भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1901 के बाद वर्ष 2023 भारत में अंकित किया गया दूसरा सबसे गर्म वर्ष था। पूरे विश्व में जलवायु परिवर्तन के कारण, हर वर्ष तापमान में वृद्धि हो रही है। इस तेजी से बढ़ते तापमान ने ऊष्मा रोधन और स्थानों के शीतलन के लिए नवीन और किफायती समाधानों की आवश्यकता को प्रेरित किया है, जो हमारे घरों और कार्यालयों के अंदरूनी हिस्सों को ठंडा रख सके।
हमारे कक्ष जैसे स्थानों का शीतलन (स्पेस कूलिंग) दो तरीकों से प्राप्त किया जा सकता है: सक्रिय (एक्टिव) और निष्क्रिय (पैसिव) शीतलन। सक्रिय शीतलन में कमरे से ऊष्मा को सक्रिय रूप से हटाने के लिए एयर कंडीशनर और कूलर जैसे उपकरणों का उपयोग शामिल होता है, जिससे तापमान कम हो जाता है। यह विधि अनिवार्य रूप से ऊर्जा पर बहुत अधिक निर्भर है। इससे विश्व में ऊर्जा की खपत और साथ ही कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में भी वृद्धि हो रही है। दूसरी ओर, निष्क्रिय शीतलन नवीन युक्तियों (डिजाइन) और सामग्रियों पर निर्भर करता है जो सौर ऊष्मा को किसी स्थान में प्रवेश करने से रोकता है एवं इस प्रकार सक्रिय शीतलन की आवश्यकता को कम करता है। ऊष्मा रोधिता के लिए निष्क्रिय शीतलन में फाइबरग्लास, पॉलीस्टायरीन या वायु प्रवाह को बढ़ा कर उष्णता कम करने वाली अनोखी वास्तुरचना का उपयोग होता है, परंतु इसमें बहुधा नियमित रखरखाव और इसकी लागत शामिल होती है।
निष्क्रिय शीतलन के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हुए, धातुकर्म अभियांत्रिकी और पदार्थ विज्ञान विभाग के प्राध्यापक स्मृतिरंजन परिदा के नेतृत्व में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) के एक अभियन्ता दल ने, एक नवीन लेपन सामग्री (कोटिंग मटेरियल) विकसित की है। यह लेपन सौर ऊष्मा को प्रभावी ढंग से परावर्तित करता है और अवशोषित की जाने वाली ऊष्मा की मात्रा को कम करता है। इस प्रकार यह ऊष्मा रोधन (थर्मल इन्सुलेशन) प्रदान करता है। यह लेपन पदार्थ फिलर्स अर्थात भरावन से युक्त एक जल-विकर्षक (हाइड्रोफोबिक) एपॉक्सी संमिश्रण (कंपोजिट) आलेप है, जो ऊष्मा संचालन को कम करता है और लगभग 65 माइक्रोमीटर पतले आलेप में उच्च अवरक्त परावर्तन (हाय इन्फ्रारेड रिफ्लेक्टन्स) प्रदान करता है।
प्राध्यापक परिदा कहते हैं, "हमारा काम मुख्य रूप से 'सक्रिय योजक' (फिलर्स) तैयार करना है, जिसे तापमान परिरक्षण आलेप (टेम्परेचर शील्डिंग कोटिंग) बनाने के लिए उपयुक्त रेसिन में जोड़ा जा सकता है"।
यह अनोखा आलेप संक्षारण से भी बचाता है, जिससे यह हमारे निवास स्थानों को शीतल करने के लिए एक आदर्श समाधान बन सकता है।
आलेप की सफलता के पीछे दो प्रकार के फिलर्स हैं । पहला फिलर माइक्रोन-आकार के सिलिका-संशोधित खोखले माइक्रोस्फेयर (sHMS, एसएचएमएस) से बना है। दूसरा फिलर, जिसमें सतह-संशोधित TiO2 नैनोकण शामिल हैं, अपने उच्च सौर परावर्तन गुण के कारण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, अर्थात यह सौर ऊष्मा की एक महत्वपूर्ण मात्रा को परावर्तित कर सकता है।
प्राध्यापक परिदा बताते हैं “हवा से भरी खोखली संरचना के कारण खोखले माइक्रोस्फीयर में बहुत कम थर्मल कंडक्टिविटी होती है। इस घटक की उपस्थिति आलेप के माध्यम से ऊष्मा के हस्तांतरण को रोकती है और TiO2 घटक अपने उच्च सौर परावर्तन (>85%) के लिए प्रसिद्ध है''।
खोखले माइक्रोस्फेयर और TiO2 में किया गया सतह का संशोधन (सरफेस मॉडिफिकेशन), ऊष्मा को वहन करने और सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करने की दोनों घटकों की क्षमता को बढ़ाता है। दोनों फिलर्स को एपॉक्सी जैसे रेसिन (गाढ़ा चिपचिपा तरल पदार्थ) में मिलाया जाता है, जिसे बाद में कंक्रीट या धातु जैसे विभिन्न सतहों पर पेंट की परत की तरह लेपित किया जा सकता है।
"धातुओं के लेपन के लिए, एपॉक्सी रेजिन के बजाय ऐक्रेलिक या पॉलीयुरेथेन जैसे रेसिन का उपयोग किया जा सकता है," प्रोफेसर परिदा विभिन्न बेस रेसिन के बारे में टिप्पणी करते हैं जिन्हें इन फिलर्स के साथ जोड़ा जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने परीक्षण किए जहां एक लेपित सतह पर अवरक्त (इन्फ्रारेड) लैंप के माध्यम से विकिरण (रेडिएशन) आपतित किया गया। लैम्प को इस प्रकार नियोजित किया गया कि लेपित धातु पैनल की ऊपरी सतह का तापमान 60 डिग्री सेल्सियस पर स्थिर रहे। नवीन संमिश्रण आलेप ने लेपित पैनल के दूसरी ओर का तापमान सतह के 60 डिग्री सेल्सियस की तुलना में 15 से 21 डिग्री सेल्सियस नीचे घटाया । किसी भी पूर्व आलेपन से यह अधिक उत्तम प्रदर्शन था। संमिश्रण आलेप ने स्पेक्ट्रम के निकट-अवरक्त (नीयर इन्फ्रारेड) क्षेत्र में सूर्य के प्रकाश के उच्च सौर परावर्तन को दर्शाया, जो 72% से अधिक था । इस नवीन पदार्थ की केवल 0.065 से 0.1 मिलीमीटर की परत किसी सतह पर लेपित होने पर, आमतौर पर इस से तीन से बीस गुना मोटाई के अन्य आलेपनों से बेहतरीन प्रदर्शन करती है। इस तरह नवीन आलेप न केवल अधिक कुशल बल्कि लागत-प्रभावी भी है।
संमिश्रण आलेप का एक और लाभ है कि सामग्रियों की सतह में संशोधन के कारण, यह संक्षारण के प्रति भी बेहद प्रतिरोधी साबित हुआ है। एक प्रकार के खारे पानी के साथ किये परीक्षण में, जिसमें पदार्थ सोडियम क्लोराइड विलयन (NaCl solution) के संपर्क में लाया जाता है, नवीन आलेप में 99% संक्षारण दक्षता देखी गयी। यह दर्शाता है कि यह आलेप धातु की सतहों को उनके पर्यावरण के प्रतिकूल प्रभावों से बचा सकता है एवं उनकी आयु को बढ़ाते हुये रखरखाव की लागत को कम कर सकता है।
खोखले माइक्रोस्फीयर जैसे कम लागत वाली सामग्रियों का उपयोग और एक सरल विनिर्माण प्रक्रिया के कारण बाजार में आर्थिक रूप से व्यवहार्य उत्पाद संभव है। फिलर्स के सतही संशोधन के साथ, आलेप निर्माण प्रक्रियाएं अपनाने में सरल तथा एक-चरणीय हैं एवं जटिल उपकरणों की आवश्यकताओं से रहित हैं। आलेप के अतिरिक्त लाभों के बारे में प्राध्यापक परिदा टिप्पणी करते हैं,
“उपयोग किए जाने वाले खोखले माइक्रोस्फीयर मितव्ययी होते हैं और कोयला संयंत्रों के औद्योगिक अपशिष्ट से प्राप्त किए जा सकते हैं, जो कोयला संयंत्रों के लिए एक प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन समाधान भी प्रदान करता है।”
प्राध्यापक परिदा और उनका दल अब अपनी आलेप सामग्री को अग्निरोधी गुण जैसे विशिष्ट गुणों से युक्त करने की योजनापर विचार कर रहा है । पर्यावरणपूरक बनाने हेतु वे वीओसी (वोलाटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड) से मुक्त जलजनित आलेपन प्रणाली (वॉटरबोर्न कोटिंग सिस्टम) के उत्पादन की भी जांच कर रहे हैं।
जैसे-जैसे हम अपने बदलते पर्यावरण और ऊर्जा की मांगों के अनुरूप ढलते हैं, हानिकारक उत्सर्जन और अपशिष्ट को घटाने के साथ ही हमारे प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए इस तरह के अभिनव समाधान अत्यावश्यक हैं ।