शोधकर्ताओं ने द्वि-आयामी पदार्थों पर आधारित ट्रांजिस्टर निर्मित किये हैं एवं ऑटोनॉमस रोबोट हेतु अत्यंत अल्प-ऊर्जा के कृत्रिम तंत्रिका कोशिका परिपथ निर्मित करने में इनका उपयोग किया है।

ओनीर - शुद्ध पेय जल की परेशानी का हल सी.एस.आई.आर. के पास

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लखनऊ
22 अगस्त 2018

अच्छे स्वस्थ्य के लिए शुद्ध पेय जल एक महत्वपूर्ण ज़रूरत है। अशुद्ध जल पीने से हैज़ा, दस्त, पेचीस, हेपेटाइटिस-ए, और टायफॉइड जैसी बीमारियाँ होती हैं। भारत जैसे देश में, जहाँ २१ प्रतिशत संक्रामक बीमारियाँ दूषित जल के कारण फैलती हैं और साफ-सुरक्षित पेय जल की अनुपलब्धता के कारण प्रतिदिन ५०० से ज़्यादा बच्चे ५ वर्ष की आयु के भीतर ही  दस्त  के शिकार हो जाते हैं, शुद्ध पेय जल उपलब्ध कराना सर्वोपरि आवश्यकता है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सी.एस.आई.आर.) के भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (सी.एस.आई.आर. - आई.आई.टी.आर.) ने एक यंत्र विकसित किया है जो शुद्ध पेय जल की समस्या को हल करने में महत्वपूर्ण योगदान करेगा।

बाज़ार में जल शुद्धिकरण यंत्र नया नहीं है। परन्तु, इनमें से कई या तो बहुत महंगे होते हैं जिसका भार हर व्यक्ति वहन नहीं कर सकता या फिर उनका रख-रखाव बहुत महंगा पड़ता है। सी.एस.आई.आर.-आई.आई.टी.आर. के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित ओनीर नामक जल शुद्धिकरण यंत्र इन सबसे अलग है। यह एक इलेक्ट्रॉनिक यंत्र है जो सौर ऊर्जा से चलता है, और इससे प्राप्त एक लीटर शुद्ध पानी की लागत दो पैसे से भी कम आती है। जबकि अल्ट्रा वायलेट (यूवी) जल शुद्धिकरण यंत्र साफ दिखने वाले पानी में से सूक्ष्मजीवों का सफाया करते हैं, ओनीर खारे या गंदे पानी में से भी सूक्ष्मजीवों का सफाया करने में सक्षम है।

यह जल शुद्धिकरण यंत्र एनोडिक ऑक्सीकरण- ऑक्साइड फिल्म बनाने की एक विद्युतरासायनिक प्रक्रिया, के सिद्धांत पर काम करता है । सी.एस.आई.आर.-आई.आई.टी.आर. के निदेशक प्रोफेसर आलोक धवन का कहना है कि- “इस यंत्र में इस्तेमाल नवीन तकनीक से सभी रोग-जनक जीवों- वायरस, जीवाणु, फफूंद, प्रोटोज़ोआ और सिस्ट से छुटकारा पाया जा सकता है तथा यह तकनीक विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू. एच. ओ.) और पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ई.पी.ए.) द्वारा पीने योग्य पानी के लिए निर्धारित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार समुदायों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराती है।”

ओनीर दो संस्करणों में उपलब्ध है - घरेलू और व्यावसायिक। घरेलू संस्करण ५ मिनट में १० लीटर पानी की आपूर्ति कर सकता है और व्यावसायिक संस्करण एक घंटे में ४५० लीटर पानी की आपूर्ति कर सकता है। इस यन्त्र के अनूठे  मॉड्यूलर बनावट के कारण इसमे परिवर्तन करके प्रतिदिन पाँच हज़ार से एक लाख लीटर तक पानी का शुद्धिकरण किया जा सकता है। क्योंकि यह यंत्र सौर ऊर्जा संचालित है, यह दूर-दराज़ के गांवों के रहवासियों जहाँ बिजली की समस्या है और फेरीवालों को साफ पेय जल उपलब्ध करा सकता है।

यह पहला ऐसा पानी शुद्धिकरण यंत्र है जिसका रख-रखाव न के बराबर है। प्रोफेसर धवन के अनुसार इस यंत्र में एक स्मार्ट व्यवस्था अंतर्निहित होती है जो इसके परिचालन के भिन्न चरण की तात्कालिक जानकारी देता है और इसमें सेल्फ-क्लीन व्यवस्था के साथ पानी भरने के लिए स्वचालित बटन भी है जो  निरंतर  शुद्धपेय जल उपलब्ध करता है। इसके अलावा इसमें पानी को छानने के लिए किसी झिल्ली की आवश्यकता नहीं होती और इसलिए बार-बार  झिल्ली बदलने की भी कोई आवश्यकता नहीं है। यदि पानी में उच्च स्तर के संपूर्ण विघटित ठोस (टी.डी.एस.) या अन्य रासायनिक प्रदूषक मौजूद हैं तो विशेष प्री-फिल्टर का उपयोग किया जा सकता है।

अन्य तकनीकों के मुकाबले ओनीर को इस तरह बनाया गया है कि पानी में आवश्यक खनिजों का संरक्षण हो सके। “रिवर्स ऑस्मोसिस (आर.ओ.) जल शुद्धिकरण के उपयोग से सम्बंधित एक सामान्य समस्या है कि शुद्धिकरण प्रक्रिया के दौरान ज़रूरी खनिजों का ह्रास हो जाता है। ओनीर की अनूठी कीटाणुरोधक प्रक्रिया आवश्यक प्राकृतिक खनिजों को बरकरार रखती है और इस प्रकार यह हमारे स्वास्थ और कल्याण के लिए फायदेमंद भी है”, ऐसा प्रोफेसर धवन ने कहा।

सी.एस.आई.आर.-आई.आई.टी.आर. के वैज्ञानिकों ने ओनीर का व्यावसायिक प्रतिरूप जारी किया है और कई अवसरों पर इसका सफलतापूर्वक परीक्षण भी किया है। वास्तव में सी.एस.आई.आर.-आई.आई.टी.आर. के स्टॉफ ओनीर पेय जल का नियमित इस्तेमाल करते हैं। सी.एस.आई.आर. स्पोर्ट्स मीट और लखनऊ के किसान मेले के दौरान ५ हज़ार से ज़्यादा प्रतिभागियों को इसी यंत्र से पीने का पानी उपलब्ध कराया गया था।

ओनीर सभी के लिए साफ पेय जल उपलब्ध कराने का वादा करता है और यह  स्वस्थ देश की ओर बढ़ता हुआ एक सही कदम है। तो हम कितनी जल्दी इस यंत्र को  बाज़ार में देख पाएंगे? प्रोफेसर धवन के कथनानुसार, सी.एस.आई.आर.- आई.आई.टी.आर. लोगों की प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए पूरे लखनऊ में ५-६ प्रायोगिक इकाइयाँ लगाने की प्रक्रिया में है। यह तकनीक व्यावसायीकरण के लिए तैयार है और कई निजी कंपनियां इसमें अपनी दिलचस्पी ले रही हैं।