जब किसी व्यक्ति के आहार में विटामिन और पोषक तत्वों की आवश्यक मात्रा नहीं होती है, तब कुपोषण होता है। यह भारत में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है, जो सामान्यत: शैशवावस्था में प्रारम्भ होता है। अनुपचारित छोड़े जाने पर, कुपोषण, शारीरिक अथवा मानसिक विकलांगता, वज़न में गंभीर कमी एवं मृत्यु तक का कारण बन सकता है। 2019 के एक यूनीसेफ विवरण ने दर्शाया कि भारत में पाँच वर्ष से कम उम्र के 69 % बच्चों की मृत्यु कुपोषण के कारण हुयी।
भारत सरकार द्वारा कुपोषण के निदान हेतु चलाये जा रहे कार्यक्रम प्राथमिक रूप से देश के ग्रामीण अंचल के बच्चों के लिए उपयुक्त हैं। परन्तु ये कार्यक्रम, नगरीय क्षेत्रों में स्थित उपेक्षित समुदायों जैसे मलिन बस्तियों में निवास करने वाले विशाल जनसंख्या में बच्चों के मध्य कुपोषण का पर्याप्त रूप से सामना नहीं कर सकते। नीति आयोग (इन कार्यक्रमों के लिए उत्तरदाई सरकारी अभिकरण) ने हाल ही में एक प्रगति-विवरण प्रकाशित किया है, जो 06-36 माह की आयु के बच्चों को दिए जाने वाले खाद्य पदार्थों में स्थित पोषक तत्वों तथा खाद्य संरचना को संशोधित करने की आवश्यकता का सुझाव देता है। इसके अतिरिक्त, वर्तमान में उपलब्ध पोषण विकल्प अधिक रुचिकर भी नहीं हैं और उपभोग करने में नीरस प्रतीत होते हैं। अत: कुपोषण को दूर करने में ये सर्वाधिक प्रभावी नहीं हैं।
एक हालिया अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) के शोधकर्ताओं ने पूर्व में उपेक्षित कुछ कारकों को ध्यान में रखते हुए, अपना स्वयं का सूक्ष्मपोषक सुदृढ़ आहार (फोर्टिफाइड फूड) आईआईटी मुंबई में अभिकल्पित एवं निर्मित किया है। अध्ययन में देखा गया कि शोधकर्ताओं के सुदृढ़ पोषक-आहार में कुपोषण दूर करने की दक्षता, वर्तमान में सरकार द्वारा घरों में प्रदान की जाने वाली (टेक-होम) भोजन सामग्री की तुलना में अधिक थी। इनके निष्कर्ष पीडिएट्रिक ओनकाल शोधपत्रिका में प्रकाशित किये गए। इस शोध को आईआईटी मुंबई स्थित टाटा सेंटर फॉर टेक्नालॉजी एंड डिजाइन के द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की गयी। शोधकर्ताओं ने नगरीय कुपोषण पर प्रकाश डालने हेतु मुंबई स्थित एक मलिन बस्ती, धारावी में यह अध्ययन किया।
कुपोषण को दूर करने के लिए हम आहार में अनुपस्थित पोषक तत्वों को सम्मलित कर सकते हैं। ये खाद्य पदार्थ पूरक सूक्ष्मपोषक सुदृढ़ आहार (माइक्रोन्यूट्रिएंट फोर्टिफाइड सप्लीमेंट्री फूड) कहलाये जाते हैं। विटामिन ए तथा डी से सज्जित दूध इसका एक उदाहरण है। निर्माण विधि, पोषण मात्रा एवं खाद्य के प्रकार के आधार पर विभिन्न प्रकार के सुदृढ़ पोषक-आहार (फोर्टिफाइड फूड) होते हैं। वर्तमान में, भारत सरकार जस्ता, लौह, कैल्शियम, एवं विटामिन ए तथा सी सदृश सूक्ष्म पोषक तत्वों से सज्जित (फोर्टिफाइड) सोया आटा अथवा बेसन प्रदान करती है। इस आटे को टेक-होम खाद्य के रूप में वितरित किया जाता है, जिसे घर में दलिया के रूप में पकाकर खाया जाता है। आटे का यह थैला परिवार के मध्य बंट जाता है, और कुपोषित बच्चे अपने दैनिक पोषण आवश्यकता भाग से बहुधा वंचित रह जाते हैं।
“सरकारी अधिकरण (एजेंसी) सामान्यत: ‘माप एक अनुकूल अनेक’ के सिद्धांत पर कार्य करती हैं। यद्यपि संभार तंत्रानुसार (लॉजिस्टिकली) इसे अमल में लाना आसान है किंतु अधिकांश समय यह प्रभावी नहीं होता” अध्ययन के एक वरिष्ट शोधकर्ता प्राध्यापक पार्थसारथी कहते हैं। अध्ययन से ज्ञात होता है कि सुदृढ़ पोषक आटे के श्रेष्टतर विकल्प हो सकते हैं।
चूंकि टेक-होम आटे में स्वादहीनता देखी गयी, अत: शोधकर्ताओं ने पोषण-सुदृढ़ खाद्य उत्पाद के विकास हेतु खाद्य पदार्थों के एक संग्रह का चयन किया। उन्होंने मुंबई के घरों के बच्चों में विशिष्ट आहार एवं खाद्य पदार्थों जैसे उपमा, खीर, एवं जुंका के उपभोग का अभिनिर्धारण (आइडेंटिफिकेशन) किया। उन्होंने प्रत्येक बच्चे के उपभोग हेतु 1 में 7 (7 इन 1) पोषणसुदृढ़ आहार पोटलियों की युक्ति निर्मित की। इस युक्ति चयन के पीछे दो कारण थे; विविध विकल्प प्रदान करना एवं प्रत्येक बच्चे की पोषण आवश्यकता की पूर्ति को सुनिश्चित करना।
टेक-होम खाद्य में प्राथमिक रूप से नमक अथवा शर्करा युक्त आटा होता है, तथा इसे स्वादिष्ट बनाने के लिए पकाते समय इसमें अन्य घटक मिश्रित करना आवश्यक होता है। यह खाद्य पकने में अधिक समय लेता है, तथा अधिक घटक मिश्रित किये जाने की आवश्यकता होती है, जो उपभोक्ताओं के लिए लागत में वृद्धि करता हैं। शोधकर्ताओं ने पोषण-सुदृढ़ खाद्य को मसालों, वसा एवं स्वादकर घटकों के साथ पूर्व-मिश्रण (प्री-मिक्स) के रूप में निर्मित किया है।इस तरह उन्होंने उपभोक्ता के लिए अतिरिक्त लागत और खाना बनाने के समय में कटौती की। इन पोषण-सुदृढ़ खाद्य पदार्थों के पकने में लगने वाला समय 5 मिनिट था, जबकि टेक-होम खाद्य में यह 20 मिनिट लेता था।
शोधकर्ताओं ने पूरे धारावी में 300 आंगनवाड़ी अथवा सरकार द्वारा प्रायोजित बाल संरक्षण केन्द्रों में अध्ययन किया। उन्होंने डब्ल्यू एच ओ वृद्धि तालिका के द्वारा 6 से 60 माह आयु-वर्ग के कुपोषित बच्चों की जांच की । चयनित बच्चों को दो समूहों में विभाजित किया गया; एक समूह ने शोधकर्ताओं के द्वारा निर्मित पोषण-सुदृढ़ खाद्य जबकि दूसरे समूह ने टेक-होम खाद्य तीन महीनों तक लिया। समरूपता सुनिश्चित करने हेतु, शोधकर्ताओं ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को पूरक खाद्य पदार्थों के लाभ एवं इसके उपयोग निर्देशों के सम्बन्ध में परामर्श दिया।
इसके अतिरिक्त, शोधकर्ताओं ने विभिन्न आयु वर्ग की कैलोरी तथा प्रोटीन आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखा। पोषण-सुदृढ़ खाद्य समूह के बच्चों को 6-24 एवं 25-60 माह आयु के दो उप समूहों में विभाजित किया गया। शोधकर्ताओं ने दो वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए अर्ध-ठोस पोषण-सुदृढ़ आहार जैसे उपमा प्रीमिक्स, खीर प्रीमिक्स एवं उपयोग के किये तैयार (रेडी टू यूज) बहु-अनाज युक्त आटे का पेष (पेस्ट) उपलब्ध कराया। इसने प्रतिदिन 250-300 किलो कैलोरी और 10-12 ग्राम प्रोटीन प्रदान किया। बड़े बच्चों को अर्ध-ठोस आहार और अंगुलि आहार (फिंगर फूड) संयोजित रूप से दिये गये, जो पारंपरिक महाराष्ट्रीयन व्यंजनों जैसे नानखटाई, शकरपुरा और जुंका प्रीमिक्स का अनुकरण कर विकसित किए गए थे। ये 450-500 किलो कैलोरी और 12-15 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन प्रदान कर सके। इसके विपरीत, टेक-होम खाद्य पदार्थ सभी आयु समूहों के लिए एक ही टेक-होम खाद्य पैकेट प्रदान करता है।
3 माह के अध्ययन के अंत में, शोधकर्ताओं ने बच्चों की पुन: जाँच की। कुपोषित बच्चों की संख्या शोधकर्ताओं का पोषण-सुदृढ़ खाद्य लेने वाले समूह में 39.2 % से घटी, जबकि टेक-होम खाद्य लेने वाले समूह में यह 33 % से घटी। आयु वर्गों के अनुसार पूरक विविधता एवं स्वाद विशिष्टता के कारण, शोधकर्ताओं के पोषण-सुदृढ़ खाद्य पदार्थों की स्वीकार्यता टेक-होम खाद्य पदार्थों की तुलना में अधिक थी। इस प्रकार शोधकर्ताओं ने पोषण-सुदृढ़ खाद्य समूह में तदनुसार उच्च उपभोग (75 - 80 %) देखा। यद्यपि यह ध्यान देना आवश्यक है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के द्वारा दोनों समूहों में खाद्य उपभोग का लगातार परिवीक्षण (मॉनीटरिंग) कुपोषण को घटाने में सहायक हो सका। उनके परामर्श ने यह सुनिश्चित किया कि बच्चों ने टेक-होम खाद्य का उपभोग किया।
“यह तथ्य कि महाराष्ट्र में कुपोषण प्रभावी रूप से कम नहीं हुआ है, टेक-होम खाद्य पदार्थों के विकल्पों को विकसित करने का आधार हो सकता है। कुपोषण को न्यूनतम करने हेतु यह अन्य अनुवर्ती तंत्रों की खोज का एक आधार हो सकता है,” प्राध्यापक शाह कहते हैं।
शोधकर्ता, सरकार की कुपोषण के विरुद्ध लड़ाई में वास्तविक परिवर्तन लाना चाहते हैं, तथा उनके पोषण-सुदृढ़ खाद्य को व्यवहार्य विकल्प के रूप में सरकार द्वारा लागू करने की राह पर कार्य कर रहे है। यह अध्ययन कुपोषित बच्चों के लिए पोषण-सुदृढ़ खाद्य पदार्थों की तकनीकी प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने के लिए एक प्रायोगिक परियोजना थी। आगामी चरण के रूप में उनकी योजना उत्पादन मूल्य तथा प्रयास एवं मूल्य के अनुपात पर विचार करने की है। महाराष्ट्र सरकार के एकीकृत बाल विकास सेवा आयुक्त तथा टाटा ट्रस्ट की पोषण टीम के साथ उनकी बातचीत चल रही है।
"हमने दृढ़तापूर्वक निवेदन किया है कि सरकारी कार्यक्रम एमएफएफ को अपने तंत्र के साथ एकीकृत करें और वर्तमान एकल टीएचआर सूत्र के स्थान पर 7-इन-1 पैकेट दृष्टिकोण लाये," प्रा. शाह कहते हैं।