‘तारा’ ऐप ने देशभर के केंद्रीय विद्यालयों में 7 लाख छात्रों के लिए वाचन मूल्यांकन प्रारंभ किया।

2020 के दौरान रिसर्च मैटर्स पर प्रकाशित लोकप्रिय अनुसंधानिक हिंदी कहानियाँ

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बेंगलुरु
31 दिसम्बर 2020
2020 के दौरान रिसर्च मैटर्स पर प्रकाशित लोकप्रिय अनुसंधानिक हिंदी कहानियाँ

"शहरी" या "ग्रामीण" - एक नाम से क्या समझा जा सकता है?

आईडीएफसी संस्थान के शोधकर्ताओं ने भारत में "शहरी" होने की वर्तमान परिभाषा पर ध्यान दिया है। इस अध्ययन ने सरकार की राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एनआरइजीइस) और भारत में ‘शहरी’ और ’ग्रामीण’ होने की परिभाषा के आधार पर इसके कार्यान्वयन का आकलन किया। यह शोधकार्य एशियन इकोनॉमिक्स नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

आम आदमी को सांख्यिकी में निहित अनिश्चितता के बारे में जानकारी देने की आवश्यकता

प्राध्यापक श्रवण वशिष्ठ से, जो पॉट्सडैम विश्वविद्यालय, जर्मनी के भाषा विज्ञान विभाग में प्राध्यापक हैं, साइकोलिंग्विस्टिक्स के आनंद के बारे में और अन्य मुद्दों पर बातचीत की। इस साक्षात्कार में, प्राध्यापक वशिष्ठ ने सांख्यिकी के शिक्षण और छात्रों और आम जनता दोनों के लिए अनिश्चितता को समझने की आवश्यकता के बारे में विस्तार से चर्चा की हैं।

अल्ट्रा-सेंसिटिव बायोसेंसर्स का मार्ग प्रशस्त करती नवीन खोज

जैविक संवेदकों का उपयोग विभिन्न अणुओं से युक्त किसी विलयन में से अल्प सांद्रता वाले किसी विशिष्ट अणु को खोजने के लिए करते हैं। इसमें स्थित रिसेप्टर्स वांक्षित अणुओं को जोड़ लेते हैं। आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं दीपक गोपालन एवं प्रदीप आर नायर ने इनकी सेंस्टिविटी में सुधार के लिए एक सैद्धान्तिक पद्धति प्रस्तुत की है एवं विश्वास दिलाया है कि यह एक उभरती हुई और अत्यधिक संवेदनशील तकनीक होगी जिसे संभवत: नियमित मामलों जैसे कि ग्लुकोज़ जैव संवेदक में उपयोग किया जा सके

पार्किंसन रोग की शुरुआत का पता लगाने की दिशा में शोधकार्य

नेचर केमिस्ट्री नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई, राष्ट्रीय जीव विज्ञान केंद्र बेंगलुरु, अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई और ईटीएच (ETH) ज्यूरिख के वैज्ञानिकों ने पाया कि तरल जैसी अल्फा-सिन्यूक्लिन की बूंदें, प्रोटीन को रेशेनुमा समूह में बदलने के लिए प्रेरित करती हैं। यह खोज पार्किंसन रोग का शुरुआत में ही पता लगाने और इसे रोकने के लिए उपचार खोजने में मदद कर सकती है।

घातक कीटनाशक कार्बारिल का जीवाणु द्वारा निवारण

कार्बारिल एक  घातक कीटनाशक है जिसका उपयोग कई वर्षों से  खेतों  में किया जा रहा है  जिससे मिट्टी की उत्पादक क्षमता पर अत्यधिक दुष्प्रभाव पड़ा है।

इससे निबटने के लिए भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान मुंबई(आईआईटी मुंबई) के डॉ. फले और उनके दल ने जिनोमिकी और समवेत जीव विज्ञान संस्थान (CSIR-IGIB) दिल्ली के डॉक्टर शर्मा के सहयोग से स्यूडोमोनास   नामक  एक  ऐसे बैक्टीरिया की पहचान करने में महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है जो इस कीटनाशक का पर्यावरण से सफाया का सकता है। साथ ही में, उन्हें विघटन की प्रक्रिया को सटीक रूप से समझने में भी सफलता मिली है।