पिछले दशक में सघन जनसंख्या वाले बड़े नगरों में बाढ़ की घटनाओं में लगातार वृद्धि देखी गयी है। इससे संपत्ति एवं अवसंरचनाओं में क्षतिवृद्धि के साथ-साथ प्राणों की भी हानि हो रही है। भवनों एवं कंक्रीट या तारकोल से निर्मित होने वाले पादपथों (फुटपाथ) एवं मार्गों में वृद्धि के साथ-साथ भूमि पर जल अवशोषक क्षेत्र कम होते जाते हैं। अतिवृष्टि की घटनाओं से पानी बड़ी मात्रा में तीव्रता से बहता है तथा शीघ्र ही निचले क्षेत्रों में जमा हो जाता है। बड़े क्षेत्र में घनी जनसंख्या होने के कारण बाढ़ के उपरांत महामारी एवं संक्रमण का संकट अधिक होता है। नगरों में स्थित वाणिज्यिक एवं राष्ट्रीय महत्व के केंद्रों को होने वाली कोई भी हानि बड़ी जनसंख्या को प्रभावित कर सकती है।
नगरीय तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बाढ़ की प्रकृति, उसके कारण एवं प्रभाव भिन्न-भिन्न होते हैं। अत: इसके शमन हेतु भिन्न-भिन्न विश्लेषण एवं विधियों की आवश्यकता होती है। चक्रवाती जल के नालों का निर्मलीकरण, चक्रवाती जल को भूमिगत क्षेत्रों (साइलो) से जोड़ना ताकि यह स्थानीय भंडारण के रूप में कार्य करते हुए अपवाह (रनऑफ) को रोक सके, जलाशयों को परस्पर जोड़ना एवं एकत्र हुए पानी को निकालने के लिए पंप लगाना आदि केंद्रीय रूप से लागू किये जाने वाले कुछ प्रशासनिक उपाय हैं। यद्यपि इन उपायों हेतु अवसंरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर) में बड़े परिवर्तन आवश्यक हैं जो बहुव्ययी हैं। इन स्थितियों में अपवाह को उसके स्रोत के निकट ही नियंत्रित कर सकने वाले छोटे उपाय जैसे वर्षा जल संचयन, वर्षा उद्यान एवं हरित छत, अधिक टिकाऊ सिद्ध होंगे।
लघु-स्तरीय एवं टिकाऊ उपायों में होने वाला व्यय एक बड़े संरचनात्मक परिवर्तन की तुलना में कम होता है। यद्यपि उनकी प्रभावशीलता एवं उनके लाभों का परीक्षण महत्वपूर्ण है। सीईपीटी विश्वविद्यालय, अहमदाबाद के प्राध्यापक तुषार बोस एवं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के प्राध्यापक प्रदीप कालबर तथा प्राध्यापिका अर्पिता मंडल के द्वारा इस दिशा में नवीन प्रयास किये गए हैं। इसके अंतर्गत इस शोधदल ने घने नगरीय क्षेत्रों में बाढ़ को कम करने में 'हरित छतों' की भूमिका का मूल्यांकन किया। यह अध्ययन जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल मैनेजमेंट में प्रकाशित हुआ है। इस परियोजना को भारत सरकार के विज्ञान एवं शिक्षा अनुसंधान बोर्ड द्वारा वित्तपोषित किया गया।
हरित छतों को निर्मित करने हेतु भवनों की छतों पर जलरोधी झिल्ली एवं जल निकास प्रणाली की व्यवस्था की जाती है, जिसके ऊपर मिट्टी की उथली परत बिछाकर इस पर पेड़ लगाए जाते हैं। हरित छतें गर्मियों में भवन को शीतल रखने के साथ साथ वर्षा जल को भी अवशोषित कर सकती हैं। अतिरिक्त पानी धीरे-धीरे वर्षा जल संचयन प्रणाली के पुनर्संचरण (रिचार्ज) में सहायक हो सकता है, जिससे अपवाह से बचा जा सकता है। हरित छतों की स्थापना के लिए अतिरिक्त व्यय की आवश्यकता होती है; साथ ही भवन पर भार बढ़ जाने के कारण इसका नियमित रखरखाव भी आवश्यक हो जाता है। अत: हरित छतों से प्राप्त होने वाले लाभों तथा उनके मूल्य का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
पश्चिमी देशों द्वारा किये गए अध्ययनों में, वर्षा उद्यान, अंतर्भरण नालियों (इनफिल्ट्रेशन ट्रेंच) एवं हरित छतों जैसी संयुक्त पद्धतियों के परिणामों का आकलन पूर्व में ही किया जा चुका है। यद्यपि केवल हरित छतों के प्रदर्शन का आकलन करने वाले अध्ययन अत्यंत सीमित हैं, विशेषकर भारतीय संदर्भ में। समस्त प्रकार के भारतीय भवन हरित छतों की स्थापना के लिए उपयुक्त नहीं हैं। उदाहरण स्वरुप झुग्गी-झोपड़ियों एवं अल्प लागत वाले घरों में धातु या कंक्रीट आस्तर वाली छतें होती हैं जो हरित छत की स्थापना के लिए उपयुक्त नहीं होती।
"इस अध्ययन का महत्वपूर्ण योगदान यह है कि यह सघन नगरीय क्षेत्र में एक वास्तविक मूल्यांकन प्रदान करता है तथा अपवाह में होने वाली कमी के अधिआकलन (ओवर एस्टीमेशन) को परिमाणित करता है। यह अधिआकलन उन परिदृश्यों से उत्पन्न होते हैं जो समस्त छतों को, उनकी हरित छत स्थापित करने की क्षमता का मूल्यांकन किए बिना समाहित करते हैं," अध्ययन के लेखक कहते हैं।
हरित छतों के प्रभाव एवं प्रदर्शन के अध्ययन हेतु, शोधकर्ताओं ने गुजरात के अहमदाबाद में स्थित ओढव क्षेत्र को चुना। प्रतिरूप (मॉडल) निर्मित करने हेतु उन्होंने 100 हेक्टेयर के कुल क्षेत्र को उन्नीस उप-जलग्रहण क्षेत्रों (सब कैचमेंट एरिया) में विभाजित किया। उन्होंने हरित छतों की स्थापना के लिए उपयुक्त भवनों की पहचान की। धातु या कंक्रीट की छतों से युक्त भवन तथा औद्योगिक भवन हरित छतों के लिए उपयुक्त नहीं माने जाते। उन्होंने उप-जलग्रहण क्षेत्रों में अपवाह एवं बाढ़ (रनऑफ एंड फ्लड) के मापन हेतु भूमि उपयोग, स्थानीय वर्षा का स्वरुप, भूप्रदेश एवं प्रत्येक क्षेत्र में जल निकासी के प्राकृतिक मार्गों पर विचार किया। क्षेत्रों में पानी के बहाव की स्थितियों का अनुकरण करने वाला संगणकीय प्रतिरूप बनाया। इस प्रतिरूप का उपयोग करते हुए खोजकर्ताओं ने अतिवृष्टि के विभिन्न परिदृश्यों एवं हरित छतों के विभिन्न परिमाण प्रतिशत के आधार पर अपवाह तथा बाढ़ की तीव्रता का मापन किया।
क्षेत्र का भूप्रदेश, मिट्टी का प्रकार, चक्रवाती जल प्रसार का प्रारूप एवं भूमि का भवनों, उद्यानों या अन्य प्रयोजनों के लिए उपयोग, जैसे आंकड़ों का शोधकर्ताओं ने उपयोग किया। इन आँकड़ों को अहमदाबाद नगर निगम की सहायता से एवं व्यक्तिगत सर्वेक्षणों से प्राप्त किया गया था, साथ ही भारत मौसम विज्ञान विभाग से प्राप्त वर्षा के आंकड़े भी इनमें सम्मिलित थे।
आईआईटी मुंबई के शोधदल ने उन स्थितियों पर विचार किया, जहां हरित छतों के लिए उपयुक्त भवनों के 25%, 50% एवं 75% में हरित छतें स्थापित की गई थीं। उन्होंने कुल 36 स्थितियों के लिए बाढ़ के परिमाण में कमी की गणना की, जहां उन्होंने तीन हरित छत अनुप्रयोग दरों (25%, 50% एवं 75%), चार अतिवृष्टि आवृत्तियों (2, 5, 10 और 25 वर्षों में एक बार अत्यधिक वर्षा की घटनाएं) एवं तीन अतिवृष्टि अवधि (2, 3 और 4 घंटे) स्थितियों पर विचार किया। उन्होंने अतिवृष्टि कितने वर्षों में हुई तथा उसकी अवधि के विभिन्न अनुपातों से प्राप्त किये गए 12 परिदृश्यों में से प्रत्येक के लिए हरित छतों के न्यूनतम आवश्यक अनुप्रयोग दर को भी ज्ञात किया। शोधकर्ताओं ने इस प्रतिरूप के अनुमानों में अनिश्चितताओं की भी गणना की।
अध्ययन बताता है कि हरित छतों के उपयोग से बाढ़ के परिमाण में लगभग 10-60% की कमी आ सकती है, जो दो वर्ष में एक बार होने वाली सामान्य से अधिक वर्षा के लिए हरित छत के अनुप्रयोग प्रतिशत पर निर्भर करती है। यद्यपि यह कमी हरित छतों की अनुप्रयोग दर के साथ में रैखिक (लीनिअर) सम्बन्ध नहीं रखती, क्योंकि बाढ़ का परिमाण जल निकासी तंत्र की क्षमता पर भी निर्भर करता है, विशेष रूप से वर्षा के अधिक परिमाण पर। शोधकर्ताओं ने पाया कि जब भवनों में हरित छतें 25% से भी कम होती है, तो बाढ़ के परिमाण एवं अपवाह में होने वाली कमी 5% तक घट सकती है। किन्तु जब हरित छतें अधिक होती हैं, तो पूरे क्षेत्र पर सामूहिक प्रभाव होने से बाढ़ का परिमाण कम हो जाता है। बाढ़ के परिमाण में कमी के अनुमान में अनिश्चितता को भी अध्ययन मापता है और पाता है कि अपवाह में कमी के आकलन को वर्षा की तीव्रता अधिक अनिश्चित बनाती है।
नगरों में हरित छत के कार्यान्वयन के सम्बन्ध में नीति निर्माताओं द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों में अध्ययन के निष्कर्ष सहायक हो सकते है।