भारतीय स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था पद्धति के सफल अंगीकरण हेतु आवश्यक कारकों की पहचान करता आईआईटी मुंबई का नवीन अध्ययन।

सुपर कंप्यूटरों के लिए एक नूतन शीतलन विकल्प

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Mumbai
13 जून 2024
छवि श्रेय: परीक्षित बढे, साइंटिफिकली द्वारा संपादित

लैपटॉप, स्मार्टफोन या इस प्रकार के अन्य उपकरणों के साथ कार्य करने वाले सभी लोग इस तथ्य से भलीभांति परिचित हैं कि किसी भी संगणन युक्ति के संचालन में ऊष्मा एक अपरिहार्य कारक है। दीर्घावधि उपयोग या गेमिंग जैसे भारी कार्य बहुधा इस समस्या में वृद्धि उत्पन्न करते हुए अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न करते हैं। उपयोगकर्ता की असुविधा के साथ-साथ, यह ताप वृद्धि संगणन युक्ति के लिए विभिन्न संकट उत्पन्न करती है, जिसमें प्रदर्शन अधोगति से लेकर संभावित यन्त्रांश विफलताएं (हार्डवेयर फेल्योर) सम्मिलित हैं।

एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के अन्दर स्थित प्रत्येक तत्व, एकीकृत परिपथ हो, रेज़िस्टर हो या कपैसिटर हो, तापवृद्धि में योगदान करता है, एवं उपकरण के इष्टतम क्रियान्वयन (ऑप्टिमम फंक्शन) हेतु एक आदर्श संचालन तापमान की आवश्यकता को बल देता है। तापमान का अपनी इष्टतम सीमा से अधिक होना, न केवल विभिन्न घटकों को अपितु समग्र उपकरण के प्रदर्शन को संकट में डाल देता है। उपकरण के प्रदर्शन एवं दीर्घायु निर्वाह के लिए किसी भी प्रकार की अतिरिक्त उष्णता को दूर करना नितांत आवश्यक होता है।

लैपटॉप एवं मोबाइल जैसे छोटे-छोटे उपकरण किसी भी अतिरिक्त ऊष्मा को दूर करने हेतु परंपरागत रूप से लघु आकार के पंखे का उपयोग करते हैं, जो इनमें वायु का प्रवाह करते हैं। उच्च-प्रदर्शन संगणन तंत्र (हाई परफोर्मेंस कंप्यूटिंग सिस्टम्स; एचपीसी) या सुपर कंप्यूटर जैसी बड़ी एवं अधिक जटिल प्रणालियाँ, अतिरिक्त ऊष्मा हटाने हेतु तरल शीतलक एवं शीतल-पट्टिकाओं (कोल्ड प्लेट्स) का उपयोग करती हैं। एक नवीनतम अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी मुंबई) एवं सेंटर फॉर मैटेरियल्स फॉर इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्नोलॉजी (सी-मेट), पुणे के शोधकर्ताओं के एक दल ने पारंपरिक ताम्र शीतल-पट्टिकाओं के एक कुशल विकल्प के रूप में अल्प-तापमान सह-प्रज्ज्वलित सिरेमिक अर्थात एलटीसीसी (लो-टेम्परेचर को-फायर्ड सिरेमिक) का उपयोग करने का प्रस्ताव दिया है।

तरल शीतलित उपकरणों में अतिरिक्त ताप को दूर करने हेतु विआयनीकृत जल (डीआयोनाइज्ड वाटर अर्थात विद्युत आवेश से रहित जल) जैसे किसी तरल शीतलक को प्रणाली में प्रवाहित किया जाता है। शीतल-पट्टिकाओं का ताप निमज्जक (हीट सिंक) के रूप में उपयोग किया जाता है जो परिपथ घटकों से उष्णता ग्रहण कर इसे तरल शीतलक को स्थानांतरित करता है। उच्च तापीय चालकता एवं अल्प लागत के कारण शीतल-पट्टिकाओं के निर्माण के लिए ताम्र धातु एक प्राथमिक पदार्थ है।

“उच्च तापीय चालकता के कारण उच्च-प्रदर्शन संगणन तंत्रों (एचपीसी) में शीतलन के लिए ताम्र की शीतल-पट्टिकाओं का बड़े स्तर पर उपयोग किया जाता है। यद्यपि भार, संक्षारण (करोजन) संवेदनशीलता एवं जटिल निर्माण कार्यान्वयन जैसी चुनौतियों के रूप में ताम्र की अपनी सीमाएँ हैं,” वरिष्ठ परियोजना सहायक परीक्षित बढे स्पष्ट करते हैं। परीक्षित आईआईटी मुंबई के यांत्रिक अभियांत्रिकी विभाग के छात्र है एवं यह शोधकार्य उन्होंने आईआईटी मुंबई के प्राध्यापक शंकर कृष्णन एवं प्राध्यापक मिलिंद अत्रे के मार्गदर्शन में किया है।

एलटीसीसी तकनीक का उपयोग परिपथ के लिए सिरामिक के अध:स्तर (सब्सट्रेट्स) निर्मित करने हेतु किया जाता है। अध:स्तर ऐसे पदार्थ होते हैं जिन पर विद्युतीय अंतर्संयोजन (इलेक्ट्रिकल इंटरकनेक्शन) मुद्रित होते हैं तथा रेज़िस्टर, इंडक्टर एवं कपैसिटर जैसे अन्य घटक लगे होते हैं। पीसीबी (प्रिंटेड सर्किट बोर्ड या मुद्रित सर्किट बोर्ड) हमारे दैनिक जीवन के उपयोगी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में सर्वाधिक उपयोग किया जाने वाला अध:स्तर है। एलटीसीसी प्रौद्योगिकी, परिपथ के सुसंबद्ध (कॉम्पैक्ट) त्रि-आयामी संकुलन (थ्री-डी पैकिंग) का मार्ग प्रशस्त करती है, जिससे वे पारंपरिक पीसीबी की तुलना में छोटे एवं अधिक कुशल हो जाते हैं।

“एलटीसीसी तकनीक सिरामिक प्रिंटेड सर्किट बोर्ड के लिए पूर्व से ही एक स्थापित विनिर्माण पद्धति है। एलटीसीसी अध:स्तर का उपयोग उच्च तापमान सहन करने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, जैसे कि वाहन एवं रक्षा क्षेत्र के उपकरणों में बड़े स्तर पर किया जाता है,” परीक्षित टिप्पणी करते हैं।

इस नवीन अध्ययन के अनुसार शीतल-पट्टिका निर्मित करने हेतु एलटीसीसी संकुल में सूक्ष्म प्रवाही वाहिकाएं (माइक्रोमीटर आकार के ‘माइक्रोफ्लुइडिक’ चैनल, जिनमे द्रव का प्रवाह हो सके) निर्मित की जा सकती हैं। इन शीतल-पट्टिकाओं के ऊष्मीय परीक्षण से ज्ञात हुआ है कि ताम्र शीतलक-पट्टिकाओं के समान ही ये तापमान को सफलतापूर्वक सुरक्षा सीमा के नीचे सीमित कर सकती हैं एवं सुपर कंप्यूटर की माइक्रोप्रोसेसर चिप्स को प्रभावी रीति से शीतल कर सकती हैं। यह संकल्पना-सिद्धि प्रदर्शन (प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट डेमो) एक महत्वपूर्ण खोज है जो इन शीतलन समाधानों को चिप-संकुल में एकीकृत करने का मार्ग प्रशस्त करता है। मुख्यतः यह शोध इस अवधारणा को मान्यता प्रदान करता है कि यदि कोई चिप एलटीसीसी तकनीक के उपयोग से निर्मित की जाती है, तो उसी संकुल में सूक्ष्म प्रवाही वाहिकाओं को भी सम्मिलित किया जा सकता है। इससे शीतलक द्रव चिप-संकुल में गहनता पूर्वक प्रवेश कर उष्ण क्षेत्रों का स्थानगत (लोकलाइज्ड) शीतलन कर सकता है।

यद्यपि एलटीसीसी के सम्मुख एक बड़ी चुनौती भी है – इसकी तापीय चालकता ताम्र की तुलना में 100 गुना कम है। इसका अर्थ यह है कि शीतलन प्रणालियों के मुख्य कार्य अर्थात ताप संचालन (हीट डिसीपेशन) में इसकी अपेक्षाकृत कुशलता कम है। शोधकर्ताओं ने एलटीसीसी शीतल-पट्टिका में थर्मल व्हायाज नामक धातु से भरे हुए छोटे-छोटे छिद्र निर्मित करके इस बाधा को दूर कर लिया है। सीएमईटी-पुणे की डॉ. शैनी जोसेफ के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक दल ने अपनी प्रयोगशाला में इन शीतलन-पट्टिकाओं को निर्मित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

परीक्षित के अनुसार, “थर्मल व्हायाज को युक्तिपूर्वक शीतल-पट्टिकाओं के निचले तल में समाविष्ट किया गया है। इससे शीतल-पट्टिकाओं के अन्दर निर्मित सूक्ष्म वाहिकाओं (माइक्रोचैनल्स) के माध्यम से चिप से शीतलक तक अधिक दक्ष ऊष्मीय हस्तांतरण हो सकता है”।

थर्मल व्हायाज के कारण एलटीसीसी की ऊष्मा चालकता में प्रगति हुई एवं ऊष्मीय प्रतिरोध में 43% का भारी ह्रास देखा गया।

चटकने एवं टूटने की प्रवृत्ति एलटीसीसी शीतलन-पट्टिकाओं के मार्ग में एक अन्य चुनौती है।

“सिरामिक पदार्थ होने के कारण असमान तन्यता भार (अनइवेन टेंसाइल लोडिंग) के अंतर्गत एलटीसीसी के चटकने का संकट है। इस समस्या के समाधान हेतु एक नवीन क्लैंपिंग तंत्र विकसित किया गया। इससे यह सुनिश्चित किया जा सका कि शीतलन-पट्टिकाओं को सक्रिय पटलों (लाइव बोर्डों) पर आरोपित करते समय असमान त्रोटन से प्रभावित हुए बिना शीतल-पट्टिकायें सुरक्षित रह सकें, ” परीक्षित कहते हैं।

शोधदल ने शीतलक के रूप में विआयनीकृत जल के साथ Intel® Xeon® Gold 6154 सीपीयू पर एलटीसीसी शीतल-पट्टिकाओं के प्रदर्शन का परीक्षण किया तथा ताम्र शीतल-पट्टिकाओं से इसके प्रदर्शन की तुलना की। दल ने जेआई एवं एमसी नामक दो प्रवाह पद्धतिओं का भी परीक्षण किया, जो यह निर्धारित करते हैं कि तरल शीतलक एलटीसीसी शीतल-पट्टिकाओं में किस प्रकार से प्रवेश करता है एवं प्रवाहित होता है।

“एमसी प्रवाह व्यवस्था में शीतलक एक ओर स्थित प्रवेशिका (इनलेट) से प्रवेश करता है एवं दूसरी ओर स्थित निर्गम (आउटलेट) से बाहर निकलता है। जेआई प्रवाह व्यवस्था में शीतलक, केंद्र में स्थित एक प्रवेशिका से प्रवेश करता है तथा पार्श्व में स्थित दो निर्गमों से बाहर निकलता है, ” परीक्षित बताते हैं।

जहाँ एमसी व्यवस्था में शीतलन-पट्टिकाओं के पूर्ण विस्तार तक शीतलक प्रवाहित होता है, वहीं जेआई व्यवस्था ऊष्णक्षेत्र (हॉटस्पॉट) के स्थानगत शीतलन पर केन्द्रित हो सकती है। प्रोसेसर की अधिकतम शक्ति पर कार्य करते हुए एलटीसीसी शीतल-पट्टिकाएं दोनों प्रवाह पद्धतिओं के साथ प्रोसेसरके तापमान को सुरक्षा सीमा से नीचे सीमित करने में सफल रहीं।

MC and JI Flow arrangements on an LTCC cold plate. Credits: Parikshit Badhe.
एलटीसीसी शीतल-पट्टिका पर एमसी एवं जेआई प्रवाह व्यवस्था। छवि श्रेय: परीक्षित बढे

कार्य पर आगे बढ़ते हुए शोधदल एलटीसीसी शीतल-पट्टिकाओं की युक्ति (डिजाइन) एवं कार्यक्षमता में और प्रगति लाने पर विचार कर रही है।

“वर्तमान में निर्मित की गई शीतल-पट्टिकाएं 200 वॉट तक की प्रोसेसर सीमा हेतु सिद्ध की गई हैं। यद्यपि ऊष्मा के चालन में वृद्धि के लिए शीतल-पट्टिकाओं के आधारतल पर इलेक्ट्रोप्लेटिंग की क्षमता का परीक्षण किया जा सकता है। यह शीतल-पट्टिकाओं के उच्च ताप निवेश (हाई हीट इनपुट) को प्रभावी रीति से समायोजित करने में सहायक हो सकता है, ” प्राध्यापक अत्रे अपने कार्य की भविष्य की दिशा को इंगित करते हुए कहते हैं।

यदि एलटीसीसी-आधारित एकीकृत शीतल-पट्टिका तकनीक का सफलतापूर्वक व्यवसायीकरण होता है, तो इस तकनीक में, पारंपरिक शीतलन प्रणाली एवं चिप-पैकेजिंग को प्रतिस्थापित करने की क्षमता है। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि वर्तमान सुपर कंप्यूटर चिप्स के लिए एलटीसीसी शीतल-पट्टिकाओं के उपयोग का प्रदर्शन 3डी इंटीग्रेटेड सर्किट्स पर चल रहे शोध की दिशा में एक महत्वपूर्ण सफलता है।