शोधकर्ताओं ने द्वि-आयामी पदार्थों पर आधारित ट्रांजिस्टर निर्मित किये हैं एवं ऑटोनॉमस रोबोट हेतु अत्यंत अल्प-ऊर्जा के कृत्रिम तंत्रिका कोशिका परिपथ निर्मित करने में इनका उपयोग किया है।

जटिल समस्याओं के निदान हेतु ‘मस्तिष्क-सदृश’ कम्प्यूटर्स के सहायतार्थ एक हार्डवेयर न्यूरॉन

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Mumbai
28 सितंबर 2020
जटिल समस्याओं के निदान हेतु ‘मस्तिष्क-सदृश’ कम्प्यूटर्स के सहायतार्थ एक हार्डवेयर न्यूरॉन

पिक्साबे छायाचित्र, द्वारा: गेर्ड आल्टमॅन  

2013 में, अमेजॅन, विश्व के सबसे बड़े ऑनलाइन विक्रेता, ने अपनी अमेजॅन प्राइम एअर सेवा की घोषणा की थी, जहाँ ड्रोन आपके द्वार पर उड़ते हुये, आदेश के 30 मिनिट के अंदर में आपके सामान को वितरित करेंगे। यह सम्मोहक है? यदि सूचनाएँ सही हैं, तो यह सेवा अब कुछ ही महीने दूर हो सकती है। एक वास्तविकता है कि, मशीन लर्निंग प्रौद्योगिकी में होने वाली प्रगति ने स्वचालित ड्रोन जैसे नवाचार निर्मित किए हैं, जिनको मानव हस्तक्षेप की आवश्यकता ही नहीं होती। जहाँ सॉफ्टवेअर इंजीनियर्स इन तकनीकों के पीछे मस्तिष्क का निर्माण करते हुये कंप्यूटर प्रोग्रामों में कृत्रिम प्रज्ञा की कोडिंग कर रहे हैं, वहीं हार्डवेयर इंजीनियर्स उन सिलिकॉन चिप्स में क्रांतिकारी परिवर्तन ला रहे हैं, जिनपर ये प्रोग्राम चलते हैं।

मशीन लर्निंग में, एक सक्रिय शोध का क्षेत्र है तंत्रिका जाल अर्थात न्यूरल नेटवर्क - एल्गॉरिद्म का एक ऐसा समूह जो हमारे मस्तिष्क में स्थित तंत्रिका कोशिकाओं के सदृश कार्य करता है और आँकड़ों में नमूनों अर्थात पैटर्न की पहचान करता है। यद्यपि ये एल्गॉरिद्म शक्तिशाली हैं, तथापि इनकी कुछ सीमाएं हैं। "आज, बहुत से तंत्रिका जाल क्लाउड पर चलने वाले सॉफ्टवेअर पर केन्द्रित हैं, जो पर्याप्त कार्य ऊर्जा से बद्ध हैं, क्योंकि ये समर्पित सर्वर-फार्मों अर्थात सर्वर क्लस्टर्स के द्वारा समर्थित होते हैं। यद्यपि यद्यपि जब ये एल्गॉरिद्म स्वचालित कार अथवा ड्रोन में उपयोग किए जाते हैं, तब इन तंत्रिका जालों को छोटे मोबाइल संयंत्रों पर कार्य करना होता है, अत: ऊर्जा दक्ष होना होता है। यह हमारा ध्यान तंत्रिका जाल हार्डवेयर अर्थात न्यूरल नेटवर्क हार्डवेयर की ओर केंद्रित करता है," भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुम्बई के प्राध्यापक उदयन गांगुली कहते हैं।

एक नवीन अध्ययन में, प्राध्यापक गांगुली, उनके छात्र, एवं सहयोगी इंटेल प्रॉसेसर आर्किटैक्चर रिसर्च ( पीएआर ) लैब, बेंगालुरू ने इस प्रकार का एक हार्डवेयर निर्मित किया है, जो तंत्रिका जाल के लिए एक प्रकार की यादृच्छिक अभिगम स्मृति अर्थात रेंडम एक्सैस मेमोरी (रैम) है। ए पी एल मटेरियल्स नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित यह अध्ययन, डी एस टी नेनो मिशन एवं इलेक्‍ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एम.ई.आई.टी.वाई.) के द्वारा आंशिक रूप से वित्त-पोषित किया गया था। इस कार्य में आई. आई. टी. बॉम्बे के स्नातक और परास्नातक छात्रों एवं संकाय का, साथ ही इंटेल के आर एंड डी अभियन्ताओं का संयुक्त योगदान रहा।

पिछले कुछ दशकों में निर्मित अधिकांश संगणक हार्डवेअरों में परिपथों का एक समूह होता है जिसके निर्गम अर्थात आउटपुट निर्धारणात्मक एवं डिजिटल होते हैं - या तो '0' या '1'। इसका एक उदाहरण लॉजिक गेट हो सकता है, जिसका उपयोग अधिकांश डिजिटल परिपथों में किया जाता है, जहाँ यदि आप आगम अर्थात इनपुट जानते हैं तो निर्गम का निर्धारण शुद्धता से हो जाता है। इस प्रकार का हार्डवेयर सामान्य प्रोग्रामों जैसे कि गणना के लिए पर्याप्त पाया गया है। यद्यपि, जटिल समस्याओं, जैसे कि एक ड्रोन के लिए सर्वोत्कृष्ट मार्ग की खोज, के लिए यादृच्छिक रूप से निर्धारित अर्थात स्टोकेस्टिक प्रोग्राम की आवश्यकता होती है। इनको कुछ सांख्यिकीय संभावना के साथ प्रत्येक संभावित निर्गम का अनुमान लगाना होता है। तदनुसार, उस यादृच्छिक क्षमता को प्रदान करने के लिए हार्डवेयर को डिजिटल से एनालॉग में परिवर्तित किए जाने की आवश्यकता होती है।

वर्तमान अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने यादृच्छिक न्यूरॉन को सक्षम करने के लिए प्रतिरोधी यादृच्छिक अभिगम स्मृति (RRAM) के निर्माण का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने तंत्रिका जाल के एक सैद्धांतिक ढांचे पर विचार किया है जिसे बोल्ट्जमॅन मशीन कहा जाता है, जिसमें ऐसे न्यूरॉन्स का एक जाल होता है। "एक बोल्ट्जमॅन मशीन प्रतिदिन के कार्यों जैसे छवि, आवाज, और नमूनों की पहचान को सक्षम बना सकती है " प्राध्यापक गांगुली कहते हैं। "बोल्ट्जमॅन मशीन में यादृच्छिकता का परिणाम निर्गम अर्थात आउटपुट के सांख्यिकीय अनुमान को सक्षम करता है, जो कि डिटर्मिनिस्टिक मशीन के लिए अप्राकृतिक होता है" वे समझाते हैं।

नवीन RRAM, जिसे क्रिस्टलीय मैगनेटाइट (PrxCa1−xMnO3) का उपयोग करके निर्मित किया गया है, PCMO RRAM या मेमरिस्टर कहलाते हैं। यह अनिवार्यत: एक स्मृति- यंत्र अर्थात मेमोरी डिवाइस है, जिसकी अवस्था इसके प्रतिरोध में संग्रहित होती है। उदाहरण के लिए, PCMO RRAM उच्च प्रतिरोध अथवा निम्न प्रतिरोध अवस्था के साथ कोई एक प्रतिरोध हो सकता है । एक धनात्मक विभव, प्रतिरोध अवस्था को उच्चतम से निम्नतम में परिवर्तित करता है। यह परिवर्तन यादृच्छिक होता है, और प्रयुक्त विभव पर निर्भर करता है। यहाँ सम्मोहक तथ्य यह है कि हमारे मस्तिष्क में स्थित तंत्रिकाएं भी इसी तरह कार्य करती हैं। ये, कोशिका झिल्ली और तंत्रिकाक्ष अर्थात एक्सॅन पुच्छ के मध्य स्थित विभावांतर के आधार पर संभावित रूप से एक उत्तेजना, अथवा इमपल्स भेजती हैं। एक हार्डवेयर के रूप में निर्मित किया गया, इस प्रकार का न्यूरॉन, एक बोल्ट्जमॅन मशीन को सक्षमता प्रदान करता है।

शोधकर्ताओं ने तब खोज अनुकूलन समस्याओं अर्थात सर्च ओप्टिमाइजेशन प्रॉबलम के एक वर्ग को हल करके अपने PCMO RRAM का परीक्षण किया, जिन्हें कम्प्यूटेशनल रूप से हल करना कठिन समझा जाता है। "ज्यों ही समस्या का आकार बढ़ता है, इन समस्याओं के लिए समाधानों की संभावित संख्या उच्च प्रवणता के साथ बढ़ती है। उदाहरणस्वरूप, दी गई व्यक्तियों की 'एन' संख्या के लिए, विभिन्न आकार के कितने सामाजिक समूह अस्तित्व में हो सकते हैं, यह पता करना एक कठिन समस्या है," प्राध्यापक गांगुली बताते हैं।

पारंपरिक संगणक के लिए, जो निर्धारणात्मक प्रकृति के होते हैं, उत्तम समाधान प्राप्त करने हेतु प्रत्येक संभावना के मूल्यांकन की आवश्यकता होगी। जितनी अधिक संभावनाओं की संख्या, उतनी अधिक कठिनाई-युक्त खोज प्रक्रिया। इसकी तुलना में, बोल्ट्जमॅन मशीन में सभी यादृच्छिक न्यूरॉन समानान्तर में जुड़े होते हैं। जब वे यादृच्छिक उतार-चढ़ाव अर्थात स्पाइक्स के द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं, तो वे अंततः एक विशिष्ट स्थिर-अवस्था अर्थात स्टेडी स्टेट से युक्त स्पाइकिंग पैटर्न तक पहुंचते हैं जो एक सर्वोत्कृष्ट समाधान को इंगित करता है, ठीक वैसे जैसे कि पूर्ण खोज की आवश्यकता के बिना ही अंतिम उत्तर खोजना। यह विशिष्ट स्थिर अवस्था स्पाइकिंग नेटवर्क की सबसे न्यूनतम ऊर्जा अवस्था होती है। अतएव, नेटवर्क स्पाइकिंग सदैव इस अवस्था की पहुँच का मार्ग खोजती है। यह जल के ढालान की ओर प्रवाह अथवा बुलबुले के ऊपर उठने के सदृश है, जिसमें ऊर्जा को न्यूनतम करने के लिए सहज परिवर्तन होता है। "इस प्रक्रिया का उपयोग करने के लिए, हम इन न्यूरॉन्स की पारस्परिक क्रिया को एक विशिष्ट रीति में इस प्रकार से नियत कर सकते हैं कि यह स्थिर-अवस्था अर्थात स्टेडी-स्टेट एक विशिष्ट समस्या का समाधान होती है,” प्राध्यापक गांगुली कहते हैं।

अध्ययन ने नए निर्मित किए गए PCMO RRAM के साथ एक पारंपरिक सिलिकन-आधारित हार्डवेयर के प्रदर्शन की तुलना की, जो अनुकूलन समस्या के निवारण हेतु एनालॉग और डिजिटल सिग्नल का उत्पादन करता है। उन्होने पाया कि उनकी हार्डवेयर युक्ति 98% शुद्धता के साथ समस्या का समाधान देती है और पारंपरिक सिलिकन-आधारित हार्डवेयर के क्षेत्रफल का मात्र दसवाँ भाग लेती है। इसकी शक्ति दक्षता भी चार गुना बेहतर थी। "इसका तात्पर्य है कि PCMO RRAM पर आधारित एक बोल्ट्ज़मॅन मशीन चिप, संगणकीय रूप से अधिक शक्तिशाली और ऊर्जा-दक्ष हो सकती है,” प्रो गांगुली कहते हैं।

यह अध्ययन भारतीय संस्थानों के अंतर्गत एक अत्याधुनिक शोध कार्य का प्रदर्शन करता है। शोधकर्ताओं ने इस कार्य पर एकस्व अधिकार अर्थात पेटेंट भी आवेदित किया है। "उपकरण वर्तमान में प्रायोगिक अवस्था में हैं, किन्तु चिप युक्ति को कार्यान्वित किए जाने की आवश्यकता है। ये प्रणाली बड़े वाणिज्यिक महत्व की है और हाई-टेक प्रवर्तन अर्थात स्टार्ट-अप्स  के लिए रोचक होगी," विदाई से पूर्व, प्राध्यापक गांगुली कहते हैं ।