वैज्ञानिकों ने आरोपित विकृति के अंतर्गत 2-डी पदार्थों के परमाण्विक गुणों का सैद्धांतिक परीक्षण किया है।

​क्या उपनगर अपने लक्ष्य से भटक गए हैं?

Read time: 1 min
मुंबई
1 अगस्त 2018
फोटो: प्रथम, CC BY 3.0

भारत की बढ़ती हुयी आबादी के लिए शहरी क्षेत्रों में किफायती आवास इकाइयों की कमी है। मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों में अचल सम्पत्ति की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी हुई है, जो मध्यम वर्गीय परिवारों को इन बड़े शहरों से​ नज़दीकी क्षेत्रों की ओर स्थानांतरित होने के लिए मजबूर कर रहें है। आज सभी इस बात से सहमत हैं कि इन 'नये शहरों' जैसे मुंबई के निकट नवी मुंबई और कोलकाता के पास राजारहाट  का विकास न केवल मूलभूत बुनियादी ढांचों के दबाव को बल्कि आम जनसंख्या की आवासीय समस्या को भी संबोधित कर सकता है। किंतु, किफायती आवास की समस्या को सुलझाने में यह नए शहर कितने प्रभावी हुए हैं?

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) में शोधकर्ताओं के एक अध्ययन से पता चलता है की विभिन्न नीतियों तथा रियल एस्टेट बाजार की बढ़ती कीमतों के चलते  मध्यम आय के परिवारों लिए आवास की समस्या अभी भी पूर्ववत है।

मुंबई जैसे शहरों में, ज्यादातर लोग बस्तियों में मूलभूत सुविधाओं की कमी में जीते​ हैं।  आईआईटी मुंबई के प्राध्यापक अर्नब जाना का मानना है कि "भारतीय शहरों में अनौपचारिक  (अशासनिक) बस्तियों की तेजी से बढ़ती संख्या को काफी हद तक अनियोजित शहरीकरण के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, हाउसिंग बोर्ड प्राधिकारियों द्वारा शहर की आबादी की आवास मांग को पूरा करने के लिए रणनीतिक योजनाओं को सक्रिय रूप से पूरा करने के लिए कम प्रयास किये गए है”। अंतराष्ट्रीय जर्नल “सिटीज्” में प्रकाशित प्रोफेसर जाना के इस अध्ययन का मुख्य निष्कर्ष यह है कि यदि हम आवास की समस्या का एक संभव समाधान चाहते है तो हमें उपनगरों को योजनागत शैली से विकसित करना होगा।

किंतु इस शहरी आवास संकट की का मूल क्या है? इसका एक कारण शहरों की बढ़ती प्रवासियों की संख्या एवं उसी तेज़ी से बढ़ती हुई आवासों की ज़रूरत है। हालाँकि, शोधकर्ताओं ने पाया कि यह तथ्य केवल आंशिक रूप से सही था। वास्तव में, शहरों में ज़्यादातर मकान निजी बिल्डरों की रणनीतियों की वजह से ख़ाली हैं, चूँकि उनका ध्यान उच्च-लागत वाले अपार्टमेंट्स के निर्माण पर केंद्रित है, जो मुख्य रूप से उच्च आय वाले समूहों के लिए ही होते हैं।

प्रोफ़ेसर ​जाना कहते हैं कि, "हालाँकि आवास के मुद्दे को हल करने के लिए कई सरकारी योजनायें बनायी गयी हैं, किंतु इन में से किसी भी योजना का प्रभाव संतोषजनक नहीं रहा है। इसका मुख्य कारण आवासीय क्षेत्र में अचल संपत्ति की अत्यधिक महँगी क़ीमत है, जिसके चलते शहरों में निर्मित आवास आम जनता के सामर्थ्य से बाहर होते है एवं खाली रह जाते है।” इन सब अनियमितताओं से मध्यवर्ग के लोग सबसे अधिक प्रभावित रहे ​क्योंकि वे सरकार की अधिकांश योजनाओं के लिए  अयोग्य हैं और निजी बिल्डरों द्वारा बनाए गए घर आम जनता ​उनकी सामर्थ्य से कहीं अधिक महँगे होते हैं।

नवी मुंबई में शहर और औद्योगिक विकास निगम (सिडको) किफायती आवास के निर्माण के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने यह अनुमान लगाया था कि नवी मुंबई की अनुमानित आबादी २० लाख  तक पहुंच सकती है। हालांकि, २०११ की जनगणना के अनुसार शहर की जनसंख्या केवल ११ लाख थी। यही स्थिति कोलकाता के पास राजारहाट में भी पायी गयी। इसलिए, कई आवास इकाइयां या तो खाली रह गईं या बहुत कम लोग उन आवासों में रह रहे हैं।  प्रोफेसर जाना ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, “उपनगरों की मजबूत आर्थिक खिंचाव उत्पन्न करने में असमर्थता उनकी असफलता का कारण है।” वह यह भी कहते हैं कि यही हाल किसी अन्य बड़े शहर का भी हो सकता है।

तो क्या हम वास्तव में इन उपनगरों को सफल बना सकते हैं? शोधकर्ताओं के अनुसार योजना ​ही ​सफलता की कुंजी है। एक सुनियोजित  सुव्यवस्थित शहर न केवल शहरी विकास की प्रक्रिया को आसान बनाता है, बल्कि आवास संकट को भी कम करता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि लोगों के लिए उपयुक्त परिस्थितियां बनाने की जगह “शहरी क्षेत्र” को कंक्रीट का जंगल बना देने पर केंद्रित रहना शहरी व्यवस्था में असंतुलन पैदा कर सकता है, जो वीरान शहरीकरण को बढ़ावा देता है।

प्रोफेसर जाना व उनके सह-शोधकर्ताओं के अनुसार उपनगरों का सकारात्मक रूपांतरण हो सकता है। वह मानते हैं कि " योजनाबद्ध तरीके से नए शहरों में आवास की मांग और आपूर्ति में अंतर को कम करने तथा लंबी अवधि के लिए शहरी अनौपचारिकता की समस्या से निपटने के लिए भारी  सम्भावनाएँ ​ हैं”| इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने देखा कि कुछ निजी भवन निर्माता किफायती आवास बनाने पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे थे।

शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि नीतियों को लागू करने के लिए, घरों और जमीन की सट्टा खरीददारी को नियंत्रित करना अति आवश्यक है। इसी के साथ किफायती आवास बनाए जाने के लिए संभावित स्थलों के रूप में नए शहरों को नामित करना, अच्छा सार्वजनिक-निजी​ साझेदारी नीति लागू करना और नए विकास क्षेत्रों में सस्ती कीमतों पर आवास उपलब्ध कराना हमारे शहरों में आवास संकट को हल करने में एक अत्यंत महत्वपूर्ण महत्त्वपूर्ण कदम होगा। यदि इन सुझावों का पालन किया जाए तो वह निश्चित रूप से ​ हम ​हमारे उपनगरों को प्रगतिशील तथा उन्नत बनाने में सक्षम हो सकते हैं।