आईआईटी मुंबई का IMPART नामक नवीन वेब एप्लिकेशन जल सतह के तापमान पर दृष्टि रखने में शोधकर्ताओं की सहायता करता है एवं जलवायु परिवर्तन पर दृष्टि रखने में सहायक है।

आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं द्वारा फोटोनिक्स के अनुकूलन हेतु सिलिकॉन नाइट्राइड का प्रयोग

Read time: 1 min
Mumbai
9 जुलाई 2024
छवि श्रेय: जेमिनी एआई द्वारा निर्मित

इलेक्ट्रॉनिक्स में जिस प्रकार से इलेक्ट्रॉन्स को नियंत्रित किया जाता है उसी प्रकार फोटोनिक तकनीक फोटॉनों (प्रकाश कणों) को नियंत्रित करती है। यह एक उभरता हुआ क्षेत्र है जो तेज, अधिक सुरक्षित एवं ऊर्जा-दक्ष प्रौद्योगिकी की ओर ले जाने वाला है। एक नवीनतम अध्ययन के अंतर्गत भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) एवं टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) के शोधकर्ताओं ने फोटोनिक तत्वों की दक्षता बढ़ाने के लिए सिलिकॉन नाइट्राइड (SiN) का उपयोग करने की एक अभिनव विधि विकसित की है, जिसे संचार एवं सूचना प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी के भविष्य के रूप में देखा जा रहा है।

फोटोनिक तत्वों के निर्माण की प्रक्रिया सामान्यत: जटिल एवं हीन स्थिरता तथा प्रकाशकीय हानि (ऑप्टिकल लॉस) जैसी कुछ चुनौतियों से युक्त होती है, जो प्रदर्शन की दक्षता को घटाता है। मुख्य जटिलताओं में से एक का कारण है प्रकाश स्रोत (एमिटर) एवं फोटोनिक तत्व का भिन्न-भिन्न पदार्थों से निर्मित होना। यह एक चुनौती उत्पन्न करता है जिसे हीन ‘युग्मन दक्षता’ (पुअर कपलिंग एफिशिएंसी) के रूप में जाना जाता है। इसका तात्पर्य है कि स्रोत से आने वाला प्रकाश फोटोनिक तत्व में सटीकता से निर्देशित नहीं हो पाता है, जिससे निम्नकोटि प्रदर्शन एवं हानि होती है।

इस समस्या के समाधान हेतु शोधकर्ता ‘मोनोलिथिक इंटीग्रेशन’ नामक अवधारणा के अंतर्गत उत्सर्जकों एवं फोटोनिक तत्वों, दोनों के लिए एक ही पदार्थ का उपयोग करने की विधि खोज रहे हैं। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं के दल ने सिलिकॉन नाइट्राइड पर कार्य किया है, जो कक्ष के तापमान पर एक उत्तम एकल-फोटॉन उत्सर्जक (सिंगल फोटोन एमिटर) की क्षमता रखता है । सिलिकॉन नाइट्राइड का अतिरिक्त लाभ यह है कि अर्धचालकों के वर्तमान उत्पादन की सीएमओएस (CMOS) नामक व्यापक तकनीकों के साथ यह सुसंगत है।

आईआईटी मुंबई के प्राध्यापक अंशुमन कुमार श्रीवास्तव व्याख्या करते हैं, “सिलिकॉन नाइट्राइड नैनोफोटोनिक्स के क्षेत्र में एक अग्रणी पदार्थ है, जो एकीकृत फोटोनिक्स परिपथ (इंटीग्रेटेड फोटोनिक सर्किट) के निर्माण में अपने भली-भाँति स्थापित कौशल को दर्शाता है। इस कार्य कौशल के मूल में सिलिकॉन नाइट्राइड में अन्तर्निहित नैसर्गिक उत्सर्जकों (इनेट एमिटर्स) की उपस्थिति है।”

इन आंतरिक उत्सर्जनों के नियंत्रण एवं विस्तार के माध्यम से, वैज्ञानिक एकीकृत फोटोनिक्स अनुप्रयोगों के लिए अनेक समाधान उत्पन्न कर सकते हैं।

प्राध्यापक श्रीवास्तव आगे कहते हैं “यह सिलिकॉन नाइट्राइड की विद्यमान क्षमताओं का दोहन करने के साथ-साथ फोटोनिक्स एकीकरण के क्षेत्र में अग्रणी मार्ग प्रशस्त सकता है, जो प्रकाशकीय प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपूर्व प्रगति की संभावना व्यक्त करता है।”

नवीन शोध सिलिकॉन नाइट्राइड की ‘माइक्रोरिंग रेज़ोनेटर’ नामक संरचना पर आधारित है, जो एक ‘माइक्रोकैविटी’ (सूक्ष्म गुहा) के रूप में कार्य करती है जिसमें प्रकाश चारों ओर उछाल ले सकता है एवं उत्सर्जन को उत्तेजित करने हेतु यहाँ इसे प्रभावी रूप से बांधा (ट्रैप) जा सकता है। इस माइक्रोकैविटी को तथाकथित ‘व्हिस्परिंग गैलरी मोड्स’ (डब्ल्यूजीएम) के रूप में कार्य करने हेतु अभियन्त्रित किया गया है। ये विशिष्ट प्रकार के प्रकाश-पथ हैं जो माइक्रोकैविटी की परिधि के चारों ओर चलते हैं।

“सरल शब्दों में व्हिस्परिंग गैलरी मोड एक ऐसी व्यवस्था है जहां ध्वनि या प्रकाश तरंगें एक वक्राकार सतह के अंदर चारों ओर अपनी तीव्रता में अधिक हानि हुए बिना घूम सकती हैं, जैसे वृत्ताकार कक्ष या एक गोले की दीवारों के चारों ओर। यह एक प्रकार का ‘व्हिस्परिंग गैलरी’ प्रभाव उत्पन्न करता है, जिसमें फुसफुसाहट जैसी मंद ध्वनि या मंद प्रकाश संकेतों को वक्र के विपरीत दिशा में बहुत दूर से संसूचित (डिटेक्ट) किया जा सकता है,” इस शोधकार्य के सह-नेतृत्वकर्ता पीएचडी छात्र अनुज कुमार सिंह स्पष्ट करते हैं।

यह उस घटना के समान है जब कोई वक्र भित्ति के एक ओर से फुसफुसाता है, एवं वक्र के चारों ओर ध्वनि तरंगों के क्रमश: उछाल के कारण दूसरी ओर बहुत दूर स्थित कोई व्यक्ति इसे स्पष्ट रूप से सुन सकता है।

“प्रकाशिकी में प्रकाश तरंगें वक्र सतह के साथ यात्रा कर सकती हैं, भित्तियों से बार-बार उछलती हैं, जिससे अत्यधिक सीमित क्षेत्र में बंधे हुए एवं दीर्घकालिक प्रकाश पथ निर्मित होते हैं, जो प्रकाशकीय रेज़ोनेटर, सेंसर एवं लेजर जैसे विभिन्न अनुप्रयोगों में उपयोगी हो सकते हैं,” इस शोधकार्य के सह-प्रमुख लेखक श्री किशोर कुमार मंडल बताते हैं।

यद्यपि इन व्हिस्परिंग गैलरी मोड से प्रकाश को अंदर एवं बाहर ले जाना कठिन होता है, शोधदल ने माइक्रोरिंग में एक छोटा सा कटचिन्ह (नॉच) निर्मित कर इस कार्य का युक्ति प्रबंधन किया। यह कटचिन्ह एक प्रवेश बिंदु के रूप में कार्य करता है, जो गुहा (कैविटी) के अंदर एवं बाहर प्रकाश को प्रभावी रूप से स्थानांतरित कर सकता है। इस दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए वैज्ञानिकों ने सिलिकॉन नाइट्राइड माइक्रोरिंग कैविटी के व्हिस्परिंग गैलरी मोड्स में इन प्रकाश उत्सर्जकों के दक्ष युग्मन (एफिसिएंट कपलिंग ऑफ लाईट एमिटर्स) का प्रदर्शन किया। इस सफलता ने बंधे हुए प्रकाश (ट्रैप्ड लाईट) के निष्कर्षण संबंधी नवीन एवं प्रभावी साधनों को अनावृत किया, जो पूर्व में चुनौतीपूर्ण हुआ करते थे।

Schematic layout of coupled excitation and detection of cavity mode.  Image credit: Authors of the study
सिलिकॉन नायट्राईड मायक्रोरिंग गुहा में प्रकाश नियंत्रण का प्रतीकात्मक चित्र
छवि श्रेय: अध्ययन के लेखक

इस नवीन पद्धति का व्यावहारिक अर्थ यह है कि हम किसी प्रकाशीय अपव्यय या अस्थिरता के बिना कई फोटोनिक एवं क्वांटम प्रौद्योगिकियों के लिए सीधे चिप पर स्थित उत्सर्जक (ऑन-चिप एमिटर) वाले उपकरणों का निर्माण सकते हैं। इससे अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के समान ही उत्सर्जक उपकरणों को भी किसी चिप पर एकीकृत किया जा सकता है। इस अध्ययन ने सिलिकॉन नाइट्राइड की क्षमता को इस प्रकार प्रदर्शित किया है कि अत्यंत लघु मापन स्तर पर भी प्रकाश को कुशलता से नियंत्रित किया जा सकता है।

शोध निष्कर्षों को साझा करते हुए, श्री अनुज कुमार सिंह कहते हैं कि, “यह कार्य निकट भविष्य में क्वांटम कंप्यूटिंग, सुरक्षित संचार एवं क्वांटम सेंसिंग जैसे अनेकों सांसारिक अनुप्रयोगों के लिए आशाजनक है। कुछ अनुप्रयोगों के व्यावहारिक क्रियान्वयन हेतु अतिरिक्त अनुसंधान की आवश्यकता हो सकती है, जबकि कुछ अन्य अनुप्रयोगों को शीघ्र ही साकार किया जा सकता है।”

इस शोध के निष्कर्ष सिलिकॉन नाइट्राइड को फोटोनिक प्रौद्योगिकियों में एक प्रमुख घटक के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

सिलिकॉन नाइट्राइड का उपयोग करने वाली विनिर्माण प्रक्रिया की अपनी त्रुटियाँ हैं, जो इस नवीन तकनीक के प्रदर्शन को सीमाबद्ध कर सकती है। शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि पदार्थ विकास तकनीक (मैटीरियल ग्रोथ टेक्नीक) एवं गुहा प्रारूप में सुधार किया जा सकता है, जिससे प्रदर्शन में उन्नति होगी।

“हमारा शोध प्रकाश-पदार्थ अंत:क्रिया (लाईट-मैटर इंटरैक्शन) की दक्षता, नियंत्रित क्वांटम उत्सर्जन, उन्नत फोटोनिक उपकरणों, सरलीकृत एकीकरण (सिम्पलीफाइड इंटीग्रेशन) तथा क्वांटम फोटोनिक्स में क्वांटम कंप्यूटिंग की क्षमता जैसे कारकों को सक्षम करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। यह प्रगति सुरक्षित संचार, अल्ट्रा-फास्ट कंप्यूटिंग एवं अन्य परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में अभूतपूर्व अनुप्रयोगों का मार्ग प्रशस्त करते हुए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के भविष्य को आकार देगी, ” श्री किशोर कुमार मंडल स्पष्ट करते हैं।

सरल शब्दों में, एक उच्च गति से युक्त सुरक्षित एवं ऊर्जा-दक्ष डिजिटल भविष्य हमारी कल्पना से भी अधिक निकट हो सकता है!