वैज्ञानिकों ने आरोपित विकृति के अंतर्गत 2-डी पदार्थों के परमाण्विक गुणों का सैद्धांतिक परीक्षण किया है।

पुनरुपयोगी हाइपरसोनिक वाहन (आर एच वी ) के लिए ऊष्मारोधी

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मुंबई
1 अप्रैल 2019
देश में हो रहा मूलभूत शोधकार्य, पुनरुपयोगी एवं आवाज़ से भी कहीं ज्यादा तेज़ चलने वाले वाहन के निर्माण के हमारे सपने को साकार करने में मदद कर सकता है।

देश में हो रहा मूलभूत शोधकार्य, पुनरुपयोगी एवं आवाज़ से भी कहीं ज्यादा तेज़ चलने वाले वाहन के निर्माण के हमारे सपने को साकार करने में मदद कर सकता है। 

कैसा हो यदि मुंबई से न्यूयॉर्क की दूरी सिर्फ २.५ घंटे में तय की जा सके ? यदि हाइपरसोनिक यात्री-यान वास्तव में मौजूद होते तो हमें कई घंटों तक वायुयान में तंग जगह में एक स्थिति में बैठे रहना नहीं पड़ता। एरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग, आई आई टी मुंबई के प्राध्यापक श्रीपाद पी. माहुलीकर के नेतृत्व में किये गए शोधकार्य हाइपरसोनिक वायुयान के डिज़ाइन को यथार्थ रूप देने के लिए आवश्यक आधार बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। अत्यंत तीव्र गति के कारण विमान के बाहरी तापमान में होने वाली वृद्धि की समस्या के समाधान के लिये शोधकर्ताओं ने विमान के ज्यामितिक रचना में परिवर्तन का सुझाव दिया है।

हाइपरसोनिक विमान वह विमान होते हैं जो आवाज़ से कई गुना तेज़ गति से चलते हैं और आज की तारीख में ये अंतरिक्ष और सैन्य एरोस्पेस अनुसंधान के क्षेत्र में अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण हैं । हाल ही में स्पेस-एक्स नाम की एक कंपनी ने पुनरुपयोगी हाइपरसोनिक प्रक्षेपण यान बनाने की योजना की घोषणा की है। चीन ने भी हाइपरसोनिक मिसाइल्स का सफल परीक्षण किया है। रूस और अमेरिका में भी हाइपरसोनिक शोध जोर-शोर से शुरु हो गए हैं।

प्राध्यापक माहुलीकर के अनुसार पुनरुपयोगी हाइपरसोनिक वाहन (आर एच वी) भविष्य में होने वाले अंतरिक्ष अभियान के लिए एक प्रमुख उम्मीदवार हैं क्यूँकि इनकी पुनरुपयोगिता के कारण अभियानकी  कुल लागत में कमी आएगी। अभी उपयोग किये जाने वाले प्रक्षेपण यानों में एक अतिरिक्त भार होता है जो प्रक्षेपण के बाद निकल जाता है अर्थात इसमें प्रक्षेपण के दो चरण होते हैं। प्राध्यापक माहुलीकर कहते हैं कि ऐसे आर एच वी से ,जो एक चरण में ही उपग्रह को कक्षा में ले जा सकेंगे ,भविष्य में अंतरिक्ष अभियानों  को बल मिलेगा और ऐसा सैटेलाइट के प्रति-किलोग्राम पर लगने वाली लागत में कमी आने से होगा। ये यान पूरी तरह से पुनरुपयोगी हैं क्यूँकि ये अपने लक्षित कक्षा में बिना कोई हार्डवेयर गवाँये पहुँच सकते हैं। हाइपरसोनिक आक्रमण यान से  सैन्य मिशन को भी बल मिलेगा क्यूँकि ये अपनी तेज गति के कारण अप्रत्याशित रूप से आक्रामक होंगे जो एक अभूतपूर्व बात होगी।

आर एच वी की गति आवाज़ की गति से पाँच गुना से भी ज्यादा (६००० कि.मी. प्रति घंटा (मैक-५ )) होती है और इनकी उड़ान ३५ कि.मी. से भी ज्यादा ऊँचाई पर होती है जब कि व्यावसायिक वायुयान जैसे कि बोईंग-७४७, सब-सोनिक (आवाज़ से कम गति (०.८ मैक) होते हैं और ये करीब ११ कि. मी. की ऊंचाई पर उड़ते हैं।

आर एच वी विमानों की तीव्र गति के कारण इनकी सही रुपरेखा तैयार करने में बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।  हाइपरसोनिक गति प्राप्त करने के लिए इन विमानों को विशेष इंजन, वायु के गतिरोध से निकली ऊष्मा का कुशल प्रबंधन और विमान की रुपरेखा में उचित परिवर्तन की आवश्यकता होती है। प्राध्यापक माहुलीकर का शोध जो आर एच वी की रुपरेखा एवं प्रारूप को तैयार करने में वायु गतिरोध से होने वाले ऊष्मा का आंकलन भी ध्यान में रखता है, हमें इन चुनौतियों का सामना व समाधान करने के लिए सहायता करेगा । 

हाइपरसोनिक गति पर उड़ान भरने में बाधाएँ 

विमान के बाहरी सतह पर हवा का बहाव वायुगतिकीय कर्षण बल उत्पन्न करता है जो विमान के आगे जाने में  प्रतिरोधी होता है। विमान के पंख ऐसे डिज़ाइन किये जाते हैं के हवा का कर्षण कम हो जिससे ईंधन की खपत भी कम होती है। इसके लिए विमान के डिज़ाइनर विमान के ज्यामितिक रुपरेखा में इस तरह बदलाव करते हैं जिससे विमान के भार में बहुत ही कम परिवर्तन हो।

हाइपरसोनिक विमानों में वायुगतिकीय कर्षण के कारण १६०० डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा बढ़ जाता है, इसे एरोडॉयनेमिक हीटिंग कहते हैं। इस कारण से विमान का डिज़ाइन करते समय डिज़ाइनर को वायुगतिकीय कर्षण के अलावा हीटिंग की समस्या को भी ध्यान में रखना पड़ता है। आर एच वी के सन्दर्भ में ऐरोथर्मल (वायु के कारण उत्पन्न ऊष्मीय) वातावरण के अध्ययन से एक विश्वसनीय थर्मल सुरक्षा तंत्र बनाया जा सकता है जो हाइपरसोनिक विमानों की जीवन रेखा है। 

हाइपरसोनिक विमान के एरोडायनेमिक हीटिंग की चुनौती का समाधान 

आवाज की गति से ज्यादा तेज चलने पर प्रघाती तरंग के कारण एक और कर्षण उत्पन्न होता है जिससे निपटने के लिए डिज़ाइनर्स ने पंख में एक स्वीपबैक का समावेश किया अर्थात पंख वहाँ से , जहाँ वे  वायुयान के ढाँचे से जुड़े होते हैं, पीछे की तरफ मुड़े होते हैं। ये मुड़ाव ० से ४५ डिग्री कोण या ज्यादा भी हो सकता है (उदाहरण के तौर पर फाइटर जेट (एफ -१६)। स्वीपबैक कोण में परिवर्तन करके वायुगतिकीय कर्षण को कम किया जाता है, न्यूनतम कर्षण प्राप्त करने के लिए आवश्यक कोण को न्यूनतम कर्षण स्वीपबैक कहा जाता है। 

चित्र १. स्वीपबैक कोण का चित्रित विवरण 

एयरोस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी पत्रिका में २००५ नवम्बर में  प्रकाशित एक सैद्धांतिक अध्ययन में प्राध्यापक माहुलीकर ने हाइपरसोनिक विमान के ढाँचे व पंख की रुपरेखा में संशोधन करने का प्रस्ताव रखा है। वे एक गणित आधारित व्युत्पत्ति तथा  संख्यात्मक अनुकरण के आधार पर यह दिखाते हैं कि ऐरोथर्मल गुणों को ध्यान में रखते हुए हाइपरसोनिक विमान का स्वीपबैक कोण न्यूनतम कर्षण स्वीपबैक से ज्यादा होना चाहिए।

एक आर एच वी, जो मैक-७ की गति से ३५ कि मी की ई ऊँचाई  पर उड़ सके, के लिए गणना अनुसार स्वीपबैक कोण ७९-८० डिग्री होना चाहिए जो न्यूनतम कर्षण स्वीपबैक (७३ डिग्री) से ज्यादा है। इस नए प्रस्तावित स्वीपबैक कोण के लिए वायुगतिकीय कर्षण में वृद्धि नगण्य है।

आमतौर पर देखे जाने वाले विमानों के मुकाबले हाइपरसोनिक विमानों की ज्यामितीय संरचना काफी भिन्न होती है।  आर एच वी का ढाँचा जो विमान को ऊपर उठाता है, एक सर्फ़बोर्ड  (सर्फिंग में उपयोग किया जाने वाला तख्ता) के आकार का होता है जिससे कर्षण काम हो।  चित्र २ में दर्शाये गए आर एच वी की नोज कैप की त्रिज्या बगल से देखा जाये तो कम है और ऊपर से देखने पर अधिक है ( नॉन ऍक्सिसिमट्रिक द्वि  वक्र नोज कैप)। 

चित्र २. आर एच वी के ढाँचे का प्रारूप 

२०१७ में एक्टा  एस्ट्रोनॉटिका और जर्नल ऑफ़ एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में प्रकाशित अध्ययन में प्राध्यापक माहुलीकर और उनकी टीम ने पहले प्रस्तावित सिद्धांतों  की संगणनात्मक पुष्टि की।  उन्होंने आर एच वी के नोज कैप और विमान ढाँचे से लगे स्वीपबैक के अग्रिम भाग (एस बी एल इ) जो सामने ऊपर की और होता है, के ऐरोथर्मल विशेषताओं का अध्ययन किया। इन्होने पाया की द्वि वक्री नोज कैप डिज़ाइन में नोज कैप का तापमान कम बढ़ता है बजाय एक्सीसिमेट्रिक डिज़ाइन के (सभी ओर सामान त्रिज्या वाली जैसा एक गोले का कैप)।

मैक संख्या ७ व ३५ कि  मी ऊँचाई पर विभिन्न स्वीपबैक कोण के लिए संख्यात्मक अनुकरण किये गए। इन अनुकरणों  के आधार पर ४० डिग्री स्वीपबैक पर आर एच वी के बाहरी सतह का तापमान १३३५ डिग्री सेल्सियस पाया गया और स्वीपबैक कोण को ७९ डिग्री करने पर तापमान घाट कर ९१४ डिग्री हो गया।  ७९ डिग्री से ज्यादा स्वीपबैक कोण करने पर तापमान फिर से बढ़ने लगा।  स्वीपबैक कोण जिस पर बाहरी सतह का तापमान न्यूनतम पाया गया उसको हीट ट्रांसफर न्यूनतम स्वीपबैक कहते हैं जो संकल्पना व संख्या दोनों ही आधार पर न्यूनतम कर्षण स्वीपबैक से भिन्न है।  अब तक के आर एच वी के डिज़ाइन में वायुगतिकीय गणना के लिए न्यूनतम कर्षण स्वीपबैक का प्रयोग होता रहा है।

प्राध्यापक माहुलीकर के अनुसार विमान ढाँचे के अग्रिम भाग और ऊपरी तथा निचली सतहों का तापमान   न्यूनतम कर्षण स्वीपबैक कोण की अपेक्षा  हीट ट्रांसफर न्यूनतम स्वीपबैक कोण  रखने पर बहुत ही कम पाया गया। ये परिणाम आर एच वी के लिए हलके थर्मल सुरक्षा तंत्र बनाने के लिए पदार्थों के चुनाव में उपयोगी हैं। इसीलिए  आर एच वी के लिए  हीट ट्रांसफर न्यूनतम स्वीपबैक कोण जो ८० डिग्री है उपयोग में लाना चाहिए, न कि न्यूनतम कर्षण स्वीपबैक, जो ७३ डिग्री है।

शोधकर्ताओं ने इस बात का भी अध्ययन किया के अग्रिम भाग की त्रिज्या में परिवर्तन से तापमान किस प्रकार कम किया जा सकता है। पारम्परिक रूप से अग्रिम भाग को सपाट रखा जाता है जो विमान के अंदर के तापमान को कम रखने में सहायक होता है।  शोधकर्ताओं ने संगणना में यह पाया के ८० डिग्री स्वीपबैक कोण पर अग्रिम भाग को और नुकीला करने से तापमान और कम हो रहा है।  उन्होंने यह पाया की ६० डिग्री से ज्यादा के स्वीपबैक कोण पर अग्रिम भाग को नुकीला बनाने से  एस बी एल इ सतह पर तापमान कम होता है।  इस अप्रत्याशित अवलोकन को थर्मली बिनाइन शार्प एस बी एल  इ इफ़ेक्ट कहते हैं।

ये नयी खोज निश्चित ही आर एच वी के डिज़ाइन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, पर हम हाइपरसोनिक विमान को प्रयोग में लाने में कहाँ तक पहुँच पाए हैं?  वास्तव में हम अभी इससे काफी दूर हैं, करीब कुछ दशक और, ऐसा शोधकर्ताओं का मानना है। इस सन्दर्भ में एक और बहूत ही महत्त्वपूर्ण  शोध का विषय है एक ऐसे इंजन को बनाना जो सुपरसोनिक गति पर ईंधन दहन को बनाये रखे तथा अपने बाहर और भीतर के उच्च तापमान पर काम कर सके। एक पूर्ण रूप से संचालित हाइपरसोनिक यात्री यान की व्यवस्था के लिए कुछ और भी आवश्यक बातें है जैसे थोक मात्रा में कल पुर्जों का निर्माण और संयोजन के लिए व्यवस्था। जब तक ये सभी चीजें अस्तित्व में नहीं आ जाती तब तक के लिए हमें भारत से अमेरिका जाने लिए १८ लम्बे घंटों तक एक ही जगह बैठे रह कर यात्रा करनी पड़ेगी, इस आशा में कि कब हम हाइपरसोनिक गति से यात्रा का पाएंगे! 

यह लेख नीचे दिए शोध कार्यों पर आधारित है :

१. थियोरेटिकल ऐरोथर्मल कॉन्सेप्ट्स फॉर कॉन्फ़िगरेशन डिज़ाइन ऑफ़ हाइपरसोनिक वेहिकल्स।

२. ट्रान्जिएंट ऐरोथर्मल मैपिंग ऑफ़ पैसिव थर्मल प्रोटेक्शन सिस्टम फॉर नोज कैप ऑफ़ रीयूजेबल हाइपरसोनिक वेहिकल। 

३. ऐरोथर्मल एनालिसिस फॉर कॉन्फ़िगरेशन डिज़ाइन ऑफ़ स्वेप्ट लीडिंग एज हाइपरसोनिक वेहिकल।

४. ऐरोथर्मल एनालिसिस ऑफ़ लिफ्टिंग बॉडी कॉन्फ़िगरेशंस इन हाइपरसोनिक फ्लो।