कल्पना कीजिये आप एक इंटरव्यू में बैठे है, काफी घबराये हुए हैं, लेकिन फिर भी अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखते हुए अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। तभी अचानक आप अपने अंदर कुछ ऐसा महसूस करते हैं जिसे आप अपनी तमाम कोशिशों के बाद भी रोक नहीं पाते। उससे होने वाली क्षति को नियंत्रण में रखने के लिए आप अपना मुंह बंद रखने का संपूर्ण प्रयास करते हैं और परिणाम स्वरूप आपके नाक के नथुने फूल जाते हैं, होंठ टेड़े हो जाते हैं और ना चाहते हुए भी आपकी आंसू भरी आंखें सब कुछ जाहिर कर देती हैं। आपकी उबासी को रोकने की सारी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं।
२५०० सालों बाद भी वैज्ञानिक उबासी की गुत्थी को नहीं सुलझा पाए हैं। अगर हम शुरुआत हिप्पोक्रेट्स के साथ करें तो वे यह मानते थे कि उबासी ख़ास तौर पर बुखार के समय शरीर से हानिकारक हवा को निकालने में सहायक है।“उबासी हमारे रक्त में ऑक्सीजन का प्रवाह तेज करती है” जैसे शारीरिक सिद्धांत से लेकर, “उबासी बात करने का एक प्रारंभिक रूप था” जैसे विकासवादी सिद्धांत तक कई सारे सिद्धांत अब तक दिए जा चुके हैं। आम धारणा के विपरीत, उबासी ऊब जाने का संकेत नहीं है। जबकि, हो सकता है, ये एक तनाव को झेलने का तरीका या प्रयास है।अध्ययन यह बताते हैं कि पैराट्रूपर अपने विमानों से कूदने से पहले और ऐथलीट्स दौड़ने के पहले उबासी लेते हैं। इसी तरह स्तनधारियों से लेकर कशेरुकी शिकारी जैसी मछलियों तक को अपना शिकार करने से पहले उबासी लेते हुए पाया गया है।
हालाँकि, अभी तक ऐसा कोई भी सर्वमान्य सिद्धांत नहीं आया है कि मनुष्य उबासी क्यों लेते हैं? हाल ही में अल्बानी विश्वविद्यालय में हुए अध्ययन के अनुसार, मनुष्य अपने मस्तिष्क का तापमान कम करने के लिए उबासी लेते हैं और अपने आपको किसी भी संभावित खतरे से सतर्क रखते हैं। जबड़े में होने वाली प्रबल गतिविधि मस्तिष्क के सभीं ओर रक्त का प्रवाह सुनिश्चित करती है। गहरी सांस की वजह से ठंडी हवा साइनस गुहिका के अंदर और कैरोटिड धमनी के आसपास अंदर प्रवेश करते हुए मस्तिष्क में वापस आती है। इसके अलावा ऐसा भी हो सकता है कि ठंडी हवा की सख्त गतिविधि साइनस मेम्ब्रेन को मोड़ कर साइनस गुहिका से गुजरते हुए म्यूकस को वाष्पित करती हो, जो हमारे मस्तिष्क को एयर कंडीशनिंग की तरह ठंडक देती हो ।
यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जब लोग आलस्य की वजह से अधिक कमजोर महसूस करते हैं, तब कंप्यूटर में लगे पंखे के तरह ही उबासी भी ठंडी हवा को मस्तिष्क के अंदर ले जाती है और न्यूरोलॉजिकल प्रक्रिया को अनुकूलित बनाती है। ठंडे दिमाग से आदमी अधिक स्पष्ट रूप से सोच सकता है, अतः, यह संभव है कि हमें सतर्क रखने के लिए उबासी की क्रिया हमारे शरीर में विकसित हुई हो।