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कंक्रीट की दृढ़ता बढ़ाने और संरचना को टिकाऊ बनाने के लिए कंक्रीट की बनी संरचनाओं जैसे पुलों, भवनों और सड़कों आदि में स्टील सुदृढीकरण सरियों, जिन्हे रीबार भी कहते हैं, का उपयोग किया जाता है। संक्षारक परतों (कोटिंग्स) जैसे निवारक उपायों का उपयोग करने के बाद भी, इन सरियों में जंग लगने की आशंका बनी रहती है। पानी का रिसाव, रसायनों आदि के संपर्क में आने और कंक्रीट की अवांछित लवणता एवं अम्लता जैसे कई कारक इस जंग का कारण बन सकते हैं। सही समय पर जंग का पता लगने से संरचनात्मक गिरावट की चेतावनी मिल सकती है जिससे मरम्मत और रखरखाव की लागत में काफी कमी आ सकती है। वर्तमान में, जंग की जांच के लिए सबसे अधिक प्रयोग की जाने वाली विधियाँ, जंग की विकरालता का सटीक अनुमान नहीं लगाती हैं और जिससे, संरचना के जीवन काल का सही अनुमान नहीं लग पाता है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई से प्राध्यापक सिद्धार्थ तल्लूर और प्राध्यापक सौविक बनर्जी के नेतृत्व में एक दल ने कंक्रीट में सुदृढीकरण सरियों में जंग की विकरालता को मापने के लिए एक सेंसर प्रोब विकसित की है। माप करने के लिए इस प्रोब को कंक्रीट संरचना की सतह पर रखा जा सकता है। प्रोब और सेंसर की रचना में सुधार और नई संकेत संसाधित (सिग्नल प्रोसेसिंग) तकनीकें इसे पारंपरिक माप तकनीकों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील और सटीक बनाती हैं। इस अनुसंधान को आंशिक रूप से भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग और संरचना स्ट्रक्चरल स्ट्रेंथिंग प्राइवेट लिमिटेड द्वारा वित्त पोषित किया गया है। इस शोध पर आधारित एक अध्ययन आईईईई सेंसर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
वर्तमान में उपयोग की जाने वाली विधियों में से एक, अर्ध-सैल विभव माप विधि में सुदृढीकरण सरियों के एक भाग को देखने के लिए संरचना में एक छेद किया जाता है। इस छिद्रित भाग को मापक यंत्र से जोड़ा जाता है। यह विधि संक्षारित और असंक्षारित भागों के विभिन्न विद्युत रासायनिक गुणों के कारण उत्पन्न वोल्टेज अंतर का उपयोग करती है। यह परीक्षण विनाशीय (इनवेसिव) विधि होने के साथ-साथ क्षरण की मात्रा न देकर केवल संक्षारण दर का एक संभाव्य अनुमान प्रदान करती है।
अविनाशक (Non-destructive ) परीक्षण विधियाँ, जो संरचना में किसी भी तरह का भेदन नहीं करती हैं, जंग का पता लगाने के लिए पदार्थ के विद्युत, चुंबकीय या ध्वनिक गुणों में परिवर्तन का उपयोग करती हैं। एक विद्युत प्रतिरोध प्रोब सुदृढीकरण सरियों के माध्यम से विद्युत प्रवाह को मापने के लिए कास्टिंग के समय कंक्रीट में स्थापित सेंसर का उपयोग करती है। जंग के परिणामस्वरूप प्रोब के प्रतिरोध में परिवर्तन होता है जिसे विद्युत संकेत में परिवर्तन के रूप में पाया जाता है। यध्यपि, इस तकनीक में संवेदनशीलता कम है, इसलिए इसका व्यापक रूप से उपयोग नहीं किया जाता है। एक अन्य अविनाशक परीक्षण विधि, ध्वनिक उत्सर्जन संवेदन है। जब जंग के कारण कंक्रीट में दरारें दिखाई देने लगती हैं, तो सुदृढीकरण सरियों के आसपास के कंक्रीट में बने तनाव से बनने वाली ध्वनि तरंगों को सेंसर समझ लेता है। तथापि, यह विधि सीधे जंग की विकरालता का अनुमान नहीं लगा सकती है और प्रारंभिक चरण के क्षरण अर्थात दरार बनने से पहले की स्थिति के प्रति संवेदनशील नहीं है।
वर्तमान अध्ययन सीधे जंग की विकरालता को मापने के लिए "स्पंदित एडी विद्युत धारा (pulsed eddy current) माप विधि" का उपयोग करता है। एक कुंडल (coil) के माध्यम से प्रवाहित एक विद्युत धारा एक चुंबकीय क्षेत्र बनाती है। जब ऐसी कुंडली को धातु के नमूने के पास रखा जाता है, तो यह चुंबकीय क्षेत्र नमूने में एडी धाराएं उत्पन्न करती है। ये धाराएं एक गौण चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती हैं जो कुंडल द्वारा उत्पादित मूल चुंबकीय क्षेत्र का विरोध करती है। प्रोब के अंदर एक चुंबकीय क्षेत्र सेंसर गौण चुंबकीय क्षेत्र का पता लगाता है और चुंबकीय क्षेत्र सापेक्ष वोल्टेज उत्पन्न करता है। चूंकि जंग संवाहक नमूने की सतह पर एक रोधक (इन्सुलेट) जंग परत बनती है जिससे स्पंदित एडी धारा कम हो जाती है। सेंसर इसे गौण चुंबकीय क्षेत्र के रूप में पकड़ लेता है।
स्पंदित एडी विद्युत धारा माप विधि का उपयोग व्यावसायिक रूप से तेल, गैस और पानी की पाइपलाइनों का निरीक्षण करने के लिए किया जाता है। इसमें एक प्रोब को पाइप की सतह के बहुत निकट या सीधे सतह पर रखा जा सकता है। यध्यपि, स्टील के सरिये कंक्रीट के अंदर गहरे दबे होते हैं, जिससे इनमें जंग का पता लगाने के लिए इस पद्धति का उपयोग करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसकेअतिरिक्त, सुदृढीकरण सरिये पाइप की अपेक्षा पतले होते हैं और बहुत कम सतह क्षेत्र प्रदान करते हैं। इसलिए उन्हें उच्च संवेदनशीलता और अधिक मूल्य के प्रोब्स की आवश्यकता होती है। तथापि, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई के शोधकर्ताओं ने सस्ते इलेक्ट्रॉनिक घटकों का उपयोग करके एक उच्च-प्रदर्शन प्रोब तैयार किया है, जिससे यह कम लागत वाला उपकरण बन गया है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई के शोधकर्ताओं ने एनआइसोट्रॉपिक मैग्नेटोरेजिस्टिव (AMR) सेंसर नामक अत्यधिक संवेदनशील चुंबकीय क्षेत्र सेंसर का उपयोग करके प्रोब की संवेदनशीलता में सुधार किया है। उन्होंने एक नई संकेत विश्लेषण (सिग्नल प्रोसेसिंग) विधि भी विकसित की है जो एक ज्ञात गणितीय तकनीक का उपयोग करती है जिसे प्रमुख घटक विश्लेषण कहा जाता है ताकि उन सभी घटकों की गणना की जा सके जिनका उपयोग AMR सेंसर आउटपुट सिग्नल से जंग की विकरालता की गणना करने के लिए कर सके। दल ने अपने इस आविष्कार के लिए भारतीय एकस्व (पेटेंट) के लिए भी आवेदन किया है।
शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में सरियों पर कृत्रिम रूप से जंग लगा कर इस प्रोब का परीक्षण किया क्योंकि प्राकृतिक रूप से जंग को विकसित होने में वर्षों लगते हैं। उन्होंने पाया कि प्रोब 5.5 सेंटीमीटर की दूरी पर इन सरियों में लगे जंग का पता लगा सकती है जो कि जंग का पता लगाने के लिए किसी भी अविनाशक विधियों के लिए अब तक की अधिकतम गहराई में से एक है। प्राध्यापक तल्लर कहते हैं कि, "हमने जो उपकरण विकसित किया है वह कम आयाम वाले पल्स और कॉम्पैक्ट प्रोब डिज़ाइन का उपयोग करता है इसलिए विशेष रूप से प्रभावशाली है। इसलिए यह शोध कार्य स्पंदित एडी विद्युत धारा तकनीक पर आधारित आकार में छोटे निरीक्षण उपकरण विकसित करने के लिए एक उल्लेखनीय सफलता है। "उनका मानना है कि इस तरह के प्रयोगशाला-आधारित परीक्षण नमूने सही रूप से उन नमूनों की प्रतिकृति होते हैं जो वर्षों से जंग का सामना कर रहे हैं। इसलिए, उनकी तकनीक अपने वर्तमान स्वरूप में वास्तविक परिस्थितियों में उपयोग करने योग्य है। अग्रगामी परियोजना क्षेत्र (पायलट फील्ड) अध्ययन करने के लिए शोधकर्ता प्रोब के लिए एक छोटा हाथ में रखने योग्य उपकरण विकसित करने पर काम कर रहे हैं।
निर्माता, भवन मालिक, सेवा प्रदाता कंपनियां, पाइपलाइन व भंडारण टैंक के मालिक, रखरखाव पेशेवर और ठेकेदार इस उपकरण का उपयोग सीधे अपने आधारभूत ढांचे के क्षरण की विकरालता को मापने के लिए कर सकते हैं। बुनियादी ढांचे के प्रकार और जंग की तीव्रता के आधार पर, वे संभावित उपचारात्मक कार्रवाई कर सकते हैं। इनमें रेट्रोफिटिंग और मरम्मत सम्मिलित हो सकते हैं या इसमें आवश्यक मरम्मत निर्धारित करने के लिए विशेष निगरानी और निरीक्षण की आवश्यकता वाले कमजोर स्थानों की पहचान करना भी हो सकता है।
शोध दल, वर्तमान में इस नवाचार के आधार पर एक हैंडहेल्ड (हाथो में रखने योग्य) स्कैनर उपकरण बना रही है जिसे ऑपरेटर न्यूनतम प्रशिक्षण के साथ संरचनात्मक निरीक्षण या सुरक्षा अंकेक्षण (ऑडिट) के लिए उपयोग कर सकते हैं। उन्होंने ऐसे एल्गोरिदम विकसित किये हैं जो उपकरण से जुड़े स्मार्टफोन ऐप में लागू किये जायेंगे। यह उपयोगकर्ता को सुदृढीकरण सरियों के स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में निर्बाध रूप से जानकारी प्रदान करता रहेगा । प्राध्यापक तल्लूर बताते हैं कि "हमारा लक्ष्य एक ऐसा उपकरण बनाना है जो उपयोग में इतना सरल हो कि कोई भी व्यक्ति जो स्मार्टफोन का उपयोग करना जानता है, वह किसी भी उपभोक्ता निर्देश पुस्तिका को देखे बिना इसका उपयोग करने में सक्षम हो"