आईआईटी मुंबई का सूक्ष्म-द्रव उपकरण मानव कोशिकाओं की कठोरता को तीव्रता से मापता है, एवं रोग की स्थिति तथा कोशिकीय कठोरता के मध्य संबंध स्थापित करने में सहायक हो सकता है।

दवा-प्रतिरोधी रोगाणुओं को बाहर निकालने के लिए एक जांच-सूची

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Bengaluru
6 जून 2019
दवा-प्रतिरोधी रोगाणुओं को बाहर निकालने के लिए एक जांच-सूची

वैज्ञानिकों ने सुपरबग के खिलाफ अस्पतालों को इससे निपटने के लिए अनुशंसित कार्यों का एक समूह प्रस्तावित किया है।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध, या कई दवाओं के खिलाफ रोगजनकों द्वारा विकसित प्रतिरोध, एक उभरती हुई वैश्विक चुनौती है। ज़रा सोचिये, आप एक कीटाणु से संक्रमित हों और किसी भी उपलब्ध दवाओं द्वारा उसका खात्मा ना किया जा सके! खैर, यह अब क्षय रोग और निमोनिया जैसी बिमारियों की वास्तविकता है क्योंकि कुछ जीवाणुरोधी बैक्टीरिया एंटीबायोटिक दवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए प्रतिरोधी बन रहे हैं, और ये सब हमारे एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग में लापरवाही  के कारण हो रहा है।

ये संयोग ही है कि जिन अस्पतालों को रोगियों को ठीक करने के लिए जाना जाता है, वही इन एंटीबायोटिक प्रतिरोधक बैक्टीरिया जिन्हें सुपरबग्स भी कहा जाता है, के लिए सुरक्षित ठिकाना बनते जा रहे हैं। इसलिए, दुनिया भर के कई अस्पतालों ने इन सुपरबग्स से लड़ने के लिए, रोगाणुरोधी प्रबंधक (एएमएस) कार्यक्रम के तहत रणनीतियों का एक  सूची बनाई है। यह कार्यक्रम रोगाणुरोधी दवाओं के उचित उपयोग के बढ़ावे के साथ, एक बेहतर नैदानिक परिणाम सुनिश्चित करता है, और सूक्ष्मजीव प्रतिरोध को कम करने में मदद करता है। हाल ही के, एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में, वैज्ञानिकों ने इस कार्यक्रम को मजबूत करने के लिए कुछ 'मूल तत्व' और जांच-सूची का प्रस्ताव रखा है। इस अध्ययन को पत्रिका क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजी एंड इंफेक्शन में प्रकाशित किया गया था।

रोगाणुरोधी प्रबंधक कार्यक्रम का 'मूल तत्व' एक दस्तावेज है जो रोगाणुरोधी प्रतिरोध से लड़ने के लिए विभिन्न संगठनों से प्राप्त मौजूदा दिशा-निर्देशों का अनुपालन करता है। ये मूल तत्व अस्पतालों को प्रभावी ढंग से कार्यक्रम को लागू करने में मदद करते हैं। हालांकि, कई देशों में मूल तत्वों को अच्छी तरह से परिभाषित नहीं किया गया है, और इसलिए प्रभावशीलता और सामर्थ्य के आधार पर उन्हें परिभाषित करने की आवश्यकता है।

लेखकगण, इस अध्ययन के पीछे प्रेरणा के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि “ऐसे मूल तत्वों की पहचान करने के प्रयास यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और उत्तरी अमेरिका तक सीमित रहे हैं। इस अध्ययन का उद्देश्य है कि रोगाणुरोधी प्रबंधक कार्यक्रमों के लिए मूल तत्वों और उनसे संबंधित जांच-सूची का विकास करना है, जो संसाधन उपलब्धता की परवाह किए बिना दुनिया भर के सभी अस्पतालों में मौजूद होना चाहिए"।

व्यापक साहित्य सर्वेक्षण और मूल्यांकन के बाद, इस अध्ययन के शोधकर्ता सात मूल तत्वों की सूची के साथ आए जो विश्व स्तर पर प्रासंगिक हैं। ये मूल तत्व इस बात पर केन्द्रित हैं कि वरिष्ठ अस्पताल प्रबंधन, रोगाणुरोधी प्रबंधन कार्यक्रम का समर्थन कैसे करता है, कार्यक्रम के प्रति अस्पताल दल की जवाबदेही और जिम्मेदारियां, संक्रमण प्रबंधन पर विशेषज्ञों की उपलब्धता, एंटीबायोटिक दवाओं को जारी करने के लिए शिक्षा और व्यावहारिक प्रशिक्षण, और साथ ही एंटीबायोटिक दवाओं का जिम्मेदारी से उपयोग,  एंटीबायोटिक दवाओं की गहन निगरानी, और एंटीबायोटिक दवाओं के लगातार इस्तेमाल पर विस्तृत जानकारी और प्रतिक्रिया देना है।

वैज्ञानिक मूल तत्वों से संबंधित २९ जांच-सूची के जरुरी विषय भी सुझाते हैं। ये मूल तत्वों की उपलब्धता या कार्यप्रणाली की जांच करने के लिए प्रश्नों का एक समूह है। रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) ने इससे पहले एक समान सूची तैयार की थी, और लेखकों ने पाया कि उनके मूल तत्व सीडीसी द्वारा सुझाए गए मूल तत्वों के समान हैं। लेखकों का दावा है कि अस्पताल अपनी नैदानिक हालत और संसाधन उपलब्धता के आधार पर प्रस्तावित मूल तत्वों और जांच-सूची के जरुरी विषय को अपना सकते हैं।

“हमने न्यूनतम मूल तत्व और जांच-सूची विषय विकसित किए हैं, जो दुनिया भर में अस्पताल के रोगाणुरोधी प्रबंधन कार्यक्रमों के लिए प्रासंगिक हो सकते हैं। भले ही वर्तमान समय में इन जांच-सूची विषयों में से अधिकांश कम आय वाले देशों के अधिकतम अस्पतालों में मौजूद न हों, लेकिन हमने इन सभी को सूची में शामिल किया क्योंकि हमारा मुख्य उद्देश्य सार्वभौमिक रूप से प्रासंगिक, आवश्यक तत्वों और वस्तुओं को सर्वोत्तम उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर उनकी पहचान करना था ” लेखक कहते हैं।

सुझाए गए दृष्टिकोण दवा प्रतिरोधी रोगाणुओं के वैश्विक उद्भव को संबोधित करने के लिए रोगाणुरोधी प्रबंधन कार्यक्रम को सँभालने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान करता है। "अगला कदम रोगाणुरोधी प्रबंधन कार्यक्रम के महत्व, और फिर भौगोलिक एवं संसाधन के उपलब्धि के आधार पर इसकी व्यवहार्यता को बाकी अन्य हितधारक समूह के साथ इसका मूल्यांकन करना होगा ", लेखकों ने ऐसा निष्कर्ष  निकाला।