
प्रत्येक जीवित कोशिका के अन्दर जीवन संबंधी निर्देशों को धारण करने वाला डीएनए कोशिका के गुणसूत्रों (क्रोमोज़ोम्स) में संग्रहित होता है। किंतु प्लाज्मिड्स नामक डीएनए के सूक्ष्म एवं वृत्ताकार अंश किसी जीव के गुणसूत्रों में संग्रहित न होकर स्वतंत्र रूप से रहते हैं एवं कोशिकाओं के मध्य स्थानान्तरित होने के लिए अतिरिक्त जींस (genes) का समूह प्रदान करते हैं। प्लाज्मिड्स सामान्यतः जीवाणुओं (बैक्टीरिया) में पाए जाते हैं और उनको एंटीबायोटिक प्रतिरोध जैसे लाभ प्रदान करते हैं। यद्यपि यीस्ट की बहुत सी प्रजातियों में उपस्थित प्लाज्मिड्स से यीस्ट को कोई प्रत्यक्ष लाभ नही होता, तथापि एक चालाक डीएनए के रूप में इन प्लाज्मिड्स ने पीढ़ियों से अपने वंशानुक्रम को सतत बनाये रखने की कला में महारथ प्राप्त की हुई है। प्लाज्मिड्स यीस्ट में उपस्थित कुल डीएनए का अत्यंत सूक्ष्म (0.25-0.27%) भाग होते हैं। इनका आकार 2-माइक्रोमीटर के निकट होने के कारण इन्हें 2-माइक्रोन प्लाज्मिड्स कहते हैं।
एक नवीन आलेख में आईआईटी मुंबई के जैव विज्ञान एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग के दीपांशु कुमार एवं शांतनु कुमार घोष ने समीक्षा की है कि 2-माइक्रोन प्लाज्मिड्स अपनी जीवनरक्षा हेतु यीस्ट कोशिका के साथ कैसे कूटनीतिक अंत:क्रिया करता है। उन्होंने विशिष्ट प्लाज्मिड प्रोटीन की भूमिकाओं तथा यीस्ट कोशिकाओं एवं गुणसूत्रों के साथ इसकी अंत:क्रिया पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। उन्होंने यह भी खोजा कि कोशिका विभाजन के समय अपना स्थानान्तरण सुनिश्चित करने हेतु 2-माइक्रोन प्लाज्मिड, गुणसूत्रों के साथ स्वयं को किस प्रकार जोड़ लेता है। इन प्रक्रियाओं का ज्ञान बताता है कि विभिन्न जीवों में अतिरिक्त जीनी (जेनेटिक) तत्वों का पोषण एवं इनका वंशानुगत होना कैसे संभव होता है। यह ज्ञान चिकित्सकीय उपचारों एवं संश्लेषित (सिंथेटिक) जीव विज्ञान के क्षेत्र में सहायक है।
यीस्ट कोशिका का पुनरोत्पादन मुकुलन (बडिंग) के द्वारा होता है जिसमें मातृ कोशिका (पेरेंट सेल) से उदित एक संतति कोशिका (डाटर सेल) का विकास होता है। विभाजन के पूर्व यीस्ट कोशिका अपने गुणसूत्रों (क्रोमोजोम्स) की अनुकृति (डुप्लीकेट) निर्मित करती है जिससे मातृ एवं संतति दोनों कोशिकाओं को अनुवांशिक पदार्थों का सम्पूर्ण संच मिल जाता है। इसी रीति से 2-माइक्रोन प्लाज्मिड भी अपनी अनुकृति निर्मित कर मातृ एवं संतति कोशिकाओं के मध्य समान रूप से वितरित हो लेता है। अध्ययन समीक्षा के अनुसार प्रत्येक यीस्ट कोशिका में 2-माइक्रोन प्लाज्मिड की 40-100 प्रतियां (कॉपीज़) होती हैं। स्वतंत्र विचरण करने के स्थान पर ये बहुसंख्य प्रतियाँ दृढ़ता से बंधे हुए 3-4 समूह निर्मित कर लेती हैं।
“विभाजन के समय इन प्लाज्मिड समूहों के मातृ कोशिका में रह जाने की संभावना विशेषतः अधिक होती है। नवीन कोशिकाओं में आगे के प्रसार को सुनिश्चित करने हेतु 2-माइक्रोन प्लाज्मिड को एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता होती है जो इनको मातृ एवं संतति कोशिकाओं के मध्य एकसमान रूप से वितरित कर सके,” प्रा. घोष स्पष्ट करते हैं।
असमान वितरण से बचने हेतु 2-माइक्रोन प्लाज्मिड्स ने यात्रा-परजीविता (हिचहाइकिंग) नामक एक चतुराई भरी युक्ति स्वयं में विकसित कर ली है। ‘हिचहाइकिंग’ का अर्थ है कोई व्यय किये बिना किसी वाहन पर सवार होकर निशुल्क यात्रा कर लेना। कुछ इसी भाँति 2-माइक्रोन प्लाज्मिड स्वयं को यजमान कोशिका (होस्ट सेल) के गुणसूत्रों के साथ संलग्न कर लेता है ताकि विभाजन के समय उनका सहयात्री बनकर यह भी पृथक हो ले।
“इस प्रकार यह हिचहाइकिंग युक्ति प्लाज्मिड को मातृ कोशिका में फंसे रह जाने से रोकती है एवं संतति कोशिका में इसकी प्रतियों का पहुंचना सुनिश्चित करती है,” प्रा. घोष बताते हैं।
प्लाज्मिड की यह हिचहाइकिंग युक्ति Rep1 एवं Rep2 नामक दो प्रकार के प्रोटीनों पर निर्भर करती है, जो प्लाज्मिड पर विशिष्ट स्थान पर जुड़ जाते हैं। गुणसूत्रों के पृथक्करण में रत बहुत से यीस्ट प्रोटीन इस स्थान पर एक ‘विभाजन संकुल’ (पार्टीशनिंग कॉम्प्लेक्स) निर्मित करते हैं। इसी विभाजन संकुल की सहायता से प्लाज्मिड्स की प्रतियां अनुकृतित गुणसूत्रों (डुप्लीकेटेड क्रोमोज़ोम्स) के साथ संलग्न हो जाती हैं, ताकि कोशिका विभाजन के समय अपने एकसमान वितरण को सुनिश्चित कर सकें।
2023 में जीनोमिक्स, अंत:क्रिया विश्लेषण एवं कोशिका विज्ञान तकनीकी के उपयोग से प्रा. घोष के कार्यदल ने दर्शाया कि गुणसूत्रों से संलग्न होने के लिए प्लाज्मिड, कोशिकीय प्रोटीन निकाय (सेल्युल प्रोटीन कॉम्प्लेक्स; RSC) का उपयोग करते हैं। उन्होंने देखा कि यीस्ट में ऐसे दो एक-समान प्रकारों के प्रोटीन में से केवल एक (RSC2) ही प्रमुख भूमिका में होता है। RSC2 दोनों प्रोटीनों Rep1 एवं Rep2 तथा कोशिका की विभाजन पद्धति के साथ अंत:क्रिया करता है जो प्लाज्मिड्स को गुणसूत्रों से जुड़ने के लिए एक आधार निर्मित करता है।
प्लाज्मिड्स गुणसूत्रों के विशिष्ट भागों से संलग्न होते हैं। पूर्व की एक खोज में प्रा. घोष के शोध दल एवं अन्य वैज्ञानिकों ने खोजा कि 2-माइक्रोन प्लाज्मिड्स अधिकांशतः गुणसूत्रों के अक्रिय भागों से संलग्न होते हैं, उदाहरणस्वरूप अंतिम एवं मध्य भाग सहित वे भाग जो राइबोज़ोम्स बनाने में सहायक हैं (rDNA)। ये भाग सुसंहत (कॉम्पैक्ट) होते हैं एवं प्रोटीन उत्पादन प्रक्रिया में अल्प सहभागिता रखते हैं, अत: प्लाज्मिड्स को जुड़ने के लिए एक स्थाई आधार निर्मित करते हैं।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि कोशिका विभाजन के समय गुणसूत्रों को भलीभांति पृथक करने में सहायक कोहेसिन एवं कंडेंसिन जैसे कुछ प्रोटीन, विभाजन संकुल (पार्टीशनिंग कॉम्प्लेक्स) का अंश होते हैं अत: प्लाज्मिड्स के साथ गुणसूत्रों के संलग्न होने में सहायक होते हैं। यद्यपि ये केवल Rep प्रोटीन्स की उपस्थिति में ही विभाजन संकुल का अंश हो सकते हैं। Rep प्रोटीन्स की अनुपस्थिति में अथवा उनके परिवर्तित (आल्टरेशन) होने से इन 2-माइक्रोन प्लाज्मिड्स का वांछित विभाजन नहीं हो पाता एवं ये असमान रूप से वितरित होते हैं।
प्रा. घोष का कहना है कि "प्लाज्मिड्स एवं गुणसूत्रों के जुड़ने में कोहेसिन एवं कंडेंसिन की सटीक भूमिका अब तक स्पष्ट नहीं है, किंतु इनके एक संयोजक (सीमेंटिंग एजेंट) के रूप में कार्य करने की संभावना है जो प्लाज्मिड्स को संलग्न रखने में सहायक हैं।"
किंतु एक प्रश्न अब भी प्रासंगिक है कि जब यीस्ट को प्लाज्मिड से कोइ लाभ नहीं है तो उद्विकास प्रक्रिया में यह अब तक कैसे अस्तित्व में है? अध्ययन समीक्षा बताती है कि इस प्रश्न का उत्तर प्लाज्मिड की वंशानुक्रम कूटनीति में निहित है। प्लाज्मिड्स गुणसूत्रों का ऐसा अनुकरण (मिमिकिंग) करते हैं कि यीस्ट कोशिका के लिए इसे एक बाह्य आक्रमणकारी के रूप में पहचानना कठिन हो जाता है। यदि कोशिका कोई बाह्य डीएनए पहचान ले तो उसे तत्काल पृथक कर दिया जाता है।
“इसके विपरीत 2-माइक्रोन प्लाज्मिड्स यीस्ट गुणसूत्रों के साथ हिचहायाकिंग की चतुर युक्ति का उपयोग कर, अपना स्वयं का पृथक्करण तंत्र विकसित करने अर्थात चयापचय प्रक्रिया से गुजरने (मेटाबोलिक कॉस्ट) से बच लेता है,” प्रा. घोष स्पष्ट करते हैं।
इस प्रकार प्लाज्मिड एक सफल परजीवी डीएनए है।
समीक्षा बताती है कि प्लाज्मिड की हिचहायाकिंग प्रक्रिया कोई अनूठी युक्ति नहीं है। प्लाज्मिड के समान डीएनए कई विषाणुओं में पाए जाते हैं। उदाहरण स्वरूप मनुष्यों में पाया जाने वाला ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (HPV) स्वयं के द्वारा निर्मित प्रोटीन का उपयोग कर अपने प्लाज्मिड-सम डीएनए को मनुष्यों के गुणसूत्रों के साथ संलग्न कर लेता है। इस प्रकार अपनी उत्तरजीविता (सर्वाइवल) हेतु यह 2-माइक्रोन प्लाज्मिड्स के समान युक्ति का प्रयोग करता है। ये दोनों ही गुणसूत्रों के निष्क्रिय भागों को लक्ष्य करते हुए अपने उद्विकास की एकसमान रणनीति पर कार्य करते हैं। 2-माइक्रोन प्लाज्मिड्स के अध्ययन से शोधकर्ता अधिक अच्छे से समझ सकते हैं कि कैसे विषाणुजनित जीनीय पदार्थ (वायरल जेनेटिक मैटेरियल्स) यजमान कोशिका (होस्ट सेल) में पोषित होते रहते हैं एवं विषाणुरोधी रणनीति के विकास में यह किस प्रकार से सहायक हो सकता है।
वित्तीय सहायता :
2-माइक्रोन जीव विज्ञान पर प्रा. घोष की प्रयोगशाला में किए गए ये अध्ययन भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (साइंस एंड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट; DST), विज्ञान एवं अभियांत्रिकी अनुसंधान बोर्ड (साइंस एंड इंजीनिअरिंग रिसर्च बोर्ड; SERB), वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (कौंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च; CSIR) तथा जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी; DBT) द्वारा वित्त पोषित किए गए थे।