ताँबा (कॉपर) मानव में तंत्रिका और प्रतिरक्षा प्रणाली के सुचारू कामकाज के लिए एक आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व है। यह पौधों के विकास और प्रजनन में भी एक महत्त्वपूर्ण एवं नियामक भूमिका निभाता है। शरीर मे ताँबे की कमी रक्त और तंत्रिका तंत्र से संबंधित विकारों का कारण बनती है जबकि इसकी अतिरिक्त मात्रा जहरीली हो सकती है जिसके परिणामस्वरूप अल्ज़ाइमर रोग और सूजन संबंधी विकार उत्पन्न हो जाते हैं। हाल ही के एक अध्ययन में बायोसाइंसेज और बायोइंजिनियरिंग विभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई से, प्रोफेसर मुखर्जी और उनकी टीम ने रक्त और हमारे चारों ओर मिलने वाली मिट्टी और पानी के स्रोत में ताँबेकी मात्रा को मापने के लिए कम मूल्य का एक नवीनतम एवं सटीक ऑप्टिकल सेंसर पर आधारित उपकरण तैयार किया है।
मिट्टी में ताँबेकी संतुलित मात्रा अच्छी फसल दे सकती है। ताँबेकी अपर्याप्त मात्रा प्रकाश संश्लेषण, श्वसन, प्रजनन और रोग प्रतिरोध को प्रभावित करके फसल को कम करती है। जल निकायों में ताँबे की अत्यधिक मात्रा मछलियों के लिए भी घातक हो सकती है। ताँबे से बनी पानी आपूर्ति के पाइपलाइनों का संक्षारण नल के पानी में अतिरिक्त ताँबे की मात्रा का कारण बन सकता जिसके उपयोग से मनुष्यों को उपरोक्त व्याधियों का सामना करना पड़ सकता है। इसीलिए हमारे आसपास के इलाकों में मिट्टी और पानी में संतुलित ताँबे की मात्रा सुनिश्चित करने एवं सटीक रूप से मापने के लिए एक विश्वसनीय और आसानी से उपयोग मे आने वाले उपकरण की आवश्यकता है।
फ़िलहाल प्रयोगशाला मे ताँबे की मात्रा को मापने के लिए होने वाली जाँच महँगी एवं अधिक समय लेने वाली होती है और इसमें परिष्कृत उपकरणों एवं कुशल तकनीशियन की आवश्यकता होती है। आजकल उपलब्ध कुछ फ़ील्ड सेंसरों में ज्यादा नमूने लेने की आवश्यकता होती है , इनकी संवेदनशीलता घटिया होती है और अशुद्धता के चलते ताँबे की एकाग्रता को मापना चुनौतीपूर्ण होता है। आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं द्वारा डिज़ाइन किया गया ये उपकरण इन कमियों को दूर करता है। इसका उपयोग रक्त सीरम, मिट्टी और प्राकृतिक जल निकायों जैसे नमूनों की एक विस्तृत श्रृंखला पर भी किया जा सकता है जो हाल की जाँच पद्धति में संभव नहीं है। । हाल ही में शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन को जियोसेंसर्स और बायोइलेक्ट्रॉनिक पत्रिका में प्रकाशित किया है।
इस अध्ययन द्वारा विकसित सेंसर ताँबेकी मात्रा का पता लगाने के लिए मानव प्रतिरक्षा प्रणाली के प्रोटीन 'इम्यूनोग्लोबुलिन' का उपयोग करता है। प्रोफेसर मुखर्जी ने इस अध्ययन की नवीनता के बारे में सूचित करते हुए कहा कि हमारी जानकारी के अनुसार, यह ऐसा पहला अध्ययन है जहां मानव इम्यूनोग्लोबुलिन को ताँबा आयनों के चुनिंदा पहचान के लिए प्रयोग लिया गया है।
शोधकर्ताओं ने एक ऑप्टिकल फाइबर के कोर को पॉलीएनीलिन (जो एक बहुलक है और बिजली का संचालन कर सकता है) से लेपित किया। उन्होंने इम्यूनोग्लोबुलिन को पूर्व संसाधित किया ताकि इसकी संरचना ताँबेके साथ बेहतर परस्पर प्रभाव करने के लिए संशोधित की जा सके और इसे पॉलीएनीलिन कोटिंग के साथ जोड़ा जा सके । नमूने में मौजूद ताँबे के कारण होने वाली रासायनिक प्रतिक्रिया पॉलीएनीलिन कोटिंग के प्रकाश अवशोषण को बदल देती है। यह परिवर्तन जो नमूने में ताँबे की एकाग्रता के आनुपातिक है, मापन मे प्रयोग किया जाता है।
प्रोफेसर मुखर्जी बताते हैं कि कैसे यह उपकरण ताँबे को चुनिंदा तरीके से पहचानता है - “ हालाँकि भारी धातुओं में भी इम्यूनोग्लोबुलिन के लिए एक आकर्षण है लेकिन यह ताँबे जितनी मजबूत नहीं है। ताँबे की तरह अन्य खनिज पॉलीएनीलिन की सतह पर इम्यूनोग्लोबुलिन के साथ परस्पर प्रभाव नहीं डालते । इसलिए पॉलीएनीलिन की सतह पर ताँबेऔर इम्यूनोग्लोबुलिन जी के साथ परस्पर प्रभाव के कारण यह सेंसर अन्य खनिजों की तुलना में तांब ताँबेका अधिक सटीकता से मापन करता है।,” प्रो मुखर्जी समझाते हैं।
उपकरण में एक सरल , कम लागत वाली एलईडी लाइट,के ऑप्टिकल फाइबर और प्रकाश के अवशोषण को मापने के लिए ऑप्टिकल डिटेक्टर को जोड़ने के लिए कप्लर्स हैं।“परंपरागत रूप से शोधकर्ता महंगे स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (एक उपकरण जो प्रयोगशाला-आधारित प्रयोगों में डिटेक्टर के रूप में नमूनों द्वारा अवशोषित प्रकाश की मात्रा को मापने के लिए उपयोग किया जाता है) का उपयोग एक डिटेक्टर की तरह करते हैं। वर्तमान उपकरण में हमने स्पेक्ट्रोफोटोमीटर को एक साधारण इलेक्ट्रॉनिक सर्किट के रूप मे बदल दिया है जो एक ऑप्टिकल उपकरण का उपयोग करता है और इस पूरे सेटअप को एक छोटा पोर्टेबल एकीकृत उपकरण बना दिया है ताकि इसे किफायती और किसी भी कार्यक्षेत्र में जाकर लगाने लायक बनाया जा सके,” प्रो मुख़र्जी ने बताया।
यह उपकरण एक लीटर पानी में 1 मिलीग्राम के अरबवें हिस्से से लेकर 1 मिलीग्राम तक एक विस्तृत फैलाव में ताँबे की मात्रा का पता लगा सकता है। हमारे रक्त मे उपस्थित ताँबे की मात्रा की एकदम सही गणना करता है। मिट्टी के लिए यह उपकरण पौधों के विकास (0.5 मिलियन भाग पर) के लिए आवश्यक न्यूनतम मान की तुलना में ताँबे के निचले स्तर (0.2 मिलियन भाग पर) की मात्रा का पता लगा सकता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस उपकरण का उपयोग करना इतना आसान है कि किसान और मछुआरे तक आसानी से इसका उपयोग कर सकते हैं। इससे हम यह भी जाँच सकते हैं कि हमारे पीने के पानी में ताँबे की सांद्रता विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सांद्रता की सीमा के भीतर है या नही।
शोधकर्ताओं ने रक्त, मिट्टी और पानी के नमूनों का उपयोग करके उपकरण का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। प्रोफेसर मुखर्जी बताते है - " अब हम इम्यूनोग्लोबुलिन-जी की शेल्फ लाइफ पर काम कर रहे हैं ताकि सेंसर कार्ट्रिज उपयोगकर्ताओं द्वारा उपयोग से काफी लंबे समय पहले ही खरीदा और संरक्षित किया जा सके। हम उपकरण को अधिक मजबूत बनाने के लिए उपकरण के डिज़ाइन पर भी काम कर रहे हैं। इस उपकरण के औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया भी चालू है।," ऐसा कहकर प्रो मुख़र्जी ने अपनी बात समाप्त की।