वैज्ञानिकों द्वारा ऐसा साधन का विकास जो अल्ट्रासाउंड से संचालित होने पर दवाओं का कहीं अधिक प्रभावी रूप से परिदान कर सकता है
हालाँकि कैंसर के बारे में पहला चिकित्सीय विवरण सन १६०० इसा पूर्व के आसपास मिस्त्र में लिख दिया गया था, पर फिर भी वैज्ञानिक आज तक इस घातक रोग का पुख्ता इलाज ढूंढ रहे हैं| यहाँ एक बड़ी मुश्किल यह है की कीमोथेरेपी में उपयोग की जाने वाली दवाएँ स्वस्थ कोशिकाओं को भी नुकसान पहुँचा देती हैं| ऐसा इसलिए क्योंकि यह दवाएँ केवल कैंसर-ग्रस्त कोशिकाओं पर ही हमला कर पाने में अभी कारगर नहीं हुई हैं, और कुछ दवाएँ तो कैंसर के ट्यूमर की सारी कोशिकाओं तक भी नहीं पहुँच पाती हैं |
हाल ही में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बम्बई के शोधकर्ताओं ने कैंसर की सयोंजित चिकित्सा-पद्धति के अंतर्गत एक नयी विधि प्रस्तावित की है| इस विधि के द्वारा वे एक साथ ही अल्ट्रासाउंड तस्वीरों के माध्यम से ठोस ट्यूमर को निशाना बना सकते हैं, व दवाओं को ट्यूमर की गहराई तक भेज सकते हैं, और प्राकृतिक रूप से उपजे वसा-युक्त अणुओं का उपयोग कर ट्यूमर की कोशिकाओं को और अधिक नष्ट सकते हैं|
कैंसर एक गूढ़ रोग है, जो हर रोगी में कुछ बदलाव लिए उपजता है| इसलिए कोई एक कैंसर-निवारण प्रणाली सभी पर लागू नहीं हो सकती| सयोंजित पद्धति आपस में सहायक कई प्रणालियों का मेल बना कर रोग का उपचार करती हैं| इस तरह से पूरे रोगी समूह के स्तर पर कैंसर से बेहतर लड़ा जा सकता है|
प्रोफेसर रिणती बनर्जी के नेतृत्व में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बम्बई के बायोसाइंस और बायोइंजीनियरिंग विभाग के इन शोधकर्ताओं ने ऐसी ही संयोजित चिकित्सा पद्धति का प्रस्ताव दिया है | अन्य शब्दों में इस संयोजन को इस तरह समझें- जैसे दो गेंद- एक छोटी और एक बड़ी- आपस में जुड़ीं हुई हों | छोटी गेंद दवा से भरी कैप्सूल है, और दोगुने आकर की बड़ी गेंद एक गैस का बुलबुला| ५०० नैनोमीटर आयाम के इस बुलबुले को 'नैनोबबल' कहते हैं, और दवा-वाहक को 'नैनो कैप्सूल' कहा जाता है| यह दोनों अवयव परस्पर सम्मिलित कृत्य द्वारा कैंसर का उपचार करते हैं|
नैनोबबल के दो उद्देश्य हैं| इसे अल्ट्रासाउंड तस्वीरें खोज सकती हैं| इस कारण जब यह बुलबुला रक्त-धमनियों में बहता है, तब तस्वीरों से मार्गदर्शित कैंसर पद्धिति इसके तत्स्थान को भांप सकती हैं| दूसरा उद्देश्य दवा को अधिक प्राभाविक रूप से ट्यूमर में वितरित करना है| अल्ट्रासाउंड को ट्यूमर के नज़दीक प्रयुक्त करने पर ये बुलबुले फूलते और सिकुड़ते हैं, फिर फूट जाते हैं| यह क्रिया ट्यूमर के तंतुओं में ढिलाव ले आती है| तब कैप्सूल आसानी से ट्यूमर की गहराई तक दवा को वितरित कर सकती है; अर्थात नैनोबबल खुद का नाश कर नैनो कैप्सूल के लिए जगह बना देता है|
कैप्सूल दो तरह से कैंसर पर प्रहार करती है| कैप्सूल का खोल उन वसायुक्त अणुओं से बनाया गया है जो प्राकृतिक रूप से जैव-कोशिकाओं की झिल्लियों में पायी जाती हैं| 'लिपोसोम' (liposomes) कहलाने वाले यह कैप्सूल जैवनुकूल होते हैं| इन कैप्सूल का आकार अत्यधिक छोटा (लगभग २०० नैनोमीटर) होना आवश्यक है ताकि ये कोशिकाओं के बीच की जगह से अंदर जा पाये| कैप्सूल कैंसर-मारक दवाओं से भरी रहती हैं| प्रोफेसर बनर्जी के शोध समूह ने 'पाक्लीटैक्सेल' (Paclitaxel)) नाम की दवा का उपयोग किया है जो कैंसर के कई स्वरूपों में दी जानी वाली कीमोथेरेपी में प्रयुक्त आम दवा है| इसके साथ उन्होंने कोशिकाओं को मारने हेतु प्राकृतिक रूप से उपजित वसायुक्त अणु (फोस्फटिडइलसरीन) (phosphatidylserine) भी उपयोग किया है|
हालाँकि उपर्युक्त सिद्धांत और विधियां पहले से ही ज्ञात हैं, पर इनको संयोजित कर, एक ऐसा सार्विक पायदान उपलब्ध कराना जो विभिन्न प्रकार की चिकित्सा-पद्धितियों में लागू हो सके- यह प्रोफेसर बनर्जी के शोधसमूह की एक नवरचना व नवाचार है|
इस नयी पद्धिति की ट्यूमर-मारक क्षमता जाँचने हेतु, शोधसमूह ने प्रयोगशाला में जीवित कोशिकाओं (इन-विट्रो) और जंतुओं (इन-वीवो) पर प्रयोग किये| परिणाम दिखाते हैं की अल्ट्रासाउंड के संग इस संयोजित पद्धति का असर ऐसी किसी और पद्धति से बेहतर है जिसके उपसंयोजन में किसी एक या अधिक अवयव को छोड़ दिया गया हो| प्रयोग में ये देखा गया की कैंसर-युक्त कोशिकाओं ने तेज़ी से दवा को अवशोषित किया, ट्यूमर में दवा की ज्यादा मात्रा संचित हुई, और उसकी कैंसर-युक्त कोशिकाओं को मारने, या ट्यूमर को घटाने की क्षमता कहीं अधिक असरकारक रही| अन्य प्रयोगों के विपरीत, इस संयोजन में सम्मिलित सभी जंतु भी जीवित रहे | यहाँ तक कि ट्यूमर कि झिल्ली के इर्द-गिर्द ली गयी अल्ट्रासाउंड तस्वीरें भी प्रचलित विधियों (सोनोव्यू) (SonoVue) की तुलना में कहीं अधिक साफ़ पायी गयीं|
यह नवरचना एक अनुबंधित कैंसर-मारक पद्धति प्रमाणित होने कि क्षमता रखती है और अल्ट्रासाउंड तस्वीर से मार्गदर्शित चिकित्साविधान के विकास के नए मार्ग खोलती है| इस पद्धति की प्रभाविकता में समग्र वृद्धि, और नैनोबब्बल्स द्वारा प्रदान की गई बेहतर प्रत्योक्षकरण उपचार को और अनुकूलित करने में मदद कर सकता है।