ऊष्मा जिसे ताप ऊर्जा भी कहते हैं, जीवनोपयोगी आवश्यक ऊर्जा का एक आधारभूत अंग है। हम अपने घरों को उष्ण रखने, खाना पकाने एवं उद्योगों को विद्युत् आपूर्ति करने से लेकर इसके उत्पादन तक, प्रत्येक क्षेत्र में, ताप ऊर्जा का उपयोग करते हैं। हमारे उपयोग में आने वाली अधिकांश ऊष्मा का स्रोत सूर्य है। पौधों और वृक्षों द्वारा अवशोषित एवं संगृहीत यह ऊर्जा लाखों वर्षों के उपरांत इन्हें कोयले में रूपांतरित कर देती है। मानव इतिहास के एक बड़े कालखंड में हम अपनी समस्त ऊष्मा आवश्यकताओं के लिए इन जीवाश्म पौधों को जलाते रहे हैं। इसका हमारे पर्यावरण एवं जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है तथा प्रदूषण एवं ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि हुई है। यद्यपि आज नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के आगमन के साथ मनुष्य सीधे सूर्य से इस प्रकाश का दोहन करने में सक्षम हो चुका है। तथापि हम सूर्य द्वारा उत्सर्जित कुल ऊष्मा ऊर्जा का केवल एक छोटा सा भाग ही ग्रहण कर सके हैं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी मुंबई) ने इस दिशा में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त करते हुए एक ऐसा नवीन पदार्थ निर्मित किया है जो इस ऊष्मा की अधिकाधिक मात्रा को अवशोषित एवं संगृहीत कर सकता है। इसे नैनोस्ट्रक्चर्ड हार्ड-कार्बन फ्लोरेट्स या एनसीएफ कहा जाता है। इस पदार्थ ने 87% से अधिक सौर-ऊष्मा रूपांतरण दक्षता का अभूतपूर्व प्रदर्शन किया है। यह सूर्य के प्रकाश के 97% से अधिक पराबैगनी, दृश्य और अवरक्त (यूवी, विज़िबल एवं आईआर) घटकों को अवशोषित करता है और इसे कुशलतापूर्वक तापीय ऊर्जा में परिवर्तित करता है। इस प्रकार से प्राप्त ऊष्मा व्यावहारिक उपयोग के लिए वायु अथवा जल को प्रभावी रूप से स्थानांतरित की जा सकती है। अध्ययन दर्शाता है कि एनसीएफ कक्ष तापमान पर स्थित वायु को 60 डिग्री सेल्सिअस तक गर्म करते हुए धूम्र रहित स्थल उष्णीकरण का समाधान दे सकता है।
“सूर्य प्रकाश की प्रचुरता वाले शीतल जलवायु क्षेत्रों में स्थित स्थानों को गर्म रखने के लिए यह विशेष रूप से प्रासंगिक है, जैसे लेह एवं लद्दाक क्षेत्र,” इस अध्ययन के लेखक एवं आईआईटी मुंबई के रसायन विज्ञान विभाग के प्राध्यापक सी. सुब्रमण्यम कहते हैं।
सौर जल तापित्र (सौर वाटर हीटर) जैसे उपकरणों में स्थित सौर-ऊष्मा परिवर्तक जैसी युक्ति पहले ही विश्व के अनेकों स्थानों में उपयोग की जा रही है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, भारत के अनुसार भारत में अनुमानत: 4 करोड़ (2.5%) घर पहले ही सौर जल तापित्र का उपयोग करते हैं। किन्तु वर्तमान में उपलब्ध सौर ऊष्मा अवशोषक बहुधा कीमती, भारी एवं पर्यावरण हानि की संभावना से युक्त होते हैं।
“सौर-ऊष्मा रूपांतरण की पारंपरिक प्रणाली क्रोमियम (Cr) या निकल (Ni) जैसी धातुओं के विलेपन (कोटिंग) पर आधारित हैं। एनोडाइज्ड क्रोमियम एक भारी धातु है जो पर्यावरण के लिए विषाक्त है, साथ ही क्रोमियम एवं निकल झिल्लियों (फिल्म्स) की सौर-ऊष्मा रूपांतरण की दक्षता 60-70% के मध्य सीमित होती है। वास्तव में बाज़ारों में उपलब्ध सर्वाधिक गुणवत्ता वाले उत्पादों की सौर-ऊष्मा रूपांतरण दक्षता 70% तक सीमित है,” एनसीएफ विकसित करने वाले अध्ययन की प्रमुख लेखिका डॉ. अनन्या साह स्पष्ट करती हैं।
वहीं मुख्यत: कार्बन से निर्मित एनसीएफ मितव्ययी, पर्यावरण के अनुकूल एवं उपयोग में सरल होते हैं। पारंपरिक सौर जल तापित्र में स्थित निर्वात आवरण (वैक्यूम जैकेट), जिसका अनुरक्षण अत्यधिक कठिन होता है, की आवश्यकता भी एनसीएफ कोटिंग्स में नहीं होती।
सौर ऊर्जा को उपयोगी ऊष्मा में दक्षतापूर्वक रूपांतरित करने हेतु किसी पदार्थ में दो महत्वपूर्ण एवं विपरीत विशेषतायें आवश्यक हैं। सर्वप्रथम आपतित प्रकाश या फोटॉन्स के एक बड़े भाग को सफलतापूर्वक ऊष्मा में परिवर्तित करने की क्षमता जिसे फोटॉन थर्मलाइजेशन कहते हैं। द्वितीय, ऊष्मा चालकता एवं विकिरण जनित हानि से इस ऊष्मा को सुरक्षित बनाए रखने की क्षमता। जब आपतित फोटॉन किसी पदार्थ से टकराते हैं तो वे पदार्थ के परमाणुओं में दोलन उत्पन्न करते हैं। फोनॉन्स कहलाने वाले ये दोलन पदार्थ के माध्यम से यात्रा करते हुए पूरे पदार्थ में उष्णता का प्रसार करते हैं। यदि पदार्थ की फोनॉन तापीय चालकता उच्च है तो ऊष्मा का प्रसार तीव्रता से होगा एवं पदार्थ स्वयं पर आपतित अधिकांश ऊष्मा को खो देगा। अत: एक अच्छे ताप अवशोषक पदार्थ में उच्च फोटॉन थर्मलाइजेशन एवं न्यूनतम फोनॉन ऊष्मा चालकता होनी चाहिए। एनसीएफ कोटिंग्स इन दोनों कारकों के लिए सटीक सिद्ध होती है।
एनसीएफ नैनोकणों की संरचना कार्बन के परस्पर जुड़े हुए छोटे-छोटे शंकुओं से निर्मित होती है और गेंदे के फूल सदृश दिखती है। जब फोटॉन एनसीएफ से टकराते हैं तो इसकी अनूठी संरचना फोनॉन सक्रियता को सुदृढ़ एवं फोनॉन की ऊष्मा चालकता को कम करते हुए इन दोनों कारकों पर सटीक सिद्ध होती है।
“एनसीएफ लघु विस्तार (कम दूरी) तक एक व्यवस्थित संरचना तथा दीर्घ विस्तार (लंबी दूरी) तक अव्यवस्थित संरचना को धारण करती है। अतएव जब प्रकाश ऊर्जा एनसीएफ द्वारा अवशोषित की जाती है तो लघु विस्तार की यह व्यवस्थित संरचना फोनॉन सक्रियकरण (व्यवस्थित संरचना में दोलन) को सुदृढ़ता प्रदान करती है। किन्तु ये फोनॉन ऊष्मा को दूर तक प्रसारित करने में भी सहायक होंगे, जो अवांछनीय है। यहाँ एनसीएफ की दीर्घ विस्तारित अव्यवस्थित संरचना कार्य करती है एवं इन फोनॉन-तरंगों को प्रकीर्णित (स्कैटरिंग) कर फोनॉन की ऊष्मा चालकता को कम कर देती है,” प्राध्यापक सुब्रमण्यम बताते हैं।
सूर्य के प्रकाश को ऊष्मा में परिवर्तित करने की उल्लेखनीय दक्षता के साथ-साथ एनसीएफ का एक और लाभ इसकी प्रक्रिया में निहित है। एनसीएफ बनाने के लिए रासायनिक वाष्प निक्षेपण (केमिकल वेपर डिपोसीशन, सीवीडी) नामक तकनीक का उपयोग करके कार्बन परमाणुओं को एमॉरफस डेंड्राइटिक फ़ाइब्रस नैनोसिलिका (डीएफएनएस) के एक अध:स्तर (सब्सट्रेट) पर निक्षेपित किया जाता है। पदार्थों की सुगम्य उपलब्धता एवं तकनीक की सुग्राह्यता बड़े स्तर पर इसके व्यावसायिक निर्माण को मितव्ययी बनाते हैं। एक बार निर्मित होने पर एनसीएफ को पाउडर कोटिंग के समान प्राय: किसी भी सतह पर स्प्रे-पेंट किया जा सकता है, जो अनुप्रयोग एवं अनुरक्षण (मेंटिनेंस) लागत को भी कम करता है।
"हमने दर्शाया है कि कागज, इलास्टोमर, धातु एवं टेराकोटा मिट्टी जैसी सतहों पर यह कोटिंग संभव है," प्राध्यापक सुब्रमण्यम बताते हैं।
सौर-ऊष्मा रूपांतरण के साथ-साथ एनसीएफ पदार्थों में अन्य संभावनायें भी विद्यमान हैं जैसे कक्षों एवं अन्य छोटे स्थानों को उष्ण रखना (स्पेस-हीटिंग) आदि। शोधकर्ताओं ने प्रदर्शित किया कि एनसीएफ से लेपित खोखली ताम्र नलिकाओं से प्रवाहित वायु को ७२ डिग्री सेल्सिअस से अधिक तापमान तक गर्म किया जा सकता है। उन्होंने अब तक की सर्वाधिक 186% की दक्षता के साथ पानी को वाष्प में परिवर्तित करने की क्षमता का भी प्रदर्शन किया है। सौर वाष्प-रूपांतरण वह विधि है जिसका उपयोग पानी के शुद्धिकरण के लिए किया जाता है। सौर ऊर्जा के दक्षतम (एफिसिएंट) रूपांतरण की बात की जाए तो एनसीएफ का प्रदर्शन अन्य समस्त विकल्पों से बेहतर सिद्ध हुआ है।
"प्रति वर्गमीटर प्रति घंटा एनसीएफ कोटिंग्स 5 लीटर पानी गर्म करने में सक्षम है, जो वाणिज्यिक सौर वाष्प-रूपांतरण उपकरणों की तुलना में 5 गुना बेहतर है," प्राध्यापक सुब्रमण्यम का कहना है।
विश्व भर में व्याप्त ऊर्जा संकट के लिए हरित समाधान का प्रदर्शन करता यह अभूतपूर्व अध्ययन भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की स्वर्णजयंती फ़ेलोशिप द्वारा समर्थित किया गया है। अध्ययन टिकाऊ ऊर्जा स्रोतों की ओर गतिशील वैश्विक परिवर्तन की दिशा में सहायक हो सकता है। कार्यदल ने आईआईटी मुंबई में सोसाइटी फॉर इनोवेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप (एसआईएनई) की सहायता से एक कंपनी स्थापित करके उत्पाद के व्यावसायीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी है। एनसीएफ के विनिर्माण को बढाने पर ध्यान कंपनी केंद्रित करेगी एवं जल तथा स्थल तापित्र (वाटर एंड स्पेस हीटर) के निर्माण के लिए आवश्यक एनसीएफ-आधारित उपकरणों का विकास करेगी। इन प्रयासों को आईआईटी मुंबई के पूर्व छात्र समूह के ट्रांसलेशनल रिसर्च एक्सेलेरेटर (टीआरए) कार्यक्रम के माध्यम से अच्छा समर्थन और मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है। कार्यदल ने अपने आविष्कार के लिए आईआईटी मद्रास में आयोजित कार्बन-शून्य स्पर्धा एवं आईआईटी गांधीनगर के विश्वकर्मा अभियांत्रिकी पुरस्कार-2021 भी जीते हैं।
प्राध्यापक सुब्रमण्यम निष्कर्ष देते हैं, "मेरा दृढ़ विश्वास है कि एनसीएफ भारतवर्ष में सौर-ऊष्मा रूपांतरण परिदृश्य को परिवर्तित करने एवं डीकार्बोनाइजेशन का मार्ग प्रशस्त करने की क्षमता रखता है।"