशत आबादी प्रकाश प्रदूषण से दूषित इलाकों में रहती है। जिसका अर्थ है कि हर पाँच में से केवल एक व्यक्ति को ही हर रात आकाशगंगा देखने का आनंद मिलता होगा। इसीलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि जब 1994 में लॉस एंजिल्स में लोगों ने पूर्ण तिमिरण (ब्लैकआउट ) का अनुभव किया, तब नीहारिका देखकर वे घबराकर सहायता मांगने लगे। उन्होंने जो देखा था, वह वास्तव में हमारी आकाशगंगा ही थी।
प्रकाश प्रदूषण प्रति वर्ष दोगुना हो रहा है और इससे न केवल हमारे आकाश देखने के व्यवहार को खतरा है,परन्तु इससे हमारी नींद चक्र, दैनिक लय (सर्कैडियन रिदम) बाधित हो रही है और अंततः हमारे स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है। कई अध्ययनों से पता चलता है कि कृत्रिम प्रकाश का विनाशकारी प्रभाव वन्यजीवों पर भी पड़ता है - जिसमें समुद्री कछुए, जुगनु, उभयचरऔर पक्षी शामिल हैं। अतिरिक्त प्रकाश खगोलीय अध्ययन में भी बाधा उत्पन्न करता है और इसलिए ब्रह्मांड का निरीक्षण करने के लिये वैज्ञानिक निरंतर ही पहाड़ की चोटी की खोज में रहते हैं। अध्ययन से पता चलता है कि भारत में नई दिल्ली, तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में प्रकाश प्रदूषण में चिंताजनक रूप से वृद्धि हो रही है, और पश्चिम बंगाल, गुजरात और तमिलनाडु के शहरों में भी इसकी पकड़ तेज़ हो रही है ।
इंटरनेशनल डार्क-स्काई एसोसिएशन, एक एरिजोना-आधारित संगठन, वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए रात के आसमान की रक्षा करने के लिए काम करता है। यह प्रकाश प्रदूषण और इसके हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 6 से 12 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय अंधकारमय आकाश (डार्क स्काई) सप्ताह के रूप में मनाते हैं। विश्व के नागरिकों के रूप में, आप केवल जरूरत पड़ने पर कृत्रिम प्रकाश का उपयोग करके हमारे ग्रह की रक्षा करने में सहायता कर सकते हैं। यदि आप इस समाजिक कृत्य के प्रति उत्साहित हैं, तो आप ग्लोब एट नाईट जैसे नागरिक विज्ञान (सिटिज़न साइंस) पहल में शामिल हो सकते हैं और अपने स्मार्टफोन का उपयोग करते हुए शहर के आकाश -प्रदीप्ति का माप लेकर दर्ज़ कर सकते हैं। ऐसे प्रयासों से नीति निर्माताओं को प्रकाश प्रदूषण की व्यापकता समझाई जा सकती है और इस विषय पर कार्य किया जा सकता है। आखिरकार, अंधकार भी प्रकाश जितना ही आवश्यक है!